Friday 30 October 2015

अबकी बार जला देना मां

कभी-कभी समाचार पत्रों में कुछ खबरें ऐसी होती है जो हृदय को व्यथित तो करती ही है साथ ही  समाज में फैली गंदगी को यह कहकर दर्शाती है, कि देखो विश्व की सर्वश्रेष्ठ कही जाने वाली हमारी वैदिक संस्कृति को वासना की दीमक किस तरह धीरे-धीरे चट कर रही है। और भय ये है की शायद आने वाले दिनों में पूर्ण रुप से चट न कर जाये!
कल गाजियाबाद के मोदीनगर में तलहेटा गांव से एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसे पढ़कर लगा कि क्या इंसान इससे भी नीचे गिर सकता है! यदि इस प्रकार के कुकृत्य कर सकता है तो फिरमेरा मानना है कि इंसान भगवान की सबसे सुन्दर कृति नहीं है। खबर थी, जिसमें कब्र खोदकर महिला की लाश निकाली गयी है और फिर उसके साथ बलात्कार जैसा घिनोंना कृत्य किया गया है। बता दूँ कि 26 वर्षीय महिला की दिल का दौरा पडने से मौत हो गयी थी, जिसके बाद उसे दफना दिया गया था। अगली सुबह उस महिला की लाश कब्र से करीब 20 फीट की दूरी पर आपत्तिजनक स्थिति में मिली। इसकी सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची । शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। पुलिस की नजरों में यह महज एक घटना है जिसे कुछ अराजक तत्वों ने अंजाम दिया होगा। पर मानव जाति के लिए इससे शर्मनाक कृत्य क्या होगा! यह एक अकेली घटना नहीं है अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तानी मिडिया के हवाले से खबर थी कि पाकिस्तान के कई प्रान्तों से अलग-अलग कब्रिस्तानों में इस प्रकार के कई सारे मामले संज्ञान में आये जिसमें कब्र खोदकर रेप की घटना सामने आई जिनमें अधिकतर नाबालिग बच्चियों और युवतियों को शिकार बनाया गया।
अब यदि इस प्रकार के मामलों का गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस प्रकार के कृत्य करने वाले लोग संकीर्ण, कुठिंत मानसिकता के रोगी होते है जो यौंन संबध स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है। छोटे बच्चों से लेकर वर्द्ध महिला और तो और कई बार इस प्रकार की बीमारी से ग्रसित रोगी जानवरों तक में योंन सुख की प्राप्ती खोजते हैं। अब यदि हम मूल घटना पर आयें तो कब्र खोदना और उसके बाद युवती के शव के साथ रेप की घटना निंदनीय विषय के एक विचारणीय विषय भी है कि आखिर ये इस प्रकार के रोगी हमारे समाज में कैसे पनपें? दरअसल आज हमारा समाज बेहद   दूषित संस्कृति और खान-पान से जुझ रहा है, जिसे हम लोग आधुनिकता भी कहते है। मनोरंजन के नाम पर अश्लील फिल्में, अश्लील  गीत संगीत और विज्ञापनों के द्वारा लोगों के मस्तिक्ष में नंगता, सेक्स घुसेडा जा रहा है। अब जो मस्तिक्ष में जायेगा वो कल्पना कभी-कभी प्रयोगात्मक कृत्यों के द्वारा बाहर भी आती है जिनमें कुछ योन कुंठा के शिकार रोगी इस प्रकार की घ्रणित अशोभनीय घटनाओं को जन्म तक दे देते है। इस प्रकार की घटनाओं पर यदि कुछ मनोचिकित्सको की माने तो इस प्रकार के रोगी कई बार कुक्रर्म करने के बाद हत्या तक कर डालते है। उस वक्त इन्हें रिश्तें नातें समाज की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रहता जैसे  अभी कई रोज पहले मुंबई के बाहरी इलाकें में एक बेटे के द्वारा अपनी मां के साथ रेप के बाद हत्या का मामला सामने आया था। इस तरह की अनेकों घटनाऐं ऐसी भी होती है जो समाज के सामने नहीं आती | 
आज  बच्चों का पालन-पोषण बेहद विपरीत परिस्थियों में हो रहा है। जिसमें उसे पारिवारिक   सामाजिक ज्ञान नहीं मिल पाता और वो अपनी वैदिक संस्कृति शाकाहारी खान-पान से दुर हो जाता है।   जिसका नतीजा ये इस प्रकार की घटनाओं का होना है और आज जिस तरीके से आधुनिकता की आड में समाज का निर्माण हो रहा है। उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में इस प्रकार की घटनाएं कम होने की बजाय और बढेगी। क्योंकि जो वासना का जहर आज खुले तौर पर बिक रहा है वो जब भी अपना असर दिखायेगा तो कभी जिन्दा तो कभी मुर्दा नारी शिकार जरुर बनेगीं। बहरहाल अब राजनेता कुछ कहे या समाज कुछ कहे लेकिन उस लडकी की आत्मा क्या कहती होगी यही कि अबकी बार दफ़नाने की बजाय जला देना माँ  भले ही लोग तुझे कहे काफिर पर मेरे जिस्म को जला देना मां।

राजीव चौधरी 

Tuesday 27 October 2015

लाशो का धर्म तलाशो ?

एक अजीब तरह का माहोल खडा किया जा रहा। कि देश में अल्पसंख्यक सुरिक्षत नही है माहौल खराब हो चुका है एक अजीब विस्मय के साथ भय पैदा किया जा रहा है, बिलकुल ऐसे जैसे  पहले छोटे बच्चों को कुछ अनदेखे जीवों से डराया जाता था बेटा चुप हो जाओं वरना हाऊ आ जायेगा,  काट लेगा आदि,आदि । दिन पर दिन जितना इखलाक की कब्र मंहगी हो रही है, या यह कहो जितना  माहौल बिगडने का नाटक किया जा रहा है, उतनी ही कब्र महंगी हो रही है|   मिडिया के मुताबिक माने तो करीब 45 लाख सरकारी मदद और अन्य राजनैतिक दलों की तरफ से 30 लाख अब नोयडा के अन्दर चार फ्लेट और आवंटित किये जा रहे है। ये सब उस देश में हो रहा है जहां भूख के कारण  पता नही रोजानां कितने गरीब मुस्लिम बच्चें दम तोड देते है। पर सरकार की तरफ से गरीबों  की फ़िक्र की बजाय लाशो को धार्मिक आधार पर देखा जा रहा है। वरना कई रोज पहले मैगलरु से करीब 20 किलोमीटर दूर मूदबिद्री गाँव में फूल विक्रेता प्रशांत पुजारी की सरेआम हत्या कर दी गयी पर वो  बहुसंख्यक वर्ग से था मुस्लिम संगठन आरएफडी के लोगों ने प्रशांत की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि प्रशांत ने गायों के अवैध  तस्करों के खिलाफ सक्रिय होकर बडे़ पैमाने पर छुडाया था। शायद यही वजह कही जा सकती है कि बहुसंख्यक होने की वजह से उसकी चिता को मुल्य तो दूर की बात सात्वना की एक आवाज तक नहीं सुनायी दी। क्योकि फिलहाल भारत के राजनीति के बाजार में क्रब मंहगी और चिता सस्ती बिक रही है। भारत की मीडिया का एक बडा धडा अपनी तेज नाक से कब्र तो खोज लेता है पर चिता से उठता धुआं उसे दिखायी नहीं देता। यदि ये लोग सही खबर रखे तो शायद इतना शोर न हो! आज भारत के साहित्यकार अफसोस मना रहे है, दुखी है, रो रहे है, लेकिन यह सरस्वती के पुजारी इस बात को क्यों नही सोचते की  हिंसा कही भी हो सकती और हिंसा किसी की  भी जान ले सकती है राम की भी और रहीम की भी। देश के अन्दर कानून है, संविधान है  न्यायपालिका है फिर  यह उपद्रवी मानसिकता क्यों? या फिर यह लोग अपना हिंसा का मापदंड सामने रखे पर क्रब पर या चिता पर राजनीति इन तथाकथित बुद्धिजीविता के ठेकेदारों को शोभा नहीं देती इसे देखकर तो यह लोग साहित्कार कम और किसी मदारी के बन्दर ज्यादा नजर आते है कि जैसे चाहों इनसे उछलकूद करा लो।
दूसरी बात यह लोग चिल्लाकर कह रहे है कि देश में अल्पसंख्यक त्रस्त है वो हर पल खतरे में जी रहा है तो इसे मैं बकवास के अलावा कुछ नहीं कहूँगा क्योकि जो लोग दहशत में जीवन जीते है वो पलायन कर जाते है, सीरिया में मुसलमानों के द्वारा मुसलमान त्रस्त था जर्मनी में शरण ली हजारों लाखों हिन्दू बांग्लादेश और पाकिस्तान के अन्दर दहशत में थे भारत में शरण ली कश्मीर में अपना सब कुछ गवांकर हिन्दू शरणार्थी आज जम्मू व भारत के अन्य  राज्यो में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है पर कोई एक ऐसा मुसलमान इस देश में नहीं जो दहशत के कारण भारत छोडकर पडोसी देश में जाकर बसा हो! उल्टा यहां का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना देखकर बांग्लादेश से करोडो मुसलमान ही आकर बस गये। तीसरा इखलाक की हत्या देश में  कोई पहली हिंसा नही है जो यह लोग सार्वजनिक मंचो से लेकर विश्व के मंचो तक शोर मचा रहे है। इस देश के  लोगों ने बडे-बडे दुख झेले है। 1990 में कश्मीर जल उठा था तब क्या यह साहित्यकार बहरे हो गये थे हजारों लोग की चींखे तब इन्हें क्यों सुनायी नहीं दी, इखलाक के शव को तो दो गज जगह और मिटटी भी नसीब हो गयी पर कश्मीर की हिंसा और  बटवारे की हिंसा ने न जाने कितने शव जंगली जानवरों का निवाला बने। खैर प्रसंग बडा है और प्रश्न लाखों, जिनका जबाब यह प्रमाण पत्रो के साहित्कार नही दे पायेगें अतः मेरी सरकारो और मीडिया से इतनी विनती है कि हालात ऐसे न बने की हिंसा हो यदि हो   कहीं हो भी  पर उसमें पडने वाली मिटटी और चिता के घुऐं को बराबर सम्मान दें चिता और कब्र को मिलने वाली सात्वना राशी बराबर हो वरना दिन पर दिन कबर महंगी होती जायेगी और यह हाऊ का खेल बंद करे


राजीव चौधरी 

Tuesday 20 October 2015

क्या आज आपने "Rapes of India" और "RapeTimes" अख़बार पढ़ा?

अंग्रेजी में दो प्रसिद्द अख़बारों के नाम हैं "Times of India" और Hindustan Times  भारत में जिस गति से बलात्कार या रेप की घटनाएँ बढ़ रही हैं उस हिसाब से कुछ दिनों में इन अख़बारों के नाम बदल कर "Rapes of India" और "RapeTimes" करना पड़ेगा। अचरज में मत पड़े। जब दिल्ली का नाम परिवर्तन कर उसे "Rape Capital" की संज्ञा से पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर यह संज्ञा देने वाले समाचार पत्रों का यथास्वरूप नामकरण क्यों नहीं हो सकता। सोचिये इन बलात्कार समाचार पत्रों के पृष्ठ  कैसे होंगे?

पृष्ठ 1 

आज दिल्ली में 3 और बलात्कार हुए। 
तीनों बलात्कार की पीड़ित लड़कियां 5 वर्ष की आयु से कम निकली। 
बलात्कार करने वाले सभी लड़के नाबालिग। 
एक लड़की शौच करने निकली तब शिकार बनी। 
दूसरी खेल रही थी टॉफी दिलाने के बहाने शिकार बनी। 
तीसरी के किरायेदार ने उसके साथ दुष्कर्म किया। 
तीनों बच्ची विभिन्न हस्पतालों के चक्कर खाते के पश्चात सफदरजंग हस्पताल में भर्ती। 
तीनों की हालत गंभीर, तीनों को अनेक बार सर्जरी की आवश्यकता।      
सभी नाबालिग रिमांड पर। सबसे छोटे की आयु 9 वर्ष। 

पृष्ठ 2 

केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस को बलात्कार के लिए दोषी बताया। 
केजरीवाल द्वारा यह बयान दिया गया की दिल्ली पुलिस उनकी सलाह पर ध्यान नहीं देती।
जब तक उन्हें दिल्ली पुलिस का कार्यभार, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा और सबसे आवश्यक उन्हें भारत का प्रधान मंत्री नहीं बनाया जायेगा तब तक दिल्ली में बलात्कार नहीं रुकेंगे। 
मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने आज दिल्ली पुलिस भवन के आगे प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी का पुतला दिल्ली में हुए बलात्कारों के विरोध में फूंका। उनका कहना था जब से दिल्ली में नरेंदर मोदी जी की सरकार आई हैं तब से बलात्कार के मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई हैं। 
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का बयान लड़कों और लड़कियों दोनों से गलती हो जाती हैं। माँ-बाप को अपनी बच्चियों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के दूसरे मंत्री आजम खान का बयान की वह बढ़ते बलात्कार के लिए संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिखेंगे। 

पृष्ठ 3 

कुछ संगठनों ने बढ़ते बलात्कार का कारण बढ़ती फिल्मों, अश्लील साइट्स आदि के माध्यम से बढ़ती अश्लीलता बताया तो कुछ आधुनिक बुद्धिजीवी जिसमें अश्लील उपन्यास लिखकर पेट भरने वाली  लेखिका, अर्धनंग और अश्लील फिल्में बनाकर पेट भरने वाले फ़िल्म निर्देशक, अपना जिस्म दिखाकर पेट भरने वाली अभिनेत्रियां मीडिया में आकर बयानबाजी करने लगे की खुले विचार हिन्दू समाज का अभिन्न अंग है। 
हिन्दू धर्म कामसूत्र और खजुराओ की मूर्तियों का प्रचारक हैं।
हिन्दुत्ववादी लोग नारी को कपड़ों में कैद करना चाहते हैं। 
अश्लील साइट्स देखना सभी की नजदीकी स्वतंत्रता हैं। 
लिव-इन-रिलेशन में रहना, समलैंगिक होना, विवाह पूर्व या पश्चात अनेकों से सम्बन्ध होना आधुनिक विचारों का प्राय: हैं। 
 शर्लिन चोपड़ा और पूनम पाण्डेय ने कपड़ों के स्थानों पर अजग़र लपेट का अपना प्रतीरोध प्रदर्शित किया।
महेश भट्ट ने सन्नी लियॉन को उसकी बेदाग छवि, नैतिकता, समाज को देन के लिए भारत रत्न की मांग कर डाली।

पृष्ठ 4 

फुल पेज पर विज्ञापन ही विज्ञापन 

पहला सन्नी लेओनी के कंडोम का विज्ञापन 
दूसरा DeoSpray में एक अर्ध नग्न मॉडल के चारों और deo लगाने पर लड़कियां मक्खियों के समान भिन्नभिना रही हैं। 
तीसरा एक लड़की ब्राण्डेड जीन्स पहन कर अपनी figure दिखा रही हैं। 
चौथा एक पुरुष अंडरवेअर पहन कर अपनी मर्दानगी से महिलाओं को आकर्षित कर रहा हैं। 

अगले दिन, अगले सप्ताह , अगले साल भर Rape Times अखबार में यही ख़बरें अपने नाम बदलकर फिर से छपती रही। नतीजा वहीं का वहीं । भारत की मासूम लड़कियां ऐसे ही पीड़ित होती रहेगी। हर रोज अनेक लड़कियां "निर्भया" के समान अत्याचार का सामना करती रहेगी। नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सकते रहेंगे। जिनका धंधा अश्लीलता परोस कर चलता है। वो कभी मंद नहीं होगा। व्यापारी कम्पनियां NGO धंधे वालो के साथ मिलकर अभिव्यक्ति और नीज स्वतंत्रता के नाम पर अपने उत्पाद बेचकर भारी मुनाफा कमाने के लिए युवाओं की सोच को प्रदूषित करती रहेगी। हमारी सरकार अश्लीलता को रोकने का जैसे ही कोई उपाय करेगी। सेक्युलर गैंग वाले उसकी इतनी आलोचना करेंगे की वह वोट के भय के चलते अपने पांव पीछे खींच लेगी।  

अंत में ---
  
मेरे देश की बेटी यूँ ही पिसती रहेगी !
मेरे देश की बेटी यूँ ही मरती रहेगी !

(समाज में नारी जाति को देवी कहा गया हैं। उनका सम्मान करना सभी का दायित्व हैं। आईये इस अश्लीलता रूपी दानव का देवी हाथों नाश कर एक आदर्श समाज का निर्माण करे।इस लेख को हर अश्लीलता के विरुद्ध समर्थन करने वाला मित्र शेयर अवश्य करे)
 
डॉ विवेक आर्य 

Monday 19 October 2015

क्या आज आपने "Rapes of India" और "RapeTimes" अख़बार पढ़ा?

अंग्रेजी में दो प्रसिद्द अख़बारों के नाम हैं "Times of India" और Hindustan Times  भारत में जिस गति से बलात्कार या रेप की घटनाएँ बढ़ रही हैं उस हिसाब से कुछ दिनों में इन अख़बारों के नाम बदल कर "Rapes of India" और "RapeTimes" करना पड़ेगा। अचरज में मत पड़े। जब दिल्ली का नाम परिवर्तन कर उसे "Rape Capital" की संज्ञा से पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर यह संज्ञा देने वाले समाचार पत्रों का यथास्वरूप नामकरण क्यों नहीं हो सकता। सोचिये इन बलात्कार समाचार पत्रों के पृष्ठ  कैसे होंगे?

पृष्ठ 1 

आज दिल्ली में 3 और बलात्कार हुए। 
तीनों बलात्कार की पीड़ित लड़कियां 5 वर्ष की आयु से कम निकली। 
बलात्कार करने वाले सभी लड़के नाबालिग। 
एक लड़की शौच करने निकली तब शिकार बनी। 
दूसरी खेल रही थी टॉफी दिलाने के बहाने शिकार बनी। 
तीसरी के किरायेदार ने उसके साथ दुष्कर्म किया। 
तीनों बच्ची विभिन्न हस्पतालों के चक्कर खाते के पश्चात सफदरजंग हस्पताल में भर्ती। 
तीनों की हालत गंभीर, तीनों को अनेक बार सर्जरी की आवश्यकता।      
सभी नाबालिग रिमांड पर। सबसे छोटे की आयु 9 वर्ष। 

पृष्ठ 2 

केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस को बलात्कार के लिए दोषी बताया। 
केजरीवाल द्वारा यह बयान दिया गया की दिल्ली पुलिस उनकी सलाह पर ध्यान नहीं देती।
जब तक उन्हें दिल्ली पुलिस का कार्यभार, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा और सबसे आवश्यक उन्हें भारत का प्रधान मंत्री नहीं बनाया जायेगा तब तक दिल्ली में बलात्कार नहीं रुकेंगे। 
मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने आज दिल्ली पुलिस भवन के आगे प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी का पुतला दिल्ली में हुए बलात्कारों के विरोध में फूंका। उनका कहना था जब से दिल्ली में नरेंदर मोदी जी की सरकार आई हैं तब से बलात्कार के मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई हैं। 
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का बयान लड़कों और लड़कियों दोनों से गलती हो जाती हैं। माँ-बाप को अपनी बच्चियों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के दूसरे मंत्री आजम खान का बयान की वह बढ़ते बलात्कार के लिए संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिखेंगे। 

पृष्ठ 3 

कुछ संगठनों ने बढ़ते बलात्कार का कारण बढ़ती फिल्मों, अश्लील साइट्स आदि के माध्यम से बढ़ती अश्लीलता बताया तो कुछ आधुनिक बुद्धिजीवी जिसमें अश्लील उपन्यास लिखकर पेट भरने वाली  लेखिका, अर्धनंग और अश्लील फिल्में बनाकर पेट भरने वाले फ़िल्म निर्देशक, अपना जिस्म दिखाकर पेट भरने वाली अभिनेत्रियां मीडिया में आकर बयानबाजी करने लगे की खुले विचार हिन्दू समाज का अभिन्न अंग है। 
हिन्दू धर्म कामसूत्र और खजुराओ की मूर्तियों का प्रचारक हैं।
हिन्दुत्ववादी लोग नारी को कपड़ों में कैद करना चाहते हैं। 
अश्लील साइट्स देखना सभी की नजदीकी स्वतंत्रता हैं। 
लिव-इन-रिलेशन में रहना, समलैंगिक होना, विवाह पूर्व या पश्चात अनेकों से सम्बन्ध होना आधुनिक विचारों का प्राय: हैं। 
 शर्लिन चोपड़ा और पूनम पाण्डेय ने कपड़ों के स्थानों पर अजग़र लपेट का अपना प्रतीरोध प्रदर्शित किया।
महेश भट्ट ने सन्नी लियॉन को उसकी बेदाग छवि, नैतिकता, समाज को देन के लिए भारत रत्न की मांग कर डाली।

पृष्ठ 4 

फुल पेज पर विज्ञापन ही विज्ञापन 

पहला सन्नी लेओनी के कंडोम का विज्ञापन 
दूसरा DeoSpray में एक अर्ध नग्न मॉडल के चारों और deo लगाने पर लड़कियां मक्खियों के समान भिन्नभिना रही हैं। 
तीसरा एक लड़की ब्राण्डेड जीन्स पहन कर अपनी figure दिखा रही हैं। 
चौथा एक पुरुष अंडरवेअर पहन कर अपनी मर्दानगी से महिलाओं को आकर्षित कर रहा हैं। 

अगले दिन, अगले सप्ताह , अगले साल भर Rape Times अखबार में यही ख़बरें अपने नाम बदलकर फिर से छपती रही। नतीजा वहीं का वहीं । भारत की मासूम लड़कियां ऐसे ही पीड़ित होती रहेगी। हर रोज अनेक लड़कियां "निर्भया" के समान अत्याचार का सामना करती रहेगी। नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सकते रहेंगे। जिनका धंधा अश्लीलता परोस कर चलता है। वो कभी मंद नहीं होगा। व्यापारी कम्पनियां NGO धंधे वालो के साथ मिलकर अभिव्यक्ति और नीज स्वतंत्रता के नाम पर अपने उत्पाद बेचकर भारी मुनाफा कमाने के लिए युवाओं की सोच को प्रदूषित करती रहेगी। हमारी सरकार अश्लीलता को रोकने का जैसे ही कोई उपाय करेगी। सेक्युलर गैंग वाले उसकी इतनी आलोचना करेंगे की वह वोट के भय के चलते अपने पांव पीछे खींच लेगी।  

अंत में ---
  
मेरे देश की बेटी यूँ ही पिसती रहेगी !
मेरे देश की बेटी यूँ ही मरती रहेगी !

(समाज में नारी जाति को देवी कहा गया हैं। उनका सम्मान करना सभी का दायित्व हैं। आईये इस अश्लीलता रूपी दानव का देवी हाथों नाश कर एक आदर्श समाज का निर्माण करे।इस लेख को हर अश्लीलता के विरुद्ध समर्थन करने वाला मित्र शेयर अवश्य करे)
 
डॉ विवेक आर्य 

Thursday 15 October 2015

आखिर ऊॅंच नीच का भेद-भाव क्यों ?

कल परसों हम आजादी की 68  वीं वर्षगांठ मना रहे थे । आजादी के गीतों से गा रहे थे कि   किस तरह हमें आजादी मिली 125  करोड भारतीयों के  लिये अत्यंत हर्ष, उमंग का दिन था   देश के प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करता हूँ , कि उन्हौनें  लाल किले की प्राचीर से जातीय-नस्लीय भेद-भाव पर समाज के मन को झझकोरा। पर इस पावन पर्व पर भी मेरे मन में ये प्रश्न  घर किये बैठा है, कि आखिर देश में जातिवाद, ऊंच  नीच का भेद-भाव क्यूं ?  चलो हम मानते है कि समाज को राजनैतिक आजादी तो मिल गयी पर जातिवाद की मानसिक गुलामी से आजादी पाने के लिये कौन सी क्रान्ति करनी पडेगी  छुआछूत, अप्रस्यता ,छोटी जाति, बडी जाति ये सब अभिशाप  तो इस समाज में अभी भी  ज्यों के त्यों खडे है। और ये अभिशाप जब तक इस देश  के अन्दर  है  तब तक   इस देश का पतन होता रहेगा। इतिहास  कहता है कि वैदिक युग की समाप्ती के बाद समाज में जातिवाद का जहर तीव्र पैमाने पर फैला जो बाद में इस देश के विनाश का कारण बना इसका मतलब यह कि चलो समाज शास्त्री इस बात को तो मानते है कि वैदिक युग में जातिवाद जैसी कुप्रथा नही थी अब प्रश्न यह कि जब लोगों को इस बात का पता है तो अब वैदिक युग अपनाने में क्या परेशानी है, हमने सरकारो से हमेशा  जातीय भेद-भाव खत्म करने की बस हूंकार भरी पर किसी सरकार में इच्छा शक्ति नही देखी यदि होती तो नयी-नयी जातीय योजनाओं का शुभारम्भ नहीं होता अभी हिसार के भगाना गांव के दलित समाज के कुछ परिवारो के सामाजिक बहिस्कार के कारण सामूहिक रुप से धर्म परिवर्तन की बात सामने  आई दूसरी घटना मथुरा नौहझील क्षेत्र के पारसौली गांव में वहां पर दलित समुदाय का कुछ  लोगों सामाजिक तिरस्कार किया इन घटनाओं ने एक बार फिर हमारे पढे लिखे समाज की मानसिकता एक बार प्रश्न चिंह खडा कर दिया कि ये जाति प्रथा के झूठे आइने में खुद को कितना बडा क्यूं न समझते है? इस तरह के कुकृत्यो  पर में इनकी मानसिकता को दलित शोषित, पिछड़ी  मानसिकता कह सकता हूं देश भले ही उठने की कोशिश में हो पर हम अब भी जातिवाद जैसी मानसिक गुलामी के खड्डे में पडे है  आखिर उन 100 परिवारो का कसूर क्या है बस इतना है कि सामाजिक बटवारे के  आधार में  वो दलित जाति से है, पर हमनें तो हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को उन लोगों के भी गले मिलते देखा है जिन्हौनें  इस देश की धर्म संस्कृति को स्त्रियों के चीर, चरित्र को हजारो सालो तक रोंदा और यह लोग तो हजारों सालो तक जातिगत रुप से खुद को ऊंची जाति से समझने वाले लोगों के  पैरो तले पददलित होकर भी इनके साथ धर्म युद्ध  में डटे रहे अब आज भी इनसे धृणा करते है इनकी अवहेलना, इनका सामाजिक  तिरस्कार बहिस्कार करते है  फिर धर्म परिवर्तन का शोर मचाते है जब तुम उन लोंगों को गले लगा सकते हो तो फिर इन अपनो को क्यूं नहीं  इनसे कैसी नफरत? में  सरकारो से एक बात पूछना चाहता हूँ जो पददलित समाज शताब्दियो तक जातिवादी अन्याय अपमान  के साथ  अपने ही भूभाग पर प्रताडित हो रही हो क्या अब उसे  सम्मान पूर्वक जीने का हक नहीं है,  अब उसे  गले लगाये जाने की जरुरत  नहीं है, यदि नहीं तो धर्मपरिवर्तन पर रोना चिल्लाना छोड दो  कहते है पांच हजार लीटर की पानी की टंकी भी छोटे-छोटे छिद्रो से रिक्त हो जाती है और इस हिन्दू समाज में तो अंसख्य  जातिवाद के छेद है यदि छेद नहीं भरे गये तो  धर्म और देश खोखला हो जायेगा आर्य समाज हमेशा  से ये जातिवाद जैसी कुप्रथाओं  का खंडन मडंन करता आया है यही कारण था जो पंडित मदन मोहन मालवीय जी को ये कहने को विवष होना पडा था- कि जिस दिन आर्य समाज  सो जायेगा उस    दिन हिन्दू धर्म का पतन हो जायेगा। 

जाति एक भ्रम है, यह एक दंभ है, यह मानसिक दासता है, यह एक मिथक है, अंधविश्वास है, अभी भी समय है इस जाति शब्द को चेतना बनाकर हृदय से लगा लो ताकि ये भौतिक शक्ति बनकर देश धर्म दोनो को एक नई उचाई पर पंहुचा सके जातीय भेद-भाव किसी भी समाज के माथे पर कलंक होता है और यदि अब भी ये घटना होती है तो में समझता हूँ ये देश  धर्म के खतरनाक साबित होगा......राजीव चौधरी 

अभद्रता की हद

देश  की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने के साथ-साथ माता जैसे पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया है और छोटी बच्चियों को कन्या जैसे शब्दों से सुषोभित कर लोक परम्पराओं, उत्सवों व ग्रह प्रवेश, यज्ञ इत्यादि में इन्हीं छोटी-छोटी बच्चियों को पूजनीय मानकर सबसे पहले भोजन कराया जाता है और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि वैदिक सभ्यता के अलावा दूसरी कोई भी संस्कृति या सभ्यता नारी के किसी भी रूप को इतना मान नहीं देती जितना कि वैदिक आर्य संस्कृति समाज देता  है। किन्तु हम जब इस संस्कृति पर हमला होते देखते हैं तब मन की पीड़ा विरोधी बनकर समाज को जगाने के लिए बेचैन हो उठती है। विगत महीने प्रधानमंत्री जी ने जब बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा  दिया तो मन बड़ा प्रफुल्लित हुआ कि चलो आर्य समाज की आवाज में किसी ने तो स्वर से स्वर मिलाया। किन्तु जब कुछ दिन पीछे जब ये खबर पढ़ी कि अभद्रता के चलते उत्तर प्रदेश में लगभग चार सौ बच्चियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया, तो मन द्रवित हो उठा बात कुछ यूं है कि उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक गांव की कुछ बच्चियां नदी पार कर स्कूल जाती है  जब नाव नहीं होती तो मासूम अबोध बच्चियां तख्तों के सहारे नदी को पार करती है उसी समय कुछ आवारा लड़के नदी में आकर नहाते है अश्लील हरकतें व भद्दे इशारे कर इन्हें गालियां तक देते, लेकिन जब इन बच्चियों ने इसका विरोध किया तो वो दरिंदे इन बच्चियों के साथ मार-पीट पर उतर आये जिसके चलते डरी सहमी ये मासूम बच्चियों ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया|  एक तो गरमी-बरसात में अपने भारी भरकम बस्ते बचाते हुए नदी पार कर स्कूल जाना दूसरा रोज छेड़खानी का शिकार होना और बच्चियां भी इतनी छोटी कि वो ठीक ढंग से बता भी नहीं पा रही हैं अंदाजा लगाना कठिन है कि छेडछाड की हरकत कैसी होगी क्योंकि खुद पुलिस अधिकारी भी बताने में शर्म महसूस कर रहे है अब आप समझ सकते है की घटना कैसी होगी ! अक्सर कुछ ऐसे ही कारणो से लडकियां स्कूल जाना बंद कर देती है या परिवार के लोग ही जाने नहीं देते लेकिन सबसे बडी बात इस मामलें में ये देखने को मिली महिला आयोग की उपाध्यक्ष ही उल्टा बच्चियों को डाटनें लगी और वो लडकियां खामोश  है कि आखिर माजरा क्या है वे इस छेड़छाड़ का शिकार क्यों हो रहीं हैं! यदि हम इस व्यवहार को पशुवत व्यवहार कहें तो शायद पशु  का भी अपमान होगा क्योंकि ऐसी शर्मनाक हरकतें तो पशु भी नहीं करते। आखिर मनुष्य के रूप ये दरिंदे हैं कौन जो प्रशासन इन्हें बचाने में लगा हुआ है! बस इतना कि वे एक विषेश सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। एक और तो उत्तर प्रदेश सरकार आसाराम के गवाह की मौत होने पर सीबीआई जांच के आदेश तक दे देती है दूसरी और वो इस मामले पर चुप्पी साधे क्यों बैठी है? और जब स्थानीय साधू संतो ने इस मामले के खिलाफ आवाज उठाई तो वही प्रशासन धारा १४४  लगा देता है  हमें इस  मामले में संवेदना नहीं विरोध करना चाहिये क्योंकि मामला मासूम बेटियों का है और  मेरा आह्वान समस्त महिला समाज से है कि इस मामले को सार्वजनिक मंचों पर उठाकर उन बच्चियों को न्याय दिलाया जाए। भारत के राजनेता और अभिनेता एक आतंकी को मासूम कहकर बचाने के लिये राष्ट्रपति को ज्ञापन सोपने निकल पड़ते है किन्तु जब कोई ऐसा सवेदंशील मामला आता है तो ये मौन हो जाते हैं क्या वह आतंकवादी याकूब मैनन इन बच्चियों से भी ज्यादा मासूम है जो सरकार इस पर कार्यवाही करने के बजाय मौन धारण करना ज्यादा पसंद करती है। आमतौर पर ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी बच्चियों को विरोध करना नहीं सिखाया जाता था जिस कारण वो अपने  साथ होते गलत व्यवहार पर चुप रह जाती थीं और मानसिक व शारीरिक यातना का शिकार होती रहती थीं,, यदि कोई विरोध करती भी थी तो उसे चरित्रहीन समझा जाता था किन्तु आज ऐसा नहीं है आज विरोध को न्याय मिलता है खैर इन बच्च्यिों की हिम्मत की दाद देनी पडेगी कि इन्हौने प्रसंशा का काम किया
                           राजीव चौधरी


अशिक्षा, अंधविश्वास और आधुनिक भारत

हाल ही में असम के सोनितपुर जिले के विमाजुली गांव में 63 साल की ‘ओरंग’ नाम की एक महिला पर डायन होने का आरोप लगाते हुए भीड़ ने उसका सिर काट कर मार डाला| आरोप है कि किसी पुजारी के कहने पर करीब 200  लागों की भीड़ ने इस कृत्य  को अंजाम दिया।  ठीक इससे पहले 3 जुलाई 2015 को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक आदिवासी महिला को डायन घोषित कर कुछ लोगों के द्वारा उसके साथ घिनोना कृत्य किया गया था। 16 मई 2015  झारखंड अंधविश्वास  के चलते टोने-टोटके की वजह से चार महिलाओं समेत छः लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था । यूँ तो  देश  में    महिलाओं को अत्याचार से बचाने के लिये कहने को तो सरकार ने कई कानून बनाये लेकिन डायन या चूडैल बताकर प्रताडि़त करने वालो के खिलाफ कोई सख्त कानून नहीं बनाया  जिस कारण अपराधी के मन में कानून का कोई खोफ नहीं है पुलिस इन मामलों में मामूली धाराएं लगाकर मामला दर्ज करती है जिस कारण अपराधी को कडी सजा नही मिल पाती और यही वजह है कि समाज में औरतों को प्रताडित करने का यह घिनोना कृत्य रुकने कर नाम नहीं रहा है । देश के कुछ अगडे राज्यो को यदि छोड़ दिया जाये तो देश के पिछड़े राज्यो में खासकर असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश  और पूर्वी उत्तर के कुछ जिलो में डायन के नाम पर औरतों के साथ प्रताडना के मामलो में इजाफा हुआ है । और इन मामलों मे सबसे बडी विडम्बना ये है कि ऐसी घटनायें अकेले में या छुपकर नहीं बल्कि समाज के सामने और खुले आसमान के नीचे होती है दुख की बात ये है कि इन घिनोने कुकर्त्यों पर पीडित महिला के प्रति समाज संवेदना शुन्य पाया जाता है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश  के संधावा इन्दौर में रहने वाली टेटलीबाई और लीलाबाई को इस वजह से मौत का मुहं देखना पडा कि गाँव के ही एक आदमी भीमसिंह के कहने पर गांव की पंचायत में डायन घोषित किया गया भीम सिंह को लगता था कि उसकी बीमारी का कारण इन दोनो के द्वारा किये गये जादू-टोने है। एक और मामला झारखंड में हुआ इसमें एक ही परिवार के 4 लोगों  को इस वजह से जान से धोना पडा कि  गुरा मुंडा और तांबा मुंडा भाई थे और सभी को गुरा मुंडा की पत्नि पर डायन होने का शक था। उनकी सोच थी कि गुरा की पत्नि के कारण घर में विपदाएं है । और इस कारण सबको जान से हाथ धोना पड़ा जाहिर सी बात है इन मामलों पर जब तक कोई केन्द्रीय कानून नहीं बनेगा इस तरह के अपराधो में कोई कमी नहीं आयेगी लेकिन इन मामलों के बढ़ने का  सबसे बडा ये होता है    कि ज्यादातर मामलें पिछडें  गरीब और आदिवासी होते है जिस कारण कोई भी केन्द्रीय सरकार ध्यान नहीं देती वहीं राज्य सरकार की संवेदना भी किसी मामलें में तब जाग्रत होती है जब कोई मामला मिडिया या विपक्षी नेताओ के हाथ लग जाता है और छोटा-मोटा मुवाअजा देकर अपने  कर्तव्यो से इतिश्री कर ली  जाती  है। स्थानीय प्रशासन और भी कागजी कारवाही के अलावा कभी ऐसा कोई कार्य नहीं करता जिससे इस नारी विरोधी परवर्तियो  में कोई सुधार किया जाये जिस कारण महिलायें इन पाशविक कर्त्यो का शिकार होती रहती है राजस्थान की वसुधरा राजे सरकार को धन्यवाद की जिसने गरीब महिलाओं को बचाने के लिये डायन प्रताडना कानून प्रभावी किया जो महिलाओं को डायन चुडैल  के नाम पर होने वाले अत्याचारोंसे बचाता है। कुछ भी कहे एक सभ्य समझे जाने वाले और तेजी से विकास की और बढते देश में     इस तरह की घटनाऐं होना कहीं न कहीं हमारी आधुनिकता हमारे विकास की पोल खोल देती  है ।


राजीव चौधरी    

Wednesday 14 October 2015

बदलते जमाने के बदलते भगवान

ऐसे क्या कारण रहे कि पिछले 50 साल में पूजा के लिये दर्जनो भगवानो का जन्म हुआ और वो फिर  बदलते जमाने के साथ अपना अस्तित्व खोते चले ये। यदि आज कुछ प्रश्न करुं तो उसे धर्म पर हमला न समझकर अधर्म पर हमला समझना कारण धर्म अजेय है और अधर्म पराजित| सबसे पहले समझे कि भगवान को जिन्दा कौन रखता है क्योंकि अगर हम जिन्दा रखने वाले को पहचान ले, तो मारने को भी पहचान जायेंगे। वैसे तो पूजापाठ करने वाले लोगों को भगवानों की कोई कमी नही रही मन्दिर भले ही क हो पर उसमें भगवान दस होते है जो जन्मते और मरते रहते है। 70 के दक में हनुमान और शिव थे तो 80 के दक में संतोषी माता 90 के दक में माता के जागरण चल पडें फिर अचानक गणेश जी दूध पीने लग गये और भारत ही पूरे विश्व के पूजारियों ने इस कृत्य की पुष्टि भी की हांलाकि मुझे इस विषय से कुछ लेना नहीं है। में तो सिर्फ बदलते भगवानों की बात कर रहा हूँ  फिर वैष्णो माता लोगों  की मन्नत पूरी करने लगी तभी दक्षिण भारत में विराजमान तिरुपति बालाजी जो कुबेर का कर्ज चूका रहे है बाला जी ने उत्तर भारत में अपनी धाक जमा ली तब तक लोग  इस बात को भली-भांति  समझ पाते जब तक नया भगवान शिर्डी का साईं बाबा आ गया और धर्म के धंधे के व्यवसाय को आगे  बढाते  करोडो अरबों का व्यवसाय कर  डाला। और आज साई के जागरण पूरे धूम-धाम से देमें हो रहे है फिलहाल बाकि के  भगवान मृत है क्योंकि अभी साईं जिन्दा है।
अच्छा कुछ लो कहते है कि नास्तिक लो भगवान को मारते है, तो लत नास्तिक की क्या  हैसियत कि वो भगवान को मारे आपने कभी देखा, सुना है कि अँधेरे ने आकर दीये को बुझा दिया हो! इसलिये इस बात को गांठ  में बांध लेना भूलना मत कभी इस दुनिया में धर्म को खतरा नास्तिको से इतना नही होता जितना झूठें आस्तिको पांखडियों नये-नये भगवान के निर्माताओ से होता है। जैसे असली सिक्कों को खतरा कंकर, पत्थर से इतना नही होता जितना नकली सिक्को से होता है। क्योंकि नकली सिक्के असली सिक्को के वजूद पर चोट करते है जैसे नकली भगवान लोगों को ईश्वर को नही समझने देते |
मन्दिरों के पंडितो ने  मस्जिदो के मौलवियो ने चर्च के पादरियों ने कभी मानवता को धर्म समझने नहीं दिया कारण ये लो नकली सिक्के है और इन्हौनें ईश्वर   नाम हटाकर वैदिक रीति-नीति हटाकर असली सिक्को को बाहर कर दिया नकली सिक्के सस्ते भी मिलते है, तभी लोगों ने हाथों-हाथ लिया असली धर्म के  लिये उपासना का श्रम  करना पडता है खुद को जानना पडता है। निराकार ईश्वर की सत्ता का रहस्य जानना पडता है। पर इन लोगों  के लिये मजे की यह बात रही जागरण में हुडदंग है नृत्य  है, अश्लीलता है, अभी कई रोज पहले क मित्र  बता रहे कि हमारी  कालोनी में साई जागरण  था सुबह देखा तो 20 -25 शराब की खाली बोतल भी मिली अब मेरा प्रश्न  है क्या यह भक्ति है ? बुद्ध ने नही  कहा था कि मुझे भवान मानो पर लोगों ने उसे भगवान बना दिया महावीर ने नही कहा था मुझे भगवान कहो,    लेकिन लोगों ने उसे भी भगवान बना दिया मर्यादा पुरषोंत्तम राम केविचारो की हत्या इन पांखडियों ने की, योगिराज कृष्ण के विचारो के हत्यारे यह ही लोग  है जो आज साई के जागरण  में माता के जागरण  में नाच रहे है जो आनलाईन प्रसाद दे रहे है।
भगवान को पाने के लिये धर्म को जिन्दा रखने के लिये धर्म के अनुभव से गुजरना पडता है   वरना धर्म तब भी था जब सोमनाथ के मन्दिर में यह पाखंडी शिव को अकेला छोड भाग गये थे और महमूद जनवी की गदा के क ही वार से मूर्ती चूर-चूर हो गयी थी; आज फिर इन  लोगों  ने धर्म का वह ही धंधा बना दिया वो ही पाखंड वो भगवान् धर्म की रोज हत्या हो रही है अब आप लोगों को पूनः फिर धर्म को जिवित करना है बहुत हुई मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा अब सदियों से निष्प्राण पडे धर्म में प्राण प्रतिष्ठा करनी है अब आपको इन लोगों के आडम्बर को समझना होगा  जिस दिन आप लोग इनके व्यवसाय को समझ जाओगे उस दिन मात्र आपके स्पर्श से धर्म जिन्दा हो जायेगा  अन्त में फिर वह ही प्रश्न विचारणीय  है कि कि भगवान् को जिन्दा  कौन रखता है! क्योंकि अर हम जिन्दा रखने वाले को पहचान ले, तो मारने को भी पहचान  जायेगे

राजीव चौधरी 

विस्थापितो का दर्द

अजीब विडम्बना कहो या मूक संवेदनाओ की गठरी में लिपटा मौन दर्द। यदि भारत माता के तन पर घावो की गणना की जाए तो शायद आजादी के बाद सबसे बडा घाव कश्मीरी शरणार्थियो के रूप में देखा सकता है। आज जम्मू कश्मीर का जम्मू एशिया  में विस्थापितो की कहे या शरणार्थियो का सबसे ज्यादा आबादी वाला इलाका है, या धार्मिक द्रष्टि से देखा जाये तो शरणार्थियो की राजधानी भी कह सकते है। जगह-जगह से करीब 18  लाख लोग यहा  बेहद कठिन हालातो में रहते है। पिछले दो दशको की यदि मानव त्रासदी का जिकर हो तो में सबसे बडी त्रासदी कश्मीरी पंडितो के साथ हुई मानता हूँ  क्योकि जब भी भारत में शरणार्थियो का मामला उठाया जाता है तो कश्मीरी पंडितो का नाम उभर कर सामने आता है।
आखिर क्यों कौन है ये लोग जो अपने ही देश में अपने वतन में अपनी मिटटी में विस्थापित जिन्दगी जी रहे है अगर गहराई में उतरकर देखे तो कश्मीर घाटी की तकरीबन तीन लाख लोगो की ये आबादी १९८९-९० के दौरान धार्मिक राजनीती कहो या इस्लामिक आतंकवाद के निशाने पर आ गयी थी। जब चरमपंथी गतिविधियो के तहत राज्य में पहली गोली चैदह सितंम्बर १९८९  को चली जिसने भारतीय जनता पार्टी के राज्य सचिव टिक्का लाल टपलू को निशाना बनाया फिर इसके डेढ महिने बाद सेवानिवृत सत्र न्यायाधीष नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गयी और कश्मीरी पंडितो में दहशत का माहौल पैदा हो गया। फिर इसके बाद जब तेरह फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केन्द्र के निदेशक लासा कौल की हत्या के साथ कश्मीरी पंडितो का धैर्य टूटने लगा बडे पैमाने पर लोगो ने घाटी से पलायन किया। इसके बाद जब कश्मीरी पंडितो ने डर और दहशत  हमारी जिन्दगी है। ये कहकर अपनी व्यथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने रखी तो आयोग ने इस बात को तो माना कि राज्य में मानवाधिकारो का हनन हुआ है लेकिन उनकी इस मांग को खारिज कर दिया की उन्हें हिंसा का शिकार और आतंरिक रूप से विस्थापित माना जाये। जबकि इसका दूसरा पहलू ये था कि उनकी बहु, बेटियो की अस्मत लूटी गयी, उनकी धन सम्पति उनका कश्मीरी गौरव सब कुछ लूटा गया। राज्य पुलिस ने इस गंदे कृत्य को धार्मिक चादर से ढककर ये कहा, कि कौई हिंसा नहीं हुई बस लोगो में मनमुटाव था जिसके कारण पंडित लोग घाटी से बाहर से जा रहे है। इसी का कारण है आज सरकार के लाख आश्वासन के बावजूद भी ये लोग वापिस अपने घर लौटने को तैयार नहीं है। सबसे बडी बात ये है कि जहां भारत के हर एक छोटे-बडे राज्यो में अल्पसंख्यक आयोग बैठा है वही जम्मू-कश्मीर  में कोई अल्पसंख्यक आयोग नहीं है। जिस राज्य में 18 लाख लोग शरणार्थियो का जीवन जी रहे हो, उस राज्य की सरकार उनका दुःख दर्द सुनने को तैयार नहीं है।

कभी बटवारे के समय पाकिस्तान से आये हिन्दू जिन्हें भौगोलिक दूरी के साथ सांस्कृतिक रूप से जम्मू अपने ज्यादा नजदीक लगा, और वो यहीं आकर अस्थाई तौर पर बस गये इन्हें उम्मीद थी, कि भारत के दूसरे हिस्सो में पहुंचे  लोगो की तरह वो भी धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर  की मुख्य धारा में शामिल हो जायेंगे लेकिन आज 67 वर्ष गये समाज की मुख्यधारा तो दूर की बात वो यहां के निवासी तक नहीं बन पाये,  आज भी इन लोगो की तीसरी पीढी मतदान से लेकर शिक्षा तक के बुनयादी अधिकारो से वंचित है। जहां एक और मेज के आमने सामने बैठकर भी कश्मीर समस्या का हल आज तक नहीं निकल पाया वहां इन कश्मीरी विस्थापितो को कब न्याय मिलेगा ये कह पाना अभी असंम्भव है।   राजीव चौधरी