Tuesday 27 October 2015

लाशो का धर्म तलाशो ?

एक अजीब तरह का माहोल खडा किया जा रहा। कि देश में अल्पसंख्यक सुरिक्षत नही है माहौल खराब हो चुका है एक अजीब विस्मय के साथ भय पैदा किया जा रहा है, बिलकुल ऐसे जैसे  पहले छोटे बच्चों को कुछ अनदेखे जीवों से डराया जाता था बेटा चुप हो जाओं वरना हाऊ आ जायेगा,  काट लेगा आदि,आदि । दिन पर दिन जितना इखलाक की कब्र मंहगी हो रही है, या यह कहो जितना  माहौल बिगडने का नाटक किया जा रहा है, उतनी ही कब्र महंगी हो रही है|   मिडिया के मुताबिक माने तो करीब 45 लाख सरकारी मदद और अन्य राजनैतिक दलों की तरफ से 30 लाख अब नोयडा के अन्दर चार फ्लेट और आवंटित किये जा रहे है। ये सब उस देश में हो रहा है जहां भूख के कारण  पता नही रोजानां कितने गरीब मुस्लिम बच्चें दम तोड देते है। पर सरकार की तरफ से गरीबों  की फ़िक्र की बजाय लाशो को धार्मिक आधार पर देखा जा रहा है। वरना कई रोज पहले मैगलरु से करीब 20 किलोमीटर दूर मूदबिद्री गाँव में फूल विक्रेता प्रशांत पुजारी की सरेआम हत्या कर दी गयी पर वो  बहुसंख्यक वर्ग से था मुस्लिम संगठन आरएफडी के लोगों ने प्रशांत की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि प्रशांत ने गायों के अवैध  तस्करों के खिलाफ सक्रिय होकर बडे़ पैमाने पर छुडाया था। शायद यही वजह कही जा सकती है कि बहुसंख्यक होने की वजह से उसकी चिता को मुल्य तो दूर की बात सात्वना की एक आवाज तक नहीं सुनायी दी। क्योकि फिलहाल भारत के राजनीति के बाजार में क्रब मंहगी और चिता सस्ती बिक रही है। भारत की मीडिया का एक बडा धडा अपनी तेज नाक से कब्र तो खोज लेता है पर चिता से उठता धुआं उसे दिखायी नहीं देता। यदि ये लोग सही खबर रखे तो शायद इतना शोर न हो! आज भारत के साहित्यकार अफसोस मना रहे है, दुखी है, रो रहे है, लेकिन यह सरस्वती के पुजारी इस बात को क्यों नही सोचते की  हिंसा कही भी हो सकती और हिंसा किसी की  भी जान ले सकती है राम की भी और रहीम की भी। देश के अन्दर कानून है, संविधान है  न्यायपालिका है फिर  यह उपद्रवी मानसिकता क्यों? या फिर यह लोग अपना हिंसा का मापदंड सामने रखे पर क्रब पर या चिता पर राजनीति इन तथाकथित बुद्धिजीविता के ठेकेदारों को शोभा नहीं देती इसे देखकर तो यह लोग साहित्कार कम और किसी मदारी के बन्दर ज्यादा नजर आते है कि जैसे चाहों इनसे उछलकूद करा लो।
दूसरी बात यह लोग चिल्लाकर कह रहे है कि देश में अल्पसंख्यक त्रस्त है वो हर पल खतरे में जी रहा है तो इसे मैं बकवास के अलावा कुछ नहीं कहूँगा क्योकि जो लोग दहशत में जीवन जीते है वो पलायन कर जाते है, सीरिया में मुसलमानों के द्वारा मुसलमान त्रस्त था जर्मनी में शरण ली हजारों लाखों हिन्दू बांग्लादेश और पाकिस्तान के अन्दर दहशत में थे भारत में शरण ली कश्मीर में अपना सब कुछ गवांकर हिन्दू शरणार्थी आज जम्मू व भारत के अन्य  राज्यो में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है पर कोई एक ऐसा मुसलमान इस देश में नहीं जो दहशत के कारण भारत छोडकर पडोसी देश में जाकर बसा हो! उल्टा यहां का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना देखकर बांग्लादेश से करोडो मुसलमान ही आकर बस गये। तीसरा इखलाक की हत्या देश में  कोई पहली हिंसा नही है जो यह लोग सार्वजनिक मंचो से लेकर विश्व के मंचो तक शोर मचा रहे है। इस देश के  लोगों ने बडे-बडे दुख झेले है। 1990 में कश्मीर जल उठा था तब क्या यह साहित्यकार बहरे हो गये थे हजारों लोग की चींखे तब इन्हें क्यों सुनायी नहीं दी, इखलाक के शव को तो दो गज जगह और मिटटी भी नसीब हो गयी पर कश्मीर की हिंसा और  बटवारे की हिंसा ने न जाने कितने शव जंगली जानवरों का निवाला बने। खैर प्रसंग बडा है और प्रश्न लाखों, जिनका जबाब यह प्रमाण पत्रो के साहित्कार नही दे पायेगें अतः मेरी सरकारो और मीडिया से इतनी विनती है कि हालात ऐसे न बने की हिंसा हो यदि हो   कहीं हो भी  पर उसमें पडने वाली मिटटी और चिता के घुऐं को बराबर सम्मान दें चिता और कब्र को मिलने वाली सात्वना राशी बराबर हो वरना दिन पर दिन कबर महंगी होती जायेगी और यह हाऊ का खेल बंद करे


राजीव चौधरी 

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