Wednesday 14 October 2015

बदलते जमाने के बदलते भगवान

ऐसे क्या कारण रहे कि पिछले 50 साल में पूजा के लिये दर्जनो भगवानो का जन्म हुआ और वो फिर  बदलते जमाने के साथ अपना अस्तित्व खोते चले ये। यदि आज कुछ प्रश्न करुं तो उसे धर्म पर हमला न समझकर अधर्म पर हमला समझना कारण धर्म अजेय है और अधर्म पराजित| सबसे पहले समझे कि भगवान को जिन्दा कौन रखता है क्योंकि अगर हम जिन्दा रखने वाले को पहचान ले, तो मारने को भी पहचान जायेंगे। वैसे तो पूजापाठ करने वाले लोगों को भगवानों की कोई कमी नही रही मन्दिर भले ही क हो पर उसमें भगवान दस होते है जो जन्मते और मरते रहते है। 70 के दक में हनुमान और शिव थे तो 80 के दक में संतोषी माता 90 के दक में माता के जागरण चल पडें फिर अचानक गणेश जी दूध पीने लग गये और भारत ही पूरे विश्व के पूजारियों ने इस कृत्य की पुष्टि भी की हांलाकि मुझे इस विषय से कुछ लेना नहीं है। में तो सिर्फ बदलते भगवानों की बात कर रहा हूँ  फिर वैष्णो माता लोगों  की मन्नत पूरी करने लगी तभी दक्षिण भारत में विराजमान तिरुपति बालाजी जो कुबेर का कर्ज चूका रहे है बाला जी ने उत्तर भारत में अपनी धाक जमा ली तब तक लोग  इस बात को भली-भांति  समझ पाते जब तक नया भगवान शिर्डी का साईं बाबा आ गया और धर्म के धंधे के व्यवसाय को आगे  बढाते  करोडो अरबों का व्यवसाय कर  डाला। और आज साई के जागरण पूरे धूम-धाम से देमें हो रहे है फिलहाल बाकि के  भगवान मृत है क्योंकि अभी साईं जिन्दा है।
अच्छा कुछ लो कहते है कि नास्तिक लो भगवान को मारते है, तो लत नास्तिक की क्या  हैसियत कि वो भगवान को मारे आपने कभी देखा, सुना है कि अँधेरे ने आकर दीये को बुझा दिया हो! इसलिये इस बात को गांठ  में बांध लेना भूलना मत कभी इस दुनिया में धर्म को खतरा नास्तिको से इतना नही होता जितना झूठें आस्तिको पांखडियों नये-नये भगवान के निर्माताओ से होता है। जैसे असली सिक्कों को खतरा कंकर, पत्थर से इतना नही होता जितना नकली सिक्को से होता है। क्योंकि नकली सिक्के असली सिक्को के वजूद पर चोट करते है जैसे नकली भगवान लोगों को ईश्वर को नही समझने देते |
मन्दिरों के पंडितो ने  मस्जिदो के मौलवियो ने चर्च के पादरियों ने कभी मानवता को धर्म समझने नहीं दिया कारण ये लो नकली सिक्के है और इन्हौनें ईश्वर   नाम हटाकर वैदिक रीति-नीति हटाकर असली सिक्को को बाहर कर दिया नकली सिक्के सस्ते भी मिलते है, तभी लोगों ने हाथों-हाथ लिया असली धर्म के  लिये उपासना का श्रम  करना पडता है खुद को जानना पडता है। निराकार ईश्वर की सत्ता का रहस्य जानना पडता है। पर इन लोगों  के लिये मजे की यह बात रही जागरण में हुडदंग है नृत्य  है, अश्लीलता है, अभी कई रोज पहले क मित्र  बता रहे कि हमारी  कालोनी में साई जागरण  था सुबह देखा तो 20 -25 शराब की खाली बोतल भी मिली अब मेरा प्रश्न  है क्या यह भक्ति है ? बुद्ध ने नही  कहा था कि मुझे भवान मानो पर लोगों ने उसे भगवान बना दिया महावीर ने नही कहा था मुझे भगवान कहो,    लेकिन लोगों ने उसे भी भगवान बना दिया मर्यादा पुरषोंत्तम राम केविचारो की हत्या इन पांखडियों ने की, योगिराज कृष्ण के विचारो के हत्यारे यह ही लोग  है जो आज साई के जागरण  में माता के जागरण  में नाच रहे है जो आनलाईन प्रसाद दे रहे है।
भगवान को पाने के लिये धर्म को जिन्दा रखने के लिये धर्म के अनुभव से गुजरना पडता है   वरना धर्म तब भी था जब सोमनाथ के मन्दिर में यह पाखंडी शिव को अकेला छोड भाग गये थे और महमूद जनवी की गदा के क ही वार से मूर्ती चूर-चूर हो गयी थी; आज फिर इन  लोगों  ने धर्म का वह ही धंधा बना दिया वो ही पाखंड वो भगवान् धर्म की रोज हत्या हो रही है अब आप लोगों को पूनः फिर धर्म को जिवित करना है बहुत हुई मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा अब सदियों से निष्प्राण पडे धर्म में प्राण प्रतिष्ठा करनी है अब आपको इन लोगों के आडम्बर को समझना होगा  जिस दिन आप लोग इनके व्यवसाय को समझ जाओगे उस दिन मात्र आपके स्पर्श से धर्म जिन्दा हो जायेगा  अन्त में फिर वह ही प्रश्न विचारणीय  है कि कि भगवान् को जिन्दा  कौन रखता है! क्योंकि अर हम जिन्दा रखने वाले को पहचान ले, तो मारने को भी पहचान  जायेगे

राजीव चौधरी 

No comments:

Post a Comment