Thursday 24 December 2015

घ्रणित अपराध को कैसा सम्मान ?

एक प्रसिद्ध विद्वान का कथन है कि- कोई भी राष्ट्र सुव्यवस्था के साथ जन्म लेता है, स्वतंत्रता के साथ पलता बढ़ता है और अव्यवस्था के साथ उसका पतन हो जाता है| ठीक यही हाल आज हमारे देश का होता दिख रहा है! 16 दिसम्बर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में एक पैरामेडिकल छात्रा को छह दोषियों की हवस और दरिंदगी का शिकार होना पड़ा था| इन दोषियों ने छात्रा के साथ इंसानियत को तार-तार करते हुए दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थी| उन्होंने इस घटना को एक चलती बस अंजाम दिया था| मेडिकल जाँच में पता चला था कि इन वहशी दरिंदों ने छात्रा को ऐसी-ऐसी यातनाएं पहुंचाई थी कि जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप उठेगी| युवती की दर्दनाक आवाज़ सड़के तक चीर दे रही थी लेकिन इन दोषियों की रूह तक नहीं हिली| और ये दरिंदें घायल अवस्था में छात्रा को सड़क पर फेंककर फरार हो गये थे|
इस घटना के बाद देश ही नहीं विदेशो तक दोषियों को कठोरतम सजा दिलाने की मांग ने जोर पकड़ा देश के कई हिस्सों के साथ राजधानी में भी जनसमुदाय न्याय और कानून के लिए सडको पर उतर गया| पुलिस ने त्वरित कारवाही करते हुए कुछ ही दिनों इन दरिंदो को गिरफ्तार कर लिया किन्तु इनमे एक दोषी 17 साल 6 महीने का निकला| इस मामले में एक आरोपी ने आत्महत्या और चार को कोर्ट ने फांसी की सजा और इस नाबालिग को 3 साल की सजा सुनाई किन्तु जहाँ अब वो दोषी आने वाली मौत का इंतजार कर रहे है वहीं यह दोषी रिहा होने की तैयारी कर रहा है| किन्तु इस दरिन्दे की रिहाई पूरी न्यायिक व्यवस्था पर प्रश्न उठा रही है? क्या इतने क्रूर और निर्मम अपराधी को सिर्फ नाबालिग होने का हवाला देकर छोड़ना सही है? इस बात की कौन गारंटी लेगा कि 3 साल बाल सुधार गृह में रहने के बाद वह सुधर गया और आगे समाज के लिए खतरा नहीं बनेगा? क्या सरकार नारी मन और तन के इस खूंखार हत्यारे को जिसने उस छात्रा के साथ लोहे की रौड लेकर यातना का सबसे घिनोना कृत्य किया था को किस आधार पर रिहा कर रही है ? इस मामले जहाँ न्यायिक व्यवस्था समाज के घेरे में है वहीं दिल्ली सरकार इस मामले में भी धार्मिक राजनीति करने से बाज नहीं आई चुकीं नाबालिग आरोपी मुस्लिम समुदाय से है तो दिल्ली सरकार ने आनन-फानन में आरोपी को रिहा होते ही इस दरिंदें के लिए 10 हजार रूपये और एक सिलाई मशीन की घोषणा तक कर दी क्या सिर्फ इसलिए की वो समुदाय विशेष से है? राजनीति के अपने कारण होते है और न्यायालय के अपने| पर समाज का प्रश्न यह है कि क्या अब यह दरिंदें सरकारी संरक्षण में पलेंगे? आखिर उसे किस काम के लिए मान सम्मान दिया जा रहा है? नारी शक्ति मात्रशक्ति को रोद्नें के लिए उसके अपमान के लिए? यदि ऐसा है तो फिर दिल्ली सरकार महिला सम्मान के नाम पर बड़े-बड़े स्लोगन और विज्ञापन लगा सड़कों मेट्रों आदि पर क्यों पैसा खर्च कर रही है| बदल डालिए इतिहास और रख डालो रावण और दुशासन, मोहमंद बिन काशिम जैसे नीच पापियों को देवताओं की श्रेणी में?” जिस दरिन्दे को अपनी गिरफ्तारी से आजतक अपने किये का कोई पछतावा न हो जिसकी पैशाचिक सोच को 3 वर्षो के दौरान सुधारगृह बदलाव लाने में नाकाम रहा हो जो इस न्यायिक सिस्टम का फायदा उठाना जान गया हो उसे किस आधार पर आप लोग सम्मानित कर रहे हों?
इस मामले में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भले ही 18 साल से कम उम्र के अपराधी को नाबालिग माना जाता हो लेकिन रेप और हत्या जैसे गंभीर अपराधो में उन्हें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है भारत में नाबालिगों के प्रति कानून काफी नरम है और यहाँ बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर मामलों में भी ज्यादा से ज्यादा 3 साल की सजा हो सकती है| अब यदि कानून में बदलाव ना किया गया और कल 17 साल 11 महीने का कोई आतंकवादी देश की अस्मिता पर हमला कर जाये तो क्या उसे भी इसी कानून के तहत माफ़ कर सम्मानित कर दिया जायेगा??

राजीव चौधरी 

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