Friday 4 December 2015

शोक को वोट की तराजू में तोलने वाले नेता

सेना के एक और कर्नल घाटी में शहीद हो गय अपने पीछे छोड़ गया अपने परिवार की नम आँखे पर पर के नेताओं की छाती पर खोद गया एक प्रश्न कि क्या इनके लिए तो पहले वोट बाद में देश है!
किसी गजरे की खुषबु को महकता छोड़ के आया हूँ,
मेरी नन्ही सी चिडि़यां को चहकता छोड़ के आया हूँ!
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ मेरी भारत माँ,
 मै अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ के आया हूँक,,!!
यह पंक्ति तब से गूंज रही थी. जो एक बार कर्नल महादिक ने ही बोली थी, इन पंक्तियों की वह (नन्ही सी चहकती चिडि़या) कर्नल सन्तोश यशवंत महादिक की बेटी, जब अपने पिता की शाहदत पर रोते हुए लेकिन एक गर्व के साथ उन्हें आखि़री सलामी दे रही थी,  इस सलामी के आगे कई तोपों की सलामी बेकार थी . इस बच्ची की सलामी देखकर तो छाती फटने को हो रही थी. बस कुछ कहा नहीं जा रहा था, शब्द धुआं से उठ रहे थे  लेकिन किसी लौ से भी चमक नहीं पा रहे थे, क्योंकि इस बच्ची की जलती लौ के आगे सब बेकार थे , जो अपने देशभक्त - बहादुर - बलिदानी पिता को इस तरह से विदा कर रही थी पर हमारे मन में प्रश्न  फूट रहे थे कि क्या भारत के सभी जीते -हारे सांसद इस प्रश्न का उत्तर दे सकते है जो जलती कर्नल महादिक की चिता की अग्नि भी पूछ रही होगी कि मुझमे और इखलाक में  अंतर क्या है?  इखलाक पर तुम इतना रोए की पूरा विश्व तुम्हारे आंसू पोछने चल दिया! में ये नहीं पूछता क्यूँ रोए बस ये बता दो अब मेरी चिता पर तुम्हारे आंसू क्यों नहीं आये? क्या देश के लिए प्राण देना गुनाह है? पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार अब कहा गये, क्या उन्होंने मुझे कलम से श्रदांजली देना भी उचित नहीं समझा? दादरी तो राहुल जी भी गये, ओवेशी भी गये, संगीत सोम, केजरीवाल, व्रंदा करात जी सब चले गये  थे संतोश के घर क्या हुआ उसका परिवार तो चेक भी नहीं मांग रहा था! न फ्लैट मांग रहा था क्या श्रद्धा के दो सुमन भी अर्पित नही कर सकते थे? आज वो कलाकार कहाँ गये, जो इखलाक की मृत्यू पर ट्वीट पर ट्वीट कर रहे थे ना वो मीडिया दिखाई दी जो गौ के मांस पर एक महीना बहस कराती है. शायद आज किसी एंकर की पलकों के कोरे नहीं भीगे होंगे, आज कहाँ गये वो लोग जो राष्ट्रपति जी को ज्ञापन सोपने कतार लगा कर गये थे? खैर रक्षा मंत्री जी का आभार की कम से कम उन्हें तो इस देशभक्त की याद रह गयी
सब जानते इन नेताओं के अंदर आत्मा नहीं होती, ना सवेंदना होती, ना इन्हें किसी के मरने का दुःख  का  अहसास|  इन्हें चिंता है बस अपने वोट बैंक की|  इन्हें चिंता हैं जातिगत आंकड़ो की| ना इन्हें मुस्लिमों से कुछ वास्ता|  ना इनका हिन्दुओं से मतलब|  इन्हें तो सत्ता की कुर्सी चाहिए चाहें वो जैसे मिले|  बिहार में नितीश  सरकार में मंत्री रहे भीम सिंह जो अब भाजपा में है, उन्होंने २०१४  में कहा था सेना के जवान तो मरने के लिए होते हैं। इतना शर्मनाक बयान देने के बाद ऐसे लोग आज भी मंचो पर जाते हैं और देश हित की बात करते दिखाई दे जाते है, लेकिन विडंबना यह है कि चलो इन लोगों की बातो में गरीब अनपढ़ लोगों का जाना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन दुःख तब होता है जब देश का पढ़ा लिखा वर्ग भी इनके सुर में सुर मिलाकर बोलता हैं बहरहाल इन लोगों क्या कहे जिनकी आत्मा ही मर चुकी हो पर हमारा शत – शत नमन है ऐसी महान आत्मा को जिसने कश्मीर  की वादीयों में तीन दिन से चल रही मुठभेड़ के दौरान आतंकियों से वीरतापूर्ण संघर्ष के समय अपनी बटालियन (41 राष्ट्रीय राइफल्स) के दो और जवानों के साथ अपने प्राणों की आहुति दी है . ऐसे सपूत कहाँ और कितने पैदा होते है या आज के माहोल में कब पैदा हो रहे है|  इसलिए इनके जाने का अत्यंत दुःख है . वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम । - अथर्व० १२.१.६२ हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों|”

राजीव चौधरी 

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