Friday 29 January 2016

आतंक के गढ़ में आतंक

उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में बुधवार को कलाशनिकोव रायफल से लैस तालिबान के आत्मघाती हमलावर एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में घुस गए और अंधाधुंध गोलीबारी की जिससे कम से कम 21 लोग मारे गए जबकि सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में तहरीक ए तालिबान के चार हमलावर ढेर हो गए। यह हमला 2014 में पेशावर के एक सेना स्कूल पर हुए नृशंस हमले की याद दिलाता है। हो सकता है अब तक कब्रों पर पानी छिड़ककर फूल चढ़ा दिए हो| कॉलेज के प्रांगण में पड़े खून के छींटे साफ कर दिए गये हो किन्तु अब पाकिस्तान की सत्ता जब उनकी दुआ के लिए आसमान में हाथ उठाये तो एक बार अपने हाथों को जरुर देख ले कि कहीं उन पर भी खून के दाग तो नहीं है|
इस मौसम में जहाँ माँ अपने बच्चों को सर्दी ना लग जाये डरती है वहीं कोई एक धार्मिक पुस्तक का हवाला देकर इन बच्चों की हत्या कर जाये तो उस माँ पर क्या बीतती होगी? यही ना कि इनका मजहब इन्हें यही क्यों सिखाता है? क्यूँ मजहबी मदरसों में पढ़कर यह हाथ मानवता की सेवा भलाई करने के बजाय अधिकतर लोग बन्दूक लेकर सड़कों पर क्यों निकल जाते है? क्या अब भी पाकिस्तान की आवाम के लिए पाकिस्तान में फलता फूलता आतंक भारत व् अन्य देशों का दुश्मन है? अब भी समय है पाकिस्तान की आवाम को अपने शासको से पूछना चाहिए कि आखिर अच्छे तालिबान बुरे तालिबान के नाम पर यह सांप सीढ का खेल चलता रहेगा! आखिर इन दरिंदो से सख्ती से क्यों नहीं निपटा जाता?
पिछले साल नवम्बर पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमेरिका और बाहरी देशों के साथ लड़ रहे अच्छे तालिबानी पाकिस्तान का सिर दर्द नहीं है शायद तभी अफगानिस्तान और भारत विरोधी आतंकवादी खुले घूम रहे है हाफिज सईद और हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की सेना सुरक्षा प्रदान कर रही है| इस घटना के बाद पाकिस्तान में कई संगठन तो घटना की निंदा से भी कतरा रहे है
पेशावर यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट मंजूर खान ने कहा, "हमें आतंकवाद पर दया नहीं दिखानी चाहिए। हमें उनसे डरना नहीं, बल्कि लड़ना है। उनसे डरकर हम पढ़ना छोड़ नहीं देंगे।" दरअसल मजहबी शिक्षा दीक्षा के पक्षधर और किसी भी देश में आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोधी आतंकी संगठन जानते है यदि मुस्लिम समाज मजहबी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ और पढ़ेगा तो यह आतंक का तेजाब बनना बंद हो जायेगा| खुदा का खोफ और कुछ आयतों से आखिर कब तक यह खेल जारी रहेगा? प्रश्न एक नहीं अनेक है कि इन दरिंदो के आतंक के कारोबार को धन कौन देता है? इस्लाम का रखवाला मुस्लिम जगत? यदि इस्लाम का रखवाला मुस्लिम जगत इन लोगों को धन प्रदान करता है तो फिर खुद को अमन पसंद क्यों कहते है?
हर एक घटना के बाद कारवाही और निंदा जैसे शब्द सुनने को मिलते है| किन्तु हर बार कारवाही के नाम पर लीपापोती कर दी जाती है| आखिर क्यूँ और कैसे! एक लादेन के मरते ही हजारों लादेन खड़े हो जाते है? क्यों नहीं मुस्लिम जगत का पढ़ा लिखा धडा इस हजार वर्षो पूर्व की परम्पराओं को उखड फेंकता? हत्या कहीं भी हो और किसी की भी हो हम निंदा करते है हम सामाजिक सदभाव प्रेम सवेंदना के पक्षधर है  किन्तु आज मुस्लिम समाज को खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या मदरसों में जिसे आप लोग अमन की पुस्तक कुरान कहते हो नहीं पढाई जाती? यदि पढाई जाती है तो फिर इन मदरसों से बुल्ले शाह, दाराशिकोह, अब्दुल कलाम जैसे लोग क्यों नहीं निकलते? क्यों हर बार इनसे  अधिकतर लादेन, फजुल्लाह, अजहर मसूद और बगदादी जैसे लोग निकलते है? धार्मिक कट्टरता के खात्मे को लेकर मुस्लिम देशों को मुस्लिम बहुल देश तजाकिस्तान से सीख लेनी चाहिए जहाँ एक दिन में करीब तेरह हजार लोगों की दाढ़ी काटी गयी 17 हजार लड़कियों को बुर्के से आजाद किया गया और मुस्लिम पहनावे की सभी दुकान बेन कर दी गयी ताकि धार्मिक कट्टरता ना पनपने पाए| अब पाकिस्तान सरकार को भी इसी तरह समझना चाहिए और बिना भेदभाव के इन पर कारवाही करनी चाहिए ताकि ममता की गोद में खिलने वाले फूल मानवता के सूरज की सुनहरी धूप देख सके
 राजीव चौधरी 


लाशों में जाति मत तलाशों!!

एक बार फिर हैदराबाद को दादरी बनाया जा रहा है देश के तमाम नेता हैदराबाद पहुँच रहे है, इस बार मरने वाला कोई अखलाक नहीं बल्कि एक दलित नवयुवक है जिसका नाम रोहित है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे  एक छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी की रात को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. आत्महत्या के इस मामले को लेकर जमकर सियासत हो रही है. इस सियासत में मीडिया, नेता से लेकर छात्र संगठन तक कूद पड़े हैं। दलित समुदाय की सहानुभूति बटोरने के लिए बहुत से नेता हैदराबाद जाकर रोहित के परिवार वालों और आंदोलन रत छात्र संगठनों से मिल रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ अन्य छात्र संगठनो का कहना है कि जब याकूब मेनन को फांसी दी गई थी तो एक प्रभावशाली छात्र संगठन अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन””  ने इस फांसी के खिलाफ प्रदर्शन किया था। जिसका नेत्त्र्व राहुल ने किया था।  जब परिसर में एबीवीपी के अध्यक्ष सूशील कुमार ने इसका विरोध किया तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया यह एक बड़ी  विडंबना है कि  विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसी सारी घटनाओं का मूक गवाह बना रहा। 
राहुल की मौत का समाचार जानकर भारतवर्श के नेताओं ने उसकी जाति जानने के बाद राजनीति शुरू कर दी है| भले ही नेता लोग कहते हो कि मामला एक छात्र की आत्महत्या का पर यह बात गले से नीचे इस वजह से नहीं उतर रही कि छात्र तो इस देश में रोजाना सैकडो की तादात में मरते है छात्रों की इस देश में किसे क्या पडी है? दिल्ली से सिर्फ 500 किलोमीटर दूर 30 घरों के चिराग बुझ गए और किसी को इसकी कोई फिक्र नहीं। पिछले दिनों गुजरात से इंजीनियर बनने का सपना लेकर नितेश कोटा पहुंचा था, लेकिन सपनों का बोझ ऐसा बना कि फंदा लगाकर जान दे दी। ये दुख पिछले एक साल में 30 परिवारों पर टूटा है। साल 2013  में 17 छात्र-छात्रों ने फांसी के फंदे पर अपनी जिंदगी को लटका दिया। साल 2014 में आंकड़े और बढ़ गए कोटा में करीब 26 घरों के चिराग बुझ गए और 2015 से अब तक 30  छात्र अपनी जा दे चुके हैं। किन्तु किसी नेता को इनसे क्या लेना!! यहाँ तो मामला जातिवाद का है और इस बार मरने वाला राहुल दलित जाति से है और ऐसी खबरे मीडिया और नेताओं के लिए नोट और वोट बटोरती है। इस प्रसंग पर कल बीबीसी हिंदी ने एक फोटो इन्टरनेट के माध्यम से डाली थी जिसमे एक नवयुवक आत्महत्या कर रहा होता है नीचे खड़े कुछ नेता टाइप लोग पूछ रहे थे भाई अपनी जाति बताकर मरना बाद में परेशानी होती है ये तस्वीर जिसने भी बनाई उसके व्यंग में गंभीरता छिपी थी| कारण आप जातिप्रमाण पत्र के लिए कहीं मत जाओ नेता आपको प्रमाणित कर देंगे| किन्तु इस सारे प्रसंग में एक प्रश्न कई दिनों से चीख रहा है कि आज जो नेता दलितों के प्रति हमदर्द बनकर खडे है ये नेता उस दिन कहाँ थे जब जातिवाद से त्रस्त होकर भगाना हिसार हरियाणा के 100 से ऊपर दलित परिवार सामूहिक रूप से मुस्लिम बन गये थे उस दिन इनकी दलित आत्मा किसने पददलित कर दी थी? या फिर मुस्लिम वोट बेंक खो जाने के डर से यह लोग चुप रहे?
अभी हमने कुछ दिन पहले मीडिया और नेताओं का दौहरा मापदंड देखा था जब मालदा, पूर्णिया, और जहानाबाद मजहबी आग में जल रहे थे तो सोचा कोई तो होगा जो इस घटना पर अपना मूक प्रदर्शन तोडेगा किन्तु इस मामले पर किसी राजनेता की आँखे नम नहीं पाई ना कोई तथाकथित राश्ट्र चिन्तक इस मामले पर मोखिक रूप से निंदा करता दिखाई दिया! आखिर क्यों? आज इनकी आँखों में आंसू कहा से आये? देश में हजारों किसान आत्म ह्त्या कर लेते हैं. परन्तु इनमे अगडे, पिछडे, दलित, अल्पसंख्यक समुदायों और सब धर्मों के बदनसीबों के होने के कारण इसे कोई भी दल वोट बैंक में कोई खास बढोतरी ना होने के कारण राजनैतिक मुद्दा नहीं बनाता. परन्तु वहीँ लोग यदि कोई दलित या मुस्लिम  आत्महत्या कर लेता है तो देश की राजनीती में भूचाल आ जाता है ऐसे में राजनैतिक दलों द्वारा इंसान की जान की अलग कीमत लगाना उचित नहीं लगता  
पिछले कुछ वर्षो से हमे भारत में कोई इन्सान मरता दिखाई नहीं दिया यहाँ यदि कोई मरता है या तो वो दलित होता है या मुस्लिम सिख होता है या इसाई क्या राजनीति सिर्फ लाशो का जातिगत और धार्मिक तमाशा बनाकर बेचने तक सिमित रह गयी? रोहित की मौत दुखद घटना थी हमारी सवेंद्नाये रोहित के परिवार के प्रति है। हम इस जातिगत व्यवस्था के खिलाफ है हम वैदिक सिद्दांत मनुर्भव के पक्षधर है हम मनुष्य व्यवस्था के पक्षधर है अतः हमारा भारत वर्ष के तमाम नेताओं को सिर्फ इतना कहना है कि लाशो की जाति धर्म तलाश कर भेदभाव ना करे!!

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा rajeev choudhary 

Wednesday 13 January 2016

यह चरमपंथ कौन सा धर्म है?

अभी पिछले कुछ दिनों से एक नया धर्म सामने आया जिसे चरमपंथी कहा जाता है, कबीरपंथी सुना था दादूपंथी सुना था पर यह चरमपंथी अभी प्रचलन में आया है| जब कहीं भी इस्लामिक आतंकियों द्वारा हमला होता है तो उसे चरमपंथ का हमला कहा जाता है| यदि चरमपंथ और इस्लामिक उग्रवाद अलग-अलग है तो फिर आतंकियों द्वारा हमेशा एक नारा  लगाने का क्या कारण है? हम यह बात किसी धार्मिक विद्वेष में नहीं कह रहे बस साफ करना चाहते है कि यह चरमपंथ आखिर कौन सा मजहब है?
अब इस चरमपंथ के दर्पण से धूल हटाकर देखे तो साफ दिख जायेगा उसके लिए पिछले महीनों के राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय बयानों पर नजर डालनी होगी –
 कुछ महीने पहले चीन के एक अधिकारी ने मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले बुर्के को लोगों द्वारा अपनी पहचान छिपाने के लिए दुरुपयोग किया जाने वाला आवरण बताते हुए कहा कि बुर्का चरमपंथ और पिछड़ेपन का परिधानहै। जिस कारण पिछले कुछ सालों से विश्व में चरमपंथी हमलों में साफ़ बढ़ोतरी दिख रही है|
अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित मंत्री स्तरीय सम्मेलन हार्ट ऑफ एशिया में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि आतंकवाद और चरमपंथ के बलों को किसी भी नाम, रूप या स्वरूप में पनाहगाह या शरणस्थल न मिल पाएं।
 संघीय जांच ब्यूरो का कहना है कि सान बर्नार्डिनो में गोलीबारी(एफबीआई) ो अंजाम देने वाले पाकिस्तानी पति-पत्नी चरमपंथ से प्रभावित थे और उन्होंने हमले से कुछेक दिन पहले ही एक मदरसे में निशाना लगाने का अभ्‍यास किया था।
कुछ दिन पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा था, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में अल कायदा को तबाह करने जैसी कामयाबियों के बावजूद चरमपंथ अब भी कायम है। ऐसे में हमें आतंकवाद पर हावी बने रहने की जरूरत है और अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हिंसक चरमपंथ  दक्षिण एशिया में सबसे तेजी से विस्तार लेती और तात्कालिक चुनौती है।
हालाँकि इस मामले को साफ देखने की कोई जरूरत नहीं रह जाती बस पुरे विश्व में हिम्मत की कमी के कारण नाम बदल दिया गया किन्तु कुछ लोग ईमानदारी से आज भी सच स्वीकार करते है परतिष्ठित अरब पत्रकार अब्दुल रहमान अल-रशद ने अपने पिछले दिनों अपने कॉलम में लिखा था फ्रांस में हुए हालिया आतंकी हमले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पेरिस के बजाय किसी मुस्लिम देश की राजधानी में होना चाहिए था, क्योंकि इस मामले में मुसलमान ही संकट में शामिल हैं और उन्हीं पर आरोप लगाया गया... चरमपंथ की कहानी मुस्लिम समाज से शुरू होती है और उन्हीं के समर्थन एवं चुप्पी की वजह से इसने आतंकवाद का रूप लिया और लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसका कोई मतलब नहीं कि पीड़ित फ्रांस के लोग सड़कों पर उतरे। आवश्यकता इस बात की है कि मुस्लिम समाज पेरिस के अपराध और इस्लामी चरमपंथ को सामान्य रूप से स्वीकार कर माफ़ी मांगे|
कुछ दिनों पहले मुर्शरफ से पूछा गया कि पाकिस्तान को किससे ज्यादा खतरा है - चरमपंथ से या भारत से और उनका जवाब चरमपंथ था। अब प्रश्न फिर यही है । इस दोहरेपन की शुरुआत मुस्लिम समुदाय से हुई, या मीडिया से  जहां इस बात पर भारी मतभेद है कि आज कौन-सी चीज प्रामाणिक इस्लाम का गठन करती है। या हम खुद को मूर्ख बनाते हैं, जब हम मुसलमानों से कहते हैं कि वास्तविक इस्लाम यह है, वास्तविक इस्लाम शांति का नाम है क्योंकि मुसलमानों का कोई वेटिकन नहीं है। धार्मिक प्राधिकार का कोई एक स्रोत नहीं है, आज कई इस्लाम हैं-नैतिकतावादी वहाबी/ सलाफी/ जेहादी विकृति उनमें से एक है और हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा समर्थन उसे प्राप्त है। इबादत की बजाय अल्ला-हो-अकबरके नारे, उनका नतीजा एक ही है। जमीन पर बेकसूर लोगों का खून और बाकी बचे उनके रिश्तेदारों के हिस्से समूची जिंदगी का दर्द। यह दर्द जितना ज्यादा होता है, आतंकियों का सुकून उतना ही ज्यादा होता है। इससे उपजी विद्रोह की आग जितनी सुलगे, चरमपंथियों की उतनी ही बड़ी कामयाबी। इन घटनाओं को अंजाम देते हुए चरमपंथियों के जितने भी अपने साथी मरे, उनकी मौत संगठन की शहादत सूची में उतनी ही महिमामंडित होती है। सुरक्षा बलों के हाथों जितने आतंकी मरेंगे, बदले की भावना उतनी ही ज्यादा परवान चढ़ेगी। एक हमले की कामयाबी अगले ऐसे कई धमाकों की रणनीति की बुनियाद भी खड़ी कर देती है। पूरी दुनिया में आतंकी संगठनों का यही तरीका और उसका ऐसा ही अंजाम है। फिर कोई बताये तो सही चरमपंथ और इस्लामिक आतंक में अंतर क्या है?
राजीव चौधरी





क्या मौन स्वीकृति का लक्षण है?

सिहांसन के मौन होने के कुछ भी कारण हो सकते है किन्तु शहीदों के घर से निकली मासूम बच्चों की किलकारी, एक शहीद की बहन का मूक दर्द उसकी आँखों से छलकता पानी एक पत्नि की वेदना में लिपटी सिसकियाँ और माँ बाप की ममता के बुझे चिराग जहाँ सब एक दुसरे को सात्वना देकर छुप करते है| उनके बहते आंसू पर हमारी कलम भला क्यों चुप रहे? पठानकोट हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भेड़िया के साथ कोई भेड़ लाख बार संधि करे किन्तु भेड़िया अपना स्वभाव नहीं बदलेगा| मालदा और पठानकोट दो घटना एक दिन में घटित हुई और दोनों में अल्लाह हु अकबर का नारा था एक घटना को मीडिया ने दबा दिया और दूसरी का खूब विश्लेषण हुआ और शुरू से अंत तक एक बात सामने आई कि घटना हमेशा की तरह पाक प्रायोजित थी|
पठानकोट हमला पाक प्रायोजित था किन्तु प्रश्न यह है कि मालदा पश्चिम बंगाल की घटना किसके द्वारा प्रायोजित थी क्या उसमे भी पाकिस्तान का हाथ था? आखिर किसके कहने पर दो से ढाई लाख लोग सड़क पर उतर आये? किसके कहने पर करोड़ों की सम्पत्ति को आग के हवाले कर दिया? आखिर इसका सूत्रधार कौन था? और सरकार इस मामले पर मौन क्यूँ है? कहीं यह मौन अगली घटना की स्वीकृति का लक्षण तो नहीं है?
कल भारत सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान को पठानकोट हमले के सारे साक्ष्य सौप दिए और पाकिस्तान के तरफ से हमेशा की तरह कड़ी कारवाही आश्वासन दिया गया पर क्या इतने आश्वासन से काम चल जायेगा! साक्ष्य तो भारत सरकार ने ताज हमले के बाद भी सौपे थे क्या हुआ? 250 लोगों का हत्यारा हाफिज सईद अब भी पाकिस्तान में खुला घूम रहा है| कंधार विमान अपहरण कांड में छोड़ा गया आतंकी संगठन जैश ए मोह्हमद का सरगना अजहर मसूद आज भी पाकिस्तान में बैठ खुले आम भारत सरकार को चुनौती दे रहा है| उन पर पाकिस्तान ने कितनी कारवाही की है? हजार बार दाउद इब्राहीम के पाकिस्तान में होने के सबूत भारत ने पाकिस्तान को सौप दिए क्या कारवाही हुई? जो अब पाकिस्तान से कारवाही की आशा की जाये! 
जब कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच धनुष उठाकर अर्जुन ने योगिराज कृष्ण से कहा था हे माधव! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कीजिये ताकि में युद्ध के अभिलाषी लोगों को भली प्रकार देख लूँ कि मुझे किन-किन लोगों से युद्ध करना है और भली प्रकार ध्रतराष्ट्र के पुत्रों का हित अनहित चाहने वालों को देख ना लूँ तब तक मेरे रथ को खड़ा रहने दिया जाये| ठीक वो हालात लिए आज हम इस देश में कलम लिए खड़े है ताकि इस देश का हित अनहित चाहने वालों की पहचान की जा सके| आज देश दो हमलावरों के बीच खड़ा है एक बाहरी आतंक और दूसरा आंतरिक आतंक और सरकारों को इन दोनों के बीच खड़ा होकर तय करना चाहिए कि पहले किस से निपटा जाये क्योंकि जब तक बाहरी आतंक को आंतरिक आतंक की मदद मिलती रहेगी आतंक समाप्त नहीं हो सकता और इस बात समझने के लिए इतिहास का एक वाक्य काफी है कि जयचंद ने गौरी का साथ न दिया होता तो भारत का सर्वनाश ना हुआ होता|
 केंद्र और राज्य सरकारों ने मालदा की घटना पर पर्दा डाल दिया या ये कहों मौन साध लिया| किन्तु कब तक? चलो मान लेते है कि हिन्दू महासभा के अध्यक्ष कमलेश ने विवादित बयान दिया था लेकिन भारतीय सविंधान के अनुसार उन पर गिरफ्तारी के तहत कारवाही हुई तो 96 करोड़ लोगों ने सविंधान का सम्मान किया और इस कारण अब वह जेल के अन्दर है किन्तु यह भीड़ कौन थी? जो उसके एक महीने बाद उनकी फांसी की मांग कर रही थी| घरों दुकानों को लूट रही थी थानों और गाड़ियों में आग रही थी|  और अब सरकार उनके खिलाफ कारवाही से क्यों बच रही है? जो मुस्लिम धर्मगुरु पठानकोट हमले पर पाकिस्तान की निंदा (मजम्मत) कर रहे है वो मालदा हिंसा पर मौन क्यूँ है कहीं यह मौन अगली हिंसा की स्वीकृति का लक्षण तो नहीं?

राजीव चौधरी 

Wednesday 6 January 2016

पठानकोट गुस्सा, दर्द और शहादत!!

भले ही केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसिया कह रही हो कि पठानकोट हमला विफल हो गया लेकिन इस बात को कौन नकार सकता है कि छह आतंकियों के हमले द्वारा सात जवान शहीद हो चुके है और बीस जवान घायल है क्या इसे हम विफल साजिश कह सकते है? जहाँ ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसे पाकिस्तान की साजिश कहने में देर नहीं लगाई खुफियां विभाग ने अपनी प्रथम जाँच में साबित कर दिया कि हमला पाक प्रायोजित था वहां ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी सहजता से यह कहकर किस प्रकार पल्ला झाड़ सकते हैं कि “यह मानवता के दुश्मनों का हमला है! कुछ समय पहले तक इस प्रकार के हमले पाकिस्तान प्रायोजित हमले होते थे और अब यह मानवता के दुश्मनों के हमले हो गए?  आखिर, शब्दों में यह हेर-फेर किसलिए माननीय प्रधानमंत्री जी! और इससे क्या हासिल हो जायेगा? अब इन हमलों की निंदा नहीं, स्वाभिमान की रक्षा करो राजन!! देश के जवानों के इस बहे लहू में आत्मसम्मान की कलम डुबोकर दुश्मन के माथे पर हत्यारा लिख दुनिया को उसका चेहरा दिखा दो अब शांति के पथ पर कर्तव्य बोध मत भूलो राजन! आपने जापान के प्रधानमंत्री को गीता भेट की थी उसमे एक पंक्ति यह भी थी कि युद्ध भूमि में खड़ा अर्जुन कह रहा था, माधव मेरा गांडीव कांप रहा है, मेरे हाथों की त्वचा जल रही है, मुझसे खड़ा नही हुआ जा रहा है, मै युद्ध नहीं लडूंगा तब योगिराज कृष्ण ने कहा था हे अर्जुन! नपुंशक मत बनो युद्ध करो|
अभी पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर थाने पर हुए आतंकी हमले के घाव नहीं सूखे थे कि पांच महीने बाद शनिवार तडके पठानकोट में एअरफ़ोर्स बेस पर आतंकियों ने हमला बोल दिया पाकिस्तान सीमा से महज 20 किलोमीटर दुरी पर स्थित एअरफोर्स बेस में घुसे आतंकी भी पाकिस्तान की ही देन थे| हालाँकि पाक सरकार भले ही समूचे विश्व के सामने इस घटना की निंदा कर रही हो लेकिन सब जानते है आज पाकिस्तान की हालत सोमालिया जैसी होती जा रही है| आज पाकिस्तान में कट्टरपंथी मौलाना, आईएसआई और सेना काबिज है उसे देखकर लगता है की वहां लोकतंत्र बस दिखावे की दुकान है अन्दर हिंसा, हत्या, आतंकवाद दानवता भरी पड़ी है| अब इन सब के बावजूद यदि भारत सरकार पाकिस्तान के साथ शांति के दरवाजे खोलना चाहती है तो उस मार्ग से श्वेत कबूतर की जगह आतंकवाद ही आएगा| क्योंकि उनके पास और कुछ है भी नहीं| अब इस अवस्था में यदि भारत फिर पाकिस्तान के साथ मेज पर बैठता है तो हम इसे कूटनीति की बजाय मुर्खता कह सकते है!! क्योंकि घाव भी हम ही खाये और वार्ता के लिए भी हम ही आगे बढ़ते है तो यह हमारा कमजोर होना दर्शाता है| हमें इजराइल से सीखना होगा कि यदि अपना धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी अखंडता, प्रभुसत्ता बचाये रखनी है तो अपनी कमजोरी नहीं अपनी ताकत दिखानी होगी हमे सोचना होगा कि यह चुल्लू भर पानी क्यों बार-बार सागर को आँखे दिखा रहा| हमे अपनी आँखे लाल कर पाकिस्तान को समझाना होगा कि क्षमा गलती के लिए होती है, पाप के लिए नहीं| भारत सरकार को समझना होगा की आतंकवाद और पाकिस्तान एक इन्सान के दो नाम की तरह है| क्योंकि मस्जिद, मदरसों में पलने वाले अस्सी फीसदी मजहबी मानसिकता से ग्रस्त लोगों के बिना तो पाकिस्तान का वजूद नहीं और बिना पाकिस्तान उन लोगों का वजूद नहीं तो फिर मित्रता का औचित्य क्या है? भारत के विरोध और उससे मिलने वाले चंदे से चल रहा आतंकी कारोबार ही पाकिस्तान का असली वजूद है असली संस्कृति है, नफरत के आधार पर खड़ा हुआ देश हमे कभी प्रेम के पुष्प नहीं सोंप सकता| अब भारत सरकार को समूचे विश्व के सामने पाकिस्तान के रहनुमाओ से साफ-साफ पूछ लेना चाहिए कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकी केम्पों को वो खुद खत्म करे या हमे करने दे हम ये मानवीय त्रासदी और नहीं सह सकते|
आज हमारे सात जवान शहीद हुए जिनकी शहादत पर देश गर्व कर रहा किन्तु हम दुखी है और नम आँखों से उन वीर जवानों के पार्थिव शरीर को नमन करते हुए कहते है लहु देकर तिरंगे की बुलंदी को सवाँरा है| फरिस्ते हो तुम वतन के तुम्हे सजदा हमारा है|| शत् शत् नमन

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा 
rajeev choudhary  

नया वर्ष नया क्या देगा ?

हर साल 1 जनवरी को नया साल मनाया जाता है, शानदार आतिशबाजी कर पूरा विश्व अगले 365 दिन के केलेण्डर में प्रवेश करता है| किन्तु प्रश्न यही अटकता है की आखिर उसमे नया क्या आएगा? क्या दिल्ली की जहरीली हवा साफ़ हो जायेगी? क्या पानी शुद्ध होकर मिलने लगेगा? क्या सभ्य कहलाये जाने वाला समाज अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगा! लोग इस आपाधापी के जीवन से बाहर आकर राजधानी समेत पुरे भारत को स्वच्छ रखने में अपनी भागीदारी निभायेगें?
आज दिल्ली समेत देश के कई शहरो में ये बहस तेज़ है कि प्रदूषण को कैसे काबू किया जाये| एक पीढ़ी जब समय के साथ आगे बढती है तो दूसरी पीढ़ी के हाथ में कुछ चीजे देकर जाती है जिन्हें हम आजादी, न्याय, परम्परा, परिवार  और प्रकृति के नाम से जानते है, और हमारी  सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है की हम उन्हें सम्हालकर रखे ताकि हम भी अगली पीढ़ी तक उसे सुरक्षित पंहुचा सके किन्तु आज के हालत देखकर लगता है कि हम कहीं ना कहीं अपने कर्तव्यो से विमुख हुए जो आज हमे स्वच्छ वायु भी बाजार से खरीदनी पड़ेगी प्रकृति ने अग्नि जल, वायु, पर सबका समान अधिकार दिया किन्तु जिस तरह बोतलबंद  पानी और (गैस सिलेंडर) अग्नि के बाद अब केंट कम्पनी ने हवा शुद्ध करने की मशीन बाजार में उतारी है उसे देखकर तो यही लगता है कि प्रकृति और जीवन पर केवल धन का अधिकार होने लगा है! रामायण में एक प्रसंग है कि खरदूषण नाम के राक्षस ऋषि-मुनिओं को परेशान किया करते थे तब गुरु वसिष्ठ ने दशरथ पुत्र राम,लक्ष्मण के सहयोग से उनका अंत किया था| परदूषण शब्द का शाब्दिक अर्थ दूषित होता है और खरदूषण प्रदूषण का ही कोई पर्यायवाची नाम रहा होगा जिसे यज्ञ द्वारा शुद्ध किया गया होगा| आज जिस तरह से देश की नदियाँ,झीले, प्रदूषण की मार झेल रही है और लोग साफ़ पानी, शुद्ध हवा को तरस रहे है उसे देखकर लगता नया वर्ष भी कुछ ज्यादा विशेष नहीं होगा| कहीं ऐसा ना हो कि अगला वर्ष आते-आते धूप पर भी कोई कम्पनी पेटेंट करा जाये!!
आज जिस तरह मनुष्य ने अपनी सुख सुविधाओं के लालच में अपना जीवन दांव पर लगा दिया उसे देखकर लगता है कि कल क्या होगा प्रकृति बचेगी या मनुष्य? ऐसा नहीं इस प्रदूषण से हम लड़ नहीं सकते या अब कुछ उपचार नहीं है| बल्कि उपचार का समय ही अब आया है| हम वर्षो से ज्वलनशील पदार्थो के लिए अरब देशों पर निर्भर है| जबकि हमे अपने उर्जा के स्रोत की निर्भरता कुछ यूरोपीय देशो की तरह हवा, पानी और धूप पर करनी थी| आज धूप के द्वारा सोलर उर्जा का निर्माण हो रहा है जिसमे न के बराबर प्रदूषण है| ठीक इसी तरह पवन भी उर्जा का बड़ा स्रोत बन सकती है और पानी से बनी उर्जा हम का उपयोग कर ही रहे है|
दूसरा हमे अपना पब्लिक ट्रांसपोर्ट मजबूत करना होगा| क्योंकि धनी देश वो नहीं होता जिसके हर नागरिक पर गाड़ी हो बल्कि धनी देश वो होता है जिसके धनी निवासी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते है| आज यूरोप के कई देशों में सिर्फ पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही मज़बूत नहीं है बल्कि यहां हवा की लगातार मॉनिटरिंग होती है और जैसे ही हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक पाया जाता है तो मेट्रो फ्री कर दी जाती है ताकि लोग मोटरसाइकिल या गाड़ी छोड़कर ट्रेन में आ जायें इससे प्रदूषण स्तर को तुरंत कम करने में काफी मदद मिलती है। तीसरा वहां के फूटपाथ काफी चौड़े होते है जिसपर लोग आराम से पैदल चल लेते है जबकि हमारे देश में फूटपाथ दुकानों और गाड़ियों के पार्किंग स्थल में बदल चुके है कई जगह तो फूटपाथों पर बाजार तक लगते है| सरकार को इस दिशा कठोर कदम उठाने होंगे|
इन सब के बाद हमें उस और जाना होगा जो हमारे ऋषि-मुनि बड़ी लम्बी तपस्या कर हमे प्रदान कर गये थे यहाँ से आगे का जीवन हम यदि इनके अनुसार भी जिए तो भी हमे अनेक कष्टों से छुटकारा मिल सकता है उसके लिए हमे वायु मॉनिटरिंग उपकरण की जगह हम यदि सप्ताह में एक बार भी यज्ञ करे तो हम अपने आस-पास की वायु को शुद्ध कर सकते है| क्योंकि हम प्रकृति को उपकरणों से नहीं जीत सकते वो हमे माता की तरह तभी दुलार देगी जब हम पुत्र की भांति उसकी सेवा करेंगे जिसका उदहारण नेपाल समेत पुरे विश्व के भूकंप झटकों से ले सकते है|
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
rajeev choudhary 


खोदा पहाड़ निकला चूहा

कहने का मूल तात्पर्य यह है की कोई बड़ा काम करो और उसका हल कुछ ना निकले इसी का एक जिन्दा उदहारण फ्रांस की राजधानी पेरिस में देखने को मिला पृथ्वी के बढ़ते तापामन और जलवायु परिवर्तन के मसले पर पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में हुए समझौते की हर ओर तारीफ हो रही और इसे ऐतिहासिक समझौता करार करार दिया है। धरती के बढ़ते तापमान और कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने वाले इस समझौते को 196  देशों ने स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री जी ने अपने 39 पन्ने के मसौदे को जिस तरह यजुर्वेद के मन्त्र से समझाने की कोशिस की वो वाकई स्वागत योग्य होने साथ सत्य भी है कि बिना वेदों को जाने प्रकृति को जानना समझना असम्भव है|

इस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान की सीमा दो डिग्री सेल्सियस से काफी कम रखने प्रस्ताव है। इस सब को देखकर सुनकर लगा कि जैसे आज इन्सान और प्रकृति की मानो कोई प्रतियोगिता हो और इन्सान हर हाल में प्रकृति से जीतना चाह रहा हो किन्तु प्रकृति और मानव के इस युद्ध में अंततः यह बात हर कोई जानता है कि जीत अंत में प्रक्रति की होगी तो क्यों प्रकृति से नाहक बैर मोल लिया जाये| आज दो डिग्री पर जिस तरह पूरा विश्व समुदाय एकत्र हुआ वैसे देखा जाये तो तापमान वृद्धि पर अंकुश की यह बात भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की पसंद के अनुरूप नहीं है, जो औद्योगिकीकरण के कारण कार्बन गैसों के बड़े उत्सर्जक हैं। लेकिन भारत ने शिखर बैठक के इन नतीजों को  ‘संतुलित और आगे का रास्ता दिखाने वाला बताया।  
इस समझौते में सबको अलग-अलग जिम्मेदारी' के सिद्धांत को जगह दी गई है, जिसकी भारत लंबे अर्से से मांग करता रहा है। जबकि अमेरिका और दूसरे विकसित देश इस प्रावधान को कमजोर करना चाहते थे। पेरिस समझौते में कहा गया है कि सभी पक्ष, जिसमें विकासशील देश भी शामिल हैं- कार्बन उत्सर्जन कम करने के कदम उठाये। इसका अर्थ हुआ कि विकासशील देशों को इसके लिए कदम उठाने होंगे, जो कि विकास के उनके सपने में एक रोड़ा साबित हो सकता है। और विकसित देशों ने चालाकी दिखाते हुए पर्यावरण को स्वस्थ रखने में अपनी जिम्मेदारी में कटोती कर सारी जिम्मेदारी विकासशील देशों के कंधो पर डाल दी| और उन्होंने अपनी तरफ से कह दिया कि किसी भी क्षति और घाटे के लिए हम जिम्मेदार नहीं होंगे न किसी हम पर किसी मुआवजे आदि का (विकसित देशों) पर कोई वास्तविक दायित्व भी नहीं होगा। अगर कहा जाये जलवायु सम्मेलन एक किस्म से एक व्यापारिक सम्मेलन था बड़े देश छोटे-छोटे देशो से पैसा वसूल करेंगे| क्योंकि विकसित आज आर्थिक रूप से और औधोगिक रूप सक्षम है| किन्तु जैसे ही विकासशील देशों ने उद्योगों के जरिये अपने विकास का रास्ता खोजा तो ही विकसित देश जलवायु परिवर्तन का नगाड़ा बजा बैठे| हालाँकि जलवायु परिवर्तन है सच में ही एक विचारणीय विषय है पर क्या जहरीली गैसों के लिए विकासशील देश ही जिम्मेदार है|
आज जिस तरीके से समस्त विश्व विकास के लिए तड़फ रहा है किन्तु यह एक बात क्यूँ नहीं सोच रहा है कि विकास मानव समुदाय के लिए किया जा रहा और विकास से उत्पन्न बीमारी भी मनुष्य समाज को खा रही है क्या बिना रासायनिक विकास के जीवन नहीं जिया जा सकता?
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
Rajeev choudhary



और मिनी को बचाओं !!

कुछ खबरे ऐसी होती है जो इन्सान का ध्यान अपनी ओर खींच कर बार–बार सोचने पर मजबूर कर देती है| एक ऐसी ही खबर पढ़कर ह्रदय द्रवित हो उठा| खबर तीन हिस्सों में है एक हिस्सा प्यार दूसरा शादी और तीसरा हत्या| आजकल बड़े पैमाने पर हो रहे प्रेम विवाह जिसे भारत का युवा आधुनिकता कहता है और विडम्बना यह है कि इस आधुनिकता के स्वांग पर माँ बाप भी मंद मुस्कान बिखेर देते है कि हमारे बच्चे आधुनिक हो गये| किन्तु इस आधुनिकता की आड़ में वो कहीं न कहीं खो बैठते है अपनी मूल संस्कृति, सभ्यता, परम्परा और रीति रिवाज़|
अब यहाँ एक प्रश्न जन्मता है कि इतना खोने के बाद आखिर हासिल कौन सी खुशी होती? या फिर बुशरा उर्फ़ मिनी धनंजय के माँ बाप की तरह आंसू दर्द और वेदना मिलती है| मिनी भी आजकल के पीढ़ी की तरह यही सोचती होगी कि धर्म कुछ नहीं होता माँ-बाप बस पालने पोसने के लिए होते है| बिना बॉय फ्रेंड के जीवन कुछ नहीं होता विदेश में रहने के सपने और सपनो का राजकुमार चाहें कोई भी हो! पर मिनी को ये नहीं पता था कि जिसके लिए तू माता-पिता धर्म,संस्कृति अपना देश छोड़ना चाह रही है वो तुझे प्यार नहीं मौत देगा और हत्यारा खुद उसका प्रेमी पति आतिफ पोपेरे होगा|
आतिफ पोपेरे और बुशरा उर्फ़ (मिनी) की मुलाकात मुंबई के मातुंगा कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी। उस समय बुशरा का नाम मिनी धनंजय था। शादी के बाद मिनी ने अपना नाम बदलकर पति का धर्म इस्लाम कबूल बुशरा रख लिया।
दोनों के बीच 2008  में प्यार हुआ था, जिसके बाद उन्होंने शादी कर ली। 2009 में उनकी एक बच्ची भी हुई। इन संबधो से पता चलता है की मिनी ने खुद की लाज का समर्पण शादी से पहले ही कर दिया होगा| खैर इसके कुछ समय बाद आतिफ दुबई चला गया, जहां वह एक दुकान में मैनेजर की नौकरी करने लगा। इसके दो साल बात मिनी भी आतिफ के पास दुबई चली गई। जब उनकी बच्ची तीन साल की हो गई, तो उसे रायगढ़ में रह रहे आतिफ के माता-पिता के पास भेज दिया 2013 में मिनी के माता-पिता ने अपने बेटे निगिल से बात की, जो दुबई में ही रहता था और अपनी बहन के बारे में पता करने को कहा। जब निगिल ने पता किया तो 13  मार्च 2013  को पुलिस ने मिनी की मौत की पुष्टि की और शव पाए जाने की बात बताई। इस घटना ने मिनी के माता-पिता पर एक गहरा आघात किया जिस बेटी की जिद के कारण या उसकी ख़ुशी के लिए वो झुक गये थे और अपनी बेटी की खुशी के लिए धर्म और समाज की सीमा लांघकर यहाँ तक आये थे और बदले में मासूम बेटी की मौत की सुचना मिली थी| हालाँकि जीवन और मृत्यु सबकी निश्चित है होनी है और उसके कारण बनते है किन्तु एक भेड़ समाजवादी बन जान बुझकर भूखे भेडियों के साथ संधि कर ले कहाँ का समाजवाद है? जैसे आधुनिक समाज में आजकल लड़के-लड़कियां अपने फैसले खुद लेना चाहते है मात्र कुछ फिल्मे और कुछ आधुनिक विदेशी लेखको की पुस्तक पढ़कर वो खुद को अनुभवी मानकर अपनी जिन्दगी के सपनो की रेलगाड़ी के लिए काल्पनिक पटरी बिछा लेते है और माता-पिता के सपने पुराने खटारा होने का दावा करते है किन्तु भूल जाते है काल्पनिक पटरी पर यथार्थ का जीवन नहीं चलता और मिनी की तरह दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है|
यह एक मिनी की कहानी नहीं है| ना जाने हर रोज कितनी मिनी इस प्यार का शिकार हो रही है पर यह भूल जाती कि इन आतिफों के सामने प्यार से पहले अपनी किताब की आयत होती है जिसमे लिखा है| औरत तुम्हारी खेती है, उसका शोषण करना तुम्हारा हक है, वो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन होती है| बहरहाल जो भी हुआ दुःख मनाए जाने के सिवा सिर्फ एक रास्ता है कि अपने बच्चों को आजादी दे किन्तु साथ में अच्छे संस्कार और संस्कृति भी दे ताकि और मिनी मरने से बच जाये 
 दिल्ली आर्य प्रतिनधि सभा चित्र गूगल से साभार लेख 
rajeev choudhary