Thursday 4 February 2016

नारी नही, सोच अपित्र है!!

संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं किन्तु अभी भी कुछ समाज और धर्म में नारी को अपना स्थान बनाने के लिए आन्दोलन करना पड़ रहा है, कुल की रक्षक कुल देवी, को अपने अधिकारों अपनी धार्मिक,सामाजिक स्वतंत्रता तो दूर की बात अपनी आस्था के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है| आखिर क्यों? क्या भगवान सिर्फ चंद गिने चुने तथाकथित धार्मिक बाबाओं, मौलानाओं, पादरियों की जागीर है?
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।। यह मनुस्मृति का श्लोक है अर्थात जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होती हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। किन्तु इन से दूर यह नकली धर्म गुरु वेद व् अन्य ग्रन्थों का नाम लेकर अपना सिक्का व्यवसाय चला रहे है|
कभी-कभी तो लगता है कि जैसे अभी तक धर्म इनका गुलाम हो? क्या धार्मिक आस्था निज मनोरंजन, निज स्वार्थ, और निज उपासना के लिए बनाई गयी व्यवस्था है? इस हफ्ते दो समाचार सामने आये एक तो महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर के चबूतरे में पूजा करने के अधिकार के लिए महिला श्रद्धालुओं को अभियान चलाना पड़ रहा है| दूसरा मुंबई में हाजी अली दरगाह के महिला प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश की मांग कर रही मुस्लिम महिलाओं ने गुरुवार को प्रदर्शन किया। दोनों जगह कारण कुछ इस प्रकार बताये जिसकी वजह से इन महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया| मौलाना अंसार रजा के अनुसार इस्लाम के अन्दर मजार पर जाना पाबंदी है, शरियत के अनुसार यह गुनाह है, इसका कारण भी उन्होंने कुछ अजीब बताया कि यदि इस्लाम में महिलाएं मस्जिद या मजार पर जायेगी तो वहां उपस्थित पुरुष समाज की नियत खराब होती है जिस कारण महिलाएं पर पाबंदी है| दूसरा तरफ शनि महाराज के चबूतरे को लेकर मंदिर प्रशासन का कहना है कि शनि चबूतरा पवित्र है जो महिलाओं के प्रवेश से अपवित्र हो जायेगा| आखिर क्यों? क्या नारी माँ के रूप में अपवित्र है? या नारी बहन के रूप में अपवित्र है? पत्नि के या बेटी के रूप में अपित्र है? यदि इनमे से कोई नहीं तो धर्म के ठेकेदारों को कोई हक नहीं है नारी को अपवित्र समझने का! कोई हक नहीं है उन्हें धार्मिक स्थानों पर जाने से रोकने का नारी ही तो सभ्यता की जननी है|

कोई मुझे बताये ये आस्था पर कैसा कब्ज़ा है? जैन धर्म के अनुसार तो नारी मोक्ष की अधिकारी ही नहीं है। उसे पुरूष की तरह जन्‍म लेना पड़ेगा। जैनियों के चौबीस तीर्थंकर में एक तीर्थक स्‍त्री है। नाम था मल्ली बाईउन्‍होंने उस का नाम बदल कर मल्ली नाथ कर दिया, क्‍योंकि वे कहते है कि नारी मोक्ष की उत्‍तराधिकारी नहीं है। क्या मोक्ष पर भी पुरुष वर्ग का कब्ज़ा है? इसे अजीब द्रष्टिकोण कहे, या विकलांग मानसिकता? किन्तु एक बात तो तय है कि समाज की तरह ही मजहब पर भी पुरुष वर्ग का कब्ज़ा है! दुनियां में वैदिक धर्म को अलग रखे तो विरले ही कोई पंथ होगा जिसने नारी को इज्‍जत दी हो। जहाँ पूरब में आज भी पुरुष समाज नारी को दासी समझता है, वहीं पश्चिम देशों की  हालत तो और भी बदतर है। वहां नारी को दिल बहलाने की वस्‍तु समझा जाता रहा है| हमेशा पुरे विश्व में नारी को लेकर हालात इतने बदतर रहे या कहो सोच इतनी निरर्थक रही कि यदि किसी पुरुष को नारी जैसे नाम से भी पुकार दिया तो अपमान समझा जाता रहा है| तथाकथित बाबाओं ने, मौलानाओं ने नारी का उपहास उड़ाया, समाज ने नारी का उपहास उड़ाया, कुछ धर्म गुरु नारी से बचने की सलाह देते रहे उसे हर एक रिश्ते में आदर चाहिए जब वो बेटी बनकर बहन अपना स्नेह लुटा सकती है, जब वो पत्नि बनकर प्रेम और माँ बनकर ममता का खजाना लुटी सकती है तो फिर उसके प्रति ये दोगली भावना क्यों? ईश्वर सबका है एक माँ की तरह वो भेदभाव नहीं करता तो फिर यह लोग कौन है? जो धर्म और परम्पराओं पर कब्ज़ा कर बैठ गये?
बहुत पहले एक कथन सुना था कि परम्पराएँ फल की तरह होती है जब जन्मते है खट्टे और कडवे होते है| बडे होने पर पकने पर स्वादिष्ट और मीठी लगते है किन्तु जो बच जाते है वो सड जाते है आज बहुत सारी धार्मिक परम्पराएँ सड गयी है उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए और हमारा मानना है यह काम धार्मिक गुरु करे तो ही अच्छा है वरना कभी जनता संस्कृति के पेड़ से छेड़छाड़ न कर बैठे? क्योंकि जिस प्रकार गुरुवार को मुस्लिम महिला समूहों से जुड़े कई कार्यकर्ताओं ने हाथों में तख्तियां लेकर ऐतिहासिक दरगाह के मुख्य स्थल में महिलाओं को प्रवेश देने की मांग की। उसे देखकर लगता है आने वाले समय में नारी को समाज से पहले धर्म के ठेकेदारों से धार्मिक समानता की जंग जीतनी पड़ेगी?......Rajeev choudhary 




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