Wednesday 27 April 2016

उज्जैन कुम्भ 2016,नारी को जाने वेदों में

बहुत अच्छा अवसर है  मुझे उज्जैन  कुम्भ में आने के बाद जब पता चला कि आर्य समाज का  शिविर भी लगा है तो मेरा हर्ष दुगना हो गया| बचपन से मेरी प्राथमिकता ज्ञान को अर्जित करने की रही| ईश्वर के बारे में जानना, सनातन धर्म को जानना, मेने हमेशा अपने चित्त पर जमी अन्धविश्वास की धुल को हटाने का प्रयत्न किया| हरिद्वार गया, काशी गया नागा बाबाओं के अखाड़े देखे, महंत, महामंडलेश्वर देखे उनके अन्दर अपने पद को लेकर जन्मा अहंकार देखा तो हमेशा मेरे मन में यही आता था कि खुद को ईश्वर के निकट कहने वाले बाबा  लोग अभी अपने अहंकार को दूर नहीं कर सके तो इनके ज्ञान का लाभ! किन्तु जब में पहली बार आर्य समाज के वैदिक विद्वानों से मिला अपने मन में जन्मी शंकाओ का निवारण पूछा और उन्होंने अपने मधुर सोम्य व्यवहार से मुझे समझाया तो लगा कि ज्ञान सिर्फ वेदों में है जिन्हें पढ़कर हम अपना जीवन सार्थक कर सकते है| यह सब कहते कहते कुम्भ स्नान के लिए आये  इंदौर के सेवाराम के चेहरे पर एक अलग अनुभूति नजर आई |                                                                                                                                                                           
वाराणसी से इस बार कुम्भ स्नान को आई पेशे से अध्यापक अनुपमा शुक्ला के लिए सब कुछ कल्पना से परे था शिप्रा के तट का मनमोहक नजारा,  नदी के किनारों पर पानी के साथ खेलते बच्चे, साधुओं के झुण्ड के झुण्ड कोई बाबा शरीर पर राख लपेटे था तो कोई भांग के नशे में टहल रहा था| कोई हट योग के नाम पर अपने शरीर को कष्ट दिए जा रहा था| उसके अनुसार मेरे मन में शंका के हजारों प्रश्न उठ खड़े हुए क्या ईश्वर को ऐसे जाना जाता है? क्या धर्म बस पुरषों की बपोती है, इसमें नारी का स्थान कहाँ है? कहाँ लिखा है वो पूजनीय है?  तभी टहलते -टहलते शरीर में थकान हुई और आर्य समाज के शिविर में एक कुर्सी पर बैठ गयी वहां प्रवचन चल रहा था| जो पहले तो मेरे लिए एक शोर था किन्तु बाद में जब वहां सुना कि वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है| वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी| कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं|


अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि | तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं | यह सुनकर मन आनंद से भर आया जहाँ पहले खुद के नारी होने पर कुढती थी आर्य समाज में शिविर में आकर खुद के नारी होने पर गर्व हुआ आज पता चला नारी को सिर्फ वेदों द्वारा ही जाना जा सकता हमारा सारा सम्मान तो वेदों में है जो हमे बराबरी  से भी ऊँचा स्थान देता है| 

आप सभी महानुभावों से अनुरोध है खुद को समझना ईश्वर को जानना, नारी शोषण की नहीं पूजा की अधिकारी है, सत्य सनातन वैदिक धर्म और वेदों से जाना जा सकता है| जो लोग आज यूरोप के रहन-सहन की पैरवी करते है वो शायद नहीं जानते जिस समय हमारे देश में नारी को ऊँचा स्थान था उस समय यूरोप के अन्दर महिला को आत्माविहीन समझा जाता था| उसका अनादर होता था| उसे डायन कहकर जिन्दा जला दिया जाता था| अंग्रेज गये किन्तु हमारे देश के अन्दर भुत प्रेत और अंधविश्वास छोड़ गये| जिसके लिए  स्वामी जी ने 1853 में हरिद्वार के अन्दर पाखण्ड खंडनी पताका फहराई थी| जिसको लेकर  आर्य समाज आज भी नारी मुक्ति, जातिवाद और अन्धविश्वास के खात्मे को लेकर मुखर है,, इस सामाजिक भेदभाव को मिटाने में आर्य समाज के साथ मिलकर आप भी अपना सहयोग देकर राष्ट्र को महानता की ओर ले जा सकते है... आर्य समाज दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ..




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