Monday 4 April 2016

राजनेता मूक क्यों है?

विश्व कप के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से भारत की हार पर मैनपुरी में दो समुदाय आमने सामने आ गए। गोलियां चल गर्ईं। चार लोग बाल-बाल बच गए। गांव में तनाव है। घटना पिछले गुरूवार की रात की है। सूचना पर पुलिस और खुफिया विभाग अलर्ट हो गया है। यूँ तो मीडिया और राजनेता हर पल देश के लिए चिंता जाहिर करते है किन्तु इस मामले पर उनकी मूकता स्पष्ट दिखाई दे रही है| कुछ समय पहले रामगोपाल बजाज, ने कहा था जब भी देश के अन्दर कुछ अच्छा होता है या फिर देश के लोग बाहर जाकर कुछ अच्छा करते हैं या फिर उनके साथ विदेश में कुछ बुरा होता है उस वक़्त में हमारे अन्दर की राष्ट्रीयता कुछ ज़्यादा जग जाती है। जब भी हम विदेशों में जाकर वहाँ का सिस्टम देखतें हैं और उससे अपने देश की तुलना करते हैं तब थोड़ा अफ़सोस ज़रूर होता है। राष्ट्रीयता की भावना को ठेस पहुँचती है अपने देश के जन-प्रतिनिधियों की स्वार्थसिद्धि को देखकर और उन्हें चुनने वाले मतदाताओं की समझ पर दुःख होता। आज भले ही नेता विकास या सुशासन का राग अलापते हो किन्तु देश के अन्दर सेक्युलर फौज ने जाति और धर्म पर वोट की दुकान बना ली| इस समय देश के अन्दर जो पनप रहा है वो आने वाले दिनों में बड़ा खतरा बनकर उभरेगा|
हैदराबाद की एक इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन जामिया-निजामिया के बाद दारुल उलूम देवबंद ने भारत माता की जय बोलने पर फतवा जारी किया है| फतवा जारी करना भारत के मैच हारने पर पाकिस्तान के झंडे फहराना गोलियां पटाखे चलाकर ख़ुशी मनाना और भारत की जीत पर किसी डाक्टर नारंग को पीट-पीटकर मार देना सब कुछ उस देश के अन्दर हो रहा है जिस देश का प्रधानमंत्री अजान की आवाज़ सुनकर अपना भाषण बंद कर देता है, जिस देश में पिछले पांच सालों के दौरान देशभर से छह लाख 40 हजार 792 हजयात्रा पर गए, लोगों को  सब्सिडी के रूप में 2891.77 करोड़ रुपये दिए गए।  भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, लाउडस्पीकर पर भजन चला तो मंदिर में घुस कर पुजारी को मारेंगे? यही धर्मनिरपेक्षता है क्या? पिछले दिनों टीवी डिबेट मे एक मौलवी से पूछे गये सवाल पर मौलवी जी ने साफ तौर पर कहा, 'मुस्लिम के लिए पहले कुरान और मजहब है बाद में मुल्क है| तो इस हिसाब से मुस्लिमो के लिए 'भारत माता की जय' कोई मुद्दा हो ही नही सकता। किन्तु एक प्रश्न है की भारत ही क्या किसी भी देश के प्रति इनकी कोई वफादारी है या नहीं? क्योकि हर देश में कुरान है और हर एक देश में मजहब!
मुसलमान इस सबका दोषी नहीं है दोषी वो राजनीति है जो सम्प्रदायों की नस नस में प्रवेश कर गयी वरना तो अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारत माता की जय बोलकर फांसी के फंदे को चूम लेता है, वीर अब्दुल हमीद भारत माता की जय बोलकर पाकिस्तान के पेटेंट टेंक उड़ा देता है, हाल ही में आओ तो राज्य सभा सांसद जावेद अख्तर संसद के बीचों-बीच तीन बार भारत माता की जय बोलकर उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा ही था| जो लोग आज कहते है पहले मजहब बाद में मुल्क, क्या असफाक उल्ला, अब्दुल हमीद, जावेद अख्तर मुसलमान नहीं थे ? या इन पढ़े लिखे लोगों को इस्लाम का ज्ञान नहीं था? ऐसे ही ना जाने कितने करोड़ मुसलमान है जिनका दिल इस वतन के लिए धडकता है| किन्तु कुछ लोग जबरन सम्प्रदाय का बहाना बना अपना पेट पाल रहे है| मंदिर मस्जिद मामला हो या किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कोई अन्य सम्प्रदाय का व्यक्ति चोट पहुचाये तो धर्मनिरपेक्ष कहें जाने वाले नेता जमकर सिंहगर्जना करते दिखाई दे जाते है| किन्तु जब देश के विरोध विशेष समुदाय के लोग कभी कश्मीर तो कभी केरल कभी उत्तरप्रदेश में देश विरोधी नारे लगाते है तो इन लोगों की ख़ामोशी देखकर सहज पता लगाया जा सकता है कि देश और सविधान के मूल्यों के प्रति इनकी आस्था कितनी गहरी है| या इनकी जबाबदारी सिर्फ वोटों के समीकरण की लाभ हानि को देखकर होती है? असल में इन नेताओं की नजर में धर्मनिरपेक्षता के मूल्य की कोई कीमत नही रह गयी है| ये सत्ता के मादक सुख के आगे देश के प्रति अपने कर्तव्य वो शपथ जो इन्हें मंत्री पद ग्रहण करते समय दिलाई जाती है उसकी सार्थकता को भूल बैठे है| मैनपुरी की घटना को कई दिन बीत चुके है किसी भी नेता या दल ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्या इनका मौन स्वीकृति का लक्षण समझा जाये? यदि नहीं तो कम से कम सामने आकर अपनी तो प्रतिक्रिया स्पष्ट करे..राजीव चौधरी 

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