Thursday 7 April 2016

लहरा दो तिरंगा प्यारा

"हम पर अश्लील फब्तियां कसी जाती हैं। कहते हैं, एक का रेप हो जाएगा तो बाकी सभी चुप हो जाएंगी। यहां त्योहार मनाने की इजाजत लेनी पड़ती है। अपने देश में तिरंगा लहराने की अनुमति नहीं है, अगर विरोध करो तो फेल करने की धमकी दी जाती है। चार साल की डिग्री छह साल में पूरी करने को धमकाया जाता है। कई बार तो जान से मारने की धमकियां तक मिलीं। बस, बहुत हो गया, अब और सहन नहीं होता।" बुधवार को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) श्रीनगर में हालात का जायजा लेने पहुंचे मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के प्रतिनिधियों के सामने बाहरी राज्यों के छात्र-छात्राओं का दर्द और गुस्सा उबल पड़ा। ये कहानी किसी अन्य देश की नहीं बल्कि अपने अभिन्न अंग कहलाये जाने वाले मुस्लिम बहुल राज्य कश्मीर की है जहाँ हर साल भारत सरकार अरबो रुपया वहाँ के निवासियों की जीवन शैली सुधारने के लिए खर्च करती है|  
सालों पहले दूरदर्शन चैनल पर एक गीत आता था “मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा” जिसमे देश के अलग –अलग हिस्सों की भाषाओ में देश की एकता में पिरोया जाता था| लेकिन आज क्या हो गया देश को, यहाँ के राजनेताओं को और मीडिया को? क्यों सच को दबाकर देशद्रोही लोगों को हीरो बनाने पर तुले है| अफसोस सिर्फ इस बात का है की जो हाल
जेएनयू  छात्रों का होना था वो हाल एन आई टी छात्रों का हो रहा है| सेना को गाली देने वाले कन्हेया को मीडिया और राजनैतिक दल हीरो बताते है उसकी तुलना शहीद भगतसिंह से की जाती है| शायद यह लोग भूल गये कि इस तिरंगे को लहराने के लिए लाखों माताओं के लाल अपना बलिदान दे गये थे ताकि आज हम इस तिरंगे की शान को झुकने ना दे| हमें गर्व है एनआईटी श्रीनगर के उन छात्रों पर जिन्होंने जम्मू कश्मीर पुलिस की बर्बरता पूर्वक कार्रवाही के बाद भी देश का धवज नहीं झुकने दिया| विद्यार्थियों ने एक-एक कर अपने साथ हुई प्रताड़ना, लाठीचार्ज व धमकियों के बारे में टीम को बताया हाथों में पट्टी बंधे और फूटे सिर लिए छात्रों ने हालात बताए कि तिरंगा फहराने और देश हित में नारेबाजी करने के बाद उन्हें किसी तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। और एनआइटी को किसी सुरक्षित जगह स्थानांतरित करने की मांग की।
एनआईटी श्रीनगर में कुल 3000 छात्र हैं, जिनमें से 20 फीसदी छात्र  स्थानीय हैं| बाकी 80 फीसदी छात्र देश के तमाम हिस्सों से आते हैं| ये सभी छात्र JEE के माध्यम से चुने जाते हैं, जो पहले AIEEE हुआ करता था| अभी हाल ही में देश के प्रधानमंत्री जी जब सऊदी अरब की यात्रा पर थे तब सैकड़ों भारतीय अप्रवासियों ने भारत माता की जयका उद्घोष किया। इस नारेबाजी में न केवल भारतीय कामगार-मजदूर थे, बल्कि अधिकांश बुर्काधारी मुस्लिम उद्यमी महिलाएं भी थीं। जब सऊदी अरब निवासी मुस्लिम महिलाएं भारत माता की जयका नारा लगाकर अपना मजहब सुरक्षित रख सकतीं हैं, तो भारत के कुछेक मुसलमानों को क्या परेशानी है ? उन्हें तो अपनी मातृभूमि के प्रति और अधिक कृतज्ञ होना चाहिए। कुछ सिरफिरे मजहबी मानसिकता में लिप्त लोगों से बचना चाहिए जो साम्प्रदायिक उन्माद की आग को हवा दे रहे हैं। भारत के मुसलमानों को देश की एकजुटता के प्रति, सहिष्णुता के प्रति एवं अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा। देश में लोकतंत्र रहेगा तो ही वो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते है वरना सीरिया, लेबनान सोमालिया, इण्डोनेशिया जैसे कितने इस्लामिक मुल्क है जहाँ जीवन नरक से भी बदतर हो चला है|

भारत माता की जय बोलने से किसी का मजहब खतरे में नहीं होगा। इस नारे का ईश्वरी आस्था से कोई लेना-देना नहीं है। यदि कोई मुस्लिम भारत वासी है तो भारत माता की जयका तात्पर्य यह समझना चाहिए कि भारत मेरा मादरे वतन है, इसे मैं सलाम करता हूँ। यदि धर्म को ही ब्रह्म वाक्य यानि सब कुछ मान के चलेंगे तब तो धरती पर सुख चैन से जीना ही हराम हो जायेगा. इस्लाम में तो संगीत सुनना और फिल्म देखना दोनों ही मना है| क्या देश के करोड़ों मुसलमान इसे छोड़ सकते हैं? कभी नहीं, चाहे कितने भी फतवे मुस्लिम समाज द्वारा क्यों न जारी हो जाएँ| इस्लाम में तो फोटो खिंचवाना भी मना है, लेकिन बिना फोटो खिचवाए तो आज के युग में काम ही नहीं चलेगा. देश में कोई भी सरकारी कार्य हो या राशन कार्ड, आधार या पासपोर्ट बनवाना हो या फिर हज करने जाना तो भी फोटो चाहिए. अधिकतर मुस्लिम भाई हर मामले में शरीयत की दुहाई देंगे, लेकिन कभी भूल से भी शरीयत में वर्णित सजाओं को मुस्लिम समाज पर लागू करने की बात नहीं करेंगे, क्योंकि तब उन्हें भारतीय संविधान ही ठीक और सुविधाजनक लगता है| भाई मेरे भारतीय संविधान को मानने के साथ साथ भारत को भी तो अपनी मातृभूमि मान सम्मान देकर तिरंगा लहराने से परहेज क्यों? परहेज तो देश विरोधी फतवों से करो| सोचो 1400 साल से फतवों ने मुस्लिम समाज को क्या दिया? और 69 साल की लोकतांत्रिक प्रणाली ने इस देश के मुस्लिम समाज को क्या नहीं दिया? राजीव चौधरी 

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