Tuesday 31 May 2016

मालेगांव षडयंत्र का भण्डाफ़ोड

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआइए की ओर से मालेगांव बम धमाके की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य को क्लीनचिट दिए जाने पर कुछ ‘सैक्यूलरवादी’ दलों और मीडिया (खासकर अंग्रेजी) का जिस प्रकार विधवा विलाप शुरू हुआ वह कोई आश्चर्यजनक तो नहीं किन्तु अप्रासंगिक तथा अराष्ट्रीय अवश्य लगता है। हालांकि, इस क्लीनचिट के बाद भी इन सभी की रिहाई होगी या नहीं, वह तो अभी भी माननीय न्यायालयों पर ही निर्भर है किन्तु, कांग्रेस सहित अनेक  दलों के कुछ नेता और मीडिया का एक वर्ग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे वे जाँच टीम में शामिल रहे हों या फिर न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे हों। यदि प्रज्ञा सिंह और अन्य के खिलाफ मालेगांव में विस्फोट करने की साजिश में शामिल होने के पुख्ता प्रमाण थे तो फिर ‘हिन्दू आतंकवाद’ का शगूफ़ा छोडने वाले ये सत्ताधारी छ: साल के अपने शासन काल में भी इन लोगों को सजा क्यों नहीं दिला पाए। देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज और राष्ट्रवादी हिन्दू संगठनों को बदनाम करने की नीयत से यूपीए सरकार द्वारा विशेष रूप से गठित एनआइए 2011 से लेकर 2014 तक और इसके पहले मुंबई पुलिस काआतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस), आखिर यह काम क्यों नहीं कर सका?

एक बात और, जिन नेताओं को यह लग रहा है कि एनआइए ने राजनीतिक दबाव में गलत फैसला लिया है उन्होंने मालेगांव में ही 2006 में हुए बम विस्फोट के सिलसिले में पकड़े गए आठआरोपियों की रिहाई पर चुप्पी क्यों साध लीजिन्हें चंद दिनों पहले इसी एनाईए ने ही रिहा किया था। गत माह इनकी रिहाई तब हुई जब इसी एनआइए ने कहा कि एटीएस ने जो सबूत जुटाए थे वे भरोसेमंद नहीं हैं। इन आठ लोगों की रिहाई के समय इन नेताओं ने सवाल तो उठाए किन्तु, बिल्कुल उलट, कि आखिर उन्हें कोई मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिएप्रश्न उठता है की अगर वे आठ मुआवजा पाने के अधिकारी हैं तो ये छह क्यों नहींफ़िर, साध्वी प्रज्ञा तो गत अनेक वर्षों से केंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी ग्रसित हैं. आखिर यह दोहरी राजनीति क्यों?
राजनैतिक उद्देश्य से सिर्फ़ हिन्दू आतंकवाद साबित कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों पर ही वक्र दृष्टि होती तो भी समझा जा सकता था किन्तु, राजनैतिक विद्वेष की आड़ में सैन्य अधिकारियों को भी षडयन्त्र पूर्वक फंसाना कहाँ तक बर्दाश्त किया जा सकता है. एनआईए के खुलासे में यह कहा गया कि एटीएस ने खुद ही पुरोहित के घर आरडीएक्स रखवाया था’, मिलिट्री इन्टेलीजेन्स के एक वरिष्ठ अधिकारी कर्नल पुरोहित के माध्यम से सम्पूर्ण सेना का मनोबल तोडने की एक गहरी साजिश थी इनके अलावा अतिरिक्त चार्ज शीट में यह भी कहा गया है की 12-13 अतिरिक्त महत्वपूर्ण गवाहों, जिनमें पांच सैन्य अधिकारी भी थे, को एटीएस ने जान बूझकर नजरंदाज कर दिया. इन अधिकारियों ने साफ़ तौर पर एटीएस की आरडीएक्स थ्योरी पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा था कि आरडीएक्स तो एटीएस के उपनिरीक्षक शेखर बागडे ने स्वयं सैन्य अधिकारी के देवलाली स्थित घर में रखे थे. रही बात साध्वी प्रज्ञा पर आरोपों की, तो, विस्फोट में प्रयुक्त एलएमएल फ्रीडम मोटर बाइक साध्वी प्रज्ञा सिंह के नाम थी, जिसे उन्होंने दो वर्ष पूर्व रामचंद्र उर्फ़ राम जी को दे दिया था. इसके अलावा उंनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं मिले. एनआईए के अनुसार प्रज्ञा ने एक बार देने के बाद, कभी भी, अपनी बाइक न तो रामजी से वापस मांगी और न ही उस बाइक के साथ उन्हें कभी देखा गया. एनआइए ने यह भी कहा है कि एटीएस द्वारा यह कहा जाना की प्रज्ञा ने यह बाइक विस्फोट से पूर्व ही राम जी को दी थी, कहीं भी साबित नहीं होता। एनआइए ने एटीएस पर यह भी आरोप लगाया है कि उसके द्वारा आरोपियों के इकबालिया बयान लेने के लिए उनको गंभीर यातनाएं दी गईं. अनेक बार लाइ डिटेक्टर, नारको सहित अन्य गंभीर टेस्टों से उन्हें अनावश्यक रूप से गुजरना पडा.


मालेगांव धमाकों में पहले लश्कर, फिर सिमी, और, फिर अचानक जिस प्रकार हिन्दू संतों और सैन्य अधिकारियों को छुद्र राजनैतिक उद्देश्यों से निशाना बनाया गया वह भयंकर राष्ट्र विरोधी कृत्य नहीं तो और क्या है? इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम ही है.एनआइए के इस सनसनीखेज खुलासे ने जहाँ पूरे देश की आँखें खोल दीं हैं वहीं यह चिंतन भी गंभीर रूप लेता जा रहा है कि आखिर निर्दोषों को कब तक प्रताड़ित कर यातनाएं दी जाती रहेंगी और षडयंत्रकारी कब तक गुलछर्रे उड़ाते हुए भारत की आत्मा (संविधान, हिन्दू समाज, संत और राष्ट्रभक्तों) को यूँ ही बदनाम कर उनकी जिंदगी को दाँव पर लगाते रहेंगे? आज जितना आवश्यक आतंकी धमाकों के गुनहगारों को दंडित करना है उससे कहीं ज्यादा, जांच के नाम पर निर्दोषों को फंसा कर राष्ट्रभक्तों को देश द्रोही और आतंकी साबित करने के घिनोने षडयंत्रकारियों को बेनकाब करना है. आशा है भारत को न्याय मिलेगा तथा राष्ट्र धर्म सुरक्षित रह पाएगा. लेख विनोद बंसल लेखक के अपने निजी विचार है| 

Thursday 26 May 2016

कहीं लाडली बिकती रही बाजारों में!

सरकार की ओर से महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से चलाई जा रही  लाडली, सुकन्या योजना कन्या भ्रूण हत्या, बेटी बचाओं उस समय दम तोड़ देती है जब आंध्र प्रदेश के प्रवासी भारतीयों से जुड़े मंत्री पी. रघुनाथ रेड्डी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखकर खाड़ी देशों में काम करने वाली भारतीय महिलाओं को वापिस लाने की गुजारिस करते है। सरकार को लिखते है कि आंध्रप्रदेश और तेलांगना से बड़ी संख्या में महिलाओं को खाड़ी देशों में फुटकर दुकान के सामान की तरह बेचा जा रहा है। आंध्रप्रदेश के मंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि सऊदी अरब में चार लाख रूपये, बहरीन, कुवैत, यूएई में एक से दो लाख रूपये तक महिलाओं को बेचा जा रहा है। उन्होंने विदेश मंत्री से आग्रह किया है कि ऐसी महिलाओं को जरूरी कागजात, वीजा और मुफ्त यात्रा जैसी सुविधाएं दिलाकर इन्हे वापस लाया जाए। खाड़ी देशो में काम कर रहे भारतीयों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं, खाड़ी देशों में भारतीयों को भेजने वाले एजेंट महिलाओं को भारत से कई गुना ज्यादा तनख्वाह की बात कहकर इन देशों में भेज देते हैं या कहो वहां के अय्यासी के बाजारों में बेच देते है।
एक ऐसे बाजार में जहां मानवीय मूल्य और मासूमियत बिकती है। उनकी अस्मत और सपनों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। एक ऐसा बाजार जिसमें अमीरों की खातिर अय्याशी पैदा की जा रही हैं। एक अरसे से सऊदी अरब के शेखों की आरामगाह के बतौर बदनाम हैदराबाद जहां शेख आते और गरीबी में जीती नाबालिग लड़कियों को साथ ले जाते, कानून ने सख्ती की, तो शेखों के दौरे घटने लगे, लेकिन पैदा हो गए नए दलाल, शिकार वही था। सिर्फ जाल बदल गया। नवम्बर 2012 में एक एक नामी गिरामी न्यूज़ चैनल ने इस मामले का काफी हद तक पर्दाफाश भी किया था जब दक्षिण भारत के हैदराबाद से निकाह के नाम पर लड़कियां अरब देशों में सप्लाई की जा रही थी| तब वहां के एक काजी ने धंधे का रिवाज बताया था । इस धंधे में लिप्त काजी के अनुसार बच्ची है तो 4 लाख- 5 लाख। शादीशुदा के तीन लाख और एक बच्चे की माँ का सौदा एक लाख में किया जाता है|
भारत से कहां बिकती हैं लड़कियां? अगर आप इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो राज्‍य सरकार के मंत्री पी. रघुनाथ रेड्डी से पूछिए| उन्‍होंने दावा किया है कि उन्‍हें मालूम है कि भारत में कहां-कहां लड़कियां बिकती हैं, साथ ही मंत्री ने ये भी बताया है कि उन्‍हें यह भी पता है कि भारत की लड़कियों को खरीदने के बाद उन्‍हें कहां बेचा जाता है, यह भी बताया है कि इन लड़कियों से कैसा सलूक किया जाता है, इनसे देह व्‍यापार के अलावा और किस तरह के धंधे कराए जाते हैं? लड़कियों की मदद के लिए मंत्री ने केंद्र सरकार का दरवाजा खटखटाया है हालांकि, अभी तक यह डाटा नहीं कि वहां कितनी महिलाएं फंसी हैं. लेकिन यह आंकड़ा 10 हजार हो सकता है| भारत में शहर ही नहीं बल्कि गांवों का रोजगार भी इतना सिमट गया है कि लोग दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में ही नहीं बल्कि अब भारत से बाहर खुद को बेचने तक के लिए मजबूर हो गए। पिछले कुछ सालों में भारत से सबसे बड़ी संख्या में आंध्रप्रदेश और तेलांगना के लोगों का पलायन मजदूरी के लिए खाड़ी की देशों की तरफ हुआ। जिसके बाद भारत से खाड़ी देशों में पुरुष, महिलाओं को भेजने वाले एजेंटों का धंधा भी शुरू हो गया। गौरतलब है कि सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, कतर, यूएई जैसे खाड़ी देशों में तकरीबन 60 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। 
यदि इस सारे मामले में अध्यन किया जाये तो इसके बड़े कारण मिलते है एक तो भारत के कुछ गरीब पिछड़े राज्यों से अक्सर गरीब बच्चियों को घरों मे काम के नाम पर मासूम लड़कियों का यौन शोषण के लिए बाहर भेजा जाता है। खासकर नक्सलवाद प्रभावित जिलों का दर्द इस तरह से बढ़ चला है कि  घरों मे न तो चौकी मिलेगी तो और न ही चारपाई। कई लोग अपना पेट भरने के लिए इमली और कटहल को उबाल कर उसका सेवन करते हैं। कई राज्यों से लगातार गायब हो रही लड़कियों को देख कर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि भूखे मरने से बेहतर खुद को देह व्यापार की भट्टी में झोकना पसंद करती है| दूसरा आजकल माध्यम वर्ग की पढ़ी लिखी लड़की जो बचपन से ही अपनी शादी और नौकरी को लेकर विदेश जाने का सपना देखने लग जाती है| उनकी कल्पनाएँ उन्हें खीचकर इस नरक में धकेल देती है| माता पिता आधुनिकता की आंधी में इस कदर खो जाते है कि उन्हें बच्चों का भविष्य भारत के बाहर ही अच्छा नजर आने लगता है चाहे उसके लिए घर दर क्यों न बिक जाये| ऐसा नहीं है कि सफल नहीं होते सफल भी बहुत होते किन्तु अधिकतर असफल होते है और जो असफल होते है उन्हें कई बार मज़बूरी में फंसकर जिस्म को बेचना पड़ता है सोचिये जिस देश की बेटी भूख और बेरोजगारी के कारण विदेशों में फर्नीचर की तरह बिक रही हो उस देश का अपनी सम्रद्धि का राग अलापना कहाँ तक सही है?...दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेख राजीव चौधरी 

Monday 23 May 2016

आस्था का भेदभाव!!

सबसे बड़ी और सबसे दुखद बात यह है कि घटना देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में हुई जहाँ से सब के लिए बिना भेदभाव किये गंगा यमुना बहती है इन नदियों का उद्गम स्थल माना जाता वहां पर इतना भेदभाव! बल्कि वहां से सामजिक समरसता की मिसाल कायम होनी चाहिए थी| देश के अलग-अलग हिस्सों से खबर आती रहती है कि मंदिरों में दलितों को जाने नहीं दिया जा सकता, यह परंपरा यह कानून बनाने वालों ने इतना पवित्र मान लिया कि सब कुछ टूट-फूट सकता है, मगर यह कानून नहीं टूट सकता| दलितों को सिलगुर मंदिर में प्रवेश कराने को लेकर राज्यसभा सांसद तरुण विजय और दलित श्रद्धालुओं पर उग्र भीड़ ने हमला कर दिया। भीड़ ने तरुण विजय, दलित नेता दौलत कुंवर की गाडि़यां भी तोड़फोड़ कर खाई में फेंक दीं। पुलिस के साथ भी भीड़ ने हाथापाई की। सांसद के सिर पर गंभीर चोटें आयी हैं। इससे ज्यादा लज्जाजनक क्या होगा कि वर्षो से जातीय उत्पीडन सह रहे दलितों को जब भाजपा सांसद तरुण विजय ने मंदिर में प्रवेश की मुहीम छेड़ी तो जातीय उन्माद में अंधे लोगों ने उनपर ही हमला कर दिया| दरअसल पोखरी में हुई हिंसा क्षणिक आवेश में बौखलाए कुछ लोगों की कारस्तानी नहीं थी बल्कि उत्तराखंड के इस इलाके में फैले जातिवाद का एक वीभत्स रूप था|
यदि वैदिक काल के बाद भारत का आस्था, उपासना का इतिहास देखे तो सिर शर्म से झुक जाता है| अन्धविश्वास, छुआछूत और जातिवादी परम्पराओं के कारण हिन्दुओं के हजारों मंदिर अन्य लुटेरों द्वारा तोड़ दिए गये पर यह लोग आज तक अपनी उन परम्पराओं को नहीं तोड़ पाए जो इन्होनें रंग भेद अमीर गरीब को देखकर बनाई थी| जब यह सामंतवादी लोग मानते है कि हम सब एक ईश्वर की संतान है तो फिर यह सोच कहाँ से आई कि उसके मंदिर में फ़लां आ सकता है, फ़लां नहीं. फ़लां पवित्र है और फ़लां अपवित्र? सामंतवाद कहो या जातिवाद आज की तारीख़ में अपने धार्मिक चोले में अपनी अतार्किकता, अपनी अमानवीयता को बचाकर रख सकता है, क्योंकि उस पर प्रश्न लगाना सबसे कठिन है, संवेदनशील मामला है| यह उंच नीच का भेदभाव रखने वाले लोग  दलितों के हर तरह के इस्तेमाल में विश्वास तो रखते है, किन्तु उसे अधिकार देने में नहीं आखिर ऐसा क्यों?


शनि शिगणापुर का मामला अभी भी ठंडा नहीं हुआ है जब एक महिला सब पुरुषों की आँख बचाकर मंदिर में प्रवेश कर लिया था जिसके बाद इन तथाकथित धर्म के ठ्केदारो द्वारा उक्त मंदिर को अपवित्र बता गाय के दूध से धोने का ढोंग रचा गया था| शिगणापुर की इस पहल ने मुस्लिम महिलाओं को भी क़दम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया था और वो भी मुंबई के आज़ाद मैदान में हाजी अली दरगाह में प्रवेश की मांग को लेकर इकट्ठा हुईं थी| देश को स्वतंत्र हुए 70 साल बीत गये कितु धर्म ध्वज वाहक अभी तक तय नहीं कर पाए की किसे मंदिर में प्रवेश दे किसे नहीं! यदि यह मंदिर इनके अपने है तो लोग इनके अन्दर जाते क्यों है और यदि मंदिर भगवान के यह तो फिर यह लोग रोकने वाले कौन होते है? यदि यह लोग समाज को सही दिशा नहीं दे सकते, इन खोखली और बेजान परम्पराओं के खिलाफ नहीं बोल सकते तो यह देश धर्म के लिए कतई शुभ नहीं है| सच में सांसद तरुण विजय पर हुए हमले में कठोर स्वर सुनाई देने चाहिए थे मुख्यमंत्री मंत्रियों द्वारा दोषियों पर कड़ी कारवाही की जानी चाहिए तमाम दलों के नेताओं को अपने जातीय हित छोड़कर इस मानसिक बीमारी के खिलाफ अपनी आवाज़ मुखर करनी चाहिए तभी इस देश में कोढ़ की तरह फैले जातिवाद को कम किया जा सकता है जब  सबसे पहले तो यहां के बुद्धिजीवी, महंत, मंडलेश्वर यह स्वीकार करें कि यहां जातिवाद की गहरी  पैठ है और फिर वे लोग धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता लेकर आएं, ताकि देश इन लज्जाजनक कार्यो से बाहर आ सके|...दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेख राजीव चौधरी 

दूसरा कदम भी साहसिक, किन्तु!!

राजनीति से हटकर यदि बात सामाजिक हित के नजरिये से देखने की हो तो अन्य राज्य भी बिहार से अच्छी शिक्षा ले सकते है| अप्रैल माह से शराब पर पूर्ण प्रतिबंध के डेढ़ महीने बाद बिहार राज्य सरकार ने गुटखा व पान मसाला के उत्पादन, बिक्री, ढुलाई, प्रदर्शन व भंडारण पर भी एक साल तक पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। राज्य के लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते यह आदेश जारी किया है। इसके लिए बिहार सरकार वाकई में प्रशंसा की पात्र है| बिहार में 53  प्रतिशत लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं, जिसमें 66 प्रतिशत पुरुष तथा 30 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं हैं।यदि तम्बाकू से हो रहे नुकसान पर गौर करें तो पता चलता है कि इसे खाने से 90 फ़ीसदी मुंह के कैंसर हो जाते हैं, यह उत्पाद मुंह के कैंसर सहित गले और कई प्रकार के कैंसरों का कारण बनता है, एक शोध की मानें तो देश में तम्बाकू से सबसे ज्यादा कैंसर के मामले सामने आते हैं और लाखों लोग असमय इसका शिकार हो जाते हैं| पर बात प्रतिबंध तक सिमित ना रहे इसके लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाने पड़ेंगे| सरकार को जनजागरण अभियान चलाने चाहिए लोगों को सचेत करना होगा कि ये कदम आपका शरीर और पैसा बचाने के लिए है| ऐसा ना हो कि सरकारी तौर पर प्रतिबंध लगा हो और राज्य में तम्बाखू, गुटका, शराब के अवैध कारोबारी पनप जाये और आदतवश लोग 2  रूपये का तम्बाकु  (मौत) 10 रूपये में खरीद कर सेवन करते रहे|
क्योकि पिछले दिनों शराब पर प्रतिबंध लगने के बाद से जैसी खबरे बिहार से आ रही है, वो वाकई में चौकाने वाली है| शराब के पूर्ण प्रतिबंध को बिहार में भले ही कड़ाई से लागू कराया जा रहा हो, लेकिन सीमांचल के जिलों में न तो स्थानीय प्रशाशन पूरी जवाबदेही के साथ कार्रवाही के साथ काम रहा है और न ही स्थानीय शराबियों पर सरकार की अपील का कोई असर पड़ रहा है। हालत तो यह हो गयी है लोग बड़े आराम से सीमा पार कर शराब सेवन करते हैं। इसके अलावा गरीब महिलायें इन दिनों शराब स्मगलर बन गयी हैं। सीमा पर महिला जवानों की तैनाती नहीं होने के कारण शराब के कारोबार से जुड़ी महिलाओं की जांच नहीं की जाती है। बिहार और नेपाल के सटे जिलों में महज 5  से 20 किलोमीटर के अंदर आते है। जो महज 10  मिनट से 30  मिनट की दुरी तय कर बड़े ही आराम से शराब पीकर वापस चले आते है। जिस कारण शराब के ठिकाने पर जमघट लगा रहता है। यहीं नहीं अब तो शराब तस्करी की बात भी सामने आ रही है। जो नेपाल से चोरी छिपे बिहार में बेचीं जा रही है| ग़ौरतलब है कि जहा शराब के शोकीन ऊंची कीमत पर भी शराब खरीदने को तैयार हैं। वहीं तस्करो का गिरोह भारी मुनाफा कमाने के लिए शराब के तस्करी का कारोबार शुरू कर दिया है। बताते चलें कि हाल में ही से बालू लदे ट्रक पर शराब की बोतले पकड़ी गयी थी। इतना ही नहीं शराब तस्कर टिफिन और झोलों में शराब भरकर ले आते हैं।
पिछले दिनों बिहार के राज्यपाल ने तंबाकू सेवन के खतरों से आगाह करते हुए कहा था कि राज्य में नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए काफी तेजी से तम्बाकू निरोध की दिषा में आवश्यक कार्रवाई करनी होगी, ताकि तम्बाकू की खपत में तेजी से कमी लाई जा सके। बिहार में तम्बाकू सेवन उत्तरपूर्वी राज्यों को यदि छोड़ दिया जाये, तो भारत के अन्य राज्यों की तुलना में यह संख्या सबसे ज्यादा है। प्रतिवर्ष तम्बाकू जनित रोगों से केवल बिहार में करीब एक लाख लोगों की मौत होती है। तम्बाकू-इस्तेमाल के कारण बिहार में सबसे ज्यादा मुँह और गले का कैंसर होता है एवं खैनी, गुटखा, पान-मसाला इत्यादि खाने से भी गरीब एवं निम्न मध्यम वर्ग के लोग कैंसर की इस जानलेवा बीमारी के शिकार बनते हैं। महिलाओं के लिए बच्चेदानी का कैंसर एक बड़ी समस्या है। इससे करीब दो लाख पच्चासी हजार महिलायें पूरे विश्व में प्रतिवर्ष मरती हैं। राज्यपाल ने कहा कि इन करीब तीन लाख महिलाओं में से करीब 80   प्रतिवर्ष तो सिर्फ भारत जैसे विकासशील देशों में ही अपने प्राण गँवाती हैं। जनहित में बिहार सरकार द्वारा उठाये जा रहे यह कदम सराहनीय होने के साथ अन्य राज्यों के लिए प्रेरणादायक हो सकते है| किन्तु सामाजिक हित में सरकारे ध्यान रखे पूर्ण प्रतिबंध का अर्थ पूर्ण प्रतिबंध ही होना चाहिए|..दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेख राजीव चौधरी 

Friday 20 May 2016

ओ३म् से एतराज क्यों?

पिछले साल जहाँ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सूर्य नमस्कार को लेकर विवाद जारी रहा था वहीं इस बार आयुष मंत्रालय के उस बयान के बाद राजनैतिक हलकों में बवाल बढ़ गया जिसमें कहा गया कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग सत्र से 45 मिनट पहले ओ३म और कुछ वैदिक मंत्रों के जाप का प्रस्ताव है। इससे पहले यूजीसी के एक दिशा- निर्देष में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से कहा गया था कि आयुष मंत्रालय के योग प्रोटोकॉल का पालन करें जो 21  जून को योग दिवस समारोहों के दौरान ओ३मऔर संस्कृत के कुछ श्लोको के उच्चारण के साथ शुरू होगा।  हालाँकि बाद में आयुष  मंत्रालय के संयुक्त सचिव अनिल कुमार गनेरीवाला ने कहा,  “योग सत्र से पहले ओ३मका जाप करने की बाध्यता नहीं है। यह बिल्कुल ऐच्छिक है, कोई चुप भी रह सकता है। कोई इस पर आपत्ति नहीं करेगा।’’  किन्तु इसके बाद भी जिस तरह राजनेताओं और धर्मगुरुओं के बयान आये वो कहीं ना कहीं योग दिवस को राजनीति दिवस बनाते नजर आये|

दारुल उलूम देवबंद के मुफ़्ती अब्दुल कासिम नोमानी ने कहा है ओ३म का जाप, सूर्य नमस्कार, और श्लोकों पढना इसे पूजा में तब्दील करता है जिसकी इस्लाम इजाजत नहीं देता और फतवा जारी कर दिया| इस बिन सिर पैर के विवाद की जड़ में मीडिया ने जिस प्रकार खबर बनाई वो देश की सामाजिक समरसता के लिए ठीक नहीं है| पर हम बता दे योग कोई पूजा पद्धति नहीं है, ना योग का निर्माण किसी राजनैतिक दल की देन बल्कि दुनिया भर के समस्त सम्प्रदायों से पहले स्वास्थ और चेतना का विषय योग था और आज भी है| पहली बात तो ये कि योग और धर्म आनंद का विषय है और मात्र कुछ शब्दों के बोलने से धर्म नहीं टुटा करते| दूसरा योग से ओ३म का हटना बिलकुल ऐसा है जैसे शरीर से एक हाथ काट देना| इस मामले पर गरीब नवाज़ फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना अंसार रजा ने अपनी राय रखते हुए कहा कि यह योग को धर्म से जोड़ने की साजिश है जिससे हमारे धर्म को खतरा है| इस पर योगगुरु आचार्य प्रतिष्ठा ने जबाब देते हुए कहा कि मन की स्थिति को जानना ही योग, वस्ले दीदार है और योग ही सर्वोपरी धर्म है| ओ३म शब्द से अल्लाह के इस्लाम को कोई खतरा नहीं है हाँ मुल्ला के इस्लाम को खतरा हो तो कहा नहीं जा सकता! बहरहाल यह सिर्फ एक बहस थी| योग किसी के लिए अनिवार्य नहीं जिसे अच्छा स्वास्थ चाहिए वो योग करे किन्तु इसमें धर्म को घुसेड कर अपनी राजनीति ना करे| ओ३म केवल किसी शब्द का नाम नहीं है। ओ३म एक ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। यह वह ध्वनि है जो अंतरात्मा से स्वं जागृत होती होती है कण-कण से लेकर पूरे अंतरिक्ष में हो रही है। समस्त संसार के धर्म ग्रन्थ जिसके गवाह है। योग कहता हैं कि इससे सुनने के लिए शुरूआत स्वयं के भीतर से ही करना होगी। जब बात अच्छे स्वास्थ की हो ओ३म से एतराज क्यों?

जहाँ तक कुछ मौलवियों की बात है तो उनके अजीबों गरीब फरमानों से इतिहास भरा पड़ा है| कुछ रोज पहले के समाचार देखे तो तमिलनाडु और बरेली के एक मुस्लिम संगठन ने योग गुरु रामदेव के पतंजलि उत्पादों के खिलाफ फतवा जारी किया है, इस पर यदि प्रश्न करे तो क्या आज तक किसी हिन्दू धर्म गुरु ने हमदर्द के रूहाफ्जा पर आज तक कोई आदेश दिया है कि यह मुस्लिम की कम्पनी है इसके उत्पाद का इस्तेमाल मत करो? यदि योग और स्वास्थ की बात कि जाये तो 2012 में पाकिस्तान की एक मस्जिद ने फरमान जारी हुआ था कि बॉडी स्केन कराना इस्लाम में हराम है इस पर पाकिस्तान के लेखक विचारक हसन निसार ने अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा था कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान का इस्लाम दुनिया से अलग है| यह लोग खजूर खाना आज भी सुन्नत मानते है जबकि यह नहीं जानते कि अरब में सेब और पपीता नहीं होता था जिस वजह से वो लोग खजूर खाते थे| निसार आगे कहते है कि जब दीन और सियासत अनपढ़ लोगों के हाथों में हो तो फतवों के अलावा उस देश में कुछ नहीं हो सकता| जिसे स्वास्थ अच्छी जीवन शेली चाहिए वो विज्ञान पढ़ ले जिसे दीन के सिवा कुछ ना चाहिए वो कुरान पढ़ ले| किन्तु तस्वीरों को भी मजहब में हराम कहने वाले लोग टीवी पर बैठकर भोले भाले लोगों को अपने फरमान भी ना सुनाये|....lekh by rajeev choudhary 

डुबकी! राजनैतिक या सामाजिक?

आजकल उज्जैन सिंहस्थ कुंभ की गूंज धार्मिक जगत से अधिक राजनैतिक गलियारों में ज्यादा सुनाई दे रही है| मुद्दा है केंद्र में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का क्षिप्रा नदी के वाल्मीकि घाट पर दलित साधुओं सहित अन्य साधुओं के साथ स्नान करना और दलित साधुओं साथ समरसता भोज कार्यक्रम के तहत भोजन ग्रहण करना। जहाँ राजनैतिक दल इस स्नान को राजनीति से प्रेरित बता रहे है तो वहीं मीडिया ने संत समाज को भी जातिवाद के खेमे में बाँट दिया| जबकि उज्जैन सिंहस्थ कुंभ के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के स्नान को राजनीति के नजरिए से नहीं देखना चाहिए| उनकी ओर से यह समाज में भेदभाव को खत्म करने का प्रयास मात्र है| परन्तु भारतीय समाज में व्याप्त राजनितिक जातिवाद की आग ने अन्दर साधुओं के तम्बुओं में भी पहुँचने में देर नहीं लगाई और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने अमित शाह द्वारा सामाजिक समरसता के लिए लगाई इस डुबकी पर यह कहते हुए आपत्ति जताई  कि  संत समाज के अन्दर जातिवाद नहीं है|  संत समाज में जहां साधू की कोई जाति नहीं पूछी जाती वहां जाति के नाम पर ही समरसता का ढिंढोरा पीटना अपने-आप में एक राजनैतिक षड्यंत्र के सिवा और कुछ नहीं।
यदि आज हमारे राजनेता वास्तव में बुनियादी तौर पर समाज से जातिगत् भेदभाव समाप्त करना चाहते है तो उन राजनैतिक दलों को जो जातिओं के नाम पर वोट बटोरते है उन क्षेत्रों राज्यों में जाकर समरसता का पाठ पढ़ाना चाहिए जहां दलित दूल्हे को घोड़ी पर सवार नहीं होने दिया जाता, उन राज्यों में जहां स्कूल में बच्चों को दलितों के हाथ का बना खाने से परहेज़ होता है, जिन मंदिरों में दलितों के प्रवेश को स्वयंभू उच्चजाति के लोगों ने वर्जित कर रख है जहां आज भी दलितों को अपने बराबर कुर्सी अथवा चारपाई पर बैठने की इजाज़त नहीं है जहां आज भी स्वयंभू उच्चजाति के लोगों द्वारा दलितों को अलग बर्तनों में खाना व पानी दिया जाता हो| महाराष्ट्र के अन्दर जहाँ दलित जाति की औरतों को अपने कुएँ से पानी नहीं भरने दिया जाता हो| वहां जाकर समरसता की डुगडुगी बजाने की कोशश करनी चाहिए न की ऐसी जगहों पर जहां पहले से ही सामाजिक समरसता का बोलबाला हो।
 आज जातिवाद को करीब से जाकर देखे तो आधुनिक युग में राष्ट्र फिर वैसी ही समस्या का सामना कर रहा है जैसा पहला कर रहा था| यह मानवता को सुरक्षा और सुख शांति प्रदान न करने में मध्ययुगीन प्रणाली जैसी है दिख रहा है परन्तु आज की नई चुनौतियों में जातिवाद राष्ट्र और समाज के विकास में बाधक बनता दिखाई दे रहा है| यह आवश्यक नहीं है किसी भी राष्ट्र में जनसँख्या एक ही जाति, क्षेत्र या भाषा से जुडी हो परन्तु एक ही राष्ट्र का नागरिक होने के नाते उनकी निष्ठां का केंद्र एक होना आवश्यक है| हाल के वर्षो में देश के अन्दर जातिवाद के बीज रोपने का कार्य का श्रेय यदि सबसे ज्यादा किसी को जाता है तो वो हमारे देश के नागरिकों से ज्यादा राजनैतिक दलों को जाता है| परन्तु उपरोक्त दोष किसी एक दल को नहीं दिया जा सकता इसमें सबकी सहभागिता दिखाई देती है| जिसका उदेश्य सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक लालसा है| अत: निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते है कि राजनितिक दल एक उदार लोकतान्त्रिक राजनितिक व्यवस्था के साथ एक उदार समाज के निर्माण में भी अपनी अहम् भूमिका निभा सकते है किन्तु इन दलों ने अपनी राजनितिक अभिलाषा का पहिया हमेशा जातिवाद की खाइयों से ही होकर निकाला|
आज हमारे राजनेताओं को अपनी दृष्टि व्यापक करनी होगी और यह समझना होगा कि राजनीति राष्ट्रनिर्माण का काम है। हरेक राजनीतिक दल को वोट चाहिए और उसके लिए सही तरीका यह है कि  वे अपने दल के लिए वोट जुटाने में विचारधारा और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण यानि विकास की योजना का प्रचार-प्रसार करें। जनमत बनाना प्रत्येक राजनीतिक दल का कर्तव्य है लेकिन जाति आधारित राजनीति समाज के गठन में बाधक है। क्या जातिवादी दल या नेता ही मरणासन्न जाति व्यवस्था को बार-बार पुनर्जीवित नहीं कर रहे हैं? इस पर जनता और तंत्र में बैठे सभी को गहन विचार करने की जरूरत है। अन्यथा जनतंत्र खतरे में पड़ जायेगा।   अमित शाह द्वारा लगाई यह डुबकी सामाजिक समरसता के लिए है या राजनैतिक लाभ के लिए यह तो राजनैतिक धड़े जानते होंगे परन्तु आज जिस प्रकार देश के अन्दर जातिवाद सिमटने के बजाय और अधिक पनप रहा है उसे देखते हुए हम अमित शाह के इस कदम की प्रसंशा जरुर कर सकते है|  पर मन में एक कसक है कि यदि हमारे राजनेताओं ने यह डुबकी आज से 68 वर्ष पहले लगाई होती तो आज देश के अन्दर जातिवाद का जहर इतना ना फैला होता!....by delhi arya prtinidhi sabha ... 

Wednesday 18 May 2016

आर्यसमाज डीसीएम रेलवे कॉलोनी के पुनर्निर्मित भवन का उद्घाटन सम्पन्न

आर्य समाज का पुनर्निर्माण आर्यों की संगठन शक्ति का प्रतीक
आर्य समाज के भवन को और अधिक भव्य बनाने में हर प्रकार का सहयोग देंगे -रविन्द्र गुप्ता, पूर्व महापौर 
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के अन्तर्गत आर्यसमाज डी.सी.एम. रेलवे कालोनी दिल्ली के पुनर्निर्मित भवन का उद्घाटन समारोह रविवार 15  मई, 2016  को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
आपको विदित ही है कि गत वर्ष १६  मई, 2015  को आर्य समाज डी.सी.एम. रेलवे कॉलोनी को एम.सी.डी. द्वारा गिरा दिया गया था, जिसको पुनः स्थापित करने की मांग को लेकर दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा एवं विभिन्न आर्य समाजों द्वारा संयुक्त रूप से धरना-प्रदर्शन किया गया था। आर्य समाज को पुनः स्थापित करने के लिए आर्य समाज भवन का पुनः स्थापित करने का कार्य आरंभ किया गया और एक साल के अन्दर एम.सी.डी. से भूमि प्राप्त करके नवीन आर्य समाज भवन बनवाकर पुनः स्थापित कर आर्य जनता को समर्पित किया गया।
 
भवन उद्घाटन से पूर्व यज्ञ सायं 4:30 बजे यज्ञ आरम्भ हुआ, जिसके यज्ञ ब्रह्मा पं. जयप्रकाश शास्त्री जी व यज्ञ संयोजक श्री आदर्श कुमार जी रहे। यज्ञमान परिवारों के रूप में श्रीमती उषा एवं श्री सुभाष चांदना जी, श्रीमती शकुन्तला एवं श्री बलदेव मदान जी, श्रीमती ममता एवं श्री दिनेश शर्मा जी, श्रीमती प्रिया एवं श्री अश्विनी शर्मा जी उपस्थित रहे।
उद्घाटन समारोह का आरंभ सायं 5:30 बजे हुआ, जिसमें स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी, आचार्य, गुरुकुल गौतम नगरद्ध ने कार्यक्रम में उपस्थित आर्यजनों को अपना आशीर्वाद दिया। महाशय धर्मपाल जी, (चेयरमैन, एमडीएच मसाला)  ने पुनर्निर्मित भवन का उद्घाटन फीता काटकर किया। कार्यक्रम के मुख्यातिथि पूर्व महापौर श्री रविन्द्र गुप्ता ने कहा कि संगठन शक्ति से ही लोकोपकारी कार्यों में सफलता पाई जा सकती है। वैदिक धर्म प्रचार के साथ सामाजिक जागृति में आर्यजनों का अतुलनीय योगदान रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री धर्मपाल आर्य जी प्रधान, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभाद्ध ने की। श्री विशेष रवि जी विधायक, दिल्ली सरकार,  श्री रविन्द्र गुप्ता जी पूर्व महापौर, उ.दि.न.नि. श्री प्रवीण जैन जी पूर्व पार्षद्द्,  विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित रहे। श्री शिशुपाल आर्य एवं उनके साथियों ने सुन्दर भजन प्रस्तुति कर के सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। आर्यसमाज करोल बाग, आर्यसमाज डोरीवालान, आर्यसमाज मॉडल बस्ती, आर्यसमाज देव नगर मुल्तान, आर्यसमाज प्रताप नगर, आर्यसमाज पुल बंगश, आर्यसमाज बिड़ला लाइन्स, आर्य समाज पहाड़ी धीरज सदर बाजार ने भी अपना विशेष सहयोग दिया।


इस अवसर पर दि.आ.प्र. सभा के प्रधान श्री धर्मपाल आर्य जी, महामंत्री श्री विनय आर्य जी, कोषाध्यक्ष श्री विद्यामित्र ठुकराल जी, आर्यसमाज डीसीएम रेलवे कालोनी के प्रधान श्री रणधीर आर्य जी, मंत्री श्री चन्द्रमोहन आर्य जी, उद्घाटन समारोह के संयोजक श्री वागीश शर्मा जी, निर्माण समिति आर्यसमाज डी.सी.एम. रेलवे कालोनी से श्री अरुण प्रकाश वर्मा जी, श्री सुभाष कोहली जी, श्री कीर्ति शर्मा जी, श्री अमरनाथ गोगिया जी श्रीमती शारदा आर्य, संचालिका, आर्य वीरांगना दलद्ध समेत विभिन्न आर्य महानुभावों ने अपनी उपस्थित दर्ज कराई। गुरुकुल रानीबाग, गुरुतेग बहादुर नगर के ब्रह्मचारियां, आर्य वीरांगना दल जनकपुरी की बालिकाओं ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया।..प्रस्तुति दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ..आर्य समाज