Friday 10 June 2016

पलायन, पहले कश्मीर अब कैराना...

किसी कवि ने कहा है कि हादसा वो नहीं जो हो चुका, हादसा ये कि फिर सब लोग चुपचाप हैं| ये कोई भय नहीं दिखाया जा रहा बल्कि राज्य सरकारों की विफलता का नतीजा है कि जो इस प्रकार के माहोल के खिलाफ सख्ती से नहीं निपटती| कई रोज पहले कैराना से सांसद हुकुम सिंह ने कहा कि कैराना में रंगदारी की मांग पूरी न करने पर हिंदू व्यापारियों की हत्या कर दी जाती है। अब तक छह व्यापारियों की हत्या हो चुकी हैं, जिससे भय का माहौल बना हैं और दो साल के भीतर करीब 250 हिन्दू परिवार कैराना से पलायन कर चुके हैं। ज्ञात हो 2014 में शिवकुमार, राजेंद्र व् विनोद को रंगदारी न देने पर बेरहमी से मार दिया गया था| इसके बाद लूट, अपहरण की हत्या की घटनाएँ होती रही पर कश्मीर की तरह प्रशासन मूक बना रहा जिसका नतीजा यह हुआ कैराना की मिश्रित आबादी वाले मोहल्ले दरबार कलां, आर्यपूरी, गुंबद, घोसाचुंगी आदि से हिन्दू मकान दुकान बेचकर अन्य शहरों में विस्थापित हो गये| कई घर आज भी ऐसे है जिनके बाहर बोर्ड लगा है मकान बिकाऊ है| इसके अलावा अकबरपुर गांव सुन्हेटी में कश्यप समाज की महिला की गैंगरेप के बाद हत्या, अलीपुर गांव में कश्यप समाज के लोगों की पिटाई करके उनके बिटौडे और खलिहान में आग लगा दी गई। जिस तरह 90 के दशक में कश्मीर से पंडितों पर जुल्म ढहाकर उन्हें पलायन को मजबूर किया गया, वैसे ही हालात आज कैराना में बनाए जा रहे हैं, जिससे वहां के लोग पलायन कर जाएं। यह बताना प्रासंगिक होगा कि पलायन को मजबूर सभी व्यापारी और गरीब लोग हिन्दू थे क्या इस बात से यह संदेश  साफ समझा जाये कि इस क्षेत्र में हिन्दुओं को या तो भय या आतंक के साए में जीना होगा या वहां से पलायन करना पड़ेगा?
यदि इस संदर्भ में बात करे और कश्मीरी पंडितो पर हुई हिंसा, उनकी औरतो बच्चियों के साथ बलात्कार उसके बाद पलायन और पलायन के बाद उनके शरणार्थी जीवन से कौन परिचित नहीं है| शुरूआती दिनों में मजहबी उन्मादियों ने कश्मीरी पंडितो पर भी कुछ ऐसे ही छिटपुट हमले किये थे| धीरे धीरे धार्मिक उन्माद बढ़ता गया और योजना बद्ध तरीके से बाकायदा मस्जिद की मीनारों से घाटी को खाली करने का आदेश दे दिया गया था| जिसका नतीजा करीब 4 लाख कश्मीरी पंडित आज अपने ही देश  में दर-दर की ठोकर खा रहे है| वो भी उस देश में जिसे लोग गर्व से हिंदुस्तान कहते है| कश्मीर त्रासदी को एक हादसा कहने वाले राजनैतिक दल आज चुप क्यों है? कश्मीर में सेना के रिटायर जवानों के लिए मकान बनाने से धार्मिक समीकरण बिगड़ने की बात करने वाले दल के नेता आज कैराना से पलायन करने वाले हिन्दुओ के मामलों को राजनीति क्यों बता रहे है?  पिछले वर्ष महाराष्ट्र विधान सभा के अन्दर रमजान के दिनों एक मुस्लिम के रोटी खाने को लेकर इतना हो-हल्ला मचाने वाले और उसको अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप देने वाली मीडिया और नेता ऐसी घटनाओं पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? यहाँ  उनका अंदाज शतुरमुर्गी क्यों हो जाता है? वैसे हकीकत भी यही है कि वह चाहे असम, केरल हो या बंगाल, वहां के मुस्लिम बहुल जिलों में हिन्दुओं को भय के साए में ही जीना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल के 22 से 24 जिलों में मुस्लिम आबादी को 50 प्रतिशत से ऊपर वे पहले ही पहुँचा चुके हैं,  अब नम्बर आया है केरल का। अब केरल में क्या हो रहा है, वहां से घबराये और डरे हुए हिन्दू लोग मुस्लिम बहुल इलाकों से पलायन कर रहे हैं, मलप्पुरम और मलाबार से कई परिवार सुरक्षित ठिकानों को निकल गये हैं और दारुल-इस्लाम बनाने के लिये जगह खाली होती जा रही है। 580 किमी. लम्बी समुद्री सीमा के किनारे बसे गाँवों में पोन्नानी से बेपूर तक के 65 किमी इलाके में एक भी हिन्दू मछुआरा नहीं मिलता, सब के सब या तो धर्म परिवर्तित कर चुके हैं या इलाका छोड़कर भाग चुके हैं।
मलप्पुरम सहित उत्तर केरल के कई इलाकों में दुकानें और व्यावसायिक संस्थान शुक्रवार को बन्द रखे जाते हैं और रमजान के महीने में दिन में होटल खोलना मना है। असम के कई जिलों समेत बंगाल के सीमावर्ती जिले नादिया और चैबीस परगना में से हिन्दू अपनी जमीन-जायदाद बेंचकर भागने को मजबूर हुए थे। किन्तु इन पर सब हादसों पर लोग सिसकते रहे और हमेशा सरकारे मौन रही जिस कारण पहले कश्मीर हुआ फिर असम, बंगाल आज यह सब कैराना में दोहराया गया, अब इस विषय में राज्य और केंद्र सरकार को अपराधियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए ताकि देश की समरसता और धर्मनिरपेक्षता को खतरा ना हो| कभी कल वहां से कश्मीर की तरह आवाज भी आये कि कैराना में लेंगे आजादी?..................................................................................................................................................................................लेख Rajeev choudhary 


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