Thursday 23 June 2016

यह चरमपंथ कौन सा धर्म है?

अभी पिछले कुछ दिनों से एक नया धर्म सामने आया जिसे चरमपंथी कहा जाता है, कबीरपंथी सुना था दादूपंथी सुना था पर यह चरमपंथी अभी प्रचलन में आया है| जब कहीं भी इस्लामिक आतंकियों द्वारा हमला होता है तो उसे चरमपंथ का हमला कहा जाता है| यदि चरमपंथ और इस्लामिक उग्रवाद अलग-अलग है तो फिर इन मानवता के हत्यारों के द्वारा अल्लाह के नाम का हमेशा एक ही नारा लगाने का क्या कारण है? हम यह बात किसी धार्मिक विद्वेष में नहीं कह रहे बस साफ करना चाहते है कि यह चरमपंथ आखिर कौन सा मजहब है? अब इस चरमपंथ के दर्पण से धूल हटाकर देखे तो साफ दिख जायेगा उसके लिए हमे पिछले महीनों के राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय बयानों पर नजर डालनी होगी कुछ महीने पहले चीन के एक अधिकारी ने मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले बुर्के को लोगों द्वारा अपनी पहचान छिपाने के लिए दुरुपयोग किया जाने वाला आवरण बताते हुए कहा कि बुर्का चरमपंथ और पिछड़ेपन का परिधानहै। जिस कारण पिछले कुछ सालों से विश्व में चरमपंथी हमलों में साफ बढ़ोतरी दिख रही है|

अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित मंत्री स्तरीय सम्मेलन हार्ट ऑफ एशिया में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह सुनिष्चित करने के लिए भी कहा कि आतंकवाद और चरमपंथ के बलों को किसी भी नाम, रूप या स्वरूप में पनाहगाह या शरणस्थल न मिल पाएं। संघीय जांच ब्यूरो का कहना है कि सान बर्नार्डिनो में हुई गोलीबारी के बाद (एफबीआई) ने अपनी जाँच में कहा अंजाम देने वाले पाकिस्तानी पति-पत्नी चरमपंथ से प्रभावित थे और उन्होंने हमले से कुछेक दिन पहले ही एक मदरसे में निशाना लगाने का अभ्यास किया था। कुछ दिन पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा था, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में अल कायदा को तबाह करने जैसी कामयाबियों के बावजूद चरमपंथ अब भी कायम है। ऐसे में हमें आतंकवाद पर हावी बने रहने की जरूरत है और अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन के वरिष्ट अधिकारी ने कहा कि हिंसक चरमपंथ  दक्षिण एशिया में सबसे तेजी से विस्तार लेती और तात्कालिक चुनौती है।

हालाँकि इस मामले को साफ देखने की कोई जरूरत नहीं रह जाती बस पुरे विश्व ने हिम्मत की कमी के कारण नाम बदल दिया किन्तु कुछ लोग ईमानदारी से आज भी सच स्वीकार करते है प्रतिष्ठित अरब पत्रकार अब्दुल रहमान अल-रसद ने पिछले दिनों अपने कॉलम में लिखा था फ्रांस में हुए हालिया आतंकी हमले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पेरिस के बजाय किसी मुस्लिम देश की राजधानी में होना चाहिए था, क्योंकि इस मामले में मुसलमान ही संकट में शामिल हैं और उन्हीं पर आरोप लगाया गया है| चरमपंथ की कहानी मुस्लिम समाज से शुरू होती है और उन्हीं के समर्थन एवं चुप्पी की वजह से इसने आतंकवाद का रूप लिया और लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसका कोई मतलब नहीं कि पीड़ित फ्रांस के लोग सड़कों पर उतरे। आवश्यकता इस बात की है कि मुस्लिम समाज पेरिस के अपराध और इस्लामी चरमपंथ को सामान्य रूप से स्वीकार कर माफी मांगे|
कुछ दिनों पहले पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ से पूछा गया कि पाकिस्तान को किससे ज्यादा खतरा है  चरमपंथ से या भारत से तो मुशर्रफ जवाब चरमपंथ ही था। अब प्रश्न फिर यही है कि इस दोहरेपन की शुरूआत मुस्लिम समुदाय से हुई, या मीडिया से  जहां इस बात पर भारी मतभेद है कि आज कौन-सी चीज प्रामाणिक इस्लाम का गठन करती है। या हम खुद को मूर्ख बनाते हैं, जब हम मुसलमानों से कहते हैं कि वास्तविक इस्लामयह है, वास्तविक इस्लाम शांति का नाम है क्योंकि मुसलमानों का कोई वेटिकन नहीं है। धार्मिक प्राधिकार का कोई एक स्रोत नहीं है, आज कई इस्लाम हैं- नैतिकतावादी वहाबी, सलाफी, जेहादी विकृति उनमें से एक है और हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा समर्थन उसे प्राप्त है। इबादत की बजाय अल्ला-हो-अकबरके गूंजते नारे, जिसका नतीजा जमीन पर बेकसूर लोगों का खून और बाकी बचे उनके रिश्तेदारों के हिस्से समूची जिंदगी का दर्द। यह दर्द जितना ज्यादा होता है, आतंकियों का सुकून उतना ही ज्यादा होता है। इससे उपजी विद्रोह की आग जितनी सुलगे, चरमपंथियों की उतनी ही बड़ी कामयाबी। इन घटनाओं को अंजाम देते हुए चरमपंथियों के जितने भी अपने साथी मरे, उनकी मौत संगठन की शहादत सूची में उतनी ही महिमामंडित होती है। सुरक्षा बलों के हाथों जितने आतंकी मरेंगे, बदले की भावना उतनी ही ज्यादा परवान चढ़ेगी। एक हमले की कामयाबी अगले ऐसे कई धमाकों की रणनीति की बुनियाद भी खड़ी कर देती है। पूरी दुनिया में आतंकी संगठनों का यही तरीका और उसका ऐसा ही अंजाम है। फिर कोई बताये तो सही चरमपंथ और इस्लामिक आतंक में अंतर क्या है? चित्र गूगल से साभार lekh by Rajeev choudhary 




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