Tuesday 28 June 2016

क्या इसके लिए भी मुस्लिम बने ?

जलती चिता, उठता धुंआ, रोता बिलखता परिवार, फिजा में दुःख और विषाद उत्तर प्रदेश के शिकोहाबाद में सेना के शहीद जवान वीर सिंह की अंतिम यात्रा में भारतीय समाज के जातिगत बंटवारे की कहानी कहते नजर आये| भले ही आज प्रधानमंत्री जी कह रहे हो मेरा देश बदल रहा है लेकिन कुप्रथाओं का मकडजाल अभी भी लोगों की मानसिकता से हटता दिखाई नहीं दे रहा है| कुछ दिन पहले तक देश के शहीद जवान के लिए सर्वधर्म गर्व करता था किन्तु आज शहीदों का पहले धर्म और अब शहीद की जाति भी तलाशी जाने लगी है| देश के लिए लड़ते हुए शहीद होने पर हर किसी को फक्र होता है। लेकिन क्या लोगों ने सोचा है कि जिस मातृभूमि के लिए वह दिन-रात जंगलों की खाक छान रहा है। तुम सो जाओ में जाग रहा हूँ उसी के शहीद होने पर उसके अपने गांव वाले ही अंतिम संस्कार के लिए जमीन का एक टुकड़ा भी न दे पाएं। क्योकि शहीद जवान वीर सिंह नट (नीचली जाति) के थे। इसी के चलते ऊंची जाति के दबंगों ने ऐतराज जताया। देश और समाज की गर्दन झुका देने वाली ये शर्मनाक घटना यूपी के ही शिकोहाबाद में घटी है । शहीद की जाति को मुद्दा बनाकर दबंगों ने शमशान घाट पर अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। बाद में एसडीएम ने  अंतिम संस्कार के लिए 10Û10 सरकारी जमीन का टुकड़ा मंजूर किया लेकिन तब तक तो उस शहीद की आत्मा छलनी होकर यही बयान कर रही होगी कि सुना तो यही था हमने भी कि देश  में शहीदों का बड़ा सम्मान है| हाय री जाति! जो मरने के बाद भी नहीं जाती| मत कहिएगा अब कि जाति आधारित भेदभाव खत्म हो चुका है मर जाते है वो देश के लिए लड़ते हुए तिरंगे में लिपटी जब उसकी लाश  आएगी दुनिया कहेगी, शहीद था ये लोग नाक दबाकर कहेंगे नही फला जाति का था| हाँ यदि शहीद मुस्लिम समुदाय होता तो शायद उसके लिए राजनेतिक और सामाजिक स्तर पर जमीन की कमी ना रही होती!!
यह बीमारी एक जगह नहीं पुरे देश में व्याप्त है जैसलमेर जैसे छोटे से शहर में लगभग 47 शमशान घाट है जबकि जयपुर में इनकी तादाद 57 है हर जाति का अपना अंतिम दाह-संस्कार स्थल हैं और उपजातियों ने भी अपने मोक्ष धाम बना लिए है लेकिन क्या भूमिहीन एक दलित के लिए जिंदगी का आखरी सफर भी सुखद नहीं होता, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें अंतिम क्रिया के लिए जगह तलाशने के लिए कड़ी मसक्कत करनी पड़ती है भारत के सामाजिक ढांचे में इंसानियत का यह विभाजन जन्म के साथ शुरू होता है और मौत के बाद भी शमशान घाट तक इंसान का पीछा करता है| ऐसे एक नहीं देश में अनेंको किस्से है| किसी कवि ने कहा है कि बैठे थे जब तो सारे परिंदे थे साथ-साथ, उड़ते ही शाख से कई हिस्सों में बट गए! भले ही हमने आज अपनी पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महाशक्ति  होने की बना ली हो, किन्तु देश अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर और बीमार सा दिखाई दे रहा है| बीमारी भी ऐसी जिसके कारण हमने कंधार से लेकर ढाका तक गवां दिया लाहौर से लेकर कश्मीर गवां दिया इतिहास साक्षी है हम गैरों से जब हारे अपनी एक कमजोरी की वजह से हारे वो कमजोरी रही हमारी जातिवाद नामक बीमारी जो हमारे जेहन में इस कदर बस गयी कि हमने सब कुछ गवां दिया किन्तु ना जाने क्यों आज तक इस बीमारी को लिए बैठे है| आखिर किसके लिए? बाकि जो बचा है उसे गंवाने के लिए?
किसी दार्शनिक से एक जिज्ञासु ने पूछा – राष्ट्र की व्यवस्था के लिए मूलभूत किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है ? उस दार्शनिक ने जवाब दिया - अनाज, सेना और सुसंस्कार। ये तीन बिंदु ऐसे हैं जिनपर किसी भी राश्ट्र की सुरक्षा टिकी है। जिज्ञासु ने पुनः पूछा - यदि इनमें से किसी चीज की कमी हो तो क्या उससे काम चल जाएगा। दार्शनिक ने कहा - सेना के अभाव में अनाज और संस्कार के बल पर राष्ट्र टिक सकता है। जिज्ञासु ने पुनः पूछा - यदि किसी दो की कमी हो तो फिर क्या होगा ? दार्शनिक ने कहा - कदाचित सैनिक के अभाव में राष्ट्र चल सकता है, अनाज के अभाव में राष्ट्र चल सकता है, लेकिन जिस राष्ट्र के सुसंस्कार समाप्त हो गए, उसका अस्तित्व कुछ नहीं रह सकता है

परन्तु आज शमशान घाट से लेकर नाई की दुकान तक जातिवाद का बोलबाला है| मेरा भारत बदल रहा है , भारत आगे बढ़ रहा है या भारत पुन: हजारो साल पीछे जा रहा है? आज यह प्रष्न प्रासंगिक हो गया है|  हाल ही में मुजफ्फरनगर के भूप खीरी में जातिवाद की सनक का एक मामला सामने आया यहां रहने वाले दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों ने आरोप लगाया है कि उनके बाल नहीं काटे जाते हैं। भूप खीरी में पिछड़ी जाति के लोगों के बाल काटने से यहां के बार्बर शॉप मना कर देते हैं। पीड़ित गांववालों का कहना है ठाकुरों की हनक के आगे किसी ने भी आवाज उठाने की हम्मत नहीं दिखायी। लेकिन अब हम एकजुट हैं और संविधान में भारतीय नागरिक के समानता के अधिकार की मांग करते हैं। गाँव के ठाकुरों ने बार्बर शॉप वाले, बाल काटने वालों को हमारे बाल काटने से मना करने को कहा है। उन्ही के दबाव के चलते हमारे बाल नहीं काटे जाते हैं। जबकि मुस्लिमों को इन दुकान पर बाल कटवाने से कोई नहीं रोकता क्या बाल कटवाने के लिए भी हमें मुसलमान बनना पड़ेगा?.........लेख राजीव चौधरी 

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