Friday 29 July 2016

पाकिस्तान में यह पढाया जाता है!

अभी हाल ही में पाकिस्तान में शिक्षा के गिरते स्तर पर वहां एक आवाज़ मुखर हुई है| मदरसों के बाद सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शिक्षा के इस्लामीकरण से वहां का एक पढ़ा लिखा तबका नाराज है| पाकिस्तान के कुछ विचारक बुद्धिजीवी इस बात को गंभीरता से लेकर कहते है कि हमारी सरकारी स्कूल की किताबे नफरत फैलाने वाली है हमने एक अनजाने भय में इतिहास बदल दिया हम हर एक पुस्तक में अपने ख्वाब, दावे और इस्लाम लिखते है|पिछले 70 साल में हम ये फैसला नहीं कर पाए कि ये मुल्क क्यों बना था शायद मुसलमानों की बेहतरी के लिए? किन्तु अब हम देखते है कि हम से बेहतर स्थिति में तो भारत का मुसलमान है| बाहर के मसलों और जिहाद पर ध्यान देने के बजाय बेहतर होता हम अपने मुल्क की तरक्की पर ध्यान देते| पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा आज कश्मीर की आजादी के लिए नारा रहा है| अच्छा होता यहाँ का समुदाय अपनी मिलनी वाली अच्छी शिक्षा के लिए लड़ता|
पाकिस्तान की कायदे आजम यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर परवेज हुदबोय पिछले दिनों अपने एक आर्टिकल में लिखते है कि पाकिस्तान में विज्ञानं या अन्य विषयों पर अक्ल का प्रयोग करना जुर्म है| यहाँ कालिजो में प्रोफेसर को जब रखा जाता है यदि वो नमाज पढना जानता हो उसके बाद उसका मजहब और जाति देखी जाती है| भौतिक हो या रसायन विज्ञानं हर जगह इस्लामिक शिक्षा इस कदर घुसेड दी गयी है कि कोई बच्चा ना चाहते हुए भी उसका सामना इस्लामिक शिक्षा से हुए बगेर नही रह सकता| वो आगे लिखते है कि पाकिस्तान की दसवीं जमात की फिजिक्स की किताबों में इस कदर बिना मतलब के सवाल भर रखे है कि पता ही नहीं चलता ये भोतिक विज्ञानं है या कोई रूहानी किताब| जैसे दसवी कक्षा की किताबों में लिखा है कि दोखज का क्षेत्रफल कितना है? नमाज के शबाब की गणना यानि के केल्कुलेट कैसे करे? यही नहीं नोवी कक्षा की फिजिक्स की किताब में पूछा है कि जिन और शैतान का वजूद क्या है, क्या इनसे बिजली पैदा की जा सकती है? परवेज आगे लिखते है कि दसवी जमात की बायोलोजी की किताब में लिखा है कि जब वसल्लम साहब पर बही नाजिल हुई तो उसे जन्नत के मुताबिक कहा गया| किताब में आगे एक प्रश्न पूछा गया कि इस्लामी तामील हासिल करना मर्दों का एक फर्ज एक बुनयादी उसूल है| सही या गलत? पिन हाल कैमरा इबनुल हसन ने तैयार किया था ऐसी न जाने कितनी रूहानी बातों से पाकिस्तान के पाठ्यक्रम भरे पड़े है| परवेज आगे पूछते है पाकिस्तान का बच्चा इन पुस्तकों को पढ़कर क्या बनेगा कोई बता सकता है? अपनी मजहबी सनक के कारण पाकिस्तान के हुक्मरान अपने बच्चों अपने देश के भविष्य को अंधकार में भेज रहे है| परवेज आगे कहते है कि विज्ञानं जैसे बुनयादी विषय को हम उर्दू या अरबी भाषा में नहीं पढ़ सकते क्योकि इन भाषाओं में तो विज्ञानं शब्द कही है ही नहीं| ये दीन की भाषा हो सकती है किन्तु विज्ञानं और आधुनिक समाज को समझने के लिए नहीं हो सकती|
बात यही खत्म नहीं होती पाकिस्तान के पंजाब टेक्स्ट बोर्ड में भी इसी तरह की नफरत फैलाने वाली शिक्षा है| मसलन हर एक अध्याय में हिन्दू व् अन्य धर्म पर कटाक्ष लिखा है| इन्ही दिनों पाकिस्तान का कुछ युवा भी अपने ही देश की शिक्षा नीति खिलाफ मुखर है वो प्रश्न रखते है कि हमें बड़ी शान से पढाया जाता है कि किस तरह गजनवी सोमनाथ समेत कितने मंदिर तोड़ता है और वो हमारा नायक होता है किन्तु जब बाबरी मस्जिद टूटती है तो इस्लाम खतरें में आ जाता है ऐसा क्यों? छात्र आगे पूछते है कि जब मुसलमानों के ऊपर हिंदुस्तान में कोई प्रतिबंध नहीं था ना रोजे पर ना नमाज पर तो अलग राष्ट्र का आधार क्या था? इस प्रश्न पर हसन निसार अपनी बेबाक राय रखते हुए कहते है कि हमारा सारा इतिहास एक दुसरे की गर्दन काटने से भरा पड़ा है हमने अलग पाकिस्तान सिर्फ मुसलमानों की बेहतरी के लिए बनाया था पर यहाँ के शासक अपनी बेहतरी के लिए लगे है| हमेशा इस्लाम का रोना रोकर अपनी जेबे भरते है इसी कारण है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में सिर्फ मजहब घुसेड दिया गया है| हम हमेशा आरोप लगाते है कि मुसलमानों को हमेशा साजिश कर लड़ाया जाता है तो इसका मतलब यह कि अन्य लोग हमसे बेहतर दिमाग रखते है? हसन निसार इस्लामिक शिक्षा के पक्षधर मौलानाओं से पूछते है कि बक्सर की लड़ाई में बाबर ने किसकी गर्दन उतारी थी? इब्राहीम लोधी की| क्या इसमें भी अमेरिका की साजिश थी? क्यों नहीं पढ़ाते कि तैमुर ने किसको मारा था! औरंगजेब ने अपने भाई को क्या रूस के इशारे पर मारा था? मोहम्मद बिन कासिम को खाल में सील कर किसने भेजा था? क्या वो इसराइल की साजिस थी? वो बात पुरानी लगती हो तो अपने बच्चों को ये पढाओ कि पाकिस्तान बनने के बाद कितने प्रधानमंत्रीयों को दुसरे ने फांसी पर टांग दिया| गद्दी से उतरकर क्यों यहाँ कोई प्रधानमंत्री नही रुकता? क्यों पाकिस्तान के इतने लोग बाहर निर्वासित जीवन जी रहे है? क्यों यहाँ का बचपन बारूद से खेल रहा है क्यों इन बच्चों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और यूरोप-अमेरिका जैसा विज्ञानं पढने को नहीं मिल रहा है? शायद यही कारण है कि विज्ञानं में मुस्लिमों की देन न के बराबर है| शायद इसी कारण मुस्लिम एक गाड़ी का शीशा साफ़ करने का वाईपर भी इजाद नहीं कर पाया? अपने बच्चों को दी गयी शिक्षा का असर पडोस पर पड़ता है अंत में हसन निसार कहते है कि आज मुस्लिम देशो का मुसलमान क्वालिटी पैदा करने के बजाय क्वांटिटी पैदा कर रहा है जो आगे चलकर इन्ही के लिए नुकसान बनेगा|...लेख राजीव चौधरी 

Wednesday 27 July 2016

आतंक या मजहब की पैरोकार बनी मीडिया?

गरीबी, अशिक्षा, किसी को आतंकी बना देती है ये चर्चा अब बहुत पीछे छुट गयी अब तो हर एक आतंकी घटना का नये सिरे से विश्लेषण होता है, हमला झेलने वाला देश और घटना को अंजाम देने वाले आतंकी का देश कौनसा है, घायलों और मृतको के देश, आतंकवादी के परिवार का आय व्यव विवरण| सब कुछ मीडिया के लिए प्रश्नपत्र के एक अनिवार्य खंड जैसा हो गया है| कुछ साल पहले तक आतंकवाद के खेल में भारत जैसे देश पिस रहे थे और पूरा विश्व तमाशबीन बना बैठा था| हर एक आतंकी हमले के बाद भारत को सयम बरतने की सलाह के खत अमेरिका यूरोप से आते रहते थे| किन्तु आज आतंकवाद ने अपनी जड़े इस कदर फैलाई कि समूचा विश्व मानो असुरक्षित होकर चीख रहा है द्य कब कहाँ किस देश में कोई आतंकी किस घटना को अंजाम देकर कितने निर्दोष लोगों की हत्या कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता! बस लाशों की गिनती कर हमले के छोटे बड़े होने का कयास लगाया जाता है| हर बार आतंकवाद का कई तरह की चर्चा का सामना भी विश्व मीडिया से होता है| मसलन आतंकवादी किस धर्म का था यदि इस्लाम धर्म को मानने वाला था तो वहाबी था या सल्फी था, सुन्नी या शिया था! उसके माता-पिता तो बड़े अच्छे है आखिर इतनी कट्टर सोच कहाँ से आई? आदि-आदि प्रश्नों से दो तीन दिन स्टूडियों में जमघट लगे रहते है| मुस्लिम धर्म गुरु हर एक आतंकी घटना को सिरे से नकार देते है कि इसमें इस्लामिक मत का कोई रोल नहीं है यह तर्क भी पेश किया जाता है कि इस्लाम को मानने वाला किसी कि हत्या नहीं कर सकता| दरअसल मुस्लिम मौलवी भी अपनी जगह सही है पता उन्हें भी नहीं होता कि आखिर उनके द्वारा दी गयी धर्मिक शिक्षा कब कहाँ कैसे किसी को एक हिंसक चैराहे पर ला खड़ी कर देती है कोई नहीं जान पाता!!
लेकिन पिछले कुछ दिनों में एक नया चलन सामने आया जिसे लेकर कुछ चिन्तक, विचारक हतप्रभ है आतंकवादी अपना जोर इस बात पर लगा रहे है कि हम इस्लाम मत को मानने वाले है और उसी के लिए लड़ रहे है मसलन ढाका में कुरान की आयते ना पढ़ पाने वालो के गले रेत दिए| किसी जगह हमले से पहले नारा एक तकबीर अल्लाह हूँ अकबर कहना, या फिर इस्लामिक नियम जिन्हें एक किस्म से आतंकवादियों का सविंधान भी कहा जाता है उसे थोपा जाना आदि| किन्तु मुस्लिम धर्मगुरु और मीडिया एक सिरे से इस बात को खारिज करते है कि इनका इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं है| उदहारण के तौर पर पिछले कुछ महीनों की आतंकी घटना का विश्लेषण देख लीजिये किस तरह आतंकवादी के प्रति सहानुभूति का तानाबाना खड़ा किया जा रहा हैद्य जर्मनी के शहर वुज्रवर्ग के निकट एक अफगानी 17 वर्षीय शरणार्थी ने कुल्हाड़ी से रेल के यात्रियों हमलाकर कई लोगो को घायल कर दिया इस पर भी बहस छिड़ी है कि वो चरमपंथ से प्रभावित था या नहीं? भारत में भी 10 लाख के इनामी आतंकी बुरहान वानी के मामले में कुछ पत्रकार उसे स्कूल मास्टर का बेटा बता सहानुभूति का पात्र बनाते नजर आये| कही हम लोग ये एक गलत परम्परा की शुरुवात तो नहीं कर रहे है?
म्यूनिख के ओलंपिया मॉल में हमला करने वाला आतंकी नहीं था। मीडिया के अनुसार हमलावर मानसिक रूप से विक्षिप्त था और उसका इलाज चल रहा था। उसे बड़े पैमाने पर गोलीबारी करने की सनक थी। वह नरसंहार से जुड़ी किताबों और लेखों से प्रभावित था। दूसरा फ्रांस के दक्षिणी शहर नीस में हुए चरमपंथी हमले को अंजाम देने वाला मोहम्मद लहवाइज बोहलोल अवसाद का शिकार एक हिंसक व्यक्ति था, जिसने कभी मस्जिद का रुख़ नहीं किया। सब जानते है कि इस 31 वर्षीय ट्यूनीशियाई नागरिक ने नीस में एक ट्रक को भीड़ पर चढ़ा दिया था। इस हमले में 10 बच्चों समेत 84 लोगों की मौत हो गई थी। तीसरा ओरलेंडो के एक समलैंगिक क्लब में 49 लोगों की हत्या करने वाला 29 वर्षीय हमलावर उमर मतीन की पूर्व पत्नी सितोरा युसुफी के अनुसार, मतीन खुद भी समलैंगिक रहा हो सकता है। लेकिन गुस्से और शर्म के कारण उसने अपनी असल पहचान छुपाने का निर्णय लिया। हमलावर के पिता ने कहा कि उसकी हरकत को मजहब से नहीं जोड़ना चाहिए| वहीं, एफबीआई की माने तो जांच में खुलासा हुआ है कि हमले को अंजाम देने से ठीक पहले मतीन ने 911 पर फोन कर कहा था कि वह आईएसआईएस का आतंकी है|
ढाका के अन्दर प्रतिष्ठित स्कूलों से पहुंचे कुछ लडको ने 21 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी जिस पर बांग्लामदेश सरकार यह कह रही है कि वो स्थातनीय आतंकवादी हैं और उनका आईएसआईएस से कोई लेना देना नहीं हैद्यहो सकता है पर  प्रश्न यह नहीं है कि वो किस आतंकी संगठन से जुड़े है या नहीं जुड़े है, किससे प्रभावित है या नहीं है| बात इतने मायने नहीं रखती मायने रखता है जाकिर नाईक किससे प्रभावित है किससे जुड़े है? विचलित करने वाला प्रश्न यह कि आतंकी संगठन किससे जुड़े है? उनका मूल आधार क्या? उन्हें पैसा कहाँ से मिलता है, वो ही क्यों इस्लामिक ध्वज लेकर चल रहे है? क्यों वो अपनी संस्कृति अपने मजहब को सर्वश्रेष्ठ व् अन्य को बोना बताते है और वो क्यों किसी के ऊपर सिख, बोद्ध हिन्दू या इसाई मत नहीं थोपते? जाकिर नाईक के मामले में ही हमने देखा कि उसे किस तरह धर्मिक रूप से क्लीनचिट दी रही है दारुल उलूम के कार्यवाहक मोहतमिम मौलाना खालिक मद्रासी और जमियत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान जारी कर कहा कि डॉ़ जाकिर के साथ उनके वैचारिक मतभेद भले ही हों, लेकिन वह एक इस्लामिक विद्वान हैं और वह कुरान की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं। वह किसी दहशतगर्दी का समर्थन नहीं करते हैं। केंद्र सरकार और कुछ संगठन जानबूझ कर उनके खिलाफ जांच से पहले ही बवंडर खड़ा कर इस्लाम को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। यदि इन लोगों की बात मान भी ली जाये तो लोगों के जेहन में एक सवाल जरुर चीखता है कि हाफिज सईद, अजहर मसूद, जाकिर नाईक ये सब मुस्लिम विद्वान की श्रेणी में आते है इनके अपने मदरसे है, इस्लामिक शिक्षा हिंसा नहीं सिखाती, इस्लामिक धर्मग्रन्थ शांति का पाठ पढ़ाते है और मुल्ला मौलवी अमन चैन का पैगाम देते है तो फिर इस्लामिक देशों में आतंकवाद, आगजनी बम विस्फोट और निर्दोष लोगों की हत्या का तांडव क्यों?....लेख राजीव चौधरी 

Monday 25 July 2016

कश्मीर बनेगा पाकिस्तान!!

''एक खुशी की लहर पूरे आजाद कश्मीर में दौड़ चुकी है। उन शहीदों को भी याद रखना जो तहरीक-ए-आजादी के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर रहे हैं। उन्हें कोई रोक नहीं सकता।" "हमें बस उस दिन का इंतजार है, । हम उस दिन के मुंतजिर हैं, जब इंशाअल्लाह कश्मीर बनेगा पाकिस्तान।'' ये बयान कश्मीर की आजादी के लिए लड़ने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ का है| हालाँकि 24 घंटे के भीतर इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने कहा, ''पूरा भारत एक स्वर से वजीर-ए-आजम पाकिस्तान को बताना चाहता है कि उनका और पाकिस्तान का यह दिवास्वप्न कयामत तक भी पूरा नहीं होगा।''  सुषमा स्वराज ने अपने बयान में सबसे लाज़बाब बात यह कही कि पाकिस्तान ने कभी कश्मीर के लोगों को दुआएं नहीं दी, हमेशा हथियार और आतंकवाद का गहरा दर्द दिया ''जिस देश ने अपने लाखों नागरिकों पर लड़ाकू विमानों, तोपों और टैंकों का इस्तेमाल किया हो, उसे हमारे बहादुर अनुशासित और सम्मानीय पुलिस और सुरक्षा बलों पर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं। सब जानते है आजादी के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर समेत भारत के कई हिस्सों में अपना घिनौना खेल रहा है| बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने अपने बच्चों का किस तरह पालन पोषण किया, सभ्यता और प्रग्रति से किन संस्कारों को गहरा किया पूरा विश्व जानता है| गरीबी ग़ुरबत के चलते उन्हें सिर्फ एक चीज सिखाई कि हमारी सारी परेशानी, की जड़ हिंदुस्तान है| जब वहां का युवा देश के प्रति सरकारों से जबाबदेही मांगता है तो उन्हें या तो बन्दुक मिलती या गोली| वरना उसे कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा थमा कर सीमापार भेज दिया जाता है| नतीजा सबके सामने है कि आज पाकिस्तान की पहचान क्या है?
अतीत से लेकर वर्तमान समय तक वहाबी इस्लाम के लिए पाकिस्तान की जमीन सबसे उपयुक्त रही है, धर्म के आधार पर अलग हुए राष्ट्र के तौर पर पाकिस्तान ने हमेशा एक सोच तैयार की अपने बच्चों के मन में भारत के प्रति जहर घोला| अलिफ़ से अल्लाह बे से बन्दुक और जीम से जिहाद पढ़ते-पढ़ते बच्चें कब तालिबान व् अन्य आतंकी संगठ्नो से जुड़ते है पता ही नहीं चल पाता| कुछ रोज पहले वरिष्ट पत्रकार और राज्यसभा सांसद एम.जे. अकबर ने कहा था कि ना जाने कहाँ से मान्यता आयी कि पाकिस्तान की जेहादी फेक्ट्रियां हमारी ही सीमा के पास है जबकि जिहाद की ये फेक्ट्रियां तो पुरे पाकिस्तान में चल रही है| 1947 के बाद से अस्तित्व में पाकिस्तान की मंशा न केवल कश्मीर पर बल्कि अफगानिस्तान पर खराब ही रही है| कभी अफगानिस्तान को भी अपना एक राज्य बनाने की कोशिश में पाकिस्तान ने वहां पर जन जीवन को हिंसा में धकेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी| शायद तभी पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार यह कहने को मजबूर हुई होगी कि हम 60 साल से अपने बच्चों पढ़ाते आये कि हमारी राष्ट्रीय पहचान दूसरों से नफरत करना है इसी वजह से आज किसी भी पड़ोसी से हमारे रिश्तें ठीक नहीं है|
कश्मीर के संदर्भ में पाकिस्तान हमेशा से दोगला राग अलापता आया है एक ओर तो वो कश्मीर की आजादी वहां जनमत संग्रह की बात करता है कश्मीर को एक आजाद देश बनाने की मांग करता है किन्तु वहीं दूसरी ओर वो कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का राग अलाप कर अपनी मंशा जगजाहिर करता रहता है| जबकि कश्मीर के संदर्भ संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र में स्पष्ट लिखा है कि भारत के लिए कश्मीर में तब तक जनमत संग्रह कराना जरूरी नहीं है जब तक पाकिस्तान इस इलाके में सीज फायर लागू नहीं करता और गुलाम कश्मीर से अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ता यानि के कश्मीर के जनमत संग्रह के लिए पाकिस्तान को अपने सैनिको नागरिकों को वहां से हटाना पड़ेगा| जबकि भारत को सिमित संख्या में अपने सैनिको की तैनाती रखने की इजाजत है| पर यहाँ विडम्बना पाकिस्तान की नहीं हमारे देश बुद्धिजीवी पत्रकार भी इस घोषणापत्र को पढने के बजाय पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते नजर आते है|
बहुत दिनों से चुप बैठे पाकिस्तान के अन्दर अचानक कश्मीर प्रेम बेवजह नहीं उपजा इसका कारण है पिछले तीन महीनों में 3 दर्जन के करीब पाक परशिक्षित आतंकी या तो भारतीय सेना के साथ मुठभेड़ में मारे जा चुके है या सेना के हत्थे चढ़ चुके है इस वजह से आज पाकिस्तान परेशान है| भारतीय खुफिया एजेंसी से लेकर सेना के जवान सतर्क है अब जबकि उसके पास प्रशिक्षित आतंकियों का अकाल सा पड़ता नजर आ रहा है तो उसने गेरप्रशिक्षित आतंकियों के सहारे कश्मीर में आतंक को आगे बढ़ाने का रास्ता चुना सेना पर पथराव भी इसी रणनीति का हिस्सा है| इस पुरे प्रकरण में कश्मीरी समुदाय को पाकिस्तान के लेखक विचारक हसन निसार के व्यक्तव को समझना होगा हसन निसार कहते है कि यदि मुस्लिमों के लिए इस्लाम ही वजह है तो ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान को मिलाकर एक अलग मुल्क क्यों नहीं बना लेते? वो आगे कहते है कि पाकिस्तानी शासको के दिमाग में कोढ़ है आज पाकिस्तान में पटवारी से लेकर प्रधानमंत्री तक भ्रष्ट है अकेला पाकिस्तान ही क्या पुरे विश्व में डेढ़ अरब मुस्लिम है 60 के करीब देश है किन्तु किसी को आजादी तो दूर की बात लोकतंत्र भी नसीब नहीं है| ऐसे में जरूरी बात यह कि जब पाकिस्तान का खुद का पेट नहीं पल रहा है तो वो कश्मीर को पाकिस्तान बना कर क्या देगा?  लेख राजीव चौधरी 

अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन काठमांडू (नेपाल) : 20-21-22 अक्टूबर 20 16

सम्माननीय आर्य बन्धुओं!
                सादर नमस्ते। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली के तत्त्वावधान में इस वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 20, 21 तथा 22 अक्टूबर 2016 को नेपाल की राजधानी काठमांडू में सम्पन्न होने जा रहा है। इस सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए अनेक देशों के प्रतिनिधि भी नेपाल पहुंचेंगे। भारत वर्ष से भी इस सम्मेलन में भाग लेने हेतु भारी संख्या में आर्यजनों के पहुंचने की सम्भावना है।
सभी इच्छुक आर्यजन जो इस सम्मेलन में भाग लेने हेतु जाना चाहते हैं वे सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली के माध्यम से ही भाग ले सकेंगे। सार्वदेशिक सभा के द्वारा स्वीकृत सदस्यों को ही आर्य प्रतिनिधि सभा, नेपाल द्वारा प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार कर उनकी व्यवस्था की जायेगी।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नेपाल एक विकसित सम्पन्न देश नहीं है। पिछले भयानक भूकम्प ने वहां की स्थिति और भी खराब कर दी है। इसके बाद भी नेपाल की आर्य प्रतिनिधि सभा ने काठमांडू में अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन आयोजित करने का जो उत्साह दिखलाया है वह आप सबके सहयोग से ही सफलतापूर्वक सम्पन्न हो सकेगा।
अनेकों आर्यजन इस अवसर पर नेपाल के अन्य महत्त्वपूर्ण स्थलों का भी भ्रमण करना चाहते हैं इसलिये उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नेपाल के रमणीय एवं महत्त्वपूर्ण स्थानों की यात्रा का भी रोचक कार्यक्रम बनाया गया है। दोनों यात्राओं की जानकारी निम्न प्रकार है-
यात्रा नं. (A)
;केवल अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन हेतु|
हवाई जहाज द्वारा प्रस्थान  ;4 रात 5 दिन| 19 से 23 अक्टूबर 2016 तक
दिल्ली से 19.10.2016 को             वापसी काठमांडू से 23.10.2016 को
यात्रा व्यय      रु. 35,000/- प्रति व्यक्ति  5 सितारा होटल के लिये
                रु. 27,000/- प्रति व्यक्ति  3 सितारा होटल के लिये
            रु. 22,000/- प्रति व्यक्ति    अतिथि भवनों के लिये
यात्रा व्यय की सम्पूर्ण राशि एक ही बार में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाके नाम बैंक ड्राफ्ट द्वारा निम्न पते पर तत्काल भेजनी होगीः
श्री सुरेश चन्द्र आर्य जी, प्रधान
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, 15 हनुमान रोड, नई दिल्ली-110001
नोट: काठमांडू का भ्रमण कार्यक्रम 19 अथवा 23 अक्टूबर को रखा जायेगा।
यात्रा नं. 1 (B)
वाराणसी तथा गोरखपुर से वातानुकूलित 22 बसों द्वारा प्रस्थान ;5 रात 6 दिन| 19 से 24 अक्टूबर 2016 काठमांडू से वापसी 23 की रात को
यात्रा व्यय रु. 7500/- प्रति यात्री
इस राशि में 6 दिन का वातानुकूलित बस का भाड़ा, 4 दिन का होटल का किराया, 4 दिन की भोजन व्यवस्था तथा काठमांडू घूमने का बस खर्चा शामिल है। इस यात्रा के लिये रु. 7500/- का बैंक ड्राफ्ट सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाके नाम बनवाकर यात्रा नं. 1 में पृष्ठ 1 पर दिये गए पते पर तत्काल भेजना होगा।
वाराणसी तथा गोरखपुर से जाने वाली बसों के सम्बन्ध में विशेष सूचना 1 जो लोग वाराणसी तथा गोरखपुर तक ट्रेन से पहुंचकर वहां से नेपाल जाने की सुविधा चाहते हैं उन यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बड़ी कोशिशों के बाद गोरखपुर तथा वाराणसी से ए.सी. बसों की व्यवस्था हो सकी है जिससे कि यात्री नेपाल तक की यात्रा के अनेक कष्टों और असुविआधों से बच सकें।
2 सभी बसें वाराणसी तथा गोरखपुर रेलवे स्टेशनों से प्रस्थान करेंगी। प्रत्येक बस में केवल 40 यात्री ही जा सकेंगे।
3 जितने यात्री 18 अक्टूबर की रात को 9.00 बजे तक वाराणसी तथा गोरखपुर पहुंच जायेंगे उन्हें 18 की रात को 11.00 बजे 40-40 के ग्रुप में काठमांडू के लिये रवाना कर दिया जायेगा। उसके बाद जितने भी यात्री पहुंचेंगे उन्हें 19 अक्टूबर की सुबह 8.00 बजे 40-40 के ग्रुप में भेजा जायेगा।
4 काठमांडू पहुंचने में वाराणसी से लगभग 18 घन्टे का तथा गोरखपुर से लगभग 14 घन्टे का समय लगता है। नेपाल बाॅर्डर रात को 10 बजे से सुबह 5.30 बजे तक बन्द रहता है इसलिए बसों को बार्डर  पर रात को 10 बजे से पहले या सुबह 530 बजे के बाद पहुंचना ठीक रहता है ताकि वहां समय व्यर्थ बरबाद न हो।
5 गोरखुपर से काठमांडू तक के रास्ते में तथा लौटते समय नाश्ते तथा भोजन का खर्चा यात्री को स्वयं करना होगा।
6 काठमांडू में 20, 21, 22 तथा 23 अक्टूबर को चार दिन की भोजन व्यवस्था एवं 19 से 22 अक्टूबर तक की होटल व्यवस्था तथा भ्रमण-व्यवस्था सभा की ओर से की जायेगी। 23 अक्टूबर को काठमांडू भ्रमण के पश्चात् बस भारत के लिये रवाना होगी।
7 नेपाल जाते समय यात्री के पास पासपोर्ट अथवा वोटर कार्ड होना जरूरी है।
नोट: उक्त पैकेज ता. 18 अक्टूबर की सुबह से 19 अक्टूबर की सुबह तक पहुंचने वाले यात्रियों के लिये ही उपलब्ध रहेगा। जिन्हें 40 के ग्रुप में बुकिंग करानी हो वे ग्रुप बुकिंग करवा सकते हैं।
यात्रा नं. 2 (B)  नेपाल सम्मेलन तथा पोखरा यात्रा
हवाई जहाज द्वारा प्रस्थान  ;7 रात 8 दिन|
दिल्ली से       17.10.16 को    वापसी काठमांडू से 24.10.16 को
दिल्ली से       18.10.16 को    वापसी काठमांडू से 25.10.16 को
दिल्ली से       19.10.16 को    वापसी काठमांडू से 26.10.16 को
                एक ही दिन में ज्यादा हवाई टिकटें उपलब्ध न होने के कारण तीन अलग-अलग तारीखों में थोड़ी-थोड़ी टिकटें खरीदी जा सकी हैं। सम्मेलन से पहले या बाद में ए.सी. बसों द्वारा पोखरा की यात्रा की जायेगी। पोखरा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर बहुत ही रमणीय स्थान है। यहां पर दो रात्रि का विश्राम रखा गया है। बीच रास्ते में अन्य दर्शनीय स्थलों को भी देखने का अवसर मिलेगा। यात्रा नं. 2 के अन्तर्गत काठमांडू में एक दिन का अतिरिक्त विश्राम भी शामिल है जिससे कि सम्पूर्ण यात्रा आरामदायक रहे।
यात्रा व्यय      रु. 46,500/- प्रति व्यक्ति  5 सितारा होटल के लिये
                रु. 36,500/- प्रति व्यक्ति  3 सितारा होटल के लिये
यात्रा नं 2 के लिये सम्पूर्ण राशि का बैंक ड्राफ्ट सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाके नाम बनवाकर यात्रा नं. 1 में पृष्ठ 1 पर दिये गए पते पर तत्काल भेजना होगा।
यात्रा नं. 2 नेपाल सम्मेलन तथा पोखरा यात्रा
गोरखपुर तथा वाराणसी से वातानुकूलित 2*2 बसों द्वारा प्रस्थान ;7 रात 8 दिन| 19 से 26 अक्टूबर 2016 तक पोखरा से वापसी 25 की रात को
यात्रा व्यय रु.11,500/- प्रति यात्री
इस राशि में 8 दिन का वातानुकूलित बस का भाड़ा, 6 दिन का होटल का किराया, 6 दिन की भोजन व्यवस्था तथा काठमांडू और पोखरा घूमने का बस खर्चा शामिल है। इस बस यात्रा के लिये रु. 11,500/- का बैंक ड्राफ्ट सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाके नाम बनवाकर यात्रा नं. 1 में पृष्ठ 1 पर दिये गए पते पर तत्काल भेजना होगा।
वाराणसी तथा गोरखपुर से जाने वाली बसों के सम्बन्ध में विशेष सूचना
यात्रा नं. 1  में दी गई बस यात्रा वाली सूचनाएं क्रमांक 1 से 5 तथा 7 इस यात्रा में भी लागू होंगी। नेपाल में 20, 21, 22, 23, 24 तथा 25 अक्टूबर को 6 दिन की भोजन व्यवस्था एवं 19 से 24 तक 6 दिन की होटल की व्यवस्था तथा सारी भ्रमण व्यवस्था सभा की ओर से की जायेगी। काठमांडू तथा पोखरा घूमने के पश्चात् 25 अक्टूबर को बस भारत के लिये वापस रवाना होगी।
यात्रा नं. 3
;काठमांडू तक अपने आप पहुंचने वालों के लिये विशेष सुविधा|
अपने आप काठमांडू पहुंचने वालों के लिये काठमांडू में 4 दिन साधारण होटल में ठहरने की तथा 4 दिन की भोजन व्यवस्था सभा द्वारा की जा रही है। जो भी यात्री इस सुविधा को लेना चाहें वे तत्काल 4,000/- का बैंक ड्राफ्ट सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाके नाम बनवाकर यात्रा नं. 1 में पृष्ठ 1 पर दिये गए पते पर तत्काल भेजने का कष्ट करें। नोट: इस पैकेज में अन्य कोई सुविधा नहीं दी जा सकेगी।
कुछ आवश्यक सूचनाएं
1 ग्रुप बुकिंग के कारण हवाई जहाज की टिकटंे बहुत ही कम संख्या में उपलब्ध हो सकी हैं अतः आप शीघ्रातिशीघ्र अपनी बुकिंग करा लें जिससे कि आपको निराश न होना पड़े।
2 नेपाल यात्रा में बीमा की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि आप जरूरी समझें तो स्वयं करवा लें। दिये हुए पैकेज में बीमा शामिल नहीं है।
3 जो लोग बिना किसी पूर्व सूचना के सीधे पहुंचेंगे उनके ठहरने व खाने की जिम्मेदारी सभा की नहीं होगी। नेपाल सम्मेलन में भाग लेने के लिये उन्हें रु. 1500/- की सहयोग राशि नेपाल में सार्वदेशिक सभा को देनी अनिवार्य होगी। सम्मेलन में तीनों दिन भोजन व्यवस्था उपलब्ध रहेगी।
4 सभी यात्रियों को यात्रा की व्यय राशि के ड्राफ्ट के साथ पासपोर्ट के प्रथम दो पृष्ठ अथवा वोटर कार्ड अथवा आधार कार्ड की जेरोक्स कापी अवश्य भेजनी है। एअर लाइन की टिकिट के लिये इसकी आवश्यकता रहती है।
5 संलग्न आवेदन पत्र पर सम्बन्धित आर्य समाज के पदाधिकारियों की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है।
6 नेपाल के लिये वीजा नहीं चाहिये किन्तु एअरपोर्ट पर पासपोर्ट अथवा वोटर कार्ड अथवा आधार कार्ड में से किसी एक का लाना अत्यावश्यक है।
7 सार्वदेशिक सभा द्वारा इस यात्रा हेतु 5 सदस्यों की एक समिति गठित की गई है जिसके संयोजक श्री सुरेश चन्द्र आर्य, प्रधान-सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा हैं। अन्य सदस्य श्री प्रकाश जी आर्य, मंत्री, सार्वदेशिक सभा, श्री अरुण प्रकाश जी वर्मा, दिल्ली, श्री एस.पी. सिंह जी, दिल्ली  तथा श्री शिव कुमार जी मदान, दिल्ली हैं।
यात्रा कैन्सिल कराये जाने पर कैन्सीलेशन चार्जेज निम्न प्रकार लागू होंगेः
1. प्रस्थान की तारीख से 30 दिन पूर्व हवाई यात्रा कैन्सिल कराने पर रु. 7500/- की कटौती की जायेगी। 2. प्रस्थान की तारीख से 16 दिन पूर्व हवाई यात्रा कैन्सिल कराने पर 75ø की कटौती की जायेगी। 3. प्रस्थान की तारीख से 1 दिन से लेकर 15 दिन पहले तक यात्रा कैन्सिल कराने पर 100ø कटौती की जायेगी।
कृपया उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर ही आवेदन पत्र व राशि भेजें ताकि बाद में अकारण कोई विवाद न हो। यात्रा सम्बन्धी अन्य जानकारी हेतु आप मुझसे तथा निम्नलिखित महानुभावों से सम्पर्क कर सकते हैंः
1. श्री अरुण प्रकाश वर्मा ;9810086759 2. श्री एस.पी.सिंह ;9540040324
3. श्री शिव कुमार मदान ;9310474979
हमें पूर्ण विश्वास है कि आपकी यह यात्रा अत्यन्त सुखद, आरामदायक एवं रोमांचक रहेगी।             
;प्रकाश आर्य
मन्त्री, सार्वदेशिक आ. प्र. सभा

मो. 9826655117

Saturday 23 July 2016

ये सेना के जवान किसके है?

अभिव्यक्ति की आजादी का पंखा झलते हुए जाकिर नाईक के भाषणों के प्रभाव से ढाका में इस्लामी आतंक के शोलों को कैसे हवा मिली, यह हम सबने देखा था, पिछले दिनों जेएनयू से चली अफजल गेंग की आजादी की मुहीम से अब देश के लोगों ने कश्मीर के अन्दर भी देख लिया| पर सवाल यह है कि देश के विश्वविद्यालयों और  सत्ता सदनों के भीतर आजादी के इस दुरुपयोग को हम कब तक देखते रहेंगे? कश्मीरी अवाम घायल है यह कह कहकर दुःख मनाने वाले अक्सर उस समय मूक दिखाई देते है जब भारतीय सेना के जवान अपने खून से धरती माँ का सीना सींचकर अपने प्राण मात्रभूमि के चरणों में अर्पित करते है| जिन लोगों को कश्मीर में मासूम पत्थर फेंकने वालों के घायल होने का दुख सता रहा है उनके लिए कुछ आंकड़े जारी हुए हैं। घाटी में हिंसा में अब तक कुल 3100 लोग घायल हुए हैं। इनमें से लगभग 1500 भारतीय सेना के जवान हैं। जो कथित तौर पर कश्मीरियों द्वारा पत्थर फेंकने से घायल हुए हैं। हालाँकि सेना पर पत्थर केवल कश्मीर में ही नहीं फेंके जा रहे है दिल्ली आकर देख लीजिये किस तरह संसद में नेताओं के द्वारा और न्यूज रूम से मीडिया द्वारा सेना के जवानों पर आरोप के पत्थर बरस रहे है? कश्मीर में मासूम लोगों की सेना द्वारा निर्मम हत्या| कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे को पुरे जोर शोर से संसद के पटल पर रखा| हालाँकि में यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ हमारा राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, किन्तु राष्ट्र की रक्षा कर रहे सेना के जवानों की पीड़ा उनपर लग रहे बेबुनियाद आरोपों को देखकर यह मुद्दा हमारे लिए प्रासंगिक हो गया|
एक माँ का बेटा पढ़ लिखकर समाचार वाचक गया, एक माँ का बेटा नेता बन गया, और एक माँ ने अपना बेटा देश की सरहद की रक्षा के लिए भेज दिया कि जा बेटा सीमा पर सीना तानकर खड़ा हो जा| आज वो बेटा इन दोनों बेटों की रक्षा के लिए सामने से दुश्मन की गोली और पीठ पीछे अपनों से पत्थर खा रहा है| अब ये सोचने वाली बात है कि सेना की ज्यादती की बात करने वाले पत्रकार और नेता इस पर कुछ क्यों नहीं बोलते हैं? क्या सेना के जवानों का मानवाधिकार नहीं होता है। क्या वो उनको लगी चोट दर्द नहीं देती है? उनकी माएं नहीं होती या परिवार नहीं होता? आखिर किसके लिए सेना के जवान अपनी माओं को अपनी पत्नी बच्चों को छोड़कर लोगों के पत्थर, दुश्मनों की गोली, नेताओं और मीडिया की बोली सहन करते है? इस बात की चर्चा तो खूब होती है कि सेना की पेलेट गनों से प्रदर्शनकारियों की आंखों को गंभीर चोटे लगी हैं। लेकिन सेना के लगभग 1500 जवानों की चोट पर कोई चर्चा क्यों नहीं होती है। समाज के कुछ तबकों से आवाज उठ रही है कि कश्मीर में सेना ज्यादती कर रही है। इन्हें ज्यादती तो दिख गयी क्या इन्हें ये नहीं दिखाई दे रहा है कि सेना पर पत्थर बरसाए जा रहे हैं। भारत के ही एक राज्य में भारतीय सेना को घायल किया जा रहा है।
बुरहान वानी के एनकाउंटर से दुखी जमात-उद-दावा ने पाकिस्तान में आजादी कारवां निकाला। जिसमे ज्यादातर आतंकी संगठन के लोग ही शामिल हुए। इस्लातमाबाद के डी चैक से इस कारवां को निकाला गया था। जिसके बाद हाफिज सईद और अब्दुल रहमान मक्की् जैसे आतंकियों ने भारत के खिलाफ जमकर आग उगली। इन आतंकियों ने ये भी धमकी दी है कि वो बुरहान की मौत को जाया नहीं जाने देंगे| हालाँकि इसमें सारा दोष अकेले पाकिस्तान को देकर पल्ला झाड़ लेना काफी नहीं होगा क्योकि ऐसी समर्थन की आवाजे भारत में कविता कृष्णन जैसी वामपंथी नेता समेत कई लोग उठा रहे है| लेकिन कभी कोई एक आवाज उन लोगों के खिलाफ नहीं उठी जो हर रोज वहां सेना दस्तों पर हमला करते है| हर सप्ताह जुमे की नमाज के बाद पाकिस्तान और कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराये जाते है| सेना पर पत्थर फैंकने की घटना तो अब आम बात है, लेकिन युवा प्रदर्शनकारी खुलेआम देशी पेट्रोल बम फेंक रहे हैं। गंभीर बात तो यह है कि प्रदर्शनकारियों में महिलाएं और छोटे बच्चे भी शामिल हैं। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं के वीडियो न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर चले हैं। इन वीडियो को देखने से यह जाहिर होता है कि पेट्रोल बम फेंकने वालों के सामने सेना के जवान भी मजबूर है। इधर सेना के जवान बम फेंकने वालों पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं कर रहे तो कश्मीर पुलिस के जवान जवाब में पत्थरबाजी करने को ही मजबूर हैं।
भारत में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर की मौत पर शोक के स्वर कुछ ऐसे स्थानों से उठे जहां इनके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। एक आतंकी को सही और उसके खात्मे को गलत बताने के संकेत करते लोगों को आप क्या कहेंगे? हाल में जेएनयू की नई पौध का विष वृक्ष उमर खालिद और जम्मू-कश्मीर में सत्ता खोने से आहत उमर अब्दुल्ला की बातों को किस तरह लिया जाए? क्या किसी विश्वविद्यालय के पहचान पत्र देश को नुकसान पहुंचाने वालों की ढाल बन सकते हैं? क्या राजनीति में हाशिए पर जाने का मतलब आतंकियों का दर्दमंद हो जाना और देश की अखंडता को चुनौती देने वालों के साथ खड़े दिखना है? वानी की मौत के बाद सवाल उठाने वालों बुद्दिजीवियो को यह बताना चाहिए कि गोलियां बरसाते, बारूद बिछाते आतंकी और उनके दिहाड़ी पत्थरबाजों से आप कैसे निपटेंगे? सबसे बड़ा सवाल यह कि एक आतंकी की मौत पर भारत में बहस छेड़ने और घाटी का उफान बैठाने की बजाय वहां लोगों को भड़काने की चिनगारियां बिखेरते इन बुद्धिजीवियों और आतंकवाद को मानवाधिकार से जोड़ते पाकिस्तानी पैरोकारों के बीच फर्क क्या हैबुरहान वानी सरीखे आतंकियों की मौत को भुनाने की पाकिस्तानी तरकीबों से कैसे निबटना है यह भारत जानता है। इन गद्दारों से हमारी सेना को निपटना आता है लेकिन असली चुनौती घर में बैठे आतंकियों से है? ...लेख राजीव चौधरी 

Friday 22 July 2016

राजनीति में कौन दलित, कौन देवी?

एक बार फिर बरसाती नदियों की तरह राजनीति अपने उफान पर है| मुद्दों की बारिस झमाझम हो रही है| नेता और उनके समर्थक चालीस डिग्री से ज्यादा तापमान में वातानुकूलित घर गाड़ियाँ छोड़ सड़कों पर खड़े है| कारण एक तो गुजरात में दलित समुदाय के लडकों की पिटाई और दूसरा बसपा पार्टी अध्यक्ष मायावती पर अभद्र टिप्पणी यह दोनों मुद्दे मीडिया और राजनीति में किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है| मीडिया एक महिला के अपमान पर एक बार फिर चिंतित है जिसे दलित समुदाय इसे अपनी आन-बान का प्रश्न बना बैठा है| गुजरात के वेरावल में कथित गौरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के बाद वहां दलित समुदाय में भारी गुस्सा है| हालाँकि राज्य सरकार द्वारा सभी आरोपी गिरफ्तार किये गये| पीड़ितों को करीब चार- चार लाख रूपये की सहायता राशि की भी घोषणा की गयी दोषी पुलिसकर्मी तत्काल प्रभाव से हटाये गये| लेकिन फिर भी राजनेताओं द्वारा गुजरात बंद के  दौरान कुछ जगहों पर हिंसा की घटनाएँ हुई सरकारी सम्पत्ति में आग लगी जिसमे एक पुलिसकर्मी की मौत हो गयी| ये मुद्दा संसद में भी गूंजा है जिसके बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया| हालंकि दोनों ही मामले एक सभ्य समाज के लिए निंदा का विषय है| अच्छे समाज के लिए जरूरी है कि राजनेतिक और सामाजिक सुचिता बनी रहे| किन्तु कुछ तर्क खड़े होना भी लाजिमी है जब प्रशासन अपना काम कर रहा था दोषी पकडे गये थे तो क्या सड़क पर उतरकर सरकारी सम्पत्ति आग के हवाले करना, पथराव करना जायज है? हम मानते है इसमें राजनीति हुई है पर क्या इस तरह सडक पर न्याय के बहाने हिंसा करना एक लोकतंत्र में स्वस्थ परम्परा का जन्म है? यदि नहीं तो क्या राजनेता जूनागढ़ समेत गुजरात के कई शहरों में दलित समुदाय द्वारा किये इस हिंसक कृत्य की भी निंदा कर सकते है?
दूसरा सबसे बड़ा प्रश्न आजादी के 70 साल बाद भी दलित यदि दलित है तो इस बात का कौन जबाब देगा कि वो दलित क्यों है? शायद मायावती उत्तरप्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी है| जाहिर सी बात है मान-सम्मान के साथ धन सम्पद्दा की भी कोई कमी नही रही होगी लेकिन वो अब भी दलित है तो उनको इस मानसिकता से कैसे उबारा जा सकता है? मुझे नहीं लगता सत्ता या सरकारी योजनाओं की ललक कभी इस मानसिकता से ऊपर किसी दलित को समाज की मुख्यधारा में ला सके| कहीं ये चलन तो नहीं बन गया कि दलितों को सभी सरकारी सुविधाओं से नवाज़ा जाये| उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाए बस कोशिश यह रहे कि वो इस दलित मानसिकता से ना उभर पाए? पिछले दिनों कांग्रेस नेता सेलजा कुमार ने खुद को दलित बताते हुए अपने साथ मंदिर में अपमान होने की बात कही थी| आज मायावती पर की गयी एक शब्द की अभद्र टिप्पणी को समस्त दलित समुदाय से जोड़ दिया गया| लेकिन जब देश के एक राज्य केरल के अन्दर एक दलित गरीब लड़की के साथ रेप कर उसके अंगभंग कर उसकी हत्या कर दी गयी तो राजनीति से कोई एक आवाज़ उसके लिए बाहर नहीं आई? क्या ये एक दलित की हत्या नहीं थी? या एक दलित महिला का अपमान नहीं था? उसका राजनेतिक कद नहीं था या उस राज्य में के चुनाव में दलित मुद्दा नहीं थे, या वो गरीब दलित की बेटी मायावती की तरह देवी नहीं थी?
कुछ साल पहले उत्तरप्रदेश में एक नेता ने भारत माता को डायन कहकर संबोधित किया था| सब जानते है भारत माता शब्द राष्ट्र की अस्मिता से जुडा शब्द है किन्तु तब विरोध का एक स्वर मुझे कहीं सुनाई नहीं दिया हो सकता है आज हमने राष्ट्र से बड़ी अपनी जाति को मान लिया हो| तभी मायावती ने किसी अहम् के बल पर कहा हो कि समाज के लोग मुझे देवी के रूप में देखते हैं, यदि आप उनकी देवी के बारे में कुछ गलत बोलेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा और वे मजबूरन विरोध करेंगे। बिलकुल सत्य कहा एक नारी को देवी ही माना जाना चाहिए और हमारी तो संस्कृति संस्कृति ही यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः है| दयाशंकर को तत्काल उसके पद प्रभाव से हटाया जाना पार्टी से निष्काषित किया जाना इसी का परिणाम रहा| किन्तु मायावती के समर्थको द्वारा बीजेपी नेता दयाशंकर की पत्नी और बेटी को लेकर अभद्र टिप्पणी कहाँ तक सही है, उनकी क्या गलती है यही वो बस एक मुंहफट नेता की पत्नी है? क्या वो नारी देवी नहीं है? या देवी होने के लिए किसी जाति समुदाय में राजनैतिक कद होना जरूरी है?


ऐसा नहीं है महिलाओं पर इस तरह की टिप्पणी हमारे समाज में पहली बार हुई है जिसको लेकर आग लगाई जाये| महाभारत में भी एक प्रसंग में कर्ण द्वारा द्रोपदी पर ऐसी ही टिप्पणी की गयी थी| पिछले कुछ सालों में तो इस तरह के बहुत मामले सामने आये कांग्रेस नेता नीलमणि सेन डेका ने स्‍मृति ईरानी पर भद्दी टिप्पणी करते हुए उन्‍हें मोदी की दूसरी पत्‍नी बताया था| कुछ समय पहले एक महिला सांसद मीनाक्षी नटराजन को उन्ही के सहयोगी कांग्रेस नेता ने सौ फीसदी टंच माल कहा था| एक नही ऐसे अनेकों उदहारण मिल जायेंगे| कुछ समय पहले लगता था देश अतीत से निकलकर भविष्य की और बढेगा| अतीत के मान-अपमान को भूलकर संकीर्ण मानसिकता से निकलकर ऊपर उठेगा| जातिगत भेदभाव गुजरे जमाने की चीज हो जाएगी| लेकिन अब देखकर लगता है कि सामाजिक समरसता अब भी एक सपना है और शायद तब तक सपना ही रहेगा जब तक कोई दलित अपनी दलित और कोई उच्च अपनी उच्च मानसिकता से बाहर नहीं आएगा| लेख राजीव चौधरी