Saturday 9 July 2016

आतंक का एक और मसीहा!!

श्रीनगर में हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे हैं| बाईस वर्षीय बुरहान हिजबुल का पोस्टर बॉय था| यानि के वहां स्थानीय युवा जो कट्टर इस्लामिक सोच रखते है वो बुरहान को अपना आदर्श मानते थे| युवा ही क्या सेना द्वारा बुरहान के मार गिराए जाने के बाद जिस तरह जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किये वो भी यह दर्शाते है कि इस कट्टर सोच को राजनैतिक दल वोट के लिए किस तरह भुनाना चाहते है| उमर अब्दुल्ला ने बुरहान वानी की मौत पर ट्वीट किया है कि बन्दुक उठाने वालों में बुरहान वानी न पहला कश्मीरी नौजवान है और न अंतिम| इससे पता चलता है कि आतंकवाद नीचे से ऊपर की ओर नहीं पनपता बल्कि ऊपर से नीचे नौजवानों के हाथ में थमाया जाता है| चाहे इसमें पाकिस्तान के हाफिज सईद, मसूद अजहर का नाम आता हो या अपने जेहरीले भाषण के लिए हाल ही में उभर कर आये जाकिर नायक का नाम ही क्यों ना हो| ढाका में हमले करने वाले आतंकी जाकिर नायक के भाषणों से प्रेरित पाए गये| हालाँकि विश्व के कई देशो में जाकिर को प्रतिबंधित किया गया है| या हो सकता है जैसे कुशल किसान अपनी फसलों को कीटों से बचाते है उसी तरह यह देश अपनी नश्लो को बचा रहे हो?

अभी थोड़ी देर पहले कहीं पढ़ा था कि जून माह के अंत में पश्चिम बंगाल में किसी स्कूल में कुछ मुसलमान छात्रों ने अचानक दोपहर को अपनी कक्षाएँ छोड़कर स्कूल के लॉन में एकत्रित होकर नमाज पढ़ना शुरू कर दिया था, जबकि उधर हिन्दू छात्रों की कक्षाएँ चल रही थीं. चूँकि उस समय यह अचानक हुआ और नमाजियों की संख्या कम थी इसलिए स्कूल प्रशासन ने इसे यह सोचकर नज़रंदाज़ कर दिया कि रमजान माह चल रहा है तो अपवाद स्वरूप ऐसा हुआ होगा. लेकिन नहीं... अगले दिन पुनः मुस्लिम छात्रों का हुजूम उमड़ पड़ा, प्रिंसिपल के दफ्तर के सामने एकत्रित होकर नारा-ए-तकबीर, अल्ला-हो-अकबरके नारे लगाए जाने लगे. कुछ छात्र प्रिंसिपल के कमरे में घुसे और उन्होंने माँग की, कि उन्हें जल्दी से जल्दी स्कूल परिसर के अंदर पूरे वर्ष भर नमाज पढ़ने के लिए एक विशेष कमरा आवंटित किया जाए. इन्हीं में से कुछ छात्रों के माँग थी कि प्रातःकालीन सरस्वती पूजा पर भी रोक लगाई जाए| आखिर कहाँ से पनपी यह सोच क्यों अपनी पूजा पद्धति को ही महान मान लिया किसने सिखाया इन बच्चों को कि दूसरों की संस्कृति, पूजा और उपासना हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती?
यहीं सोच लेकर एक बच्चा जब बड़ा होता है, फिर वो इस्लामिक परिधान की मांग करता वो मुसलमान बनना बाद में चाहता है पहले वो मुसलमान दिखना चाहता है| फिर वो जाकिर नायक जैसे लोगों की कट्टर हिंसक सोच से प्रभावित होकर कब मरने मारने निकलकर बुरहान वानी बन जाता है पता ही नहीं चलता| कब एक के दो और फिर दो के सौ हो जाते  है पता ही नहीं चलता| पता जब चलता है जब एक हँसता खेलता मुल्क सीरिया, यमन, मिस्र, ट्युनिसिया या पाकिस्तान, अफगानिस्तान इराक बन जाता है| सोचिये जब एक बच्चा जाकिर नायक जैसे पढ़े लिखे मुस्लिम के यह बयान सुनता है कि यदि ओसामा बिन लादेन दुश्मनों के साथ लड़ रहा है तो मैं उसके साथ हूँ इस्लाम उसके साथ है, हर मुसलमान को आतंकी होना चाहिए यदि वो आतंकी अमेरिका को डरा रहा है तो समझो वो इस्लाम को फोलो कर रहा है| पाकिस्तानी मूल के विचारक पत्रकार तारेक फतेह कहते है कि आज मदरसों में सिर्फ बच्चों के दिमाग में एक बात डालते है कि सारी दुनिया हिन्दू, सिख, इसाई, बोद्ध यहूदी हमारे खिलाफ साजिश रच रहे है हमें बचाने वाला सऊदी अरब और मदरसे है इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ लड़ते हुए जान देना शहादत है तो सोचिये ऐसी तकरीरे सुनने वाला बच्चा क्या बनेगा?
  

सोचकर देखिये यदि किसी बच्चे का निर्माण प्रेम, शांति और अहिंसा की छाव की बजाय घ्रणा, हिंसा और कट्टरता में होगा तो वो बच्चा समाज को क्या देगा! आतंक या सामाजिक समरसता? तसलीमा नसरीन ने मुस्लिम माता-पिता को आगाह करते हुए लिखा था कि यदि आपका बच्चा हद से ज्यादा कुरान, इस्लामिक परिधान के करीब जा रहा है तो कृपया उसका ध्यान रखे कहीं उसका झुकाव आतंक की ओर तो नहीं हो रहा है| समाचार चैनलों के अनुसार करीब 12 अरब रूपये प्रति माह जाकिर नायक को विदेशो से इस्लाम के नाम पर फंड मिलता है| क्या कोई इस्लाम से जुड़ा व्यक्ति बता सकता है कि कितना पैसा गरीब मुस्लिम के विकास के लिए उसकी शिक्षा के लिए खर्च किया जा रहा है? या फिर उस पैसे से इन्टरनेट और टेलीविजन व् अन्य माध्यम से उनके दिमाग में सिर्फ हिंसा के बीज रोपे जा रहे है ? जाकिर जैसे लोग धर्म विशेष की महिमा का गान करते है अपनी प्राचीन सभ्यता का अपने मौलानाओं का गुणगान कुछ इस तरह करते है कि ना चाहते हुए भी कई बार कुछ युवा इस्लामिक प्राचीनता से इतना अधिक प्यार करता है, कि उसके लिए आत्महत्या तक कर लेता है। वह फिदायीन तक बन जाता है|

 वह प्राचीन कत्लेआम को भी  स्वर्णयुग समझकर उसे वापिस लाना चाहता है उसके लिए हर चीज की हत्या कर देता है। उसकी अमानवीयता बढ़ती जाती है। तो व्यक्ति आत्मघात करता है। धार्मिक उन्माद यह शिक्षा देता है कि यदि जीत गये तो गाजी कहलाओगे और यदि मारे गये तो शहीद। स्वर्ग में तुम्हें हूरें मिलेंगी। इस हत्याकांड को कट्टरवाद क्रूसेड, जिहाद और धर्मयुद्ध नाम देता है। दूसरे संप्रदायों के धर्मों को हेय समझना, उनसे घृणा करना, अपनी श्रेष्ठता को मनवाने की कोशिश करना सारे फसादों की जड़ है। अन्य किसी के मुकाबले इस्लाम का पूरा इतिहास ऐसे ही नरसंहारों से भरा पड़ा है। आज कुछ लोग जाकिर नायक को धर्मगुरु कह रहे है इतिहास उठाकर देखिये। सच्चे और महान संत का जीवन हमेशा निर्बल रहा है। धर्मगुरु कभी किसी फौज का कमांडर या किसी गिरोह से जुड़ा आतंकवादी नहीं होता। वह अकेला होता हैं, फिर भी सबके साथ होता हैं|उसका सन्देश सबका कल्याण होता है| अत: भारत सरकार को इस मामले में जाँच कर कड़ी कार्रवाही करनी चाहिए मुस्लिम समुदाय को भी धर्म के नाम पर जहर बेच रहे इस इन्सान से अपने बच्चों को सचेत करना चाहिए, और मीडिया को भी सरकारी तंत्र में हस्तक्षेप करने के बजाय सोचना चाहिए कि जब संत आसाराम को जेल हो सकती है तो जाकिर नायक को क्यों नहीं? लेख राजीव चौधरी 

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