Tuesday 2 August 2016

अब राजनीति नही, न्याय करो!

अकेली नहीं थी, परिवार के साथ घर से निकली थी, कपडे भी कम नहीं पहने थे, क्या ये कदम भी भूल में रख दिया, जो इतनी बड़ी सजा मिली? शायद बुलंदशहर एन.एच. 91 पर दरिंदो का शिकार हुई वो मासूम बच्ची इस सभ्य कहे जाने वाले समाज से नम आँखे लिए इस प्रश्न का उत्तर जरुर टटोल रही होगी! अब हो सकता है, सरकारें इनकी अस्मत की कीमत लगाकर मुवावजा दे किन्तु उस पीड़ा का मुवावजा कौन देगा जो एक बंधक बाप ने उस समय महसूस की होगी जिस समय उसके परिवार को दरिन्दे नोच रहे थे? अब हो सके तो कानून की देवी की आँखों से वो काली पट्टी खोलकर इनके मासूम चेहरे जरुर दिखाए उस तराजू में इनका वो दर्द रखकर न्याय हो जो इन्हें ताउम्र सहना है| यही समाज है यही देश के लोग है| हो सकता है इस लेख को कुछ लोग पढने से कतराए पर यह एक चेतना का सामाजिक युद्ध है जिसमे हमें अपने आप से भी लड़ना है और बाहर भी लड़ना है| अभी तक बलात्कार का कारण महिलाओं के कम कपडे बताने वालों को समझना होगा और स्वीकार करना होगा कि रेप पुरुष की घटिया मानसिकता का परिचय है| अब सवाल यह है कि रेप जैसे घिनोने कृत्य हमारे समाज की संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं या घटाते हैं? अगर घटाते हैं तो समाज और संवेदनशीलता को नुकसान करेंगे, अगर बढ़ाते है तो समाज का फायदा करेंगे।
सोचिये उस बाप पर अब क्या बीत रही होगी जिसके सामने बंधक बनाकर उसकी पत्नी और बेटी के साथ 3 घंटे तक यह घिनोना कृत्य किया गया! वो किस तरह सिसक-सिसककर मीडिया के सामने कह रहा था कि मुझे वो खोफनाक मंजर याद कर गुस्सा आता है मन करता है जहर खाकर मर जाऊं| आखिर किस तरह का दंश और खोफ लेकर वो पत्नी वो बेटी सारी उम्र जियेगी? घटना का पूरा विवरण लिखकर में कलम और कागज को शर्मशार नही करना चाहता| नहीं, लिखना चाहता कि उन दरिंदो ने घटना को किस-किस तरह अंजाम दिया| जैसे भी दिया बस एक 13 साल की बच्ची और उसकी माँ को सारी उम्र को उनकी आत्मा को कचोटने वाला दर्द दिया जिसमे मूक रुदन होगा| ये मत सोचना अपराधी पकडे जायेंगे तो दर्द का सिलसिला थम जायेगा| नहीं, अभी तो शुरुआत भर है मीडिया का कुछ हिस्सा पूरे कांड का श्रंगार कर बेचेगा| राजनेता अपने बयानों से एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर उनके दर्द को कुरेदेंगे| ये भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इनके दर्द में भी वोट तलाशे! इसके बाद जो बचेगा उसके साथ न्याय और कानून व्यवस्था कई सालों तक भद्दा मजाक करेगी| अब राजनेताओं और राज्य सरकार से उम्मीद करते है इस मामले में राजनीति करने के बजाय सवेंदनशीलता दिखाए ना कि पूर्व की भांति यह बयान देकर पल्ला झाड़ ले कि लड़के है और लड़कों से गलती हो जाती है| क्योकि प्रदेश सरकार के एक मंत्री का बयान सुनकर लगा कि सरकारी सहानुभूति पीड़ित परिवार के बजाय अपराधियों के पाले में अभी से खड़ी हो गयी|
कुछ लोग बहुत ही तर्कवादी होते हैं| हो सकता है इसमें केस भी तर्क प्रस्तुत करें| आज सुबह जब में आ रहा था तो मेट्रो के अन्दर एक श्रीमान कह रहे थे, कि गलती तो पीड़ित परिवार की भी है क्यों आधी रात को घर से बाहर निकले! मुझे नहीं पता उनके तर्क का आधार क्या था! किन्तु यदि इस पक्ष के तर्कशास्त्री ज्यादा हो तो यह जरुर बताएं समाज और सरकार भी यह सुनश्चित कराएँ कि महिलाएं ऐसा क्या पहने और किस समय घर से निकले कि उनके सम्मान पर गिद्ध द्रष्टि ना पड़े? इसी तरह के तर्कशास्त्री अक्सर मैदान में आकर इन घिनोंने कृत्यों को अनजाने में ही सही पर बल तो दे जाते है| जबकि अब जरुरत ये है कि समाज बिना किसी शर्म संकोच के इतनी जोर से प्रतिरोध करे बल्कि यहाँ तर्क के बजाय प्रतिरोध करे, वरना आप के हलके शब्द आप की शर्म, आपका संकोच आरोपी को सहमति प्रदान करने में देर नहीं लगायेंगे। नैतिकता की  बड़ी-बड़ी बाते करने भर से कोई समाज चरित्रवान नहीं हो जाता है, समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ आज महिलाएं सुरक्षित है, समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं  है,  उसका जीवन बिलकुल ऐसे हो गया है जैसे वो अपराधी हो और इस मनुष्य समुदाय में अपनी सजा भुगतने आई हो और कह रही हो लो नोच लो मेरे शरीर को पर यह झूठी सवेदना का स्वांग बंद करो! दिसम्बर 2012 दामिनी के मामले में पूरा देश सवेदनशील होकर सड़कों पर उतरा था उम्मीद थी राजनीति और न्याय पालिका भी इसमें जनभावनाओं का सम्मान करेगी| किन्तु बाद में न्याय पालिका ने तो थोडा न्याय प्रस्तुत किया किन्तु राजनीति एक अपराधी का धार्मिक आधार पर बन्दरबाँट करती नजर आई|
जिस तरह अब बुलंदशहर पीड़ित परिवार ने कहा है कि यदि तीन महीनों में न्याय नहीं मिला तो वो आत्महत्या कर लेंगे| पर मुझे देश की न्याय प्रणाली और इस कांड में कुछ आरोपियों के मजहब देखकर नहीं लगता कि इतने दिनों में कोई फैसला आये| न्याय दूर की बात इतने दिनों तक चार्जशीट ही थानों में सडती रहती है| जबकि इस मामले में पीड़ित परिवार ने खुद ही देख लिया कि किस तरह पुलिस ने घटना स्थल पर जाना उचित नहीं समझा और प्राथमिकी रिपोर्ट भी दर्ज करने में आनाकानी की| कुछ लोग सोचते होंगे ऐसे वीभत्स कांड के बाद थाने पहुचते ही, पुलिस पीडिता के आंसू पोंछती और उसका सिर पर हाथ रख उसे ढाढस बंधाती होगी, तुरंत डाक्टर को बुलाती होगी और पुलिस अपराधी को तुरंत खोजने लग जाती होगी| अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप ने थाने देखे ही नहीं हैं| उल्टा कई बार तो शरीर से जख्मी पीडिता को पुलिस के सवाल उसकी आत्मा को ज्यादा जख्मी कर देते है| इसके बाद पीड़ित परिवार कई कई साल तक न्याय के नाम पर वकीलों के लिए कमाई का साधन बन जाता है| हर बार वही प्रश्न और वही उत्तर| बचाव पक्ष के वकीलों के केस को खींचने और दोषियों को बचाने के लिए अपने-अपने हथकण्डे चलते है| उसके बचे कुचे मान सम्मान को कागज के जहाज की तरह उड़ाया जाता है|

मान लो इसके यदि किसी तरह निचली अदालत में पीडिता जीत भी गई तो फिर उससे ऊपर की अदालत फिर और ऊपर फिर राष्ट्रपति महोदय बैठे होते हैं| उपरोक्त सारी बातों पर यदि गौर करें तो स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार का कारण केवल क्षणिक आवेग तो नहीं हो सकता | न ही केवल किसी अपराधिक मानसिकता के व्यक्ति की ही बात है| यदि कोई दोषी है तो पूरी कानून व्यवस्था, समाज और राजनेता है| तो जाहिर सी बात है एक बार क्यों न्याय व सुरक्षा व्यवस्था और राजनीति को ही कटघरे में खड़ा कर इन प्रश्नों के उत्तर तलाशे जाये? लेख राजीव चौधरी 

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