Wednesday 31 August 2016

मदर टेरेसा मेक इन वेटिकन संत

चार सितम्बर को वेटिकन में मदर टेरेसा को संत घोषित करने के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रम में भारत प्रतिनिधित्व करेगा| विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उस 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगी| दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी रोम की यात्रा करेंगी| मार्च में पोप फ्रांसिस ने घोषणा की थी कि मिशरीज आफ चैरिटी की स्थापना करने वाली मदर टेरेसा को संत घोषित किया जाएगा| इससे पहले उनके निधन के बाद 1997 में गिरजाघर ने उनसे जुड़े दो चमत्कार की पहचान की थी| मदर टेरेसा को अब रोमन कैथोलिक चर्च का संत घाषित किया जाएगा| वैसे चमत्कार पर विश्वास भारत के मूल सविंधान के खिलाफ है और भारत सरकार का इसमें सम्मिलित होना एक गलत परम्परा को भी जन्म देगा क्योकि जिस आधार पर मदर टेरेसा को चमत्कारिक संत घोषित किया जा रहा है वो भारत जैसे देश में अन्धविश्वास को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने वाला कदम होगा|
सरकार द्वारा लोगों के साथ यह एक धार्मिक व्यंग है कि भारतीय संतो की दुनिया में एक विदेशी ब्रांड संत जल्दी आने वाली है| अभी तक भारतीय धर्म नगरी देशी संतो से सराबोर थी| अब पहली बार एक देश को विदेशी संत मिलेगी जो चार सितम्बर को वेटिकन से लांच होगी प्योर रोमन केथोलिक संत| पर अच्छा होता यह सब भी सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत होता| या ऐसा हो सकता है वर्तमान सरकार ने धर्म में भी एफ.डी.आई. लागू की हो कि संत भी अब विदेशी होंगे! यदि नहीं तो क्या सरकार ये बता सकती है कि अगर वो भारतीय थी तो उसे ये संत की डिग्री विदेश से क्यों? क्या चमत्कार करने वाले बाबाओं को भी संत की डिग्री देगी सरकार? ये प्रश्न उठने जायज है क्या अब सरकार टेरेसा के चमत्कारों से उत्साहित होकर चमत्कार अस्पताल खोलेगी? जिसमें दवा के बजाय चमत्कारों से असाध्य रोगियों का इलाज होगा! हो सकता है केजरीवाल जी भी मोहल्ला क्लीनिक के बजाय चमत्कार क्लीनिक खोल दे या फिर सुषमा स्वराज जी के आदेश पर स्वास्थ मंत्रालय में एक विभाग बना दे चमत्कार विभाग!
21 सदी में भारत जैसे गरीब देश में जहाँ सरकारों की कोशिश होनी चाहिए थी कि व्यापक पैमाने पर शिक्षा घर-घर तक पहुचाई जाये और लोगों को इन तथाकथित संतो देवी देवताओं पशु बली टोने टोटके आदि से बाहर निकाला जाये तब वहां वर्तमान सरकार इसे और अधिक बढ़ावा देने का कार्य सा करती नजर आ रही है| पिछले कुछ वर्षो में अंधविश्वास पर बारीकी से अध्यन करने के बाद एक बात सामने आई है कि कोई भी मजहब या समप्रदाय हो इस प्रकार की हरकते होती रही है और आगे भी होती रहेगी जब तक कि आम जनता अपने कर्मो पर विस्वास करने की बजाय बाबाओ, संतो माताओं, देवियों आदि के चक्कर में पड़ी रहेगी|
हो सकता है मदर टेरेसा की सेवा अच्छी रही होगी परन्तु इसमें एक उद्देश्य हुआ करता था कि जिसकी सेवा की जा रही है उसका इसाई धर्म में धर्मांतरण किया जायेपर मदर टेरेसा सिर्फ और सिर्फ इसाई कैथोलिक प्रचारक थी मदर टेरेसा की संस्था के अनाथालयों में अनाथ बच्चों को रोमन कैथोलिक चर्च के रीति रिवाजों और विधि विधान के मुताबिक पाला पोसा जाता रहा है यदि वहां से कोई बच्चा गोद लेना चाहे तो वो सिर्फ कैथोलिक इसाई बनने के बाद ही दिया जाता है एक बार एक प्रोटेस्टेंट इसाई परिवार बच्चा गोद लेने गया तो उसे यह कहकर मना कर दिया कि आपके साथ बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास पर बहुत बुरा प्रभाव होगा| उनके विकास की गति  छिन्न भिन्न हो जायेगी| हम उन्हें आपको गोद नहीं दे सकते क्योंकि आप प्रोटेस्टेंट हैं|उसी दौरान भारतीय संसद में धर्म की स्वतंत्रता के ऊपर एक बिल प्रस्तुत किया जाना था बिल प्रस्तुत करने के पीछे उद्देश्य था कि किसी को भी अन्यों का धर्म बदलने की अनुमति नहीं होनी चाहिए| जब तक कि कोई अपनी मर्जी से अपना धर्म छोड़ कर किसी अन्य धर्म को अपनाना न चाहे और मदर टेरेसा पहली थीं जिन्होने इस बिल का विरोध किया| उन्होंने तत्कालीन सरकार को पत्र लिखा कि यह बिल किसी भी हालत में पास नहीं होना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से हमारे काम के खिलाफ जाता है| हम लोगों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और लोग केवल तभी बचाए जा सकते हैं जब वे रोमन कैथोलिक बन जाएँ|
एक बड़ा सवाल लोग यह भी करते है कि यदि हम अपने लोगों की सेवा करते तो बाहरी लोगों को यहाँ आने की जरूरत नहीं पड़ती यह बात बिलकुल सत्य के करीब है क्योकि गरीब आदमी के पेट और अशिक्षा पर धर्म बड़ा जल्दी खड़ा होता है उड़ीसा के दाना मांझी वाले मामले में ही देख लीजिये कि बहरीन के सुल्तान ने उसे पैसे देने की पेशकश तक कर डाली वरना लोग तो सीरिया में भी रोजाना मर रहे है जो मुसलमान भी है उनके प्रति उसके मन में कोई संवेदना क्यों नही जगी? पर नहीं वह जानता है कि दाना मांझी एक हिन्दू आदिवासी है और इनकी गरीबी पर इस्लाम थोफा जा सकता है| जिस तरह मदर टेरेसा की नजर में उसके लिए गरीब आदमी सबसे बड़ा वरदान था मदर टेरेसा ऐसा क्यों चाहती थी| इसका जबाब 1989 में मदर टेरेसा ने खुद टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में दिया था|
प्रश्न- भगवान् ने आपको सबसे बड़ा तोहफा क्या दिया है?
मदर टेरेसा- गरीब लोग
प्रश्न भारत में आपकी सबसे बड़ी उम्मीद क्या है ?
मदर टेरेसा  सब तक जीसस को पहुंचाना

यह सब सुनकर पढ़कर क्या कोई उसे संत या कोई धार्मिक मानेगा शायद नहीं मेरे लिए मदर टेरेसा और उनके जैसे लोग पाखंडी हैं, क्योंकि वे कहते एक बात हैं, और करते दूसरी बात हैं| पर यह सिर्फ बाहरी मुखौटा होता है क्योंकि यह पूरा राजनीति का खेल है, आज वर्तमान सरकार भी पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी पैठ बनाने के लिए इस पाखंड के खेल का हिस्सा बनने जा रही है संख्याबल की राजनीति| टेरेसा की मौत के बाद पॉप जॉन पॉल को उन्हें संत घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गयी थी हो सकता है इसका मुख्य कारण भारत में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण किया जाना रहा हो? बहरहाल इस मामले पर प्रश्न इतना है कि यह इसाई समुदाय का अपना व्यक्तिगत मामला ना होकर धार्मिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह बन जाता कि क्या दो संयोग हो जाने पर किसी को संत घोषित किया जा सकता है? मनुष्य ईश्वर की बनाई व्यवस्था को संचालित कर उसके वजूद को टक्कर दे सकता है? यदि मदर टेरेसा को याद करने से दो रोगी ठीक हो सकते है तो समूचे विश्व में अस्पतालों की जरूरत क्या है? हर जगह टेरेसा का फोटो टांग दो मरीज ठीक हो जाया करेंगे| या फिर भारत में और अंधविश्वास को बढ़ावा देने की योजना हैवैसे देखा जाये तो पिछले कुछ सालों में भारत के अन्दर भी कोई दो ढाई करोड़ लोग संत शब्द का इस्तेमाल करने लगे है पर सही मायने में यह संत शब्द का अपमान है| सरकार को इस तरह के आयोजन में शरीक होने के बजाय बचना चाहिए| चित्र साभार गूगल लेख आर्य समाज 

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