Monday 8 August 2016

रेडिकल इस्लाम की भारत में दस्तक

इलाहाबाद  में एक ने स्कूल में राष्ट्रगान पर प्रतिबंध लगा दिया है| जिसके विरोध में स्कूल के प्रिंसिपल सहित आठ अध्यापिकाओं ने इस्तीफा दे दिया है| स्कूल की प्रबंधन समिति के मुताबिक राष्ट्रगान में भारत भाग्य विधाता का गान करना इस्लाम के खिलाफ है क्योंकि अल्लाह के सिवाय और कोई उनका भाग्य भाग्य विधाता नहीं हो सकता| इस मानसिकता के पीछे कौन है? और क्यों इस तरह के मामलों की भरमार पिछले कुछ सालों में अधिक देखने को आई!इसका जबाब तलाशा जाना भी अति आवश्यक हो गया है| अभी पिछले दिनों इराक के राजदूत फाख़री हसन अल ईसा ने द हिन्दू अखबार के हवाले से भारत को चेताया है कि चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट ने भारत में स्लीपर सेल स्थापित किए हो सकते हैं| भारत समेत कई देशों में विदेश से फंड हासिल करने वाले मदरसों में जो इस्लाम सिखाया जा रहा है वो इस्लामिक स्टेट के उदय के लिए जिम्मेदार है| उन्होंने आगे कहा है कि इस्लामी उपदेशकों पर नजर रखनी चाहिए कि वो किस तरह के इस्लाम की सीख दे रहे हैं| इनकी इस बात में कितना बल या बिलकुल निर्बल है, यह तो आने वाले भविष्य ही बताएगा| किन्तु जिस प्रकार समाचार पत्रों व् खुफियां एजेंसियों की सुचना आ रही है कि केरल व एक दो अन्य प्रदेश के कुछ मुस्लिम युवाओं का कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रति रुझान बढ़ा है तो उसे देखकर फाखरी हसन के बयान से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता| कट्टरता का माध्यम कोई भी हो चाहें उसकी बुनियाद का आधार धार्मिक हो या किसी अन्य समाज की संस्कृतिक अतिक्रमण करना, किसी भी सभ्य समाज के लिए अच्छा नहीं है| वो एक स्वस्थ समाज में बीमारी की तरह होता है, जिसका समय रहते निदान जरूरी है| ताकि वह समाज के अन्य स्वस्थ अंगो को प्रभावित ना करे|
आज विश्व समुदाय के सामने आतंक की बहुत बड़ी समस्या सबसे बड़े रूप में मुंह खोले खड़ी है| हर वैश्विक मंच पर आतंकवाद के मुद्दे को शीर्ष विश्व नेता प्राथमिकता के आधार पर रखते है| जिसको किसी न किसी रूप में कुछ इस तरह व्यक्त किया जाता है कि मुसलमानों की भावना भी आहत ना हो, उनके मजहब इस्लाम के सम्मान को भी ठेस ना पहुचें और आतंकवाद की पहचान भी सुनश्चित हो जाये| इस कड़ी में सबसे बड़ी समस्या यह है आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले श्रोत कहाँ छिपे है| पहले उनका पता लगाया जाये! वो लोग आतंक की फसल कैसे और किस खेत में तैयार करते है यह भी जानकारी सुनिश्चित हो| हालाँकि आतंक की फसल कटती तो सबने देखी कि किस तरह से उसे जिहाद के नाम पर काटा जाता रहा है| किन्तु इस फसल के उगने का तरीके पर फाखरी साहब ने सबसे आगे बढ़कर पर्दा हटाया| दरअसल हिन्दू या मुसलमान होना कोई समस्या नहीं है, और इसका समाधान धर्म से बिलकुल मुंह मोड़ना भी नहीं है| मूल समस्या है बहुत अधिक धर्मिक होना| किन्तु यह भी धर्म की शिक्षा पर निर्भर करता है कि धर्म की अधिक निकटता या किस धर्म अत्यधिक निकटता किसी को आतंकी बनाती है या वैराग्य जगाती है? इसका समाधान एक है कि धर्म के मूल तत्व को जान जाये| ना कि किसी पर जबरन अपनी पूजा पद्धति या अपने विचार थोपे जाये| कोई भी धर्म कभी किसी की हत्या नहीं करता ना वो हिंसा का सन्देश देता उसका निर्माण प्राणी मात्र के कल्याण के लिए हुआ है| हत्या और हिंसा करता है मनुष्य और इसकी प्रेरणा देते है धार्मिक उपदेशक, जैसा कि फाखरी हसन ने अपने बयान में कहा है| इस्लामिक शिक्षा और उसके प्रचार प्रसार पर शोध और लेखन कर रही अमेरिकी लेखक-ब्लागर पामेला जेलर लिखती है कि एक संजीदा और जमीर वाली कौम ने खुद को जहर भरे हथियार चुभो लिए है उन्होंने दोनों हाथों में धर्म को पकड़ लिया और अपने आर्थिक हितो पर न केवल चोट की बल्कि अपने बदलते वक्त की जरूरतों को भी ना समझ सके शायद आज इसी अवसाद ने उन्हें आक्रामक बना दिया!
इस संदर्भ में कहा जाये या फाखरी हसन के बयान के आधार को आगे रखते हुए कहे तो कई बार कुछ मुस्लिम समुदाय दिग्भ्रमित सा दिखता है| उसे नहीं पता होता कि अपने मजहब पर गर्व उसके किस अतीत को लेकर करे औरंगजेब जैसे क्रूर बादशाह पर या दाराशिकोह के सूफी सन्देश पर? कोई भी धर्म अपनी शिक्षाओं का जनमानस पर कड़ा प्रभाव छोड़ता है| मसलन ईश्वर को जानने का मार्ग और मनुष्य समाज के लिए शांति और सहिष्णुता का पाठ| या फिर कई बार उसमें चमत्कार भी छिपे होते है| जो आम मनुष्य के बस से बाहर होते है जिसे लेकर आम मनुष्य अभिभूत हो जाते है| इसके बाद होता कि अतीत में उसके अनुयाइयों ने किस तरह उस धर्म के सन्देश का आचरण किया और उसे किस तरह प्रसारित प्रचारित किया| यहाँ आकर मुस्लिम समुदाय हमेशा बंटता सा नजर आता है! तब वो इसी उपापोह में खड़े नजर आते है कि हम क्या बताएं क्योकि अधिकतर समुदाय के द्वारा जबरन तलवार के बल पर प्रचार प्रसार का माध्यम पढ़ा होता है| शायद यहीं कारण भी हो सकता है इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन इसे ही सबसे सरल व् सुचारू मार्ग समझते हो और इसके लिए मुस्लिम युवाओं का आवाहन करते हो?
हालाँकि में भारत देश से हूँ और इसे महापुरषों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है| तो में सभी पंथो के धर्मगुरुओं एवं उपदेशको के सामने ये बात साहस पूर्ण तरीके से रखना चाहूँगा कि हम सब इस देश के नागरिक ही नही है बल्कि इस मिटटी के कर्जदार भी है| हम सबको सिर्फ सरकार व शाशन के भरोसे नहीं रहना यदि हम अपने धार्मिक अधिकारों की मांग करते है तो हमें अपनी धर्मिक जिम्मेदारियां भी बखूबी निभानी होगी| कट्टरपंथी मानसिकता जिसे रेडिकल कहा गया उससे बाहर आना होगा और हर बात को धर्म से जोड़कर अपनी आहत भावना के नाम पर हिंसा आगजनी का विरोध भी करना होगा| मीडिया के उकसावे में आकर नकारात्मक बयानबाजी से बचे इससे कट्टरपंथ को ताकत प्रदान होती है| हमारे पास युवा और उर्जावान राष्ट्र और समाज है, ऐसे में ये जरूरत भी है और हमारा कर्तव्य भी, कि हम इस उर्जा को सही दिशा प्रदान करें| आप लोग समाज के राष्ट्र के नायक हो तो अपने कर्तव्यों का निर्वाहन राष्ट्रहित में करें| शिक्षण संस्थानों को शिक्षा और धार्मिक स्थलों को ईश्वर उपासना का केंद्र ही बने रहने दे उन्हें अपने महत्वकांक्षी राजनितिक जीवन के अड्डे ना बनाये अपने इतिहास से बच्चों को प्रेम और भाई चारे का ही सन्देश दे| हो सके तो एक बार फिर इन धार्मिक ग्रंथो की समीक्षा की जानी चहिये सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कुरीतियाँ, गलतफहमियां, और भटकाव को जन्म देने वाले कारकों को खत्म करना होगा क्योकि आज ही तय हो सकता है कि कहीं आज के फतवे फरमान कल के  देश को हिंसा की और तो नहीं धकेल रहे है?.......लेख राजीव चौधरी 

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