Tuesday 6 September 2016

फिर राजनीति शर्मसार हुई

केजरीवाल खुद कहते फिर रहे थे कि कुछ भी गलत हो तो वीडियो बना लो| दिल्ली के महिला एवं बाल कल्याण मंत्री संदीप कुमार का किसी महिला से नाजायज सम्बन्ध का वीडियो लीक हुआ हालाँकि उन्हें तत्काल पद प्रभाव से हटा दिया जाना सामाजिक और राजनितिक लिहाज से सराहनीय कदम कहा जा सकता है| परन्तु इसके बाद भी यह मामला दबने का नाम नहीं ले रहा है| अब विवादित सीडी में सहयोगी महिला जो कि अब पीड़ित है ने थाने पहुंचकर मामले में को और तीखा बनाया तो वही  आम आदमी पार्टी के ही नेता आशुतोष ने अपने एक विवादित ब्लॉग के माध्यम से पूर्व महिला कल्याण मंत्री संदीप कुमार को क्लीनचिट देते हुए लिखा है कि भारतीय इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां हमारे नायकों और नेताओं ने सामाजिक बंधनों से बेपरवाह होकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति की।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की कई सहयोगी महिलाओं से प्रेम संबंधों के किस्से चटखारे लेकर कहे-सुने जाते थे। लेकिन इससे उनका करियर नहीं बरबाद हुआ। एडविना के साथ उनके रिश्तों की खूब चर्चा हुई। सारी दुनिया इसके बारे में जानती थी। उनका ये लगाव पंडित नेहरु के आखिरी सांस लेने तक बना रहा। क्या वो पाप था? आशुतोष यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे लिखा इतिहास इसका भी गवाह है ब्रम्हचर्य से अपने प्रयोग के लिए गांधी जी बाद के दिनों में अपनी दो भतीजियों के साथ नंगे सोते थे। नेहरू ने उन्हें समझाया कि ऐसा न करें वर्ना देश उनके खिलाफ हो जाएगा, मगर गांधी नहीं माने। उनकी यह बात सही हो सकती है कि किसी के भी निजी जीवन के आंतरिक पलो में ना झाँका जाये पर यह मामला देश की राजधानी दिल्ली के मंत्री और वो भी महिला और बाल कल्याण मंत्री से जुडा है! इसका मतलब एक बार फिर राजनीति शर्मसार हुई या कहो देश पतन की और चला.इस मामले को समझने के लिए हमे एक पुनः थोडा अतीत का रुख करना पड़ेगा दरअसल अन्ना के लोकपाल आन्दोलन रामलीला मैदान की भूमि के उपजे आप पार्टी के सयोजक अरविन्द केजरीवाल पिछले कुछ सालों पहले देश के नौजवानों के लिए एक आशा बनकर उभरे थे कि देश अरविन्द के जरिये एक नैतिकता के मूल्यों में बंध जायेगा भ्रष्टाचार काला बाजारी बंद होने के साथ इस राजनीति के खेल में अरविन्द पारंपरिक वर्तमान राजनीति को चुनौती देंगे और पुराने खिलाड़ियों को नई वास्तविकताओं के साथ नई पीढ़ी के साथ नये विचारों के साथ देश के साथ जुड़ना पड़ेगा किन्तु हाल ही में अरविन्द और उसकी टीम द्वारा राजनैतिक व् सामाजिक मूल्यों की उडती धज्जियों के देखकर शायद एक फिर आज का युवा खुद को विकल्पहीन होकर निराशा के रास्ते पर लिए खड़ा है| हो सकता है कल लोग संदीप कुमार का नाम भूल जाये आशुतोष गुजरे जमाने की चीज हो जाये लेकिन लोग शायद ये बात नहीं भूलेंगे कि नेता तो यार ऐसे ही होते है|
आशुतोष ने उदहारण दिए पता नहीं उनमें कितना दम है पर में यह जानता हूँ कि अगर हम राजनेताओ का उदहारण दे तो हमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, चौधरी चरणसिंह, जैसे बहुत सारे ऐसे नेता मिल जायेंगे जिनके चरित्र धवल है क्या आज इनके उदहारण कोई मायने नही रखते? प्रजातन्त्र मे चर्चा, आलोचना और समालोचना का अधिकार सबको है। सत्तारूढ़ पक्ष के कार्यों की उचित आलोचना, उसको आईना दिखाने का काम होना ही चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय सफ़ेद झूठ का सहारा लेना, गाली और अपशब्दों का उपयोग करना बिलकुल उचित नहीं है। किसी भी देश की संस्कृति उस देश के बुजुर्गो, पूर्वजो और महापुरुषों के इर्दगिर्द घुमती है जिनसे हम सीखते और फिर उस संस्कृति को अगली पीढ़ी के हाथों में सोपते है| जाहिर सी बात यदि हम उस संस्कृति के मूल्यों में कुछ ना जोड पाए तो भी हमें ये भी अधिकार नहीं है कि हम अपने सामाजिक व् राजनैतिक स्वार्थ के लिए उसे खंडित कर अगली पीढ़ी के ऊपर थोफ कर भाग जाये|
मै परिवर्तन के खिलाफ नहीं हूँ खराब व्यवस्था कोई भी वो हटनी चाहिए पर उसकी जगह कोई ऐसी व्यवस्था जरुर आनी चाहिए जो स्थाई हो जिसकी गरिमा हो जिसका स्थापित मूल्य हो! लेकिन जिस तरह आशुतोष ने जो की अब राजनीति में है और एक नेता भी है पूर्व में लिखा कि यदि कोई लड़की शादी से पहले बहुत सारे शारारिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करती तो वो समाज की दौड़ में पीछे रह जाती है| शायद हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह बयान एक बेहद ओछी हरकत कहा जायेगा क्या आशुतोष बता सकते है कि क्या आज एक महिला सिर्फ यौन सम्बन्ध के लिए ही रह गयी है? उसका वजूद यही तक सिमित रह गया है? क्या वो समाज की दौड़ पदक जीतकर, डाक्टर बनकर, संगीत, या आई,एस अफसर या फिर देश की राजनीति का हिस्सा बनकर नहीं जीत सकती? ऐसा नहीं है कि सिर्फ आशुतोष ही ऐसे नेता है समय-समय पर राजनीति के अन्दर से ऐसे गन्दी मानसिकता के नेता लगभग सभी पार्टियों में देखे गये है|
आज वर्तमान परिद्रश्य में राजनैतिक पार्टियों के शीर्ष नेता स्वयं एक दूसरों पर कीचड़ उछालने मे व्यस्त हैं। इनकी जबान से जनता की जरूरते उनके मुद्दे गायब हो चुके है अपने स्वार्थ और लाभ सर्वोपरी हो गये है, चाहे उसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े आज अल्पसंख्यक और दलित दो मुद्दे ऐसे हो गये है कि इनसे जुड़कर या किसी को जोड़कर नेता समाज में एक विघटन पैदा कर रहे है जैसे अभी सब ने देखा अपने कुकर्म पर पकडे जाने के बाद संदीप कुमार ने कहा कि में दलित हूँ इस वजह से मुझे फंसाया जा रहा है ये राजनीति में एक समाज को तोड़ने वाला गन्दा सा चलन बन गया है लोगों को ऐसे नेताओं को तिरस्कार करना चाहिए तभी राजनीति स्वस्थ होगी तभी देश स्वस्थ होगा यदि इसके बाद आशुतोष और आम आदमी पार्टी इतिहास के कुछ कारनामो को मानक बना रहे है तो उन्हें मुबारक वो फोलो करे देश को कोई आपत्ति नहीं है पर यह कृत्य देश के नौजवानों को ना सिखाये|..........(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) लेख राजीव चौधरी 

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