Monday 12 September 2016

इस्लामिक बैंक जरूरत किसकी ?

अभी तक सबने धार्मिक आधार पर पूजा, उपासना के स्थान स्कूल, कॉलेज, और आरक्षण में बंटवारा होता देखा होगा। लेकिन भारत में अब पहला धार्मिक आधार पर बैंक भी शुरु होने जा रहा है। मतलब मुस्लिमों के लिए अलग बेंक. इसकी पहली शुरुआत गुजरात से होगी । जहां देश का पहला जेद्दाह का इस्लामिक डेवेलपमेंट बैंक (आईडीबी) अपनी पहली शाखा खोलने जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार के साथ मिलकर ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। इस बैंकिंग की शुरूआत करने का प्रस्ताव इसलिए लाया गया है ताकि धार्मिक कारणों से बैंकिंग सिस्टम से दूर रहने वाले लोगों खासकर मुस्लिमों को भी इसका हिस्सा बनाया जा सके। क्योंकि मौजूदा भारतीय बेंको के अन्दर सभी सिस्टम ब्याज आधारित हैं। बता दें कि ब्याज आधारित बैंकिंग इस्लाम में प्रतिबंधित है। इस तरह की बैंकिंग को इस्लामिक फाइनेंस या इस्लामिक बैंकिंग भी कहा जाता है।
अपने सालाना रिपोर्ट में आरबीआई ने पिछले दिनों यह प्रस्ताव बनाया है। दरअसल दुसरे विश्व युद्ध के बाद पूरे विश्व के देशों का भूगोल बदला था. जिसके बाद इस्लामिक देशों को लगा कि अब इस्लाम का प्रचार-प्रसार तलवार के जोर पर नहीं किया जा सकता इसके लिए नये और उदारवादी रास्ते तलाश करने होंगे. जिसके बाद 1969 में रबात में हुए इस्लामिक देशों के प्रमुखों के सम्मेलन में यह निर्णय किया गया था कि विश्व में इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए बैंकिंग व्यवस्था का भी इस्तेमाल किया जाए। ताकि गरीब और कमजोर लोगों को बिना ब्याज के पैसा देकर इस्लाम की मान्यताओं की तरफ आकर्षित कर उनका धर्मांतरण किया जा सके. 1981 में पाकिस्तानी बैंकिंग विशेषज्ञ मौलाना अब्दुल रहमान कैनानी ने कराची के डॉन समाचार पत्र में अपने एक आलेख के जरिये इस तरफ फिर मुस्लिम देशों का ध्यान खिंचा जिसके जेद्दाह में पहला इस्लामिक विकास बैंक स्थापित किया गया। इस समय इस्लामिक बैंक की विश्व के 56 इस्लामी देशों में शाखाएं हैं। भारत एक मात्र गैर- मुस्लिम देश होगा जिसमें इस्लामिक बैंकिग व्यवस्था शुरु की जा रही है।
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक इस्लामिक देशों के पास भरपूर पैसा है। अगर मोदी सरकार इंटरेस्ट फ्री बैंकिंग शुरू कर दे तो यह पैसा भारत में आ सकता है। लेकिन इसमें बड़ी खास बात यह है कि यह बेंक भारत के सविंधान के अनुरूप चलने के बजाय शरियत कानून के अनुसार चलेगा? क्या मुस्लिम देशों में बेंक बिना ब्याज दरों के काम करते है? इस बात की गारंटी कौन देगा कि भारत के अन्दर मुस्लिम इस बेंक का इस्तेमाल बिना ब्याजदरों के करेंगे? यदि बेंक शरियत के अनुसार ब्याज का लेनदेन नहीं करता तो बेंक कर्मचारियों का वेतन या बेंक की कमाई के स्रोत क्या है? इसके बाद यदि कोई इसके अन्दर ब्याज दरों के द्वारा लेनदेन करता है तो शरियत के अनुसार उनकी सजा क्या है? यह भी सार्वजनिक होना चाहिए| हमें नहीं पता आखिर इस फैसले के पीछे सरकार का उद्देश्य क्या है! पर इतना जानते है बाबर 1500 सौ सैनिको को लेकर भारत आया था और फिर पीढ़ियों तक राज किया इसके बाद ईस्ट इंडिया नाम की एक छोटी सी कम्पनी भारत आई जिसने अपना एक तंबू कलकत्ता में गाडा था जिसके बाद 250 सौ साल राज किया था. ना हमारा अतीत ज्यादा पुराना है न हमारे घाव और न ही हमारी स्वतन्त्रता. अभी कुछ ही समय बीता है उस काले अध्याय से छुटकारा मिले.
इस्लामिक देशों का पैसा अगर इस तरह से देश में आएगा तो इससे आतंकवादियों को बड़ी मदद भी मिल सकती है। कहा जा रहा है कि इस सौदे को करवाने में प्रधानमंत्री के एक करीबी मुस्लिम नेता जफर सरेशवाला की विशेष भूमिका है। जफर सरेशवाला ने इस समझौते की पुष्टि की और कहा कि इस्लामी बैंक की पहली शाखा अहमदाबाद में खोली जाएगी। यह बैंक मुस्लिम वक्फ संपत्तियों के विकास पर भी भारी धनराशि खर्च करेगा जिससे भारतीय मुसलमानों को भारी लाभ होगा। गौरतलब है कि इस्लामिक विकास बैंक सउदी अरब का सरकारी बैंक है। इससे जो लाभ प्राप्त होता है उसका इस्तेमाल इस्लाम के प्रचार प्रसार और धर्मांतरण के लिए किया जाता है। दस वर्ष पूर्व इस्लामिक विकास बैंक के निर्देशक मंडल की एक बैठक दुबई में हुई थी जिसमें यह मत व्यक्त किया गया था कि विश्व में भारत ऐसा देश है जिसमें गैर-मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है। इसलिए भारत में इस्लाम के प्रचार-प्रसार और धर्मांतरण की सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं। इस बैंक ने देश में इस्लाम के प्रचार के लिए एक कार्यक्रम भी बनाया था पर तब तत्कालीन सरकार ने मना कर दिया था किन्तु आज मौजूदा भारत सरकार ने देश में इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था शुरु करने के लिए हरी झंडी दे दी है
अब प्रश्न यह कि क्या इस बेंक के दरवाजे गैर-मुसलमानों के लिए भी खुले होंगे? या उनसे गैर-मुसलमान भी ब्याज रहित ऋण प्राप्त कर सकेंगे? यदि नहीं! तो क्या इस ऋण का इस्तेमाल गैर-मुलसमानों के इस्लाम कबूल करने के लिए प्रलोभन के रुप में तो नहीं किया जाएगा? क्या इस्लामी बैंकों की शाखाओं का इस्तेमाल आतंकवादियों को फंड उपलब्ध कराने के लिए तो नहीं होगा? ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने मुस्लिमों को खुश करने या उनके सामाजिक उद्धार के लिए कोई कार्य नहीं किया! राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिमों के आर्थिक उत्थान के लिए एक कार्यक्रम शुरु किया था उसके तहत राष्ट्रीयकृत बैंकों के निर्देशक मंडलों को यह निर्देश दिया गया था कि वह ऋण देते समय मुस्लिम समुदाय का विशेष ध्यान रखें। बैंकों द्वारा जो ऋण वितरित किया जाता है उसका कम से कम 15 प्रतिशत मुसलमानों को दिया जाना चाहिए। इसी नीति पर मोदी सरकार भी चल रही है। अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डा. नजमा हेपतुल्ला ने राष्ट्रीयकृत बैंकों को यह निर्देश दिया है कि मुसलमानों को स्वरोजगार शुरु करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज दिया जाए वह भी बहुत कम ब्याज पर। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि जो संघ परिवार पिछली सरकार के समय देश में इस्लामी बैंकिग व्यवस्था को शुरु करने का जबर्दस्त विरोध कर रहा था अब उसने देश में इस्लामी बैंक की शाखाएं खोलने के बारे में अपनी जुबान क्यों बंद कर रखी है? क्या अब संघ परिवार के लिए राष्ट्रहितों की बजाय राजनीतिक हित सर्वोपरि हो गए हैं? जबकि भारत में इस्लामिक बैंक संविधान विरोधी और आतंकवाद समर्थित हो सकता है।...(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) Rajeev Choudhary 


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