Thursday 10 November 2016

दुख, वेदना, हताशा और कुप्रथा

चित का फटना और फटने का दर्द भीतर ही भीतर सहना कितना कठिन है? पर यह इस नारी की सहनशक्ति का प्रमाण भी है. कुप्रथाएं किसी भी समाज में हो वो हमेशा किसी न किसी के लिए दुःख का कारण जरुर बनती है. बल्कि कई बार तो कईयों की जिन्दगी तक को तबाह तक कर डालती है. एक ऐसी ही कहानी कई रोज पहले दैनिक जागरण अखबार में पढ़ी. खबर थी कि तीन तलाक और हलाला के नियम से दुखी एक मुस्लिम महिला ने इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म को अपनाने का एलान किया है. उसने इस्लाम धर्म के नाम पर हो रही महिलाओं की दुर्दशा पर खुलकर अपने उद्गार व्यक्त किए. जय शिव सेना ने महिला का धर्म परिवर्तन कराने में या कहो कुप्रथा से पीछा छुड़ाने में अपना सहयोग देने का आश्वासन दिया.

राजनगर स्थित आर्य समाज मंदिर में 25 वर्षीय मुस्लिम महिला शबनम (बदला हुआ नाम) ने इस्लाम धर्म के नाम पर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का जिक्र करते हुए कहा कि लगभग सभी मुस्लिम महिलाएं किसी न किसी प्रकार से यातनाएं झेल रही हैं. कम उम्र में उनका निकाह कर दिया जाता है, फिर उन पर जल्दी जल्दी बच्चे पैदा करने का दबाव दिया जाता है. बच्चा न पैदा होने पर उन्हें तमाम शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं और छोटी छोटी बातों पर तलाक दे दिया जाता है. तलाक देने के बाद महिलाओं की स्थिति और भी दुखदायी हो जाती है. पीड़ित लड़की का कहना है कि तलाक के बाद शौहर से दोबारा निकाह करने के लिए मुस्लिम समाज द्वारा चलाई गई प्रथा हलाला से गुजरना होता है. उसने बताया कि तलाक के बाद उसके शौहर ने फिर से साथ रहने के लिए उसका हलाला भी कराया और दोस्त के हवाले कर दिया. तीन महीने बाद जब वह पति के पास पहुंची तो उसे स्वीकार करने के बजाय पति ने वेश्यावृत्ति में धकेल दिया. हो सकता है इस खबर को पढ़कर धर्म विशेष के लोगों की नजरें शर्म से झुक जाये.या शायद कुछ ऐसे भी हो जो परम्पराओं के नाम पर एक नारी के मन और आत्मा को छलनी कर देने वाले इस प्रकरण को मजहब का हवाला देकर सही ठहराए? किन्तु कहीं न कहीं पुरे प्रकरण में मानवता जरुर शर्मशार हुई है.
एक महिला की घुटन भरी जिन्दगी. जिसकी साथ ऐसी घटना घटित होती है उसकी जिन्दगी घर के अन्धेरे कोनों में सुबक कर रोने में ही बीत जाती है. कोई एक भी तो उनकी नहीं सुनता उनकी सिसकियों भरी आवाज. न घर में न घर के बाहर, न भाई न पिता, न मस्जिद न मुल्ला मौलवी, न नेता न समाज सुधारक सब के सब मौन. कोई भी तो मौलवी ऐसी घटना के विरुद्ध फतवा जारी नहीं करता. जिस कारण पाशविक धार्मिकता की आड़ में स्त्री तो पुरुष के पांव की जूती, बच्चा पैदा करने वाली मशीन पुरुष की भोग्या ऐसी धारणाओं की बलिवेदी पर परवान हो जाती है. चार पांच बच्चों के साथ जीवन कितना नारकीय बन जाता है यह तो केवल भोगने वाला ही जान सकता है.

जानने वाले जानते हैं कि औरत के तलाक के मांगने के मामले शायद ही कभी सुनने को मिलते हैं. वजह ये है कि उसमें खासा वक्त लगता है. जब महिला को तलाक लेना हो तो उसे एक से दूसरे मौलवी के पास धक्के खाने पड़ते हैं. कभी बरेलवी के पास, कभी दारुल उलूम के पास. वह मौलवी के पास जाती है तो वे तलाक लेने की हजारों वजहें पूछते हैं. जबकि मर्द को कोई वजह नहीं देनी पड़ती. औरत वजह भी बताए तो उसे खारिज कर देते हैं कि ये वजह तो इस काबिल है ही नहीं कि तुम्हें तलाक दिया जाए. मतलब इस्लाम के अन्दर औरत वजह से भी तलाक नहीं दे सकती और पुरुष बेवजह भी तलाक दे सकता है. जिसका जीता जागता उदहारण अभी हाल ही में जोधपुर राजस्थान में देखने को मिला था कि किस तरह बीच सड़क पर एक मुस्लिम युवक ने अपनी पत्नी को तलाक दिया. मोरक्को की सामाजिक कार्यकर्ता फातिमा मेर्निसी इस्लाम के इस पुराने तंत्र पर प्रहार करती कहती है कि इसमें महिलाओं को महज संस्थानिक व अधिकार में रखने की कवायद की जाती रही है और इसे मजहब के नाम पर पवित्र पाठ का नाम दिया गया है.

आज पूरे मुस्लिम संसार में सब कुछ उलट पुलट हो रहा हैं. लेकिन कुप्रथाओं पर मुसलमान वही पुराने ढर्रे पुराने संस्कारों की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं. कुछ लोग इसे मजहब से जोड़कर देख रहे है तो कुछ महज मुस्लिम मौलानाओं की जिद से. पूरे संसार में नारियों के लिए मुक्ति आंदोलन चले और आज वह स्वतंत्रता के मुक्त वातावरण में सांस ले रही हैं. हिन्दुओं ने समय के साथ सती जैसी गन्दी प्रथा को दूर कर नारी को स्वतंत्र कर दिया. परन्तु मुस्लिम समाज की महिलाओं की मुक्ति का एक भी स्वप्न संसार के किसी कोने से नहीं फूटता. इस्लामिक समाज में नारी मुक्ति के लिए कोई भी समाज सुधारक, चिन्तक, कोई नेता व कोई भी धार्मिक व्यक्ति आगे नहीं आया. आगे आती सिर्फ कुछ मुस्लिम महिला पर उनकी आवाज उनके चरित्र से जोड़कर बंद कर दी जाती है. पिछले कुछ सालों से एक तमिल मुस्लिम लेखिका मुता विवाह के खिलाफ संघर्ष कर रही है. जब उनसे पूछा कि यह मुता विवाह है क्या?  तो उसनें बताया केवल थोड़े समय के लिए शादी फिर तलाक तलाक तलाक. असंख्य अस्वस्थ रहन सहन, दारिद्रय, अशिक्षा ने हमारे समाज को उजाड़ बना दिया है. तलाक के बाद आंसुओं की सम्पत्ति , चुपचाप सिसकने की इजाजत के सिवा कुछ भी नहीं. दुख, वेदना, हताशा व दरिद्रता के सिवाय कुछ नहीं बचता. मिस्र की एक मुस्लिम महिला ग़दीर अहमद अभी हाल ही में इस्लाम में नारी को लेकर मुखर है वो कहती है आप अकेली नहीं हैं. आप जिस संघर्ष से गुजर रही हैं, मैं उससे गुजर चुकी हूं. मैंने अकेलापन, असहाय, कमज़ोरी और शर्म को महसूस किया था. ऐसे समय भी आए जब मैं पूरी तरह निढाल हो गई. मुझे यह हक़ नहीं कि आपसे कह सकूं कि आप भी मेरी तरह ही संघर्ष करें. लेकिन मैं अपील करती हूं कि जिस पर आपको भरोसा हो, चाहें वो कोई हो उससे मदद मांगे. एक बार मदद मांगने से आप कम अकेली, कम ख़तरे में ख़ुद को पाएंगी. हम साथ मिल कर उस संस्कृति को बदल सकते हैं जो हमे डराती है और शर्मिंदा करती है. हम एक साथ जी सकती हैं, बहनों के रूप में हम इस दुनिया को औरतों के लिए बेहतर बना सकती हैं..लेख राजीव चौधरी 

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