Friday 27 January 2017

क्या अकबर महान था?

भारत में प्रचलित इतिहास के लेखक मुग़ल सल्तनत के सभी शासकों के मध्य अकबर को विशिष्ट स्थान देते हुए अकबर "महान" के नाम से सम्बोधित करते हैं। किसी भी हस्ती को "महान" बताने के लिए उसका जीवन, उसका आचरण महान लोगों के जैसा होना चाहिए। अकबर के जीवन के एक आध पहलु जैसे दीन-ए-इलाही मत चलाना, हिन्दुओं से कर आदि हटाना को ये लेखक बढ़ा चढ़ाकर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते मगर अकबर के जीवन के अनेक ऐसे पहलु है जिनसे भारतीय जनमानस का परिचय नहीं हैं। इस लेख के माध्यम से हम अकबर के महान होने की समीक्षा करेंगे।


व्यक्तिगत जीवन में महान अकबर

कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं । विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-

“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था । उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था । उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था। वह गहरे रंग का था।”

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थी और हर एक का अपना अलग घर था।” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थी।

बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था। 

[बाबरनामा] हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया था। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में ली थी।

नेक दिल अकबर ग़ाजी का आगाज़

6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर ने पानीपत की लड़ाई में भाग लिया था। हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया। उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से बेहोश हेमू का सिर काट लिया। एक गैर मुस्लिम को मौत के घाट उतारने के कारण अकबर को गाजी के खिताब से नवाजा गया। हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड़ को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया। जिससे नए बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके। अकबर की सेना दिल्ली में मारकाट कर अपने पूर्वजों की विरासत का पालन करते हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनाकर जीत का जश्न बनाया गया। अकबर ने हेमू के बूढ़े पिता को भी कटवा डाला और औरतों को शाही हरम में भिजवा दिया। अपने आपको गाज़ी सिद्ध कर अकबर ने अपनी “महानता” का परिचय दिया था[i]।

अकबर और बैरम खान

हुमायूँ की बहन की बेटी सलीमा जो अकबर की रिश्ते में बहन थी का निकाह अकबर के पालनहार और हुमायूँ के विश्वस्त बैरम खान के साथ हुआ था। इसी बैरम खान ने अकबर को युद्ध पर युद्ध जीतकर भारत का शासक बनाया था। एक बार बैरम खान से अकबर किसी कारण से रुष्ट हो गया। अकबर ने अपने पिता तुल्य बैरम खान को देश निकाला दे दिया। निर्वासित जीवन में बैरम खान की हत्या हो गई। पाठक इस हत्या के कारण पर विचार कर सकते है। अकबर यहाँ तक भी नहीं रुका। उसने बैरम खान की विधवा, हुमायूँ की बहन और बाबर की पोती सलीमा के साथ निकाह कर अपनी “महानता” को सिद्ध किया[ii]।

स्त्रियों के संग व्यवहार

बुंदेलखंड की रानी दुर्गावती की छोटी सी रियासत थी। न्यायप्रिय रानी के राज्य में प्रजा सुखी थी। अकबर की टेढ़ी नज़र से रानी की छोटी सी रियासत भी बच न सकी। अकबर अपनी बड़ी से फौज लेकर रानी के राज्य पर चढ़ आया। रानी के अनेक सैनिक अकबर की फौज देखकर उसका साथ छोड़ भाग खड़े हुए। पर फिर हिम्मत न हारी। युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए रानी तीर लगने से घायल हो गई। घायल रानी ने अपवित्र होने से अच्छा वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार किया। अपने हृदय में खंजर मारकर रानी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अकबर का रानी की रियासत पर अधिकार तो हो गया। मगर रानी की वीरता और साहस से उसके कठोर हृदय नहीं पिघला। अपने से कहीं कमजोर पर अत्याचार कर अकबर ने अपनी “महानता” को सिद्ध किया था[iii]।

न्यायकारी अकबर

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। दोनों ने अकबर के समक्ष विवाद सुलझाने का निवेदन किया। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया। और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला। फिर अकबर महान जोर से हंसा। अकबर के जीवनी लेखक के अनुसार अकबर ने इस संघर्ष में खूब आनंद लिया। इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ अकबर के इस कुकृत्य की आलोचना करते हुए 

उसकी इस “महानता” की भर्तसना करते है[iv]।

चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम

अकबर ने इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम अपने हाथों से अंजाम दिया था। चित्तोड़ के किले में 8000 वीर राजपूत योद्धा के साथ 40000 सहायक रुके हुए थे। लगातार संघर्ष के पश्चात भी अकबर को सफलता नहीं मिली। एक दिन अकबर ने किले की दीवार का निरिक्षण करते हुए एक प्रभावशाली पुरुष को देखा। अपनी बन्दुक का निशाना लगाकर अकबर ने गोली चला दी। वह वीर योद्धा जयमल थे। अकबर की गोली लगने से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। राजपूतों ने केसरिया बाना पहना। चित्तोड़ की किले से धुँए की लपटे दूर दूर तक उठने लगी। यह वीर क्षत्राणीयों के जौहर की लपटे थी। अकबर के जीवनी लेखक अबुल फ़ज़ल के अनुसार करीब 300 राजपूत औरतों ने आग में कूद कर अपने सतीत्व की रक्षा करी थी। राजपूतों की रक्षा पंक्ति को तोड़ पाने में असफल रहने पर अकबर ने पागल हाथी राजपूतों को कुचलने के लिए छोड़ दिए। तब कहीं वीर राजपूत झुंके थे। राजपूत सेना के संहार के पश्चात भी अकबर का दिल नहीं भरा और उसने अपनी दरियादिली का प्रदर्शन करते हुए किले के सहायकों के कत्लेआम का हुकुम दे दिया। इतिहासकार उस दिन मरने वालों की संख्या 30,000 लिखते हैं। बचे हुए लोगों को बंदी बना लिया गया। कत्लेआम के पश्चात वीर राजपूतों के शरीर से उतारे गए जनेऊ का भार 74 मन निकला था। इस कत्लेआम से अकबर ने अपने आपको “महान” सिद्ध किया था[v]।

शराब का शौक़ीन अकबर

सूरत की एक घटना का अबुल फजल ने अपने लेखों में वर्णन किया हैं। एक रात अकबर ने जम कर शराब पी। शराब के नशे में उसे शरारत सूझी और उसने दो राजपूतों को विपरीत दिशा से भाग कर वापिस आएंगे और मध्य में हथियार लेकर खड़े हुए व्यक्ति को स्पर्श करेंगे। जब अकबर की बारी आई तो नशे में वह एक तलवार को अपने शरीर में घोंपने ही वाला था तभी अपनी स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए राजा मान सिंह ने अपने पैर से तलवार को लात मार कर सरका दिया। अन्यथा बाबर के कुल के दीपक का वही अस्त हो गया होता। नशे में धूत अकबर ने इसे बदतमीजी समझ मान सिंह पर हमला बोल दिया और उसकी गर्दन पकड़ ली। मान सिंह के उस दिन प्राण निकल गए होते अगर मुजफ्फर ने अकबर की ऊँगली को मरोड़ कर उसे चोटिल न कर दिया होता। हालांकि कुछ दिनों में अकबर की ऊँगली पर लगी चोट ठीक हो गई। मजे अपने पूर्वजों की मर्यादा का पालन करते हुए "महान" अकबर ने यह सिद्ध कर दिया की वह तब तक पीता था जब तक उससे न संभला जाता था[vi]।

खूंखार अकबर

एक युद्ध से अकबर ने लौटकर हुसैन कुली खान द्वारा लाये गए युद्ध बंधकों को सजा सुनाई। मसूद हुसैन मिर्जा जिसकी आँखेँ सील दी गई थी की आँखें खोलने का आदेश देकर अकबर साक्षात पिशाच के समान बंधकों पर टूट पड़ा। उन्हें घोड़े,गधे और कुत्तों की खाल में लपेट कर घुमाना, उन पर मरते तक अत्याचार करना, हाथियों से कुचलवाना आदि अकबर के प्रिय दंड थे। निस्संदेह उसके इन विभित्स अत्याचारों में कहीं न कहीं उसके तातार पूर्वजों का खूंखार लहू बोलता था। जो उससे निश्चित रूप "महान" सिद्ध करता था[vii]।

अय्याश महान अकबर

अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था। वह एक "मीना बाजार" लगवाता था। उस बाजार में केवल महिलाओं का प्रवेश हो सकता था और केवल महिलाएं ही समान बेचती थी। अकबर छिप कर मीणा बाज़ार में आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था। डिंगल काव्य सुकवि बीकानेर के क्षत्रिय पृथ्वीराज उन दिनों दिल्ली में रहते थे। उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण देवी परम धार्मिक, हिन्दुत्वाभिमानी, पत्नीव्रता नारी थी। वह सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी। उसने अकबर के मीना बाजार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनीं। एक दिन वह वीरांगना कटार छिपाकर मीना बाजार जा पहुंची। धूर्त अकबर पास ही में एक परदे के पीछे बैठा हुआ आने-जाने वाली युवतियों को देख रहा था। अकबर की निगाह जैसे ही किरण देवी के सौन्दर्य पर पड़ी वह पागल हो उठा। अपनी सेविका को संकेत कर बोला "किसी भी तरह इस मृगनयनी को लेकर मेरे पास आओ मुंह मांगा इनाम मिलेगा।" किरण देवी बाजार की एक आभूषण की दुकान पर खड़ी कुछ कंगन देख रही थी। अकबर की सेविका वहां पहुंची। धीरे से बोली-"इस दुकान पर साधारण कंगन हैं। चलो, मैं आपको अच्छे कंगन दिखाऊंगी।" किरण देवी उसके पीछे-पीछे चल दी। उसे एक कमरे में ले गई।

पहले से छुपा अकबर उस कमरे में आ पहुंचा। पलक झपकते ही किरण देवी सब कुछ समझ गई। बोली "ओह मैं आज दिल्ली के बादशाह के सामने खड़ी हूं।" अकबर ने मीठी मीठी बातें कर जैसे ही हिन्दू ललना का हाथ पकड़ना चाहा कि उसने सिंहनी का रूप धारण कर, उसकी टांग में ऐसी लात मारी कि वह जमीन पर आ पड़ा। किरण देवी ने अकबर की छाती पर अपना पैर रखा और कटार हाथ में लेकर दहाड़ पड़ी-"कामी आज मैं तुझे हिन्दू ललनाओं की आबरू लूटने का मजा चखाये देती हूं। तेरा पेट फाड़कर रक्तपान करूंगी।"

धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"

किरण देवी बोली-"बादशाह अकबर, यह ध्यान रखना कि हिन्दू नारी का सतीत्व खेलने की नहीं उसके सामने सिर झुकाने की बात है।"

अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। उसने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी और मीना बाजार को सदा के लिए बंद करना स्वीकार किया। इस प्रकार से मीना बाजार के नाटक पर सदा सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था। भारत के शहंशाह अकबर हिन्दू ललना के पांव तले रुदते हुए अपनी महानता को सिद्ध कर रहा था[viii]।

एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।

ऐसे महान दादा के महान पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखे। इस काम में हम किसी हिन्दुवादी इतिहासकार के प्रमाण देते तो हम पर दोषारोपण लगता कि आप अकबर “महान” से चिढ़ते हैं। हमने प्रमाण रूप में अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा के आधार पर अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से सभी प्रमाण लिए हैं। यहाँ याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा यह प्रयास करते रहे कि इन्होने अकबर की प्रशंसा में अनेक अतिश्योक्ति पूर्ण बातें लिखी और अकबर की बहुत सी कमियां छुपाई। मगर अकबर के "महान" कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला आ जाता हैं।

अब भी अगर कोई अकबर को महान कहना चाहेगा तो उसे संतुष्ट करने के लिए महान की परिभाषा को ही बदलना पड़ेगा।

डॉ विवेक आर्य

[i] Akbar the Great Mogul- Vincent Smith page No 38-40
[ii] Ibid p.40
[iii] Ibid p.71
[iv] Ibid p.78,79
[v] Ibid p.89-91
[vi] Ibid p.89-91
[vii] Ibid p.116
[viii] Glimpses of glory by Santosh Shailja, Chap. Meena Bazar p.122-124

Thursday 26 January 2017

ओउम् यज्ञाग्नि से रोगों का नाश होता है

यज्ञ करने से, वातावरण में विचरण कर रहे तथा छुपे हुए रोग के कीट नष्ट हो जाते हैं। इन जीवों के नष्ट होने से, इस से उत्पन्न होने वाले रोग भी नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार जो शक्ति रोग पैदा करने वाली होती है, वह नष्ट होने से रोग भी नष्ट हो जाते हैं।इस पर मन्त्र प्रकाश डालते हुए कह रहा है कि - विश्वाअग्नेऽपदहारातीर्येभिस्तपोभिरदहोजरूथम्। प्रनिस्वरंचातयस्वामीवाम्॥ ऋ07.1.7 इस मन्त्र में प्रभु से प्रार्थना करते हुए यज्ञ की अग्नि को संबोधन किया गया है तथा प्रार्थना की गयी है कि १. यज्ञ से कष्टों का नाश मन्त्र उपदेश करते हुए कहता है कि हे यज्ञग्ने! आप ही अपनी तेज अग्नि के बल पर, तेज गर्मी के बल पर सब कष्टों को दूर करते हैं।

हम जानते हैं कि यज्ञ की अग्नि को तीव्र करने के लिए , अग्नि को प्रचंड करने के लिए इस में उतम घी तथा उतम औषधियों से युक्त सामग्री की आहुतियाँ दी जाती है| इन में पौष्टिकता होती है, यह सुगंध से भरपूर होती है, इस में उतम उतम रोग नाशक बूटियाँ डाली जाती हैं और इस के साथ ही साथ इसमें डाली जाने वाली घी व सामग्री में अग्नि को तीव्र करने की शक्ति भी होती है. यज्ञ करते समय हम कुछ वेद मन्त्रों का भी गायन करते हैं. यह मन्त्र गायन भी सुस्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते है. इस प्रकार मन्त्र के माध्यम से हम प्रभु से प्रार्थना है करते हैं कि हे प्रभु! इस वायुमण्ड्ल में जितने भी प्राणी हमें हानि देने वाले हैं, जितने भी प्राणी हमें रोग देने वाले हैं, उन्हें भस्म कर दो, नष्ट कर दो।, उन्हें अपनी अग्नि में भस्म कर दो। अर्थात् जब हम यज्ञ करते हैं तो इस में डाली जाने वाली सामग्री में एसे पदार्थ डाल कर इसे करते हैं, जिन की ज्वाला निकलने वाली गैसों से यह रोग के कीटाणु स्वयमेव ही नष्ट हो जाते हैं। यदि कोई कीटाणु बच भी जाता है तो यज्ञ की इस अग्नि में जल कर नष्ट हो जाता है।

 २. यज्ञ से तापक शक्ति का नाश हमारे अन्दर समय समय पर अनेक कारणों से रोगाणु पैदा होते रहते हैं. जब यह रोगाणु हमारे शरीर की शक्तियों से कहीं अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं. इन की शक्ति हमारे अन्दर की शक्तियों से अधिक हो जाती हैं तो इस का परिणाम जो हम जानते हैं वही होता है अर्थात् हम रुग्ण हो जाते हैं. हम जानते हैं कि शल्य सदा कमजोर पर अथवा शक्ति विहीन पर एसा भयंकर आक्रमण करता है , ( राक्षसी वृति के लोगों के सम्बन्ध में भी कुछ एसा ही कहा जाता है कि जब वह सामने वाले को कमजोर पाते हैं तो वह उस पर चारों और से एसा भयंकर आक्रमण करते हैं कि सामने वाला जब तक उसे कुछ समझ में आता है और वह संभलने की सोचता है तब तक वह राक्षसों से इस प्रकार घिर जाता है कि उससे निपट पाना उसके लिए कठिन हो जाता है , उनका प्रतिरोध उस की शक्ति में रहता ही नहीं द्य इस कारण वह या तो नष्ट हो जाता है और या फिर आत्म समर्पण कर देता है कि हमारा शारीर इस कष्ट से तप्त हो जाता है. कुछ ऐसी ही अवस्था शरीर में पल रहे रोगाणुओं की, शरीर में पल रहे शल्य की होती है. ज्यों ही यह शरीर को कमजोर पाते हैं तो वह इस शरीर पर एसा आक्रमण करते हैं कि हम संभल ही नहीं पाते.


 इनके दिए ताप से तप्त होकर हम स्वयं को शक्ति विहीन सा अनुभव करते हैं और शीघ्र ही शिथिल होकर बिस्तर को पकड़ लेते है. अनेक बार तो यह रोग हमारी मृत्यु का कारण भी बनते हैं. इसलिए रोग की जो तापक शक्ति होती है , उससे बचने के लिए जब हम यज्ञ करते हैं तो यज्ञ करते हुए इस के साथ हम यज्ञ देव से यह प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे अग्निदेव ! उस को तूं नष्ट करके हमें स्वस्थ कर अर्थात् हे यज्ञाग्नि इन रोगाणुओं की तापक शक्ति को नष्ट कर हमें स्वस्थ बना । इस सब का भाव यह है कि यह यज्ञ की अग्नि रोग की तापक शक्ति को नष्ट कर देता है। इस अग्नि के तेज से रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं तथा जो जन प्रतिदिन दो काल यज्ञ करते हैं अथवा जो लोग यज्ञ स्थल के समीप निवास करते हैं, यह यज्ञ की अग्नि उनके अन्दर बस रहे रोग के कीटाणुओ का भी नाश कर देती है। इस प्रकार उसके शरीर के अन्दर के कीटाणुओं के नष्ट होने से वह निरोग हो जाता है। इस यज्ञ से उस के अन्दर इतनी प्रतिरोधक शक्ति आ जाती है कि रोग के कीटाणु भयभीत हो कर इस शरीर से दूर भागने लगते हैं और अब रोग के यह कीटाणु किसी रोग की उत्पति के लिए यज्ञकर्ता पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं कर पाते। इससे धीर धीरे यह रोग ओझल ही हो जाता है। इस सब से यह तथ्य सामने आता है कि यज्ञ और इसकी अग्नि हमारे शरीर को सदा स्वस्थ रखने का एक बहुत बड़ा साधन है द्य स्वास्थ्य लाभ के लिए हम प्रतिदिन दो काल उतम सामग्रियों से यज्ञ करें. डा. अशोक आर्य

Tuesday 24 January 2017

चमार कोई नीच जाति नहीँ, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक है



डॉ विवेक आर्य 

चमार कोई नीच जाति नहीँ, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक जिन्होंने मुगलोँ का जुल्म सहा परन्तु धर्म न त्यागा आप जानकार हैरान हो सकते हैं कि भारत में जिस जाति चमार बोला जाता है वो असल में चंवरवंश की क्षत्रिय जाति है। यह खुलासा डॉक्टर विजय सोनकर की पुस्तक – “हिन्दू चर्ममारी जाति:एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास” में हुआ है। इस किताब में डॉ सोनकर ने लिखा है कि – “विदेशी विद्वान् कर्नल टॉड द्वारा पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” में चंवरवंश के बारे में बहुत विस्तार में लिखा गया है।”

डॉ सोनकर बताते हैं कि – “इतना ही नहीं बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस वंश का उल्लेख है। हिन्दू वर्ण व्यवस्था को क्रूर और भेद-भाव बनाने वाले हिन्दू नहीं, बल्कि विदेशी आक्रमणकारी थे!” जब भारत पर तुर्कियों का राज था, उस सदी में इस वंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था, उस समय उनके प्रतापी राजा थे चंवर सेन। इस राज परिवार के वैवाहिक सम्बन्ध बप्पा रावल के वंश के साथ थे। राणा सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी ने संत रैदासजी जो कि चंवरवंश के थे, उनको मेवाड़ का राजगुरु बनाया था। वे चित्तोड़ के किले में बाकायदा प्रार्थना करते थे। इस तरह आज के समाज में जिन्हें चमार बुलाया जाता है, उनका इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं है। डॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार प्राचीनकाल में ना तो यह शब्द पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है। ऋग्वेद में बुनकरों का उल्लेख तो है, पर वहाँ भी उन्हें चमार नहीं बल्कि तुतुवाय के नाम से सम्बोधित किया गया है। सोनकर कहते हैं कि चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था। ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।

लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया। उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा :- ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥” यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया। शीघ्र ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली को घेर लिया और सिकन्दर लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा। संत रविदास की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुई। वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी स्मृति आज भी हमें उनके आदर्शो पर चलने हेतु प्रेरित करती है, आज भी उनका जीवन हमारे समाज के लिए प्रासंगिक है। हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है। आज भारतीय अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर करते हैं, उनके कहे झूठ के चलते बस आपस में ही लड़ते रहते हैं। हिन्दू समाज को ऐसे सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाले इतिहासकारों और इनके द्वारा फैलाए गये वैमनस्य से अवगत होकर ऊपर उठाना चाहिए l सत्य तो यह है कि आज हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे। चंवर वंश के इन वीरों ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन विधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है। नोट :- हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है।

Sunday 22 January 2017

केवल जलीकट्टू का विरोध गलत!!

जल्लीकट्टू एक खेल है या धार्मिक आस्था से जुडी एक परम्परा का सवाल? पिछले कई दिनों से यह मामला उभरकर सामने आया है. दरअसल जल्लीकट्टू को धार्मिक आस्था से इस वजह से भी जोड़ा जा रहा है कि पोंगल त्योहार के दौरान यह खेल पिछले चार सौ वर्षो से खेला जाता रहा है. हो सकता है उस समय कोई और खेल न रहा हो अपने बल और पराक्रम को साबित करने के लिए इस खेल का आयोजन होता हो! पर आज ऐसा नहीं है आज के आधुनिक युग में सैंकड़ो खेल उभर कर सामने आये है जिन्हें बिना किसी हिंसा या चोट के खेला जाता है. परन्तु इस खेल की प्राचीनता को लेकर उभरे इस नये विवाद में राजनीतिक हस्तक्षेप से भी इंकार नहीं किया जा सकता. अक्सर हमारे देश में बहुतेरे फैसले जन भावनाओं को ध्यान में रखकर लिए जाते है.लेकिन पिछले कुछ समय में सबने देखा कि ज्यादतर फैसलों में सुप्रीम कोर्ट को विरोध का सामना ही करना पड़ा है चाहें उसमें जन्माष्ठमी की दही हांड़ी प्रतियोगिता हो या महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, केरल व गुजरात में परंपरागत बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता.

जल्लीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है. तमिलनाडु से सुप्रीम कोर्ट के वकील वी. सालियन के अनुसार ये 5000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है. प्राचीन काल में महिलाएं अपने वर को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थी. जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी हालाँकि इस तरह का खेल स्पेन में भी होता है जिसे बुल फाइट कहते हैं और वहां ये खेल काफी लोकप्रिय है. कई बार जलीकट्टू के इस खेल की तुलना स्पेन की बुलफाइटिंग से भी की जाती है लेकिन ये खेल स्पेन के खेल से काफी अलग है इसमें बैलों को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

2014 में जानवरों की सुरक्षा करने वाली संस्था पेटा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गयी. अदालत ने इस खेल पर पाबंदी लगाने का फैसला सुनाया. जलीकट्टू सामंती युग की एक परंपरा है जो न सिर्फ पशुओं बल्कि इसमें शामिल इंसानों के लिए भी घातक है पिछले दो दशक में करीब दो सौ लोगों ने इसमें अपनी जान गवां दी है. लेकिन परंपरा के नाम पर इसे आज भी ढोया जा रहा है. परन्तु यदि इसमें तमिल लोगों की राय माने तो वो कहते है कि पशु प्रेमी संस्था पेटा को परंपराओं के नाम पर पशुओं के प्रति क्रूरता और जगह क्यों दिखाई नहीं देती उनका साफ तौर पर इसका इशारा बकरीद पर होने वाले पशुओं के सामूहिक नरसंहार की ओर है.

प्रदर्शनकारियों की माने तो जल्लीकट्टू पर पाबंदी तमिलों की भावनाओं की अनदेखी है और इसे तमिल स्वाभिमान पर चोट के रूप में देखा जाना चाहिए. उनका कहना है कि क्या प्राचीन सांस्कृतिक त्योहार अब अदालतें तय करेंगी? तमिल समाज यह मानने के लिए तैयार है कि जिस चौखटे में और जिस रूपरेखा में अदालत उन्हें जल्लीकट्टू मनाने की इजाजत दे वे उसे स्वीकार करेंगे तो फिर इजाजत क्यों नहीं मिलती? हालाँकि इसे कुछ लोग उत्तर भारत बनाम दक्षिण की सांस्कृतिक जंग बनाने का विकृत प्रयास भी कर रहे है जो हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए अच्छी नहीं है. लेकिन इस सारे मामले में यह भी समझना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में क्या तमिल युवा बिना नेतृत्व, बिना किसी संगठन और बिना किसी राजनीतिक दल के हस्तक्षेप सड़कों पर उतर आए हैं?

जलीकट्टू हो या बकरीद, ताजिये हो या बली प्रथा ऐसी बहुतेरी प्रथाओं का चलन जब शुरू हुआ, तब हमारे जीवन मूल्य कुछ और थे. हमारे जीने का ढंग दूसरा था.आज हमारे रहन-सहन के तौर-तरीके में काफी परिवर्तन आया है. लेकिन हम आज भी अक्सर इनकी प्राचीनता को संस्कृति का नाम देकर बचाने की दुहाई देने लगते है. बल और पराक्रम दर्शाकर स्वंयवर रचा उससे जीवन संगनी हासिल करना पुराने समय की प्रथा थी. आज ऐसा नहीं है सोशल मीडिया से लेकर कार्यालयों में साथी महिला कर्मचारी से भी विवाह होते देखे जाते है. आमतौर पर बल से अपनी मादा हासिल करना सब जानवरों में देखा जाता है कि नर पशु अपनी मादा को रिझाने के लिए अपनी श्रेणी के अन्य नर पशुओं पर अपनी ताकत का हिंसक प्रदर्शन करते है.


समय के अनुसार मनुष्य समाज परिवर्तन करता आया है. उसी समाज के बुद्धिजीवी लोग अपनी कुप्रथाओ के विरुद्ध आवाज उठाने लगते है. सती प्रथा जैसी क्रूर प्रथा आज समाज से खत्म हो चुकी है. पेटा जैसी संस्था का आगे आना पशुओं के प्रति दया दिखाना जायज है और सम्मानीय भी लेकिन तमिल लोग इस संस्था की आलोचना करते हुए सवाल रख रहे है कि ईद पर पशुओं की कुर्बानी पर चुप रहते हैं, क्रिसमस पर टर्की नामक पक्षी को भूनकर खाने पर नहीं बोलते हैं और रेसकोर्स की घुड़दौड़ की अनदेखी करते हैं वे उनकी संस्कृति से जुड़े खेल उत्सव को कैसे बंद करा सकते हैंदेश के अन्य हिस्सों की तरह तमिलों के घरों में नंदी बैल पर समस्त शिव परिवार विराजित दिखाने वाले चित्र लगे रहते हैं. आम तमिलों का सवाल है कि क्या अब पेटा की याचिका पर शिवजी को नंदी से उतारा जाएगा, हो सकता है नंदी बैल को कष्ठ होता हो? और ऐसे चित्र बैलों पर अत्याचार की प्रेरणा देते हैं. वह सवाल उठा रहे है कि सर्वोच्च न्यायालय ने आतंकी याकूब के वकीलों की दलीलें सुनने आधी रात को भी दरवाजे खोल दिए थे, लेकिन एक सांस्कृतिक उत्सव पर पाबंदी की जल्द सुनवाई करने से मना कर दिया. क्या यह खेल एक आतंकवादी के हिंसक कारनामों से भी बुरा है? क्या पेटा बकरीद पर हिंसा के नाम पर अपील कर सकती है यदि नहीं तो फिर केवल जलीकट्टू का विरोध गलत है.....विनय आर्य 

Friday 20 January 2017

ज्योतिषी ने महिला से कहा- ब्राह्मण के साथ सोने पर दोष हो जाएंगे दूर

कर्म से ज्यादा भाग्य पर विश्वास जिस कारण आज अंधविश्वास एक बहुत बड़ा व्यापार बन गया है. व्यापार धन-सम्पत्ति तक सिमित रहता तो एक पल को इतना कष्ट नहीं होता किन्तु अब यह व्यापार चढ़ावे में जिस्म भी मांगने लगा है. शायद भगवान से ज्यादा ज्योतिषों पर विश्वास करने वालों को यह घटना सोचने पर मजबूर कर देगी कि ज्योतिष के लालच की यह लपलपाती जीभ किस अब बहु बेटियों की अस्मत तक पहुँच चुकी है. कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में कथित ज्योतिषी रामकृष्ण शर्मा ने एक महिला से कहा कि खुद पर से सारे दोष हटाने के लिए एक ब्राह्मण के साथ सोना होगा. महिला ने बताया कि उसने मुझसे मेरे कपडे़ उतारने को कहा ताकि वो कोई भभूत मेरी नाभि पर लगा सके. जिसके लिए मैंने मना कर दिया. मेरे मना करने पर उसने खुद से मेरे कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा. मैं वहां से बड़ी मुश्किल से भाग पाई.

यह कोई एक अकेली घटना नहीं है इससे पहले भी इस तरह के ऐसे बहुत सारे मामले लोगों की नजरों में आ चुके है. लेकिन ज्योतिषों का सामाजिक तिरस्कार करने के बावजूद लोग अभी भी इनसे काल्पनिक दोष दूर करने कतार में खड़े है. कुछ समय पहले कोलकाता प्रमोदगढ में एक ज्योतिषी भरतचंद्र मंडल को नौवी कक्षा की छात्रा से दुष्कर्म के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था. पीडिता बच्ची अपना भविष्यफल जानने पहुंची थी. साल 2016 आंध्रप्रदेश में एक परिवार ने ज्योतिषी के चक्कर में आकर अपनी प्रेग्नेंट बहू को ही जलाकर मारने की कोशिश की. दरअसल, वह महिला प्रेग्नेंट थी और ज्योतिष ने कहा था कि वह इस बार भी लड़की को ही जन्म देगी. इस बात पर ही परिवार ने महिला को जला दिया. मामला यही नहीं रुकता कई बार तो यह लोग मानवता को शर्मशार करने से भी बाज नहीं आते दिल्ली से सटे साहिबाबाद के राजेंद्र नगर में बच्चे के जन्म को लेकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी कि नवजात शिशु अपने पिता पर भारी पड़ेगा. यह उसके लिए अमंगल साबित होगा. पति ने पत्नी व शिशु को ही घर से बेघर कर दिया गया.

आखिर इस आधुनिक युग में भी यह कहानी कहाँ से शुरू कहा से होती है? सुबह जब हम सोकर उठते है तो तमाम न्यूज चैनल पर यह ज्योतिष बाबा बैठे मिलते है जो ग्रह, योग, मंगल अमंगल, आदि की बात करते हुए समाज में अंधविश्वास के बीज बोते मिल जायेंगे जिस कारण समाज मे व्याप्त अन्धविश्वास और भविष्य के प्रति अनिश्चितता की स्थिति के कारण ज्योतिष ने एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है इससे समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा है. आप अन्धविश्वास का जाल सुबह टी.वी चालू करे हर चैनल पर हर ज्योतिषी द्वारा भविष्यफल बताया जा रहा है क्या पता किसी का सही हो जाए! यही सोचकर लोग टोने टोटके याद करने लग जाते है. बिल्ली रास्ता काटे तो क्या करें कुत्ता कान खुजाये तो इस दोष से कैसे बचना है. छिपकली पूछ हिलाए तो कितना चढ़ावा चढ़ाये आदि-आदि किस्म का प्रोपगेंडा चलाया जा रहा है.

इतने मे अखबार भी आ ही जाएगा अब उसमे सबसे पहले अन्धविश्वास वाला पन्ना ही खोले और राशिफल रट ले. बच्चा स्कुल जाता है तो उसके कमरे की दिशा बताई जा रही है.पति की कारोबार यदि किसी वजह से कम हो गया तो उसके लिए अलग से टोटके के प्रावधान बताये जा रहे है. हनुमान यंत्र, लक्ष्मी यंत्र, फलाना यंत्र ढिमका यंत्र घर रखने से सारे क्लेश दूर करने की बात बताई जा रही है. कार में आगे फटा हुआ जूता लटका लीजिये अन्दर नीबूं बस वही आपकी कार को सही रखेगा. कार के अन्दर दुर्घटना नाशक यन्त्र लगवा ही लीजीए फिर कितनी भी रफ्तार पर चलाए कहीं भी मोङ दे सवाल ही नहीं कि कुछ हो जाए. अपने दिमाग का प्रयोग नहीं करना चाहिए बहुत बुरी बात होती है. सपने मे यदि सांप गधा कबूतर या कुत्ता आदि दिख जाए तो अगली सुबह ज्योतिषी के द्वार पर पहुंच जाए उपाय पूछने. ध्यान रहे जेब भरकर जाये खाली जेब वाले की तो यह लोग शक्ल तक नहीं देखते कुंडली जाये भाड़ में.

इसके बाद अपने मित्र समूह में बैठे और इन लोगों का विज्ञापन चालू कर दे कि फलाने ज्योतिष को हाथ दिखाए तो सब बता देता है. ज्योतिषी ने कहा नौकरी नहीं मिलेगी तो नहीं मिली, सन्तान लङका होगा तो वही हुआ. कुछ इस तरह इनके मंगल गीत गाते लोग मिल जायेंगे! सच तो यह है कि अन्धविश्वास का व्यापार सौ प्रतिशत लाभ वाला व्यापार है निवेश बस 50 रूपये की किताब ले आये और इस अन्धविश्वास की दुनिया में आपका प्रवेश. भारत जैसे अन्धविश्वासी जनसंख्या वाले देश मे व्यक्ति कितनी भी उन्नति कर ले कितने ही शिक्षित क्यों न हो जाए लेकिन यहां पर ज्योतिष एक ऐसा व्यवसाय है जिसमे कभी हानि की संभावना ही नही है वैश्विक मंदी मे भी ज्योतिष के धंधे मे मंदी नहीं आती है बल्कि उस समय पर तो ज्योतिष का व्यावसाय अपने चरम पर होता है प्रत्येक व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए ग्रहों नक्षत्रों को टोटके कर प्रसन्न करने के लिए ज्योतिषी की तिजोरी अन्य दिनों की अपेक्षा और अधिक भरते है. अन्धविश्वास के कारण ही भविष्य बताने, तकदीर बदलने वालों के धन्धे मे चार चांद लग गए है पर इनके चक्कर में आकर कितने बर्बाद होकर मर गये किसी को नहीं पता न कोई सरकारी आंकड़ा.

माँ ज्योतिष से पूछकर अपने काम कर रही है, बाप कारोबार या नौकरी ज्योतिष के बताये रास्ते पर कर रहा है और बेटे-बेटी को कह रहे है पढ़ ले बेटा! भला वो बच्चे क्यों पढेंगे? वो भी ज्योतिष से कुछ रूपये देकर सारे दोष दूर कर लेंगे, सरकार के अन्धविश्वास के प्रति उदासीन रवैये के कारण अन्धविश्वास से भरपूर कार्यक्रमों की संख्या बढती जा रही है जिसके कारण युवाओं का ज्योतिष के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है और वह कर्म के महत्व को न समझकर ग्रहों नक्षत्रों मे अपने भविष्य की रुपरेखा तलाश रहें है इसी कारण से भविष्य बताने, भाग्य बदलने वाले आज हर गली हर नुक्कङ पर अपनी दुकान सजाए बैठे है समाज का कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो इन भाग्य बदलने वालो के पास न जाता हो. अच्छे-अच्छे शिक्षित व्यक्ति भी इन तकदीर बदलने वालों के पास कतार मे खड़े हुए देखा जा सकता है उनमे से कोई किसी फुटपाथ पर रखे हुए तोते से अपना भविष्य पूछते नजर आते है तो कोई वातानुकूलित कमरे मे बैठे हुए मदारी से. कोई सौतन से छुटकारा दिला रहा है कोई 5 मिनट में मनचाही लड़की पटाने के नाम पर युवाओं को बरगला रहा है. जमीन जायदाद का झगडा हो या परीक्षा में सौ फीसदी अंक सब का समाधान ज्योतिष बाबा होकर रह गये.


आमतौर पर मनुष्य प्राणी जगत में सबसे बुद्धिवान प्राणियों की सूची में आता है लेकिन आज पढ़े लिखे अधिकारी नेता, अभिनेता क्रिकेटर अनहोनी की आशंका से पशु बनकर रह गये. पशु भी कहना पशुओं का अपमान है क्योंकि पशु अपनी दिनचर्या में अपने दिमाग का इस्तेमाल करते है. यह लोग तो दुसरे के बताये रास्ते पर चल रहे है. जिसका फायदा यह लोग बखूबी उठा रहे है किसी से धन बटोरकर किसी से जिस्म की डिमांड कर क्योंकि यह जानते है जो लोग इनके पास आते है इसका मतलब उनके पास खुद का विवेक नहीं होता है....चित्र साभार गूगल लेख राजीव चौधरी 

Monday 16 January 2017

कुरान ने कैसे बचाई जान?

मीडिया को विश्व का सबसे बोद्धिक वर्ग समझा जाता है जो समस्त समाज को आगे लेकर चलता है उसका घटनाओं से परिचय कराता है. घटनाओं का तार्किक विश्लेषण करता है और समाज के सामने उसका सच रखता है. लेकिन कुछ खबरे ऐसी भी आती है जब मीडियाकर्मियों की बुद्धि पर तरस आता है. अभी कई रोज पहले बीबीसी समेत कई मीडिया चैनलों ने एक खबर चला रखी है कि कुरान ने बचाई हिन्दू की जानज्ञात हो बांग्लादेश में ढाका के एक रेस्तरां होली आर्टिजन बेकरी में पिछले साल एक जुलाई को हुए चरमपंथी हमले में 29 लोग मारे गए थे. आतंकियों ने उन लोगों की गर्दन चाकू से रेत डाली थी जिन्हें कुरान की आयतें नहीं आती थी जिनमें ज्यादातर जापान और इटली के पर्यटक थे लेकिन इसी होटल में काम करने वाले एक कर्मचारी शिशिर सरकार जो हिन्दू था उसने बताया कि आतंकियों ने मुझे कुरान की आयतें सुनाने को कहा. मैं आराम से खाना बनाते हुए कुरान की आयतें सुनाने लगा. मेरे बहुत सारे मुसलमान दोस्त रहे हैं. इसलिए मैं कुरान के कुछ सूरा जानता हूं लेकिन फिर भी मैं डरा हुआ था. मैं सोच रहा था कि क्या वो मेरी प्रतिक्रिया से संतुष्ट हैं? ये रमजान का महीना था इसलिए सुबह से पहले मुस्लिम बंधकों को सहरी खाने को दिया गया. मैं बहुत डरा हुआ था. डर के मारे मैं खाना निगल नहीं पा रहा था. लेकिन तभी मैंने सोचा कि अगर मैंने नहीं खाया तो उन्हें शक हो जाएगा कि मैं मुसलमान नहीं हूं. इसके बाद उन्होंने उन लोगों की गर्दन रेत डाली जिन्हें कुरान नहीं आती थी.

बस यही से सवाल खड़ा होता है कि यदि एक की जान बचने का कारण तो कुरान बनी तो उन 29 लोगों की जान जाने का कारण क्या बना जिन्हें कुरान नहीं आती थी? क्या मीडिया में साहस है जो इस खबर को तरह लिख दे कि कुरान ने ली 29 मासूमों की जान? आखिर मीडिया इस खबर से क्या जताना चाह रही है शायद यही कि यदि जिन्दा रहना है तो आयत याद करना जरूरी है? यदि ऐसा है तो मीडिया से कुछ सवाल इसी धर्मनिपेक्षता के दायरे में रहकर कर रहा हूँ ढाका में मारे गये 29 लोग यदि कुरान सुना देते तो क्या वो बच जाते? शायद हाँ? पर वो मासूम कुरान की आयतें नहीं सुना पाए इस कारण उनकी हत्या हुई आखिर उनकी हत्या का जिम्मेदार कौन? कुरान या आतंकी? हाँ यदि ऐसा होता की आतंकी हमला करते समय कुरान पढ़ने लगे थे पढ़ते-पढ़ते अपने किये पर शर्मिंदा होकर किसी की जान नही ली और बाकि बंधकों को रिहा कर दिया तो में समझता कुरान ने बचाई जान. पर जब भी इस प्रकार की चर्चा होती है तो आतंक को पंथनिरपेक्ष बताया जाता है आतंकी का कोई मजहब नहीं होता यह साबित किये जाने का प्रयास किया जाता है. मुझे नहीं पता इमाम हुसैन की गर्दन पर इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने विष भरी तलवार से क्यों वार किया था. क्या कोई बता सकता है कि इनमे से मृतक या हत्यारे दोनों में से किसने कुरान नहीं पढ़ी थी?  

इस सारे मामले को समझने के लिए यदि अमेरिका के एक इतिहासकार, विचारक एवं समीक्षक डैनियल पाइप्स की माने तो वो लिखते है कि इस्लामवादी तीन प्रकार से विभाजित किये जा सकते हैं एक सलाफी, जो कि सलाफ के काल के प्रति श्रद्धा रखते हैं (मुसलमानों की पहली तीन पीढी), इनका लक्ष्य इसकी पुनर्स्थापना है और इसके लिये ये अरबी वस्त्र पहनते हैं, प्राचीन परम्पराओं को अपनाते हैं तथा एक मध्ययुगीन मनसिकता अपनाते हैं जिसके चलते मजहब आधारित हिंसा का वातावरण बनता है. दूसरा मुस्लिम ब्रदर और उसके जैसे जिनकी आकाँक्षा आधुनिकता के इस्लामी संस्करण की है, यह परिस्थिति पर निर्भर करता है कि वे हिंसक आधार पर कार्य करते हैं या नहीं. तीसरा विधि आधारित इस्लामवादी जो कि व्यवस्था के अंदर कार्य करते हैं, राजनीतिक, मीडिया, विधिक तथा शिक्षा गतिविधियों में लिप्त होते हैं और परिभाषा की दृष्टि से वे हिंसा में शामिल नहीं होते. लेकिन यह लोग मीडिया आदि के मंचो से उपरोक्त तीनों का समर्थन करते दिख जायेंगे. उनके मतभेद वास्तविक हैं परंतु वे एक, दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं, सभी इस्लामवादी एक ही दिशा में बढते हैं और वह है पूरी तरह और भयानक रूप से इस्लामी कानून की स्थापना और इस लक्ष्य में परस्पर सहायक होते हैं.


यह लोग बड़ी सावधानी से दुसरे से खिलाफ की खबरें कुछ तरीके से रखते है मानों वो घटना उसके पक्ष में हुई हो और यह आज से नही पुराना रिवाज है औरंगजेब के बारे में इनसे सुन लीजिये कि क्या गजब का बादशाह था जनाब अपनी टोपियाँ खुद सीलता था. उदहारण के तौर पर अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद इस्लाम के तीसरे पायदान यानि के मीडिया और उसके बोद्धिक जगत ने इसे बिन-लादेन की व्यक्तिगत शत्रुता बताया था. मुम्बई में हुए सीरियल बम विस्फोट जिनमे सैकड़ों लोग मरे और हजारों जख्मी थे को 1992 की बावरी मस्जिद से दाउद इब्राहीम का गुस्सा बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया था. पिछले वर्ष नीस फ्रांस की घटना जिसमें ट्रक द्वारा सड़क पर 70 से ज्यादा लोगों की हत्या की गयी थे इसके अपराधी को सनकी करार दे दिया गया था. इसी वर्ष अमेरिका के एक पब में पचास के करीब लोगों की हत्या करने वाले को यह कहकर बचाया गया था कि वह समलेंगिकता का विरोधी है जिस कारण उसने इस घटना को अंजाम दिया. क्या मीडिया आतंकियों के प्रति मुस्लिम व अन्य लोगों के मन में हमदर्दी पैदा करने का कार्य कर रहा है? उपरोक्त सभी घटनाओं और ढाका हमले की इस तकरीर को सुनकर क्या ऐसा नहीं लगता जैसे हत्या करने वाले बेहद रहमदिल हो वो कुरान के लिए कार्य कर रहे हो? आखिर क्यों इस तरह की निंदा की जाने वाली घटनाओं को मानवता के विपरीत हुई घटनाओं को हमें ही कौनसे अंदाज में परोसा जा रहा है. यह सोचना अतिआवश्यक है....राजीव चौधरी 


सैनिक का थाल या गंभीर सवाल?

बीएसएफ के एक जवान तेज बहादुर यादव के विडियो जारी करके घटिया खाना दिए जाने और अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाया जिसके बाद एक-एक कर कई जवान अपनी परेशानी लेकर सामने आये. जिसके बाद बाद देश में एक बहस शुरू हो गई है. क्या सीमा पर जवानों को भरपेट खाना मिलता है या नहीं? क्या सैनिक अफसर शाही से त्रस्त है? आदि-आदि कई सवाल सोशल मीडिया के मध्यम से लोगों तक आये. इसमें एक तरफ जहाँ कुछ लोगों ने दावा किया है कि कुछ अफसर राशन और अन्य चीजें गांवों में आधी कीमत पर बेच देते हैं, वहीं कुछ पूर्व सैनिकों ने खराब खाना परोसे जाने की खबर को खारिज किया है. हालाँकि पिछले दिनों केग की एक रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई थी कि कई जगह देश के सैनिक खाने की क्वालिटी, मात्रा और स्वाद से संतुष्ट नहीं है. जबकि अन्य जगह तैनात कुछ जवान कह रहे है कि हो सकता है कि यादव के आरोप उनके निजी पसंद पर आधारित हों. हमारे मेस का खाना एवरेज है, लेकिन इतना भी बुरा नहीं जितना कि तेज बहादुर बता रहे हैं. इंटरनैशनल बॉर्डर पर तैनाती की तुलना में लाइन ऑफ कंट्रोल पर सेवाएं देना बेहद मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि मौसम और इलाका, दोनों ही चुनौतियां पैदा करते हैं. फिर भी राशन सभी को मिलता है.अच्छी क्वॉलिटी का यह राशन अच्छी मात्रा और विकल्पों के तौर पर उपलब्ध होता है.

जवान के द्वारा पोस्ट की गयी इस वीडियो को करीब पोने दो लाख लोग शेयर कर चुके है जिसे करीब 31 लाख लोगों ने देखा. वीडियो को देखने के बाद न्यूज चैनल और सोशल मीडिया के जरिये सेना के लिए काफी संजीदगी लोगों के अन्दर दिखाई दे रही है. जो होनी भी चाहिए आखिर गर्मी, धूप, बरसात हो या कड़ाके की ठण्ड जिस मुस्तेदी से जवान अपनी ड्यूटी कर देश की सीमओं की सुरक्षा कर रहे है यदि उन्हें ठीक से रोटी भी नसीब नहीं होगी तो फिर हमारा विश्व की सुपरपावर बनने का सपना बेमानी सा लगता है. क्योंकि सीमा पर जवान और खेत में किसान किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है. जवान ने जिस तरह इस वीडियो में कहा कि इसके बाद मैं जीवित रहूँ या ना रहूँ लेकिन मेरी बात देश के सिस्टम के खिलाफ उठनी चाहिए. उपरोक्त कथन भी लोगों की संवेदना को झिंझोड़ता सा नजर आया. हालाँकि बीएसएफ ने जवान पर इसके उलट गंभीर आरोप लगाते हुए सफाई देते हुए कहा, कि जवान तेजप्रताप की मानसिक हालत ठीक नहीं है वो अक्सर शराबखोरी, बड़े अधिकारियों के साथ खराब व्यवहार के आचरण से जाना जाता रहा है. वर्ष 2010 में तो एक उच्च अधिकारी को बन्दुक दिखाने के जुर्म में उसे 90 दिनों की जेल भी हो चुकी है. बीएसएफ और जवान तेज बहादुर यादव के आरोप-प्रत्यारोप झूटे है या सच्चे यह तो अभी कहा नही जा सकता लेकिन इस मामले की केन्द्रीय ग्रहमंत्रालय द्वारा निष्पक्ष जाँच भी होनी चाहिए.

एक ओर सीमा सुरक्षा बल के जवान तेजबहादुर ने सेना में व्यापात भ्रष्ट्राचार को उजागर करने का दावा किया है. जबकि कुछ लोग इसे जवान की महज नाराजगी बता रहे है. पर इस बहस में यह सवाल जरुर उठना लाजिमी है कि क्या सेना अंदरूनी रूप से भ्रष्ट्राचार से मुक्त है या नहीं? यदि देश की आजादी के बाद तुरंत हुए जीप घोटाले को अलग भी रख दे तो कारगिल युद्ध में शहीद सैनिको के लिए ताबूत में भी घोटाला सामने आया था. 2007 में लद्दाख में मीट घोटाला और 2006-07 में ही अंडा और शराब घोटाला सामने आया था. एक अन्य राशन घोटाले में लेफ्टिनेंट जनरल एस. के साहनी को दोषी पाए जाने के बाद जेल भेजा गया था. इससे साफ जाहिर होता है कि सेना और अर्धसैनिक बलों के अन्दर भ्रष्ट्राचार की जड़ें काफी हद तक समाई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक सैनिक के लिए हर महीने 2905 का भोजन भत्ता सरकार की ओर से देय होता है हर वर्ष सेना तकरीबन 1440 करोड़ रूपये का राशन जवानों के लिए खरीदती है. सैनिको को मौसम के हिसाब से पुष्ट आहार सरकार जारी करती है लेकिन इसके बाद भी भोजन की शिकायत आती है यह कारण भी जवानों के सामने स्पष्ट होने चाहिए.

दरअसल भ्रष्ट्राचार का यह कोई अकेला मामला नहीं है समय समय पर यहाँ इस तरह के मामले उठते रहे है यदि खाने-पीने के मामले को ही ले लिया जाये तो सरकारी केंटिन हो या सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील अक्सर शिकायते सुनने को मिल ही जाती है. अभी हाल में नोटबंदी के दौरान सबने देखा था किस तरह काले धन के खिलाफ लागू हुई मुहीम में कुछ बेंको द्वारा काले धन को सफेद करने का कार्य लोगों के सामने आया था. यह मानव स्वभाव होता है कि किसी भी कार्य को व्यक्ति कम से कम कष्ट उठाकर प्राप्त कर लेना चाहता है. वह हर कार्य के लिए एक छोटा और सुगम रास्ता खोजने का प्रयास करता है. इसके लिए दो रास्ते हो सकते हैं३ एक रास्ता नैतिकता का हो सकता है जो लम्बा और कष्टप्रद भी हो सकता है और दूसरा रास्ता है छोटा किन्तु अनैतिक रास्ता. लोग अपने लाभ के लिए जो छोटा रास्ता चुनते हैं उससे खुद तो भ्रष्ट होते ही हैं दूसरों को भी भ्रष्ट बनने मे बढ़ावा देते हैं.

कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जहाँ मनुष्य को दबाव वश भ्रष्टाचार करना और सहन करना पड़ता है. इस तरह का भ्रष्टाचार सरकारी विभागों मे बहुतायत से दिखता है. वह चाह कर भी नैतिकता के रास्ते पर बना नहीं रह पाता है क्योंकि उसके पास भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए अधिकार सीमित और प्रक्रिया जटिल होती है. इस सैनिक के दावे में कितना सच है कितना झूठ इसकी अभी कोई अधिकारिक पुष्ठी नहीं हुई किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई मामला ऐसा हुआ ही न हो, एक कहावत है जहाँ आग लगी होती है धुँआ वहीं से निकलता है. सरकार को चाहिए इस मामले को यही दबाने के बजाय इस तवरित, उचित  और निष्पक्ष कारवाही करें. क्योंकि जवान किसी सरकार पर नहीं बल्कि कुछेक उच्च अधिकारियों पर आरोप लगा रहा है सरकार को सोचना चाहिए एक सिपाही देश के दुश्मन के तो छक्के छुड़ा सकता है लेकिन भूख के नहीं!!...राजीव चौधरी 


Thursday 12 January 2017

हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक क्यों हो रहे है?

मेरे मित्र ने एक प्रश्न पूछा। हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे है? इसका मुख्य कारण क्या है? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती?
यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न था। भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक मुझे यह समस्या दिखी। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है।  अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।
हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने के मुख्य चार कारण है।
1. हिन्दू समाज के धर्मगुरु में दूरदृष्टि की कमी होना है।
2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है। 
3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है।
4. हिंदुओं में संगठन का अभाव



1. हिन्दू समाज के धर्मगुरु में दूरदृष्टि की कमी होना है।
हिन्दू समाज के धर्मगुरु अपने मठ बनाने में, धन जोड़ने में, पाखंड और अन्धविश्वास फैलाने में अधिक रूचि रखते है।  हिन्दू समाज के युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण,लव जिहाद, नशा, भोगवाद,चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं। शायद ही कोई हिन्दू धर्मगुरु इन समस्याओं के निवारण पर ध्यान देता हैं। युवाओं की धर्म के प्रति बेरुखी का एक अन्य कारण उन्हें किसी भी धर्मगुरु द्वारा उचित मार्गदर्शन नहीं मिलना हैं। हिन्दू धर्मगुरु ज्यादा से ज्यादा करोड़ो एकत्र कर कोई बड़ा मंदिर बने लेंगे , अथवा कोई सत्संग कर लेंगे। इससे आगे समाज को दिशा निर्देश देने में उनकी कोई योजना नहीं दिखती।
2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है।
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है।  आशाराम बापू, शंकराचार्य का जेल भेजना, नित्यानंद की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे तथाकथित धर्मगुरुओं के कारनामों को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता हैं। जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलेंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई  आदि  अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।  ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है।  हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है।  वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है  तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है।  इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है।
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मि;मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है।  इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है।  एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणम  की हिंदुओं के देश में हिंदुओं के अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है।  जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है।  ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गोरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है।  इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है। 

4. हिंदुओं में संगठन का अभाव
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है।  इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत विभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम  आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पंहुचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मुर्ख सनातन आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर साईं बाबा और चाँद मुहम्मद की कब्रों पर शिरडी जाकर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानिया और मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त साईं बाबा में मुझे कुछ नहीं दीखता। मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है।  अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।   
इस उत्तर को पढ़कर पाठक अपने चारों और भ्रमित हो रहे हिन्दू युवाओं को बचाने का प्रयास करेगे। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है। इस कार्य को करने के लिए स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश सबसे अनुपम ग्रन्थ है।  इसके स्वाध्याय से आप युवाओं को तार्किक रूप से संतुष्ट कर धर्मशील बना सकते है।
डॉ विवेक आर्य


(सलग्न चित्र में एक सन्यासी नामधारी हिन्दू बाबा को दिखाया जा रहा है। यह व्यक्ति बिग बॉस में एक अर्धनग्न मॉडल के साथ स्विमिंग पुल में ड्रामा कर रहा है।  इसकी इस हरकत से हिन्दू धर्म का न केवल मज़ाक उड़ रहा है अपितु हिन्दू युवाओं को यह प्रतीत होता है कि सभी हिन्दू बाबा ऐसे ही फालतू कार्य करते हैं। इस प्रकार के कार्यों से हिन्दू युवाओं में नास्तिकता को बढ़ावा मिलता है।)