Friday 21 April 2017

केरल वेद महामंदिर का उद्घाटन

ईश्वर की कृपा से, आर्य समाज के प्रयास से, आदि शंकराचार्य की भूमि में, आचार्य एम. आर. राजेश के सानिध्य में और महादानी महाशय धर्मपाल  की सहायता से दक्षिण भारत के प्रान्त केरल में वैदिक धर्म की जड़ों को वेद मंत्रां से सींचा गया। महाशय धर्मपाल जी की उपस्थिति में वेद के मन्त्रों के साथ यज्ञ द्वारा यह पावन कार्य  शुरू हुआ। वेद रक्षा यानि ज्ञान रक्षा, संस्कार रक्षा, जीवन रक्षा, संस्कृति की रक्षा के साथ, संसार रक्षा है। मानव मूल्यों को बचाने के लिए ‘‘महाशय धर्मपाल एम.डी.एच.वेद रिसर्च फाउंडेशन’’ का उद्घाटन शुद्ध भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक तरीके से आयोजित हुआ। जैसे-जैसे सूर्य उदय हो रहा था वैसे-वैसे हजारों की संख्या में सड़कों पर केरलवासी अपने हाथों में हवन कुंड आदि लेकर वेद रिसर्च संस्थान की ओर आ रहे थे। जहाँ तक नज़र जाती पुरुष कटी वस्त्र धारण किये और महिला साड़ी पहने शुद्ध भारतीय संस्कृति में रची बसी नजर आती। हर किसी का मन और भाव हर्ष आस्था में डूबा दिखाई पड़ रहा था। कल तक जिन सड़कों पर अन्य मजहबी सन्देश के बड़े-बड़े होर्डिंग होते थे वहां-वहां स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के चित्रों के साथ महाशय धर्मपाल वेद रिसर्च संस्थान के होर्डिंग बैनर नजर आ रहे थे।


धार्मिक असंतुलन से जूझते केरल जैसे प्रान्त में यह कार्य अनुकरणीय था। इस अवसर पर आचार्य एम. आर. राजेश ने बोलते हुए कहा कि 20 वर्ष पहले मेरे और केरल के पास कुछ नहीं था। वेदों  को  जीवन में उतारने के लिए कहा जाये यह सोचना पड़ता था। वेद कौन पढ़े? महिला या पुरुष? यह भी सोचना पड़ता था! हमारे सामने वेदों को गलत तरीकों से परोसा जा रहा था। गौ मांस भक्षण को गौरव बताया जा रहा था। जिस कारण यहाँ बीफ फेस्टिवल तक का आयोजन किया गया। हमने कोने-कोने से आचार्य, आर्य विद्वानों को बुलाया। हमने इसका विरोध कर बताया की आप सैद्धान्तिक रूप से गलत हैं। आज वेद का शुद्ध रूप हमारे पास है अब इस वेद रिसर्च फाउंडेशन की मदद से भारत के कोने-कोने से आर्ष विद्वानों को बुलाकर धर्म-अधर्म पर एक मानसिक कुरुक्षेत्र होगा, जो लोग मीडिया के माध्यम से मनुस्मृति और वेदों की गलत व्याख्या कर भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक और भौगोलिक टुकड़े करना चाहते हैं हम आदि शंकराचार्य की इस पावन भूमि केरला से उन्हें सन्देश देते हुए कहते हैं कि आर्य समाज उनका उद्देश्य पूरा नहीं होने देगा।


जिस केरल की भूमि में सैकड़ों वर्ष पहले कभी घर-घर में वेद के मन्त्र गूंजते थे लेकिन आज जब यहाँ यह पूछा जाता था कि हमारे ग्रन्थ क्या हैं तो लोग मौन हो जाते हैं। एक ईसाई नन बाइबल पढ़ती है, मौलवियों को कुरान पढ़ाया जाता है लेकिन दुःख का विषय यह कि हमारे आचार्यों को वेद नहीं पढ़ाया जाता। चर्चों में बाईबल मिलेगी, मस्जिदों में कुरान लेकिन हमारे मंदिरों में वेद क्यों नहीं हैं? यह प्रश्न रखते हुए आचार्य एम. आर राजेश ने कहा मैंने स्वामी दयानन्द जी को पढ़ा, आर्य समाज के बारे में जाना जिस कारण आज इस केरल की भूमि पर आर्य समाज के सहयोग से 3 हजार से ज्यादा लोग एक साथ स्त्री और पुरुष बिना लिंग भेदभाव के, बिना जातीय भेदभाव के वेद पढ़कर यज्ञ कर रहे हैं। आर्य समाज के कारण ही आदि शंकराचार्य की इस भूमि पर आज पंच महायज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, देव यज्ञ नित्य कर्म बन सका है।

महर्षि दयानन्द जी की पुस्तक पढ़कर आज मैं वेद प्रचार कर रहा हूँ। मैंने कई साल यह सोचा कि कैसे केरल का सारा समुदाय एक होकर बिना जातीय भेदभाव के यज्ञ करे, कैसे ये छुआछूत मिटे तब मैंने स्वामी देव दयानन्द को जाना। आधुनिक भारत के इस जनक को पढ़ा समझा और इस कारण आज यहाँ 3 हजार लोगों की उपस्थिति में गर्व के साथ यह कहना चाहता हूँ कि महाशय धर्मपाल जी ने इस देव भूमि को पुनः जीवन दान दे दिया। उन्होंने करोड़ों रुपये की लागत से यह संस्थान परिवार के लिए नहीं अपितु वेद प्रचार के लिए दान कर दिया। इसी के साथ केरल के मनोरम मौसम में हजारों लोगों के कंठ से एक साथ, एक स्वर में वेद मंत्रों से केरल का कोझीकोड गूंज उठा।


2 अप्रैल रविवार का दिन महाशय धर्मपाल जी के द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ ही आर्य समाज के इतिहास का एक स्वर्णिम दिन बन गया। महाशय जी ने यह संस्थान वेदों के कार्य के लिए वैदिक धर्म के हाथों में सौंपते हुए कहा कि दक्षिण भारत और उत्तर भारत का मिलन सिर्फ वेदों से होगा। इस अवसर पर महाशय की पुत्रवधु ज्योति गुलाटी ने हर्ष के साथ सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि हमें खुशी है कि परमात्मा की कृपा से हमारे परिवार को सेवा करने यह शुभ अवसर प्राप्त हुआ, राजेश जी और आर्य समाज को धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा वेद ही हमारे मूल ग्रन्थ हैं हमें उम्मीद है यह वैदिक रिसर्च फाउन्डेशन लोगों को एक साथ जोड़कर उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु का काम करेगा। इस अवसर पर महाशय जी की पोतियां हिरण्या और वान्या ने मंच से बोलते हुए महाशय जी का आभार व्यक्त करते हुए कहा हमें खुशी है कि हम इस वैदिक इतिहास का हिस्सा बने। 

सीकर राजस्थान से सांसद स्वामी सुमेधानंद जी ने कार्यक्रम में पहुंचकर इसकी शोभा बढ़ाते हुए कहा कि कालीकट के काकोड़ी गाँव में आज )षि दयानन्द के सपने का उदय हो रहा है। आज हजारों लोगों की उपस्थिति देखकर मुझे आदि शंकराचार्य की इस पावन धरा पर दयानन्द का सपना उतरता दिखाई दे रहा है। उन्होंने आगे कहा कि वैदिक संस्कृति हमारी जड़ है, पेड़ से फल-फूल तोड़ने पर फिर आ जाते हैं, शाखाओं को काटने पर फिर आ जाती हैं किन्तु जड़ काटने पर वृक्ष फिर नहीं पनपता इसी तरह वैदिक संस्कृति हमारी जड़ है और वेद ईश्वर की वाणी है जैसे सूर्य का प्रकाश सबके लिए है इसी तरह आत्मा को पवित्र करने के लिए वेद की वाणी भी सबके लिए है।

इस पावन अवसर पर श्री प्रकाश आर्य ने अपने उद्बोधन में वैदिक संस्कृति को महान और मनुष्य के लिए कल्याणकारी बताते हुए कहा कि समुद्र में जल फेंकने से कोई लाभ नहीं होता। जल को हमेशा सूखी जमीन ग्रहण करती है महाशय जी ने केरल की इस भूमि पर अपने दान द्वारा वैदिक वर्षा कर इस स्थान को देव भूमि बना दिया। आचार्य राजेश के संकल्प के कारण आज यहाँ धर्म प्रचार का कार्य संभव हो सका। वेद ही सनातन धर्म का मूल है जिसमें सच्चा ज्ञान निहित है। उन्होंने आर्यसमाज के नियम का हवाला देते हुए कहा कि संसार का उपकार करना ही आर्य समाज का परम धर्म है। मनुष्य के ज्ञान से पृथ्वी पर शांति स्थापित नहीं हो सकती। शांति होगी तो सिर्फ और सिर्फ वेद के ज्ञान से क्योंकि वेद सबके लिए हैं।

कार्यक्रम की सुन्दरता को बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश बागपत से सांसद सत्यपाल सिंह ने अपने भाषण की शुरुआत मलयालम भाषा में कर महाशय जी को महात्मा की उपाधि से नवाजा। कार्यकारिणी सभा का आभार व्यक्त करते हुए सत्यपाल सिंह ने कहा सबके सहयोग से यह कार्यक्रम पूर्ण हुआ। जहाँ वेद की वाणी नहीं वहां परमात्मा का घर नहीं। उन्होंने कहा कि आज हजारों की संख्या में लोगों को बिना जातीय भेदभाव के यज्ञ करते हुए देखकर मेरा मन अभिभूत हो गया। जब तक वेद का ज्ञान हम सबके पास था हम सांस्कृतिक रूप से एक थे, हमारी संस्कृति और धर्म एक था, हमारी वाणी सिर्फ संस्कृत थी। जब तक इस धरा पर वेद का प्रचार रहा हमारा वैभव सबसे ऊपर रहा, लेकिन दुखद बात की हमने भाषा, क्षेत्र और जाति के नाम पर सब कुछ बहा दिया बाकी बचा ज्ञान मैकाले की शिक्षा नीति निगल गयी। इन विकट परिस्थिति के बीच मुझे यह कहते हुए हर्ष हो रहा कि केरल की भूमि पर शंकराचार्य के बाद दूसरा आचार्य राजेश पैदा हो गया जो केरल में सभी को साथ लेकर चलने का संकल्प लिए है। उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह आज हम सबको शुद्ध खाना, शु( हवा, शुद्ध वातावरण चाहिए उसी तरह वेद का शुद्ध ज्ञान भी हमारे लिए आवश्यक है। वेद का ज्ञान शुद्ध है केवल इसे ही प्रमाणित करने के लिए हमें दूसरी किसी किताब की जरूरत नहीं पड़ती। मेरा सपना है एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री भी वेद पर हाथ रखकर अपने पद और गरिमा की शपथ लेगा।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए श्री विनय आर्य ने अपने सम्बोधन में कहा कि केरल के पास विशाल सांस्कृतिक विरासत है। प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। केरल के इन सहृदय तथा मैत्रीपूर्ण लोगों के कारण आज आचार्य राजेश के सानिध्य में स्वामी जी के इस सपने को साकार करते हुए महाशय जी ने अपनी दान रूपी आहुति डालकर स्वामी जी के सपने को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह केरलवासियों को आज यज्ञ करते हुए देखा तो लगा भविष्य में फिर से भारत समेत पूरे विश्व में वैदिक पताका लहराएगी ऐसा हमारा विश्वास है।

कार्यक्रम का स्वरुप और बृहत् हो गया जब धर्मपाल आर्य ने अपने उदगार हर्ष के साथ व्यक्त करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का साक्षी होकर मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है महाशय जी द्वारा दी गयी इस आहुति की सुगंध केरल व भारत ही नहीं बल्कि दुबई तक जाएगी उन्होंने इस कार्य के लिए आचार्य राजेश समेत सभी आर्यजनों को बधाई दी।

कार्यक्रम तब अपनी ऊंचाई पर पहुँच गया जब सुरेश चन्द्र आर्य जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य राजेश ने जो संकल्प लिया जिस निष्ठा के साथ वह आगे बढ़े वह निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। यहाँ से उठी वैदिक मन्त्रों की यह गूंज जल्द ही भारत समेत पूरे विश्व में सुनाई देगी। उन्होंने केरल समेत अन्य प्रान्तीय आर्यजनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे आशा है स्वामी जी द्वारा जलाई गयी वेदों की ज्योति सम्पूर्ण समाज को शुद्ध और ज्ञानवान बनाएगी।
इस अवसर पर आचार्य देवव्रत ने भी सभी आर्यजनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यज्ञ से सब शुद्ध हो जाता है केरल की भूमि ऋषि मुनियों की भूमि थी जिसे पुनः महाशय जी जीवन दान दे दिया। उन्होंने समस्त आर्यजनों का आभार व्यक्त करते हुए आचार्य राजेश की इस पहल का स्वागत किया। अंत में स्वामी सम्पूर्णनन्द जी ने ऊँचे स्वर में वैदिक धर्म की जयघोष कर वेदों की महिमा का वर्णन कर बताया कि वेद का मार्ग ही सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पीरो सकता है। मुझे आशा है सभी के सहयोग से यह वैदिक ज्योति रहेगी और एक दिन अपनी उसी गरिमा को प्राप्त करेगी जहाँ कभी हजारों साल पहले हुआ करती थी।

दिल्ली समेत कई प्रान्तों से हजारों किलोमीटर की यात्रा कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने सभी आर्यजनों का महाशय जी व अन्य विद्वानों द्वारा मंच से सम्मान किया गया। विभिन्न प्रान्तों से आये सभी आर्यजनों की इस उपस्थिति को उनके समर्पण की महाशय जी ने व आचार्य राजेश ने सराहना की। कार्यक्रम की समाप्ति के अवसर पर केरल के सांस्कृतिक नृत्य एवं युद्ध शैली आदि का लोक कलाकारों व बच्चों द्वारा सराहनीय प्रदर्शन किया गया। जैसे-जैसे कार्यक्रम अपनी समाप्ति की ओर था वैसे-वैसे केरल में हुए कार्यक्रम से आर्य समाज अपनी विराट शिखर की ऊंचाई को छू रहा था। कार्यक्रम के समापन अवसर पर राष्ट्रीय गान के साथ-साथ भारत माता की जय व आर्य समाज अमर रहे के नारों से वातावरण गूंज गया। शांति पाठ के साथ कार्यक्रम विधिवत् सम्पन्न हुआ।
-राजीव चौधरी


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