Monday 29 May 2017

36वें वनवासी वैचारिक क्रांति शिविर

आदिवासी बच्चों की मदद को कपड़ें, जूते-चप्पल, किताबें आदि प्रदान करने लिए सहयोग नामक योजना शुभारम्भ किया गया।
जहाँ अलगाववाद के नारे लगते थे आज वहां जय हिन्द और वंदेमातरम् गूंज रहा है। -महाशय धर्मपाल 
देश में लोग मेहमान के दो दिन ज्यादा रुकने से थक जाते हैं ऐसे में आर्य समाज सेंकड़ों बच्चों का निःस्वार्थ पालन-पोषण कर रहा है।- श्याम जाजू (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा)
आर्य समाज बिना आडम्बर और निःस्वार्थ भाव से आज देश को नई दिशा देने का कार्य कर रहा है -अनुसुइया यूइके (एन सी एस टी, उपाध्यक्ष)
आदिवासी क्षेत्रों में आर्य समाज की ज्योति आज विशुद्ध ज्ञान का प्रकाश फैला रही रही है। -कैप्टन रूद्रसेन (हरिभूमि समाचार पत्र)
आर्य समाज श्रीरामचंद्र जी की तरह वनांचलो में सेवा कार्य करने के साथ वनवासी समाज के अन्दर संस्कार और गौरव जगाने का कार्य रहा है। -विनोद बंसल (विश्व हिन्दू परिषद)
वनवासियों के हित की रक्षा के लिए आर्य समाज का लक्ष्य, संकल्प और विषय सम्मान का पात्र है। -सुरेश कुलकर्णी (संगठन मंत्री, वनवासी कल्याण परिषद)

अगर देश के काम न आये तो जीवन है बेकार हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार। पूर्वोत्तर भारत से आये छात्रों द्वारा गाये इस गीत के साथ अखिल भारतीय दयानंद सेवाश्रम संघ की ओर से आयोजित 36वें वनवासी वैचारिक क्रांति शिविर का समापन सम्पन्न हुआ। बच्चों द्वारा भजन प्रस्तुति के साथ समारोह का भव्य आरम्भ वैदिक राष्ट्रगान के साथ महाशय धर्मपाल जी ने दीप प्रज्वलित कर किया। समारोह में आये सभी अथितियों का पुष्प माला पहनाकर स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन आचार्य दयासागर ने किया,  मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक श्याम जाजू उपस्थित रहे। इस अवसर पर उन्होंने दयानंद सेवाश्रम संघ द्वारा वनवासी प्रतिभागियों को भारतीय संस्कृति की शिक्षा देने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि सबका साथ सबका विकास आर्य समाज के मंचो और कार्यक्रमों में हमेशा देखने को मिलता है। सिर्फ भाषण देने से उन्नति नहीं होती, देश की उन्नति होती है आर्य समाज की तरह पूर्ण निष्ठा एवं लग्न के साथ काम करने से। जहाँ देश में लोग दो दिन ज्यादा मेहमान के रुकने से थक जाते हैं ऐसे में आर्य समाज सैंकड़ो हजारों बच्चों का निस्वार्थ पालन-पोषण कर रहा है।

इस अवसर पर महामंत्री श्री जोगेंद्र खंट्टर ने बताया कि ‘‘शिविर में आसाम, नागालैंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों से करीब 200 बच्चों समेत अन्य प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उन्होंने बताया कि सन् 1968 से संस्था इन क्षेत्रों में वनवासी समाज के उत्थान का कार्य कर रही है। लगातार हर वर्ष आदिवासी, प्रतिनिधियों को स्वावलंबी बनाने की शिक्षा के साथ ही उन्हें भारतीय संस्कृति की जानकारी दी जाती रही है। आर्य समाज किसी जाति समुदाय से बंधा नहीं है। हम ज्ञान का दीपक लेकर आगे बढ़ रहे हैं ताकि आने वाला भारत शिक्षा के साथ जागरूकता का प्रकाश विश्व के कोने-कोने में पहुंचा सके। उन्होंने बताया कि इस परम्परा की शुरुआत पिछले 35 वर्षों से लगातार जारी है। देश के विभिन्न राज्यों से करीब दो सौ से ज्यादा छात्र-छात्राएं दिल्ली के गुरुकुल में रहकर निःशुल्क पढ़ रहे हैं जिसमें एक बच्चे का मासिक खर्च लगभग 7 से 8 हजार रुपये होता है। इस अवसर पर संस्था की ओर से गरीब आदिवासी बच्चों की मदद को कपड़ें, जूते-चप्पल, किताबें आदि  प्रदान करने लिए सहयोगयोजना का भी शुभारम्भ किया गया। 

कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष अनुसुइया यूइके ने अपने उद्बोधन में पूरे सदन को संबोधित करते हुए कहा कि बिना आडम्बर और निःस्वार्थ भाव से आर्य समाज आज देश को नई दिशा देने का कार्य कर रहा है। अपनी संस्कृति के साथ राष्ट्रीय भावना वैचारिक परम्परा आदिवासी समुदाय तक पहुंचा रहा है। आर्य समाज के समर्पित कार्यकर्ताओं को मेरा प्रणाम। उन्होंने संस्था द्वारा पूर्वोत्तर भारत समेत अन्य आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा समेत स्वरोजगार के प्रशिक्षण केंद्र खोले जाने की सराहना करने के साथ संस्था को सामाजिक एवं वैचारिक राष्ट्र सेवा करने के लिए धन्यवाद दिया। उनके उद्बोधन के साथ ही मावलंकर हाल करतल ध्वनि से गूजं उठा।

कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए विश्व हिन्दू परिषद की ओर से विनोद बंसल ने आर्य समाज पर गर्व करते हुए कहा कि आर्य समाज श्रीरामचंद्र जी महाराज की तरह वनांचलो में सेवा कार्य करने के साथ वनवासी समाज के अन्दर संस्कार और गौरव जगाने का कार्य रहा है।वनवासी कल्याण परिषद के संगठन मंत्री सुरेश कुलकर्णी ने कहा कि आर्य समाज की सेवा इकाई दयानन्द सेवाश्रम संघ देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर बच्चों के अन्दर राष्ट्रीयता का भाव जगाकर देश को एक सूत्र में जोड़ने का कार्य कर रही है।उन्होंने आर्य समाज के कार्यों की प्रसंशा करते हुए कहा कि वनवासियों के हित की रक्षा के लिए आर्य समाज का लक्ष्य, संकल्प और विषय सम्मान का पात्र है।

कार्यक्रम में मौजूद दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री विनय आर्य ने कहा कि माता प्रेमलता के लगाये इस पौधे को महाशय जी ने अपने तन-मन-धन सींचा जिस कारण इस पौधे में आज कितने पत्ते उग आये इसकी गिनती नहीं की जा सकती।उन्होंने आगे कहा कि आर्य समाज  मानता है आदिवासी कमजोर नहीं ताकतवर हैं। बस इस स्वाभिमानी समाज को आधुनिक शिक्षा और मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत है। इस कड़ी में हमने पिछले कुछ समय में तेजी लाते हुए महाशय धर्मपाल जी व अन्य आर्य महानुभावों के सहयोग से पूर्वोत्तर भारत से लेकर मध्य और दक्षिण भारत में स्कूल और बालवाड़ी का कार्य प्रारम्भ किया। इस शिविर के माध्यम से प्रशिक्षण लेकर आदिवासी क्षेत्रों के लोग अपने गांव के लोगों को बालवाड़ियों के माध्यम से शिक्षित करते हैं।’ 

दिल्ली सभा के प्रधान धर्मपाल आर्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय समाज की विभिन्नता में एकता का सबसे सुन्दर उदाहरण इस शिविर में देखने को मिलता है। सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति से हजारों लोगों को संस्कारित कर आर्यसमाज अपने कर्त्तव्यों का पालन कर रहा है। उन्होंने उपस्थित लोगों प्रार्थना कर कहा कि मात्र कह देने से समस्या का समाधान नहीं होता। एक बार वहां जाकर देखिये महसूस कीजिये, आज के इस आधुनिक दौर में भी आदिवासी समुदाय कितने कम संसाधनों में जीवन यापन कर रहा है।’ 
इस अवसर पर 15 दिन तक शिविर में उपस्थित रहे छात्र-छात्राओं ने भी अपने विचार रखे शिवहर से दिल्ली आये छात्र बीरबल आर्य ने कहा इस शिविर के माध्यम से जीवन में जो सीखा, हमेशा उसका पालन करूंगा। आर्य समाज में आने के बाद चार वेद और सत्यार्थ प्रकाश के बारे में जाना। यदि कोई ऐसे शिविर में नहीं आता तो इस ज्ञान से अधूरा रह जाता है, इसी दौरान गुरुकुल की मुस्लिम छात्रा नुसरत प्रवीन ने यह कहते हुए सबका मन मोह लिया की संसार में कोई भाषा रहे न रहे पर संस्कृत हमेशा थी, हमेशा रहेगी।

समारोह के अंत में आचार्य वागीश ने अपने प्रखर वैदिक राष्ट्रवादी विचारों से समारोह को उसकी श्रेष्ठ ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उन्होंने कहा दुःख का कारण ज्ञान का मिटना है जिस विराट हिन्दू जाति के पास राम और कृष्ण जैसे महापुरुष थे वह जाति हजारों साल गुलाम क्यों रही? कारण हमने इन महापुरुषों को मूर्तियों के कैद कर इनके विचारों को भुला दिया। जिस कारण लोग वर्षों तक गजनी और अरब के बाजारों में गुलामों के रूप में बेचे गये। हमने आजादी के बाद भी सही ढंग से होश नहीं सम्हाला और वनवासियों, आदिवासियों को शूद्र, अछूत समझकर उनका निरादर किया जिसका लाभ मत-मतान्तरों ने उठाया। जबकि आदिवासी समाज हमारा रक्षक ही नहीं बल्कि वनों में उपलब्ध सामान हम तक पहुंचाने वाले लोग हैं। उन्होंने  वैदिक व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि वैदिक काल की तरह सबको समान अवसर मिले तभी देश का परम वैभव और अच्छे दिन आयेंगे वरना वह भी आदिवासी है और हम भी आदिवासी हैं। 

कार्यक्रम में एनसीएसटी की उपाध्यक्ष अनुसुइया यूइके, वनवासी कल्याण संगठन मंत्री सुरेश कुलकर्णी समेत संस्था के प्रधान महाशय धर्मपाल ;एम.डी.एच ग्रुपद्ध, कैप्टन रूद्रसेन ;हरिभूमि समाचार पत्रद्ध, विनोद खन्ना, विश्व हिन्दू परिषद की ओर से विनोद बंसल, आचार्य वागीश, मध्यप्रदेश से आचार्य दयासागर, राजस्थान से आचार्य जीववर्धन जी समेत अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। देश के कोने-कोने से आए छात्र-छात्राओं ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया। इस अवसर पर परीक्षा में अच्छे अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया गया। संस्था की ओर जोगेंदर खट्टर जी ने सबका आभार व्यक्त किया। शान्ति पाठ के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

 राजीव चौधरी 

भारत की आवारा भीड़ के खतरे

लोग फिर जमा हो रहे हैं धर्म के नाम पर, जातियों-उपजातियों के नाम पर, क्षेत्र और समुदाय से लेकर गौरक्षा के नाम पर पर। सवाल यह है इंसानों की रक्षा के लिए कितने लोग जुड़ रहे हैं? शुद्ध हवा, पेड़ और स्वच्छ पानी को बचाने के लिए कितने संगठन बने? कुपोषण, बेरोजगारी समाज को शिक्षित करने के लिए कितने लोग सामने आये? सवाल ही मेरा बचकाना है, भला शुद्ध हवा, स्वच्छ पानी, बीमारी से बचाने वाले को कौन वोट देगा?

जातियां बचाने को देश के अन्दर सेनाएं बन रही है। भीम सेना, करणी सेना, सनातन संस्था, हिंदू युवा वाहिनी, बजरंग दल, श्रीराम सेना, भोंसला मिलिट्री और ना जाने कितनी सेना! हर कोई जाति और धर्म के नाम पर हर रोज संगठन या सेना रजिस्टर्ड करा रहा है। एक दूसरे के प्रति भय का माहौल खड़ा किया जा रहा है। देश में विपक्ष बचा ही नहीं जो भी बचे हैं वो नई परिभाषा के हिसाब से गद्दार और देशद्रोही बचे हैं। आखिर ये पुराना भारत क्यों बदल रहा है?

सालों पहले ऐसी ही भीड़ ने सिखों का क़त्लेआम किया, पिछले साल मालदा में हिंसा करने वाली ऐसी ही भीड़ ने बाजार फूंका था। सहारनपुर में गरीबों के घर फूंकने वाली भीड़, कश्मीर के पत्थरबाजो से लेकर हमने भीड़ का भयावह रूप कई देखा है लेकिन उसके ख़तरों को बिल्कुल नहीं समझा है। बहुत सारे लोग इस बात पर नाराज़ हो सकते हैं कि हिंदुओं की तुलना मुसलमानों से न की जाए, लेकिन हिंदू धर्म को शांतिप्रिय और अहिंसक मानने वालों को झूठा साबित कर रही है महाराणा प्रताप और अम्बेडकर के नाम हत्याएं करने वाली ये भीड़।

महाराणा प्रताप को लेकर सहारनपुर जल रहा है जिसने देश-धर्म बचाने के लिए घास की रोटी खाई लेकिन उसके कथित वंशज आज उसके नाम पर मलाई चाट रहे है। शोभायात्रों के लिए मर रहे हैं और मार रहे हैं, मूर्ति स्थापना को लेकर मर रहे हैं और मार रहे हैं,  जातीय प्रतिस्पर्धा, राजनीति और हिंसा का इससे विकृत रूप और क्या हो सकता है भला?

असल समस्याएं कूड़ेदान में चली गयी। नयी-नयी अजीबोगरीब समस्याएं पैदा हो रही है और उनसे राजनीति हो रही है. लोगों को इस बात की जरा भी परवाह नहीं वे किन चीजों के लिए मर और मार रहे हैं. संस्कृति और परंपरा पर गर्व करने और इसकी माला फेरने वालों भारत को सिर्फ बुतों, पुतलों, प्रतीकों और मूर्तियों का देश बना देने में कोई कसर न छोड़ना. शायद यही धर्म की परिभाषा शेष रह गयी है!!

मसलन हम जो आज कर रहे है पाकिस्तान चालीस साल पहले करके देख चुका है। इसी का नतीजा है कि आज स्पेस में उसके उपग्रह के बजाय दिन दहाड़े उसके बाजारों में बम विस्फोट हो रहे हैं। पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक की सरकार के दौर में देश का इस्लामीकरण हुआ था। पाठ्यक्रम बदले गये। विज्ञान की जगह बच्चों को मजहब थमाया गया था। जिसके बाद मजहब से निकले लोगों ने संगठन बनाए। संगठने राजनीति पर हावी हुई। राजनीति उनकी गुलाम बनी और पाकिस्तान भीख पर पलने वाला देश बनकर रह गया।

पिछले कुछ सालों में समय का चक्र स्पीड से घूमा है और दुनिया के कई हिस्सों में बड़ा बदलाव आया अमरीका में भारतीय मूल के लोगों की लगातार हो रही हत्याओं, बांग्लादेश में पाकिस्तान में मानवतावादी पत्रकारों, ब्लागरों की हत्या समेत भारत में गौरक्षा के नाम पर हत्या भी अंतर्राष्ट्रीय चिन्ताओं के सवाल बने हैं।
आज पूरे विश्व में राजनैतिक सत्ता के लिए जो दूध बिलोया जा रहा है कहीं उसका मक्खन अतिवादी चरमपंथी ना खा जाये यह भी सोचना होगा! हमारे देश में भी एक भीड़ बढ़ रही है, इसका उपयोग भी हो रहा है, आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों समेत लोकतंत्र के नाश के लिए किया जा सकता है। आज मेरी बात भले ही बकवास और तर्कहीन दिखाई दे लेकिन मेरी यह बात प्रसिद्ध लेखक हरिशंकर परसाई को समर्पित है जिसकी दशकों पुरानी रचना आवारा भीड़ के ख़तरेको लोगों ने व्यंग समझा था। लेकिन परसाई की लिखी सैकड़ों बातें कई महान भविष्यवक्ताओं से सटीक निकली।

पिछले दिनों बीबीसी की पर आलेख पढ़ा था कि हमारा आन्दोलनों से भी पुराना नाता रहा है कई बार शांत तो कई बार आंदोलन हिंसक हो जाते हैं, जाट और गुज्जर आंदोलन की तरह। हमारा दंगों का इतिहास भी पुराना है, दंगे भड़कते रहे हैं, इंसानों को लीलते है मकान दुकान फूंकते है फिर शांत हो जाते है। कोई चिंगारी कहीं से उड़ती है, कहीं से आग का गुब्बार निकलता है, करता कोई है, भरता कोई है। धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाता है। यदि कुछ कायम नहीं होता तो वह है फिर से वही सौहार्द।
इस समय देश में बड़े दंगे नहीं हो रहे लेकिन जो कुछ हो रहा है वो शायद ज्यादा ख़तरनाक है। दंगा घटना है, मगर अभी जो चल रहा है वो एक प्रक्रिया है। शुरूआती कामयाबियों और गुपचुप शाबाशियों के बाद कुछ लोगों को विश्वास हो रहा है कि वे सही राह पर हैं। धर्म और सत्ता की शह से पनपने वाली ये भीड़ ख़ुद को क़ानून-व्यवस्था और न्याय-व्यवस्था से ऊपर मानने लगी है। जब उन्हें तत्काल सजा सुनाने के अधिकार हासिल हो चुका हो तो वे पुलिस या अदालतों की परवाह क्यों करें, या उनसे क्यों डरें?

जब एक नई राह बनाई जाएगी तो पुरानी मिट जाएगी। जिन देशों में मजहबी कट्टरता ने अन्य पंथो, समुदायों को मिटाकर कट्टरता का ध्वज लहराया था आज उस कट्टरता का शिकार उसका बड़ा वर्ग ही हो रहा है। दिन के उजाले में इतिहास पढने वाले जानते कि जब भी किसी देश में धार्मिक कट्टरता का बोलबाला हुआ तो सिर्फ़ अल्पसंख्यकों का नहीं बल्कि वहां के बहुसंख्यक समुदाय का भी अत्यधिक नुक़सान हुआ।

मसलन, ज्यादा पुरानी बात नहीं, जब सीरिया एक ख़ुशहाल देश हुआ करता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से कई हिस्सों में बंटा समाज हिंसक हो गया। बिगड़ते हालात में सरकार की गलत नीतियों ने आग को और हवा दी। जिस कारण आज सीरिया गृह युद्ध में जल रहा है। ये एक सभ्यता, एक ख़ुशहाल देश के बहुत कम वक्त में बर्बाद होने की मिसाल है। या कहो एक विचारधारा ने सीरया को मलबे, लाशों और कब्रिस्तान का देश बना दिया। लेकिन अब पुरानी राह पर लौटना आसान नहीं जाहिर सी बात है उन्हें नई राह खोजनी होगी।...राजीव चौधरी


मर जाऊँगी, लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ूंगी

नेशनल शूटर तारा शाहदेव की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है ये साल 2014 में सबको भावुक कर देने वाला वाक्या बना था। उसके शरीर पर प्रताड़ना के घाव, सुबकते, सिसकते होटों से उसके बयान, हर किसी की पलकें भिगो गये थे। अब तीन साल बाद जो सच सामने निकलकर आया वह और भी हैरान कर देने वाला है। लव जिहाद में फंसी नेशनल लेवल की शूटर तारा शाहदेव के मामले में सीबीआई ने कोर्ट में इस केस की चार्जशीट दाखिल की है। सीबीआई की जांच में जो बातें सामने आई हैं वह इस बात का सबूत हैं कि लड़कियों को धोखे में डालकर उनके धर्मान्तरण का बाकायदा अभियान चल रहा है। सीबीआई ने तारा शाहदेव से शादी करने वाले रकीबुल उर्फ रंजीत कुमार कोहली और उसकी मां कौशर के खिलाफ चार्जशीट जमा की है। इसके मुताबिक रकीबुल और उसकी मां तारा से जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाने पर अड़े थे। तारा की सास ने उसे धमकी देते हुए कहा था कि इस्लाम कबूल कर लो, अगर नहीं किया तो तुम्हारा बिस्तर यही रहेगा लेकिन आदमी बदलता रहेगा।’ 

पूरा मामला जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा दरअसल रांची की 23 साल की नेशनल शूटर तारा शाहदेव की रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल से 7 जुलाई 2014 को हिन्दू रीति-रिवाज से शादी हुई थी। तारा उसे रंजीत कोहली के नाम से जानती थी और इसी नाम से शादी के कार्ड वगैरह भी छपे थे। लेकिन जब शादी हो गई तो तारा को पता चला कि जिसके साथ वो ब्याहकर आई है वह कोई हिन्दू नहीं, बल्कि एक मुसलमान के घर गई है। उसका पति रंजीत नहीं, बल्कि रकीबुल हसन है। पहली ही रात में रकीबुल और उसकी मां ने तारा से कह दिया कि अब तुम्हें अपना धर्मांतरण करके मुसलमान बनना होगा। जब वह नहीं मानी तो उस पर अमानवीय जुल्म किए गए। जबरन उसका धर्म परिवर्तन भी करा दिया गया।

इस केस की अगली सुनवाई 1 जून को होगी। सीबीआई ने चार्जशीट के साथ वे तमाम सबूत और गवाहों के बयानों को भी पेश किया है, जिससे यह साबित होता है कि तारा शाहदेव को सोची-समझी साजिश के तहत फंसाया गया और उसे झांसे में डालकर शादी की गई। इस सारे खेल का मकसद एक हिन्दू लड़की को मुसलमान बनाना था। सीबीआई ने चार्जशीट में जिक्र किया है कि कैसे 9 जुलाई 2014 के दिन 25 मौलवियों को बुलाकर तारा पर दबाव बनाया गया और उसे धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया। जब वह नहीं तैयार हुई तो उसे बुरी तरह पीटा और कुत्ते से कटवाया गया। यह खबर शायद उन इस्लामविदों को सोचने पर मजबूर कर दे जो न्यूज रूम में बैठकर इस्लाम में नारी के सम्मान की बड़ी-बड़ी डींगे हांकते दिखाई देते हैं।

हर वर्ष भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में इस मजहबी मानसिकता का शिकार हुई न जाने कितनी तारा शाहदेव किसी खौफ के कोने में दुबकी सिसकती मिल जाएंगी, तारा शाहदेव की कहानी से मिलती एक घटना अभी पिछले दिनों पाकिस्तान में घटी थी। जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी थी। यहाँ तो प्रेम और प्रलोभन जैसे हतकंडे अपनाये जाते है लेकिन वहां तो प्रेम को भी फालतू का स्वांग समझा जाता है। बस जिसका मन करता है वह दिन दहाड़े अन्य समुदायों की खासकर हिन्दू लड़कियों को उठा लिया जाता है। 

पाकिस्तान के मीरपुर खास से डेढ़ घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव निवासी अंजू अपने मुसलमान अपहरणकर्ताओं की हिंसा सहने के बाद हाल ही में घर लौटी है। हिन्दू समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहेल बताती है कि मीरपुर खास जिले में पिछले तीन महीने में तीन हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन करने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अंजू का पांच मुसलमान पुरुषों ने अपहरण कर लिया था। उसे कुछ महीने कैद में रखा गया ताकि उसका धर्म परिवर्तन किया जा सके। अदालत के दखल के बाद ही अंजू वापस अपने गांव लौट सकी है। जिस 16 साल की उम्र में अंजू को शोख और चंचल होना चाहिए था, लेकिन उनका चेहरा फीका है। अपनी आपबीती सुनाते हुए भी उनकी आँखों में नमी न थी जैसे रोने के लिए उनके पास आंसू भी न बचे हों। 

वह बताती है मैं अपनी मां के साथ खेतों में घास लेने गई थी। पांच लोग बंदूक लेकर आए और बोले कि हमारे साथ चलो नहीं तो गोली मार देंगे। मैं डर के मारे चली गई। वे मुझे बहुत दूर लेकर गए और एक घर में जाकर रस्सियों से बांध दिया। "अंजू का कहना है तीन चार महीनों तक उसे बहुत पीटा गया और ज्यादती की गई, वह बोलते थे कि इस्लाम अपना लो अन्यथा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मैंने कहा कि मैं मर जाऊँगी, लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ूंगी।"

अक्सर हर एक छोटी बड़ी घटना के पीछे कोई न कोई पर्दे के पीछे जरुर खड़ा होता है। जिस तरह तारा शाहदेव के मामले में झारखंड के दो मंत्रियों का नाम आया था, उसी तरह पाकिस्तान की अंजू के मामले में दीनी जमातों और उलेमाओं की एक राय थी कि अंजू के मामले में पुलिस की कार्यवाही इस्लाम के खिलाफ है तो कोई मुसलमान ये कैसे बर्दाश्त कर सकता है। ऐसा नहीं है पाकिस्तान की पुलिस इतनी सक्रिय है कि इस तरह के मामलों में फौरी एक्शन लेती हो! बस जो मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठ जाता है वहां उसे खुद को सेकुलर और प्रशासनिक पाकिस्तान दिखाने का ढोंग करना पड़ता है अंजू के मामले में भी छः महीने बाद कार्यवाही की गई थी।
इस सबसे यही प्रतीत होता है कि किस तरह सत्ता और मजहब की मिली भगत से ही ऐसे घिनौने कृत्यों को अंजाम दिया जाता रहा है। लेकिन सवाल यह है कि इस्लाम के नाम पर अंजू और तारा जैसी मासूम लड़कियों के साथ होने वाली ज्यादती को कैसे रोका जाए? हालांकिअंजू हो या तारा ऐसी मजबूत लड़कियों को हृदय से नमन जिन्होंने इतनी प्रताड़ना, घाव सहकर और विकट परिस्थितियों में रहकर भी अपना धर्म नहीं छोड़ा।
-राजीव चौधरी


Saturday 27 May 2017

वो बोली कि तिनका तिनका उठाना पड़ता है,,

यह खबर देश, समाज और वैदिक धर्म के लिए कुछ कर गुजरने को प्रेरित ही नहीं करेगी बल्कि राष्ट्र और धर्म के प्रति उऋण होने का मौका भी प्रदान करेगी. आपने देश तोड़ने वाली बहुत विचारधारा इस देश में अभिवयक्ति की आजादी के नाम पर मुहं खोले खड़ी देखी होगी. उस समय गुस्सा भी आता होगा मन यह भी सोचता होगा कि क्या इस देश में कोई ऐसी विचारधारा भी है जो बिना किसी राजनैतिक एजेंडे के सारे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती हो? यदि हाँ! तो चले आईये आर्य समाज रानी बाग दिल्ली और खुद अपनी आँखों से देखिये अखिल भारतीय दयानन्द सेवाश्रम संघ के सानिध्य में विद्यार्थियों के संस्कार, राष्ट्र भक्ति एवं चरित्र निर्माण के लिए 14 मई से 28 मई 2017 तक 36 वां वैचारिक क्रांति शिविर

यहाँ त्रिपुरा से आये एक बच्चे की उम्र करीब 9 साल है सफेद कुरता पायजामा पहने, गले में यज्ञोपवीत धारण किये वो खेल रहा था. हमारे लिए पूर्वोत्तर भारत के इस मासूम से बचपन को करीब से देखने जानने का यह एक बेहतर मौका था. अचानक उसकी नजर कुर्सी पर जमी हल्की से धूल पर गयी वह दौड़कर एक कपडा लेकर आया और कुर्सी को साफ करने लगा. शायद यह आर्य समाज के दिए संस्कारो का प्रभाव था. जब हमने उससे पूछा की यहाँ आकर कैसा लगा? उसने बेहद उत्सुकता के साथ हाथ जोड़कर नमस्ते कर बताया बहुत अच्छा. उसका हिंदी भाषा में जवाब सुनकर मन गदगद हो गया कि देश की स्वतन्त्रता के 70 सालों बाद जिन पूर्वोत्तर प्रान्तों को सरकारें सीधा रेल या सडक मार्ग से नहीं जोड़ पाई वहां आर्य समाज दयानन्द सेवाश्रम संघ द्वारा देश के मासूम बचपन को इन भीषण परिस्थितियों के बाद भी हिंदी भाषा और वैदिक संस्कार से जोड़ने का कार्य कर रहा है.

लगभग 10 साल का चन्द्रदेव आर्य जो उत्तर प्रदेश से आया है आज बेहद खुश था उसकी खुशी सिर्फ इस बात में थी कि 21 मई को यज्ञोपवीत संस्कार पर नया यज्ञोपवीत धारण किया था. शायद उसका मन उन बच्चों की खुशी से कई गुना खुश था जो हजारों रूपये के खिलोने लेकर भी नहीं मुस्कुरा पाते. वो बड़े गर्व के साथ यज्ञोपवीत की ओर इशारा कर बता रहा था कि यह मेने कल ही धारण किया है. नागालेंड की राजधानी दीमापुर से करीब 80 किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव से आया केविलोन बेझिझक कहता है कि आर्य समाज के कारण वह आज इसाईयत के जहर से बच गया. अपने सनातन धर्म अपनी संस्कृति पर गर्व करता हुआ बताता है कि हम खुश है. हमें नहीं पता हम किन-किन मार्गो से गुजरकर यहाँ पहुंचे लेकिन यहाँ आकर जो सीखा उसे जीवन में उतारकर अपने देश अपने धर्म के लिए कार्य करेंगे. अब आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि आर्य समाज किन-किन रास्ते से होकर इन बच्चों तक पहुंचा होगा!

बबलू डामर मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र झाबुबा से आया है. महाशय धर्मपाल आर्य विद्या निकेतन बमानिया में पढता है और थोडा शर्मीले स्वभाव का है. ज्यादा बात नहीं कर पा रहा था. लेकिन उसकी खुशी उसकी नन्ही मासूम आँखों में स्पष्ट दिख रही थी. जेम्स आसाम से आया है. महाशय धर्मपाल आर्य विद्या निकेतन धनश्री स्कूल का छात्र है वो बताता है कि वह उन इलाकों से आया है जहाँ स्कूल कालिजों से ज्यादा चर्च मिलेंगे हल्का गेरुए रंग का कुर्ता सफेद पायजामा पहने जेम्स की नजरे मानों आर्य समाज का आभार प्रकट कर रही हो. जेम्स नाम से एक पल को चौक गये होंगे लेकिन बाद में उसने बताया कि वहां उन क्षेत्रों में सनातन नामावली भी करीब-करीब मिट चुकी है. इससे पहले हम और बच्चों से मिलते यहाँ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो चूका था. बच्चें कतारबद्ध होकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करने लगे. ऐसे एक दो नहीं इस शिविर में करीब 200 से ज्यादा बच्चे है जो ओडिशा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड नागालैंड, झारखण्ड आदि प्रदेशों से आये हैं. वे कहते है हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम लोग इतनी अच्छी जगह शिक्षा प्राप्त करेंगे.

अधिकांश बच्चें उन प्रान्तों से है जहाँ इसाई मिशनरीज खुलेआम मतमतांतर का कार्य रही है. जिसे बहुत पहले रूस के जोसेफ स्टालिन ने वेटिकन द्वारा चर्च की अदृश्य सेना माना था. जो लोगों को उनकी जड़ों से काटकर पाश्चात्य संस्कृतियों का नामहीन और व्यक्तित्वहीन नकलची भर बनाते है तथा इसके बदले उनकी पुरानी धार्मिक मान्यताओं को न केवल समाप्त करने बल्कि उनसे और अपने राष्ट्र से घृणा करना सिखाते है. लेकिन इसके विपरीत जब आप इन बच्चों के करीब जाओंगे तो सांस्कृतिक आधार पर भारत के सुदूर प्रांतों से आये इन बच्चों के बीच समरसता, और आत्मीयता मिलेगी. इनकी आँखों में आपको स्नेह के साथ आभार दिखाई देगा. आप कुछ देर चुपचाप किसी स्थान पर बैठकर देखना फिर आपको अहसास होगा कि धर्म संस्कृति के बीच उगने वाले ये छोटे-छोटे पोधे कल जब विशाल वृक्ष बनेंगे तो इसका मीठा फल राष्ट्र को सांस्कृतिक रूप से जरुर उज्जवल बनाने के काम आएगा

कहते है समाज को विद्या और विज्ञान जानने वाला वर्ग ही लेकर आगे बढ़ता है. पहले भी ऐसा ही था और आगे भी ऐसा ही होगा. यही सोचकर आर्य समाज विपरीत परिस्थितियों, में जन और धन के अभाव में भी निरंतर आज यह कार्य कर रहा है. ताकि पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक वैदिक सभ्यता का प्रचार कर अपनी संस्कृति को वहां स्थापित करे सके जहाँ आर्य लोग हजारों वर्ष पहले कर चुके हैं. देश के भिन्न-भिन्न प्रान्तों के बच्चों को जोड़कर राष्ट्रीय मिलन का यह सबसे उत्तम प्रयास है जिसके लिए तन-मन-धन के सहयोग की जरूरत होगी क्योंकि यह भी सब भलीभांति जानते है कि कोई एक अकेला इन्सान यह सब नहीं कर सकता.
 किसी कवि ने कहा है,

मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को जुनून सा दिल में जगाना पड़ता है,

पूछा चिड़िया से कि घोसला कैसे बनता है वो बोली कि तिनका तिनका उठाना पड़ता है,,
राजीव चौधरी 

Wednesday 24 May 2017

भारत के आदिवासी क्षेत्रों में आर्य समाज

इस चर्चा में आगे बढ़ने से पहले एक बात याद आ गयी कि जब पिछले वर्ष 2016 में नेपाल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के मंच से उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्मंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने वहां उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा था कि आप सब आर्य समाज से जुड़ें हैं आपके लिए यह गौरव की बात होनी चाहिए। आज मुझे इस बात को दोबारा लिखते हुए उतनी ही गर्व की अनुभूति हो रही है जितनी उस दिन हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमुदाय हो हुई थी। गर्व की अनुभूति इस वजह से हो रही है कि आर्य समाज जिस गति से राजनैतिक और मीडिया के शोर बिना अपने लक्ष्य में निरन्तर आगे बढ़कर प्रगति कर रहा है। आने वाले समय में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का सपना सच होता ज्यादा दूर नहीं लगता।

पिछले कुछ सालों में आर्य समाज ने ज्ञान के साथ-साथ सेवा के क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के अपने कदम आगे बढ़ाये और उन लोगों के मध्य पहुंचा जिन्हें 21वीं सदी में भी आदिवासी, वन्यजाति, वनवासी तथा अनुसूचित जनजाति आदि नामों से संबोधित किया जाता है. लेकिन यह सब इस हिन्दू समाज का हिस्सा होने के साथ इसी भारत माता की संतान है। बस शिक्षा और संसाधनों के आभाव के कारण अभी मुख्यधारा से थोड़ा दूर है। लेकिन इस दूरी को खत्म करने के लिए आर्यसमाज अपनी पूरी लगन, निष्ठां के साथ इनके विकास के लिए कार्य कर रहा है। आर्य समाज उन विदेशी पर्यटकों या फोटोग्राफरों की तरह नहीं है जो आदिवासियों की फोटो लेकर उस गांव से निकल लिए और विश्व भर की पत्र-पत्रिकाओं में वह फोटो देकर भारत की गरीबी का मजाक बनाये या फिर धर्मांतरण मिशनरीज की तरह डेरा डालकर उन्हें  पथभ्रष्ट करने का कार्य करें। आर्य समाज का उदेश्य आदिवासियों की गरीबी या मजबूरी दिखाना नहीं है। आर्य समाज मानता है आदिवासी कमजोर नहीं ताकतवर हैं। बस इस स्वाभिमानी समाज को आधुनिक शिक्षा और मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत है।

इस कड़ी में हमने पिछले कुछ समय में तेजी लाते हुए महाशय धर्मपाल जी के व अन्य आर्य महानुभावों के सहयोग से पूर्वोत्तर भारत से लेकर मध्य और दक्षिण भारत में स्कूल और बालवाड़ी का कार्य प्रारम्भ किया। लेकिन इन जगहों पर कठिनाई यह आती थी कि उन लोगों के बीच आर्य समाज और इसके द्वारा किये जा रहे सामाजिक उन्नति के कार्यो से कैसे अवगत कराएँ तब इसके लिए पूर्व आर्य महानुभावों ने दिल्ली में सामूहिक प्रशिक्षण शिविर लगाने का कार्य किया ताकि भारत भर से आये इन लोगों के मध्य कार्य करने वाले सज्जन एक जगह एकरूपता से यज्ञ आदि का प्रशिक्षण ले सकें। इस 15 दिवसीय शिविर में संस्कार, राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कारण आर्यसमाज की यह बालवाड़ी सामाजिक उन्नति का उत्तम साधन बन गई। आपस में मिलजुल कर रहने का प्यार का सन्देश घर-घर पहुँचने लगा। बच्चों के अभिभावक आर्यसमाज को इस प्रवृत्ति से खुश हुए और आर्यसमाज के निकट आये, परिचय बढ़ा। इसी वजह से आसाम, नागालैंड, बमानिया आदि जगहों पर वैदिक महासम्मेलन में आज हजारों की संख्या में लोग भाग ले रहे हैं।

आर्य समाज चाहता है आदिवासी नागरिक भी सामान्य भारतीयों की तरह आधुनिक जीवन शैली तथा उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करें। हॉं यह बात सही है कि अपने जल, जंगल-जमीन में सिमटा यह समाज शैक्षिक आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण राष्ट्र की विकास यात्रा के लाभों से वंचित है। इसी कारण आदिवासी साहित्य अक्षर से वंचित रहा, इसलिए वह अपने यथार्थ को लिखित रूप से न साहित्य में दर्ज कर पाया और न ही इतिहास में।

भारतीय संस्कृति के ज्ञान का विस्तार होते रहना चाहिए भारतीय संस्कृति व प्राचीन परम्पराओं का प्रशिक्षण देते हुए पिछले 35 वर्षों से चल रही इस सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति से हजारों लोगों को संस्कारित कर आर्यसमाज अपना कर्त्तव्य पालन कर रहा है। इस कार्यक्रम का विशेष महत्त्व यह है कि शिविर में ओडिशा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड नागालैंड, झारखण्ड आदि प्रदेशों से शिविरार्थी आते हैं। इस शिविर के माध्यम से शिविरार्थियों को भारतीय संस्कृति की शिक्षा और स्वालम्बी बनने की प्रेरणा दी जाती है। इस शिविर के माध्यम से प्रशिक्षण लेकर आदिवासी क्षेत्रों के लोग अपने गांव के लोगों को बालवाड़ियों के माध्यम से शिक्षित करते हैं। भारतीय समाज की विभिन्नता में एकता का सबसे सुन्दर उदहारण इस शिविर में देखने को मिलता है। 

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आर्य समाज अखिल भारतीय दयानन्द सेवाश्रम संघ के सानिध्य में विद्यार्थियों के संस्कार, राष्ट्र भक्ति एवं चरित्र निर्माण हेतु 14 मई से 28 मई 2017 तक 36 वां वैचारिक क्रांति शिविर आयोजित करने जा रहा है। आप सभी धर्म प्रेमियों एवं राष्ट्र प्रेमी सज्जनों से प्रार्थना है कि कृपया आप राष्ट्र निर्माण के इस निर्धारित कार्यक्रम में सहयोग करें तथा पधार कर शिविरार्थियों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें ताकि आने वाले भारत का भविष्य उज्जवल बनें। 
-विनय आर्य