Tuesday 20 June 2017

अफवाह भारत का नया राजनीतिक उद्योग है

हमारा तार्किक मन छोटा होता है, बस ज़रा सी आवाज़ कहीं से आती है, भीड़ का एक शोर होता है, इसके बाद मां-बहन की गंदी-गंदी गालियां, चीख पुकार की आवाज़, खूब हल्ला, दौड़ने-भागने और चिल्लाने की आवाज़ें, मानो देश पर कोई हमला हुआ हो! और हम समझ नहीं पाते इसके बाद जब तक मन तर्क करता है तब पता चलता है भीड़ ने एक और जान ले ली।
फोटो आभार: getty images
बात एक धर्म की नहीं, ना एक समाज की, न किसी जाति या पंथ विशेष की, बात एक भीड़ की है। ये भीड़ राजधानी दिल्ली में एक हिन्दू डॉ नारंग की जान भी ले सकती है। ये भीड़ पहलू खान को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार सकती है, तो यही भीड़ जमशेदपुर के दो भाई- विकास और गौतम की हत्या कर सकती है या फिर चाहे वो सरायकेला खरसांवा जिले में चार लोगों की हत्या का मामला हो। अनियंत्रित भीड़ की चपेट में जो आया वो बेरहमी से मारा गया- अरे पकड़ो, मारो, ये रहा, वो गया, ज़िंदा न जाने पाए… इन तेज़ आवाज़ों के सहारे किसी को भी अपराधी घोषित कर यह भीड़ न्यायाधीश बन ऑन द स्पॉट फैसले कर रही है।
इस भीड़ का कोई निश्चित ठिकाना नहीं है, ये कहीं भी पाई जा सकती है। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, चौक चैराहों से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह इनकी भरमार है। बस समझदार लोग खामोश हैं और यह भीड़ उत्तेजित। इस चुप्पी से भी यह भीड़ समझ रही है कि हम सही जा रहे हैं। कल ही उत्तर प्रदेश के सीएम की पिक अपलोड करने पर सोशल मीडिया की भीड़ द्वारा लेखिका तवलीन सिंह को ट्रोल किया गया। जिन शब्दों का सहारा लेकर उन्हें ज्ञान दिया गया शायद उन शब्दों को सुनकर गालियां भी मुंह छिपाने को मजबूर हो जाए।
यह भीड़ साइना नेहवाल को एक चाइना निर्मित फोन हाथ में लेकर फोटो अपलोड करने पर राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा सकती है। अभिनेत्री सना खान और क्रिकेटर मोहम्मद समी की पत्नी को उनकी ड्रेस पर मज़हब के पाठ और संस्कृति पर मज़हबी फटकार लगा सकती है वो भी विद गाली। इससे साफ पता चलता है कि ये थ्योरी है और इसके बाद सड़क पर प्रेक्टिकल होता है।
ये भीड़ बस फूंक रही है, ये भीड़ ट्रेन की पटरी उखाड़ रही है। कभी बरेली में मज़हब की आड़ में हिंसा तो कभी शोभायात्राओं के नाम पर सब कुछ स्वाह कर देने के लिए आगे बढ़ रही है।
दो तीन रोज़ पहले रवीश कुमार ने अपना दर्द बयां किया था कि अफवाह भारत का नया राजनीतिक उद्योग है। राजनीतिक दल का कार्यकर्ता अब इस अफवाह को फैलाने वाला वेंडर बन गया है। सिर्फ दो सवाल कीजिए, आपको सारे जवाब मिल जाएंगे। ये लोग कौन हैं और कौन लोग इनके समर्थन में हैं।
कुछ लोग नेताओं के भाषणों से हद से ज़्यादा प्रभावित हो जाते हैं, क्योंकि इससे उनके तर्क उनकी विचारधारा को भी मजबूती मिलती है। अपने पक्ष में कहने के लिए और फैक्ट मिल जाते हैं। इससे वो और कट्टर हो जाते हैं, यही वजह है कि आज अपनी विरोधी विचारधारा के प्रति लोगों का रुख़ सख़्त और हिंसक होता जा रहा है। क्या इन घटनाओं के उदहारण देकर भी कहा जा सकता है कि मेरा भारत बदल रहा है?
कल-परसों ही राजस्थान में कथित गौरक्षकों की भीड़ ने जैसलमेर से 50 गायें और 30 बछड़े खरीदकर ले जा रहे तमिलनाडु के सरकारी अधिकारियों के साथ बदतमीजी की। इससे भी पता चलता है कि गौरक्षा के नाम पर चलने वाला हिंसक तमाशा अभी बंद नहीं हुआ।
सीताराम येचुरी पर हमला कर सकती है ये भीड़, यूपी के शाहज़हांपुर में पुलिस स्टेशन में लड़की से छेड़खानी के आरोप में बंद अपने साथी को जबरदस्ती छुड़ा ले जाती है ये भीड़ और पीड़ित लड़की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इंसाफ की गुहार लगाती रह जाती है।

मैंने खुद के अनुभव के तौर पर पहले भी लिखा था कि बीते पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया समेत भारत में भी काफी व्यवहारिक परिवर्तन आया है। चाहे इसमें एक अमेरिका के अन्दर नस्लीय हमले का शिकार कोई भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास हो या ईशनिंदा के नाम पर पाकिस्तान में किसी उदारवादी छात्र मशाल खान की पांच सौ छात्रों द्वारा बेरहमी से हत्या, सब कुछ बदल रहा है।

आज एक अजीब सी नफरत लोगों के मन में घर करती दिख रही है। बस हो या ट्रेन, लोग एक अजीब सा गुस्सा-नफरत लिए घूम रहे है। शायद इसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो ये कि आज से कुछ साल पहले एक कट्टरता, नफरत या हिंसा की विचारधारा से ग्रस्त लोग दूर-दूर थे, लेकिन आज दौर के संचार माध्यमों ने उन्हें निकट ला खड़ा किया है। संचार के तमाम तरीकों से एक तरह की विचारधारा वाले लोग एक-दूसरे से प्रभावित हो रहे हैं। ये राष्ट्रवादी हैं और वो गद्दार! एक दूसरे के हद से ज़्यादा प्रोत्साहन की वजह से उनकी अपनी राय भी कट्टर होती जाती है। मैं अपनी जगह सही हूं, इस विचारधारा पर भरोसा बढ़ने के साथ ही लोग दूसरों से नफरत करने लगते हैं। थोड़े समय पहले तक इस्लामिक चरमपंथी ही इसका सबसे बड़ा उदहारण थे। अब जहां दुनिया तेज़ी से बदल रही है तो ज़ाहिर सी बात है कि उदाहारण भी बदलेंगे!!..राजीव चौधरी 

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