Monday 24 July 2017

अलग झंडे का राग, देश की अखंडता पर चोट

कर्नाटक राज्य के लिए अलग झंडा बनाने की तैयारी कर रही कर्नाटक सरकार को गृह मंत्रालय से बड़ा झटका लगा है। गृह मंत्रालय ने अलग झंडे के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि संविधान में फ्लैग कोड के तहत देश में एक झंडे को ही मंजूरी दी गई है। इसलिए देश का एक ही झंडा होगा। 
प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है। यही उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक होता है। हमारी स्वतंत्रता हमारा संविधान किसी एक क्रांति का परिणाम नहीं है। यह कई सौ वर्षों के प्रयासों का फल है कि आज हम एक देश के तौर पर दुनिया के सामने गणतन्त्र के रूप में खड़े हैं। इसके लिए अनेक प्रकार से प्रयास किए गए। इनमें असंख्य लोगों की भागीदारी थी। कुछ शस्त्रधारी थे और कुछ अहिंसक। स्वतंत्रता के लिए समर्पित अनेक व्यक्तियों और संस्थाओं के सामूहिक प्रयत्नों का फल हमारा संविधान, हमारा एक राष्ट्रध्वज और एक राष्ट्रगान है जोकि हमें विश्व के एक सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित करता है।

भले ही लोग इस घटनाक्रम को राजनीति से प्रेरित मानकर देश की अखंडता के खिलाफ न समझकर और कर्नाटक कांग्रेस के अपने अलग क्षेत्रीय झंडे के प्रस्ताव को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हां लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि ब्रिटिश शासन से लम्बी लड़ाई के बाद हमने यह गौरव प्राप्त किया है। 
यह प्रस्ताव फिलहाल शुरुआती स्तर पर ही है। अलग ध्वज के लिए याचिकाकर्ताओं के एक समूह के सवालों के जवाब में राज्य सरकार ने राज्य के लिए कानूनी तौर पर मान्य झंडे का डिजाइन तैयार करने के लिए अधिकारियों की एक समिति तैयार की थी। दिलचस्प बात यह है कि याचिका 2008-09 के बीच उस वक्त दायर की गई थी जब कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। उस वक्त भाजपा सरकार ने कर्नाटक हाई कोर्ट को बताया था कि राज्य का अलग झंडा होना देश की एकता और अखंडता के खिलाफ है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि सरदार पटेल और नेहरू को आदर्श मानने वाली पार्टी अतीत से कोई सबक नहीं लेना चाह रही है।
लगभग 564 छोटी बड़ी देशी रियासतों के अलग-अलग झंडों के नीचे हमने अपना इतिहास पढ़ा। आज हमारे पास हमारी एक राष्ट्रीय पहचान तिरंगा है भारत में किसी राज्य के पास अपना झंडा नहीं है पर जम्मू-कश्मीर के पास अपना अलग झंडा है। क्या वह दंश देश के लिए कम है जो अब कर्नाटक भी इस तरह की मांग पर उतर आया। यदि कोई एक अपराध करता है और उसे देखकर सब अपराध करने लगे तो फिर अपराध की परिभाषा ही बदल जाएगी!

भले ही कुछेक राजनेता कह रहे हां कि इसका सियासत से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन, देश की दोनों ही बड़ी पार्टी के राजनीतिक कार्यकर्ता एक अजीब मुस्कान के साथ इस दलील को खारिज करते दिखते हैं। कारण आने वाले चुनाव में दोनों ही पार्टियाँ इस मुद्दे से अपने-अपने पाले में वोट खीचतें नजर आयेंगे। अपनी पुरानी एक राष्ट्र एक ध्वज की दलील पर कायम रहते हुए भाजपा ने इसे राष्ट्रवाद का मुद्दा बनाया है।  इस पर राज्य की कांग्रेस सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। उनका कहना है कि भाजपा बेमतलब ही इस मुद्दे का विवाद बना रही है।

लेकिन प्रश्न किसी राजनैतिक दल के नेता द्वारा आलोचना या प्रसंशा का नहीं है सवाल देश की अखंडता का है। अभी कुछ रोज पहले दक्षिण भारत से कुछेक लोगों द्वारा अलग देश द्रविडनाडू की मांग भी उठाई गयी थी जिसमें उन्होंने कहा था यदि हमें बीफ खाने की इजाजत नहीं है तो हमें अलग देश दे दीजिये। इससे भी साफ पता चलता है कि बेवजह भारतीय समुदाय के अन्दर अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा के लिए कुछ लोग नये-नये विवादों को भाषा, क्षेत्र, खान-पान से लेकर अलग ध्वज के नाम पर जन्म देने से बाज नहीं आ रहे हैं। ये दुर्भाग्य की बात है कि इस देश की विविधता के नाम पर एकता को खंडित किया जा रहा है।


हम सब जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर को राज्य के संविधान की धारा 370 के तहत अलग झंडा रखने का अधिकार प्राप्त है। जम्मू-कश्मीर को धारा 370 में विशेष अधिकार देने से देश को कितनी क्षति हुई है, यहां उसे बताने की जरूरत नहीं है। यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं विवेक शुक्ला कहते हैं कि अलग झंडा और संविधान देने के चलते ही वहां पर भारत से बाहर जाने की मानसिकता पैदा हुई। ये तो देश के जनमानस का संकल्प है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग बना हुआ है पर वस्तुतः स्थिति ये है कि राज्य की जनता भारत से अपने को जोड़ कर नहीं देखती। उसका संघीय व्यवस्था में कतई विश्वास नहीं है। वह भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को ठेंगा दिखाती है और कश्मीर घाटी में इस्लामिक शासन व्यवस्था लागू करना चाहती है।

संघीय ढांचे में रहकर राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्राप्त हो इस सवाल पर कोई मतभेद नहीं हो सकते। यूं भी अब तमाम राज्य अपने यहां विदेशी निवेश खींचने के लिए प्रयास करते हैं। पहले यह नहीं होता था पर बदले दौर में हो रहा है। राज्यों के मुख्यमंत्री लंदन, सिंगापुर और न्यूयार्क के दौरों पर जाते हैं ताकि उनके यहां बड़ी कंपनियां निवेश करें पर ये सब प्रयास और प्रयत्न होते हैं एक भारतीय के रूप में ही। ये मुख्यमंत्री अपना अलग झंडा लेकर नहीं जाते विदेशों मेंऋ पर कर्नाटक सरकार तो उल्टी गंगा बहाना चाहती है। जाहिर है, देश कर्नाटक सरकार के फैसले को नहीं मानेगा। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का ये फैसला कांग्रेस की बदहाल राजनीति को और बदहाल कर देगा इसकी पूरी संभावना है।

 विनय आर्य 

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