Thursday 10 August 2017

राजनेताओं के मुखौटे से शर्म और सम्मान का उतरता परदा

हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे विकास पर चंडीगढ़ में आईएएस अधिकारी की बेटी वर्निका कुंडु का पीछा करने और छेड़खानी का लगा आरोप के बाद देश के राजनेताओं के चेहरे से शर्म सम्मान के पर्दे की खीचतान जारी है. घटना 4 अगस्त की है. वर्निका की शिकायत पर पुलिस ने तब विकास समेत दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया था. लेकिन जमानत पर जल्द रिहा कर दिया गया. जिसके बाद मीडिया ट्रायल शुरू हो गया और हरियाणा से शुरू हुई प्रधानमंत्री मोदी की मुहीम बेटी बचाओं बेटी पढाओंपर सवालिया निशान भी उठने शुरू हो गये है. हालाँकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने रविवार को आरोपी लड़के के पिता सुभाष बराला का बचाव करते हुए कहा कि बेटे के किए के कृत्य लिए पिता को सजा नहीं दी जा सकती. ये सुभाष बराला नहीं बल्कि एक अन्य व्यक्ति से जुड़ा मामला है, इसलिए उनके बेटे के खिलाफ कदम उठाया जाएगा

मामला कितना भी बड़ा-छोटा या फिर सच्चा या झूठा है यह अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन राजनीति की शालीनता में एक पूर्व प्रसंग यहाँ रखना जरूरी है कि लालबहादुर शास्त्री जी उत्तर प्रदेश में मंत्री थे, तब एक दिन शास्त्री जी की मौसी के लड़के को एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए कानपुर से लखनऊ जाना था. गाड़ी छूटने वाली थी, इसलिए वह टिकट न ले सका. लखनऊ में वह बिना टिकट पकड़ा गया. उसने शास्त्री जी का नाम बताया. शास्त्री जी के पास फोन आया.शास्त्री जी का यही उत्तर था, “हाँ है तो मेरा रिश्तेदार! किन्तु आप नियम का पालन करें.

लेकिन शर्म और सम्मान का जो पर्दा राजनेताओं को अपनी पनाह में लेकर सम्मान देता आया है उसे आज तार-तार किया जा रहा है और पूरी बेशर्मी के साथ कहा जा रहा है कि पिता का बेटे की करतूतों से क्या लेना-देना? अगर ऐसा है तो हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष सुभाष बराला को खुद अपनी तरफ से चंडीगढ़ पुलिस के कमिश्नर को पत्र लिख कर कहना चाहिए था कि उनके बेटे ने जो कारनामा किया है उसका ताल्लुक उनके राजनैतिक पद से किसी भी तरह न जोड़ा जाये और वही किया जाये जो वर्णिका के बयान के मुताबिक कानून कहता है. लेकिन इसके उलट विकास की जल्दी जमानत होना, सोशल मीडिया के माध्यम से पीडिता के चरित्र पर तरह-तरह के सवाल उठाये जाना यानि खराब चरित्र के सहारे लड़की को कमजोर किये जाने का प्रयास सा होता दिख रहा है. मीडिया पुरे मामले में संजय और राजनेता धृतराष्ट्र की भांति दिखाई पड़ रहे है.

जिस तरह बराला परिवार और भाजपा समर्थकों ने इस युवती के खिलाफ पोस्ट करना शुरू किया, साथ ही राज्य की आईएएस एसोसिएशन और मुख्य सचिव ने अपने किसी सहयोगी और उनकी बेटी के साथ हुए ऐसे घटनाक्रम के मामले से दूरी बना रखी हैक्या ये उस खेल की शुरुआती चेतावनी है, जो हर बार खेला जाता है. हालाँकि रेप या छेड़छाड़ का आरोप लगाना बेहद आसान है, अक्सर झूठे मामले उजागर भी होते है लेकिन जिन पर आरोप लगाया जाता है सालों तक उनके दामन पर दाग तो रहता ही है. साथ में परिवारजनों का सर शर्म भी झुक जाता है. दिल्ली निर्भया कांड के बाद हम जिस तरह के माहौल में रह रहे हैं वह सच में डरावना है. जैसे ही रेप या छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज होती है और शोर मचने लगता है.

वैसे इसके पीछे गलती इन लोगों की नहीं है गलती है समाज की उस मानसिकता की जो ये निर्धारित कर चुकी है कि अगर कोई लड़की किसी लड़के पर रेप या छेड़छाड़ का इल्जाम लगाती है तो वो सच ही होगा. पर एक दूसरा वर्ग भी है जो हर एक घटना के बाद यह कहता आसानी से मिल जाता है कि लड़कियां तो झूठे आरोप ही जड़ना जानती है ऐसा क्यों? गौरतलब है कि ऐसे मामलों में आंख बंद कर महिलाओं पर विश्वास करने की कई वजहें हैं, जिनमें से एक वजह महिलाओं को कमजोर समझा जाना है. इसके अलावा हमारे देश में महिलाओं के खिलाफ जिस तरह से हिंसात्मक मामले बढ़ते जा रहे हैं, उस वजह से भी इन मामलों को भी सच्चा मान लिया जाता है. वैसे मै आपको बता दूं कि इन इल्जामों का खामियाजा सिर्फ उन पुरूषों को ही नहीं भुगतना पड़ता जो इन आरोपों का शिकार बनते हैं, बल्कि उन महिलाओं को भी भुगतना पड़ता है जो सच में छेड़छाड़ पीड़िता होती हैं

लेकिन वर्निका- विकास मामले में कुछ सवाल भारतीय कानून व्यवस्था के सामने हाथ से फैलाये खड़े दिख रहे है. यदि किसी कारण इस मामले में आरोपी युवक कोई आम नागरिक होता तो क्या तब भी प्रसाशन उसे तुरंत जमानत देकर रिहा कर देता? दूसरा सवाल यह है कि यदि यहाँ लड़की कोई आम गरीब परिवार की बेटी होती तो क्या तब भी यह मामला इतना उछलता? शायद सबका जवाब ना होगा क्योंकि ना जाने रोज कितने मामलों में पीडिता की शिकायत पर पुलिस छेड़छाड़ के आरोपियों को उठक बैठक लगवाकर थाने से ही छोड़ देती है. लेकिन इस मामले में मीडिया और विपक्ष पूरी तरह समाज में परोसकर पब्लिसिटी स्टंट करती दिख रहे है.

हो सकता है दो चार दिन के बाद जाँच रिपोर्ट सामने आये और मामला कुछ और निकले कुछ दिल्ली की जसलीन कौर  की तरह जिसमें उसने सर्वजीत नाम के युवा पर आरोप लगाया था  बाद में खुद एक प्रत्यक्षदर्शी ने भी इस मामले में बयान दे कर जसलीन के आरोप को गलत बताया था. या फिर हरियाणा की दो सगी बहनों की तरह जिन्हें मीडिया ने एक दिन में झाँसी की रानी बता दिया था और इसी खट्टर सरकार उनके लिए इनाम राशि की तुरंत घोषणा की थी. हालाँकि बाद में आरोप निराधार पाए. ये भी हो सकता है वर्निका के आरोप सच हो लेकिन राज्य सरकार के दबाव में सबूत मिटाकर केस को कमजोर किया जाये! कुछ भी लेकिन एक बात सत्य है कि देश के राजनेताओं के मुखोटे से शर्म और सम्मान का पर्दा उतरता जरुर दिखाई दे रहा है...
राजीव चौधरी 


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