Wednesday 20 September 2017

स्वामी जी का कथन कितना प्रासंगिक

 सत्यार्थ प्रकाश के अंत में स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश देख रहा था तो उसमें स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा है कि जिस से विद्या, सभ्यता, धर्मात्मता, जितेन्द्रियतादि की बढ़ती होवे और अविद्यादि दोष छूटें उस को शिक्षा कहते हैं. स्वामी जी के कथन को पढने के बाद एक-एक कर शिक्षा के नाम पर देश के स्कूलों में बच्चों पर हो रहे शारारिक, मानसिक अत्याचार याद आने लगे कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था कितने उत्तम शिखर से चलकर कितने निम्न स्तर की ओर जा रही है. हाल ही में हुई गुडगाँव वाली घटना याद आने लगी आखिर क्यों यह सब किसके लिए हो रहा है? क्यों इस शिक्षा के मासूम बच्चों को रोंदा जा रहा है. 7 वर्ष के छात्र प्रद्युम्न की हत्या के मामले की जांच में जैसे-जैसे पुलिस आगे बढ़े रही वैसे-वैसे स्कूल प्रशासन की लापरवाही की परतें दिन-प्रतिदिन खुलती नजर रही है.

सुनकर हैरानी भी होती है कि रायन इंटरनेशनल स्कूल की लापरवाही की लिस्ट कितनी लम्बी है. स्कूल के छोटे बच्चें बता रहे है कि दो महीने पहले इसी स्कूल के प्रथम ताल के टॉयलेट में क्लास ग्यारह और बारह के बच्चे शराब पी रहे थे. जब स्कूल के छोटे बच्चो ने उनकी ये करतूत देख ली तो इन छात्रों ने उन्हें अंजाम भुगतने की धमकी दी थी. स्कूल में छोटी क्लास के इन छात्रों ने जब इस बात की शिकायत रायन स्कूल की सुपरवाइजर और स्कूल की स्पोर्ट्स टीचर से की तो उन्होंने इस बात को यहीं पर दबा देने की बात कही और परिवार को भी ना बताने की बच्चों को हिदायत दी थी.
आखिर हमारा समाज किस शिक्षा के लिए मारा मारी में लगा है क्यों इस शिक्षा के मासूम बच्चों का मस्तिक्ष प्रेशर कुकर बना रहा है. सिर्फ अपने स्थानीय समाज, परिवार और रिश्तेदारों को यह दिखाने के लिए कि देखिये हमारे बच्चें कितने महंगे स्कूल में पढ़ते है? जब यह बच्चें बड़े होते है इनमें एक दो डॉ या इंजिनियर बनता है वो खबर तो बड़ी बनाकर सुनाई जाती है लेकिन इनमें समाज और परिवार के प्रति जो नैतिकता शून्य होती है उसका वर्णन नहीं किया जाता. लगता है वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य केवल ऐसी शिक्षा का देना है जिसमें आर्थिक शक्ति का आगमन हो और बच्चें के अन्दर से मनुष्यता के बीज हमेशा के लिए मिटा दिए जाये.

समाचारपत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि रेयान स्कूल कुछ बच्चों और अभिवावक बता रहे है कि स्कूल की बाउंड्री के अंदर ही ड्राइवर लोग शराब पीते थे और ताश खेलते थे. स्वामी जी कहते है कि संस्कारउनको कहते हैं कि जिस से शरीर, मन और आत्मा उत्तम होवे क्या ऐसी व्यवस्था में पढने वाले बच्चें संस्कारवान बन सकते है. शिक्षा का मंदिर जिसे स्कूल कहा जाता ऊँचें भवन से या वहां वहां के स्टाप के आचरण व्यवहार से बड़ा बनता है यह भी लोगों को सोचना चाहिए?

स्वामी जी आगे कहते है कि जो सत्य शिक्षा और विद्या को ग्रहण करने योग्य धर्मात्मा, विद्याग्रहण की इच्छा और आचार्य का प्रिय करने वाला हो शिष्यउस को कहते हैं. लेकिन आज के मौजूदा दौर में यह पवित्र रिश्ता भी छिन्न भिन्न हो चूका है कहीं से खबर आती की बच्चों में महिला अध्यापक पर फब्तियां कसी तो किसी खबर में सुनने को आता है स्कूल में इंग्लिश की टीचर ने 13 साल के बच्चे से यौन सम्बन्ध बनाये. भला एक गौरवशाली परम्परा वादी भारतीय समाज का इससे बिगड़ा रूप क्या होगा? समय की मांग है कि बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में समझाएं. इसमें झिझक की कोई बात नहीं है, बल्कि ये बच्चों की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी कदमों में से एक है. उसके भीतर विश्वास भरें कि आप हर हाल में उसके साथ हैं ताकि वो खुलकर अपनी बात आपसे शेयर कर सके.कई बार बच्चे आपस में भी छेडछाड़ का शिकार होते हैं. जैसे बड़े बच्चे किसी बात को लेकर छोटी क्लास के बच्चों को तंग करते हैं. कई बार ये तंग करना बच्चों को शारीरिक या भावनात्मक नुकसान पहुंचाता माना कि भौतिक और आर्थिक सफलता आज जरूरी है अशिक्षित मनुष्य के सामने कोई राह नहीं होती. उसे बड़ा आफिसर, डाक्टर या फिर नेता बन जाना चाहिए लेकिन सवाल फिर यही आता क्या बिना संस्कार बिना नैतिकता के बिना ऊँचे आदर्शों के यह सफलता समाज के लिए घातक नहीं होगी?



इस मामले में वकील सुजीता श्रीवास्तव के माध्यम से दायर जनहित याचिका में स्कूल की चाहरदीवारी के भीतर बार बार छात्रों के शोषण और बाल यौन शोषण की हो रही घटनाओं का मुद्दा उठाया हैं जिसे लेकर समाज बिलकुल भी जागरूक नहीं है लेकिन इस विषय पर समाज का एक बड़ा हिस्सा बात करना भी अनुचित या शर्म का विषय समझता रहा है यदि इक्का दुक्का मामले सामने भी आये तो परिवारों ने मिलकर इस पर शर्म संकोच का पर्दा डालने का कार्य किया और पूरे देश में बच्चों के साथ होने वाले अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं. जबकि स्वामी जी सत्यार्थ प्रकाश के तीसरे समुल्लास में लिखते है कि जब आठ वर्ष के हो तभी लड़कियों को लड़कियों की और लड़कों को लड़कों की पाठशाला में भेज दिया जाये और दुष्टचारी अध्यापक और अद्यापिकाओं से शिक्षा न दिलावें.
बचपन में घर और आस-पास का माहौल और स्कूल किसी भी इंसान के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है. आधुनिक स्कूलों से निकले आचरण हीन अध्यापक, पैसा कमाने की मशीन बने स्कूल नित्य नये बच्चों को बिगाड़ने के कारखाने खोलते जा रहे है. इसके बाद अक्सर बहुतेरे माता-पिता रोते दिख जाते है कि हमारा बेटा या बेटी हमारी बात नहीं सुनते हम पर झल्लाते चिल्लाते है तो सोचिये क्या आपने उसे इस नैतिक शिक्षा के लिए उसे स्कूल में भेजा था? वहां उसे जो मिला आज वो वही आपको दे रहा है.

 विनय आर्य 

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