Friday 27 October 2017

फिल्म हिरोइन ने अपने बेटे को गुरुकुल ही पढने क्यों भेजा

सोनाली बेंद्रे की किताब मॉडर्न गुरुकुलका एक अंश.
वैदिक पद्धति को अच्छी तरह से पढ़ लेने के कारण मेरे लिए चीजें बहुत स्पष्ट थीं सही शिक्षा ही संतुलित व विचारशील व्यक्ति के निर्माण की कुंजी है. इससे मेरे लिए हर तरह के विरोध का सामना करना आसान हो गया. मेरे परिवार व मित्रों में से लगभग सभी ने यही कहा कि मैं रणवीर की स्कूली पढ़ाई में कुछ अधिक ही खर्च कर रही हूं. उनका विचार था कि यदि मैं इस राशि को बैंक में जमा कर देती तो इससे मिला ब्याज मुझे कहीं अधिक अमीर बना देता. जबकि मेरे विचार से यह मेरा सबसे बेहतरीन निवेश था, क्योंकि अयोग्य व्यक्तित्व की भरपाई कितनी भी बड़ी राशि से नहीं हो सकती.
कहा जाता है कि सच्ची शिक्षा वही है, जो आपको बंधनों से मुक्त करे.मुझे जब भी अपने मार्ग पर संदेह होता तो मैं स्वयं से पूछती कि ऐसा करना उसे स्वतंत्र करेगा या बंधन में बांध देगा?’ और कहीं गहरे में मुझे इसका उत्तर मिल जाता है. हर बच्चे की स्वतंत्रता व सीमाबद्धता का अपना दायरा होता है. मुझे अपने बच्चे के व्यक्तित्व के इन दोनों पहलुओं का सम्मान करते हुए उसी के मुताबिक उसके कौशल को धार देनी होगी. हर प्रणाली के अपने फायदे व नुकसान हैं. मुझे किसी एक की दूसरे से तुलना करने का कोई हक नहींऔर मैं यहां ऐसा करने भी नहीं वाली.

जब मैं बताया करती कि मेरा बेटा किस स्कूल में जाता है तो कुछ महिलाएं खीसें निपोरने लगतीं. उनके अनुसार, यह बहुत अभिजात-वर्गीय था. बतौर मां आप अपने मन की आवाज सुनें तथा वही चुनें, जिसे आप अपने बच्चे के लिए ठीक समझती हों. कुछ ऐसे भी माता-पिता हैं, जो यह मानते हैं कि इतना अधिक पैसा देने के बाद उनके बच्चे की शिक्षा से जुड़ी प्रत्येक जिम्मेदारी स्कूल की है. आखिर वे स्कूल को इतनी बड़ी राशि जो दे रहे हैं. लेकिन इसके उलट, इस स्कूल में अभिभावकों की महती भूमिका है. आपको यह बात हमेशा याद रखनी होगी कि शिक्षक कभी भी माता-पिता की जगह नहीं ले सकते.
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है. यदि स्कूल एक कक्षा में बच्चों की संख्या 20 तक सीमित रखेगा और हर कक्षा में दो शिक्षक होंगे तो इस उच्च स्तर को बनाए रखने में खर्च भी अधिक होगा. वे वहां परोपकार के लिए नहीं हैं. लेकिन मैंने रणवीर को वहां कुछ भिन्न कारणों से भर्ती करवाया था. वैदिक काल में योग, शरीर क्रिया विज्ञान, ज्योमेट्री, अंक गणित, बीज गणित, ज्योतिष, खगोल-शास्त्र, संगीत तथा कला जैसे विषय पढ़ाए जाते थे. यानी उस समय पूरा ध्यान केवल विज्ञान पर ही केंद्रित नहीं था. बच्चों को सभी विषय पढ़ने चाहिए, जिससे वे बड़े होकर अपनी मर्जी के मुताबिक जो चाहे, बन सकें. आई.बी. में इसी सिद्धांत का पालन किया जाता था, इसलिए यही वह प्रमुख कारण था, जिसके चलते मैंने उन्हें चुना था.

अगर रणवीर विज्ञान व गणित में अच्छा होता तो उसके लिए संभवतः कोई भी स्कूल चल जाता. लेकिन वह रचनात्मक रुझान वाला है, इसलिए मुझे लगा कि उसे किसी अन्य स्कूल में दाखिल करवाने पर वह भी उतना ही असहज रहेगा, जितने मैं व गोल्डी अपने स्कूली दिनों में रहे थे. मैं भाषा व सामाजिक विज्ञान में अच्छी, जबकि गणित व विज्ञान में औसत थी. और इसके चलते मुझे हमेशा असफल महसूस कराया जाता. यदि मुझे भाषा की पढ़ाई करने का मौका मिलता, विशेष रूप से उसमें, जिसमें मैं सर्वोत्तम थी तथा मुझे अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया जाता तो मैं निस्संदेह कुछ अलग तरह की छात्रा होती. मैं अपने बच्चे के लिए ऐसा मानकीकरण नहीं चाहती थी. आई.बी. स्कूल में रणवीर के पास चयन का विकल्प होगा. उसे वहां गणित भी पढ़ना होगा, लेकिन बुनियादी स्तर का. मान लीजिए, यदि आगे जाकर वह अंग्रेजी साहित्य में बेहतर होने के कारण उसी क्षेत्र में जाने का विकल्प चुने तो उसके लिए केवल उसी विषय के पाठ्यक्रम को कठिन बनाया जाएगा. यह ऐसी अनुकूल परिस्थिति होगी, जिससे उसका जीवन और अधिक बेहतर हो सकेगा.

मैं यह नहीं कह रही कि मेरे बच्चे का स्कूल या शिक्षा-प्रणाली सबसे बेहतरीन है. ऐसा बिल्कुल नहीं है! निस्संदेह, इसमें कुछ खामियां भी हैं. मेरा कहने का केवल यह अर्थ है कि आपके पास अपने बच्चे को किसी भी स्कूल में भेजने के सही कारण अवश्य होने चाहिए. संभव है कि आपके लिए मुझे काम पर जाना होता है और यह स्कूल सबसे पास में है, इसलिए मेरे बच्चे के लिए सबसे अच्छा स्कूल हैभी एक कारण हो. साथ ही, यदि कुछ ऐसा हो, जो आप अपने बच्चे को सिखाना चाहती हैं, लेकिन स्कूल वो नहीं सिखाता तो उसे इसकी शिक्षा आप स्वयं दें. स्कूल का हिस्सा बनें. शिक्षकों से बात करें. अपने बच्चे की शक्तियों व उन बातों की पहचान करें, जिन्हें वह समझ नहीं पा रहा.
बतौर अभिभावक हमें अपने बच्चे के विकास के प्रत्येक पहलू की संपूर्ण जिम्मेदारी लेनी होगी. हम उसकी शिक्षा का दायित्व किसी और को नहीं सौंप सकते. ऐसी सोच रहने पर हमें अपने बच्चे को सर्वोत्तम या सबसे महंगे स्कूल में भेजने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी. अंत में, महत्त्व उन्हीं मूल्यों का होगा, जो हमने अपने बच्चे को उसके पालन-पोषण के दौरान दिए हैं.

अपने बच्चे की आंखों से देखना
रणवीर को लेकर गोल्डी के संशय मुझसे बिल्कुल अलग थे. डिस्लेक्सिक व रंगांध होने के कारण उनके विभ्रम भिन्न प्रकृति के थे. जब भी रणवीर किसी चीज को समझने या कुछ सीखने में अधिक समय लगाता तो गोल्डी की चिंता बढ़ जाती. क्या उसे भी डिस्लेक्सिया है? क्या उसमें यह रोग मुझसे आया है? क्या वह रंगों को सही ढंग से पहचानने में अक्षम है? उनको शांत करने और सबकुछ ठीक होने पर पुनः आश्वस्त करने की जिम्मेदारी मुझ पर थी. कुछ समय बाद मैं समझ गई कि भले ही गोल्डी जाहिर नहीं करते, लेकिन उनके लिए स्कूल अवश्य ही कष्टदायक रहा होगा, इसलिए वो हर छोटी बात पर आवेश में आ जाते हैं. जाहिर है कि इस दुःखद अनुभव का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे उनका मूल स्वभाव परिवर्तित हो गया. इसी कारण वे ऐसा व्यवहार करते हैं.

अब मैं अपने पति को भिन्न नजरिए से देखने लगी हूं. मुझे यह बेहद आश्चर्यजनक लगा कि अपने पति से जुड़ी इतनी महत्त्वपूर्ण बात की जानकारी मुझे अपने बच्चे की परवरिश के दौरान हुई. वर्षों से इस बात की जानकारी होने के बावजूद मुझे परिस्थिति की गंभीरता का अंदाजा अब जाकर हुआ है. माता-पिता बनने के बाद हमारा इस भांति कई स्तरों पर विकास हुआ. हमने एक-दूसरे से जुड़ी बहुत सी बातों को समझा और उनके अनुकूल हो गए, जिससे हमारा रिश्ता और भी मजबूत हो गया. यदि हमारे बच्चे का जन्म नहीं हुआ होता तो मैं गोल्डी के भय की गहराई को कभी नहीं माप पाती.
जिस समय गोल्डी स्कूल में थे, उस समय पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं और उनके निदान की जानकारी बहुत कम लोगों को थी. उन्होंने अपने बुद्धिमान न होने की झूठी बात पर विश्वास कर बहुत कष्टप्रद समय गुजारा. निस्संदेह वे बुद्धिमान हैं. बस, वे चीजों को अलग दृष्टि से देखते हैं और उनका यह तरीका बहुत शानदार है! लेकिन उन दिनों बच्चों को नीचा दिखाना और उन पर सख्ती बरतना ही परवरिश का एकमात्र प्रचलित तरीका था. बच्चों को वर्षों तक अपने अकेलेपन, वैराग्य भाव, क्रोध, निराशा व ग्लानि से जूझना पड़ता. इस बोझ को उठाना सरल नहीं था और इनमें से कुछ के घाव जीवन भर बने रहते हैं.

रणवीर की पीढ़ी में अब लोगों को विभिन्न तरह की शारीरिक समस्याओं की जानकारी तो है, लेकिन पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं व विकारों के बारे में अधिकांश लोगों को कुछ नहीं पता. भले ही यह कोई बहुत बड़ा विकार नहीं है, लेकिन यह ऐसी समस्या अवश्य है, जिसे पूरी संवेदनशीलता से संभालने की आवश्यकता है. बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि भले ही बहुत अधिक जानकारी मौजूद है, लेकिन इस ज्ञान के समुद्र के बीच भी हम सामान्य मुद्दों पर हार मान लेते हैं.
स्कूल का चयन करते समय मैंने इन सब बातों का ध्यान रखा. मैं नहीं जानती कि भविष्य में क्या होने वाला है, इसलिए आज मैं उसे जितना हो सके उतना बेहतर देना चाहती हूं. कौन जाने, एक दिन मैं उसे दुनिया के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय में भेज सकूं. मुझे एक बार में एक ही कदम उठाना होगा.
आज मैं रणवीर की वर्तमान शिक्षा से पूरी तरह संतुष्ट हूं. लेकिन आरंभ में ऐसा नहीं था. शुरुआती वर्षों में उन्हें पढ़ने के लिए कोई पुस्तक नहीं दी गई, जो सरासर गैर-पारंपरिक बात थी. कुछ माह बीतने पर मुझे अपने निर्णय पर संदेह होने लगा. कई महीनों तक उसे सही स्कूल में दाखिल करवाने पर मेरा संशय कायम रहा. लेकिन अब ऐसा नहीं है.
मैं गुरु हूं
परवरिश एक निजी यात्रा है. आप अपने बच्चे का पालन-पोषण किस तरह करना चाहते हैं, यह जानने के लिए आत्म-विश्लेषण करना बहुत आवश्यक है. इस प्रक्रिया और इससे मिले परिणाम विपरीत हो सकते हैं, लेकिन आपके विचार स्थिर होने चाहिए.
रणवीर के लालन-पालन का दायित्व पूरी तरह से मुझ पर है. इस कार्य की कुछ जिम्मेदारियां मैंने उसके शिक्षकों, परिवार के बड़ों, परिजनों व घरेलू सहायकों को भी सौंपी हैं. शिक्षक रणवीर को वैसे ही पढ़ा रहे हैं जैसा हम चाहते हैं, लेकिन अपने बच्चे को शिक्षित करना मेरा भी काम है. बतौर अभिभावक बच्चों की देखभाल मुख्य रूप से हमारा दायित्व है. इसका और कोई विकल्प नहीं हो सकता.
बहुत से माता-पिता अक्सर शिकायत करते हैं कि स्कूल पर्याप्त रूप से कार्य नहीं कर रहा. मुझे यह नहीं समझ आता कि स्कूल यह क्यों करेगा? माता-पिता होने के कारण हमें अपने बच्चे के जीवन में और अधिक रुचि लेनी होगी. साथ ही हमें खुद भी अनुशासित जीवन जीना होगा. आज हम शिक्षकों का उतना सम्मान क्यों नहीं करते, जितना पहले किया करते थे? गुरुकुल प्रणाली के दौरान नैतिक अधिकार शिक्षकों के हाथ था.अपने शिक्षा-काल में छात्र उनके साथ ही रहते तथा अपना प्रत्येक कार्य उनके मार्गदर्शन में करते थे. वहीं शिक्षक जो कुछ भी पढ़ाते, उसका स्वयं भी पालन करते हुए छात्रों के लिए मानदंड स्थापित कर देते. इस तरह छात्र अपने शिक्षकों का आदर करते हुए उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखते थे. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. अब अधिकांश शिक्षक शिक्षण को केवल आजीविका कमाने का साधन मानते हुए छात्रों के जीवन में अधिक रुचि नहीं लेते. इसी कारण मुझे लगता है कि माता-पिता को स्वयं ही अपने बच्चे का गुरु बनना होगा. उन्हें अपने बच्चों के लालन-पालन में रुचि लेते हुए उनके सामने उदाहरण पेश करना चाहिए...
चित्र साभार गूगल 


Wednesday 25 October 2017

महर्षि दयानन्द सरस्वती का 134वां निर्वाणोत्सव सम्पन्न

आर्य केन्द्रीय सभा दिल्ली राज्य के तत्त्वावधान महर्षि दयानन्द सरस्वती का 134वां निर्वाणोत्सव सम्पन्न

आर्य समाज के उत्थान के लिए आत्म चिन्तन व विचार करने का समय आ गया है-
सुरेशचन्द्र अग्रवाल,प्रधान, सा.आ. प्र.सभा 

घटती धार्मिकता, आध्यात्मिकता, नैतिकता के लिए बहुत जरूरी है वेदों की ओर लौटना-डॉ. महेश विद्यालंकार

वर्ष में एक दिन यज्ञ दिवस मनाया जाए - आचार्य सनत् कुमार

जल्द शुरू होगा एम.डी.एच. के सौजर्न्य से आर्य मीडिया सेन्टर

बर्मा में एम.डी.एच. के सहयोग से शीघ्र ही आर्ष गुरुकुलस्थापित होगा 

आर्य केन्द्रीय सभा दिल्ली राज्य के तत्त्वावधान में 19 अक्टूबर 2017 को दिल्ली के रामलीला मैदान में महर्षि दयानन्द सरस्वती का 134वां निर्वाणोत्सव आचार्य सूर्यदेव शास्त्री के नेतृत्य में यज्ञ से आरम्भ हुआ जिसमें श्रीमती आरती व श्री जोगेन्द्र खट्टर, श्रीमती अनिता व श्री प्रवीण वधवा, श्रीमती सुधा व श्री विद्यासागर वर्मा तथा श्रीमती कान्ता व श्री जितेन्द्र आर्य यजमान बने। सभी ने बड़ी श्रद्धा व भक्ति भाव द्वारा वेद मन्त्रों से महर्षि दयानन्द सरस्वती निर्वाण दिवस के अवसर पर प्रभु का गुणगान इस सकंल्प के साथ किया कि वे जीवन भर महर्षि दयानन्द सरस्वती के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करेंगे। यज्ञ संयोजन श्री मदनमोहन सलूजा एवं श्री कवंरभान खेत्रपाल ने किया।

श्री सत्पाल भरारा जी, प्रसिद्ध समाजसेवी ने जयघोष के साथ ओ३म्ध्वजारोहण किया। तदुपरान्त श्री धीरज कान्त व साथियों ने मधुर व  प्रेरणापद प्रभु भक्ति व महर्षि को श्रद्धासुमन से युक्त भजनों से आर्यजनों का मन मोह लिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सभा प्रधान आर्य नेता महाशय धर्मपाल जी ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश चन्द्र अग्रवाल प्रधान, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने महर्षि के जीवन से प्रेरणा लेते हुए कविता के माध्यम से स्वामी जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने जो सपने संजोये थे उस आर्य समाज की आज क्या दशा है उसका ग्राफ ऊंचा जा रहा है या नीचे इसे जानने के लिए आत्म चिन्तन व विचार करने का समय आ गया है। आज हमारा आध्यात्मिक पक्ष बहुत कमजोर होता जा रहा है। यदि हम सच्चे आर्य बन जायें तभी हम अपने परिवार को आर्य बना सकेंगे अपने पड़ोसी को आर्य बना सकेंगे और फिर अपने मोहल्ले को आर्य बना सकेंगे।’’ 

वैदिक विद्वान् व मुख्य वक्ता डा. महेश विद्यालंकार जी ने अपने उद्बोधन में निर्वाण शब्द की विस्तृत व्याख्या की व ऋषि के जीवन पर प्रकाश डाला। डॉ. महेश ने कहा ‘‘दुनिया के किसी भी मंदिर में प्रातः काल यज्ञ नहीं किया जाता। रामायण की कथा होती है, पुराणों की कथा होती है, महाभारत की कथा होती है लेकिन वेद की कथा किसी भी मन्दिर में नहीं की जाती। आज हमारे समाज में धार्मिकता, आध्यात्मिकता, नैतिकता घटती जा रही है इसलिए वेदों की ओर लौटना बहुत जरूरी है। आर्य समाज वेदों का ज्ञाता है। आज भी सर्वोत्तम विचारधारा का धनी आर्य समाज है। आर्य समाज ने जिस विचारधारा का दिया जलाया था उसे कदापि बुझने नहीं देना है। ऋषि ने हमें बहुत कुछ दिया है हमने उस दी हुई सम्पदा को सम्भालकर रखना है।’’ आर्य विद्या परिषद् प्रस्तोता श्री सुरेन्द्र रैली जी ने यज्ञ पर हुए शोध से प्रदूषण के कम होने  सम्बन्धी परिणामों की व्याख्या की।




वैदिक वैज्ञानिक विद्वान् आचार्य सनत् कुमार जी ने यज्ञ पर किये गये शोधकार्यां से अवगत कराया। आचार्य सनत् कुमार जी ने कहा ‘‘हमें सरकार के सामने यह प्रस्ताव रखना चाहिए कि जिस प्रकार योग दिवस मनाया जाता है उसी प्रकार वर्ष में एक दिन यज्ञ दिवस मनाया जाए।’’ स्वामी प्रवणानन्दजी ने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि हम सबने तो ऋषि के जीवन के विषय में निर्वाण दिवस के विषय में यहां आकर विद्वानों से काफी कुछ सुना समझा लेकिन हमारे जो बच्चे आज छुट्टी के दिन घरों में खेल रहे हैं दिवाली मना रहे हैं उन्हें आज घर जाकर निर्वाण दिवस के विषय में स्वामी दयानन्द जी के विषय में दीपावली के महत्त्व के विषय में जरूर बताएं तभी वे बच्चे स्वामी जी द्वारा बताये मार्ग पर चलना सीख सकेंगे उनके आदर्शों को अपने जीवन में अंगीकार कर सकेंगे।’’


सभा प्रधान एवं एम.डी.एच. ग्रुप चेयरमैन महाशय धर्मपाल जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमारे ऊपर महर्षि की बहुत बड़ी कृपा रही है। उन्हीं के आशीर्वाद व प्रेरणा से मैं आर्य समाज की सेवा में सक्षम हुआ हूं आप हमें आशीर्वाद देते रहें जिससे मैं आर्य समाज के कार्यों को आगे बढ़ाता रहूं।’’ महाशय जी ने आर्य चैनल खोलने के विषय में ध्यानाकर्षित करते हुए कहा कि ‘‘अभी आर्य समाज का चैनल खोलने में समय लगेगा लेकिन उसके पहले एक मीडिया सेन्टर खोलने का कार्य तत्काल प्रभाव से प्रारम्भ किया जा रहा है। वर्मा में गुरुकुल खोलने में सहयोग के सम्बन्ध में महाशय जी ने कहा कि वर्मा में गुरुकुल खोलने में जो भी धन व्यय होगा वह एम.डी. एच. की ओर से किया जाएगा आप लोग कार्य प्रारम्भ करें।’’ कार्यक्रम में श्री विद्यासागर वर्मा कृत योगदर्शन की काव्य रचना पर आधारित सी.डी. व श्री सतीश आर्य द्वारा अंग्रेजी अनुवाद योगदर्शन एवं डॉ. महेश विद्यालंकार जी द्वारा रचित पुस्तिका मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का लोकार्पण किया गया।


दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा महामंत्री श्री विनय आर्य ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए सहयोगटीम के कार्यकर्ताओं का परिचय कराया व सभी से अपील की कि वे अपनी अनावश्यक वस्तुएं सहयोग को दान करें जिससे वे वस्तुएं जरूरतमंद व्यक्तियों तक पहुंचाई जा सकें। श्री विनय आर्य ने सूचना देते हुए बताया कि दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के संयोकत्व में वेद रिचर्स फाउन्डेशन कालीकट में दिनांक 28 जनवरी से 7 फरवरी के बीच स्वाध्याय एवं भ्रमण का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसके संयोजक श्री शिव कुमार मदान जी है जो महानुभाव इस कार्यक्रम में जो जाना चाहें वे श्री मदान जी से सम्पर्क कर सकते हैं। श्री विनय आर्य ने यह भी कहा कि आज ये आयोजन तभी सफल माना जा सकता है जब हम आज शाम पटाखे न चलाते हुए अपने-अपने घरों के बाहर यज्ञ करें। यही महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को हम सब की सच्ची श्रद्धाजली होगी और दीपावली बनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।


कार्यक्रम में प्रसिद्ध उद्योगपति श्री योगेश मुंजाल, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा प्रधान श्री धर्मपाल आर्य, सर्वश्री ओम प्रकाश आर्य, शिव कुमार मदान, ईश नारंग, अरुण प्रकाश वर्मा, राजेन्द्र दुर्गा, एस.पी. सिंह, सुखबीर सिंह आर्य, रामनाथ सहगल, विद्यामित्र ठुकराल, मदन मोहन सलूजा, शिव भगवान लाहौटी, ओम प्रकाश घई, विक्रम नरूला, अजय सहगल, योगेश आर्य, जोगेन्द्र खट्टर, हरिओम बंसल, राजीव चौधरी, श्रीमती उषा किरण आर्य एवं दिल्ली की विभिन्न आर्य समाजों के पदाधिकारियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई। प्रसिद्ध समाज सेवी व श्री मनुज सेठ, प्रसिद्ध समाज सेवी व आर्यसमाज के विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान हेतु स्मृति चिन्ह व शाल द्वारा सम्मान दिया गया। इस अवसर पर स्वामी विद्यानन्द सरस्वती वैदिक विद्वान पुरस्कार से आचार्य सामश्रवा शास्त्री, डॉ. मुमुक्ष आर्य पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी स्मृति पुरस्कार से श्री अभिमन्यु चावला तथा श्रीमती हर्ष नारंग महिला कार्यकर्त्ता पुरस्कार से श्रीमती शशी चोपड़ा को सम्मनित किया गया। शान्ति गीत व शान्तिपाठ के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। प्रस्तुत रिपोर्ट तैयार करते समय जिन महानुभावों एवं पदाधिकारियों के नाम लिखने से रह गये हों उनके लिए लेखक क्षमाप्रार्थी है।
-सतीश चड्डा, महामंत्री


आतंक शब्द की दोहरी परिभाषा

राजनीति और पत्रकारिता की दुनिया में इस पर कोई एकराय नहीं है कि आतंकवाद क्या है या एक आतंकवादी गतिविधि में क्या-क्या  शामिल होता है. आतंकी शब्दों का इस्तेमाल लोग अकसर अपने नजरिए और समझ के हिसाब से करते हैं. मसलन आतंकवादी कौन है, और उसका किस विचाधारा, मत और मजहब से सीधा सम्बन्ध है. हाल ही में अमेरिका के लास वेगास में संगीत समारोह में हुए हमले में  58 लोगों की जान लेने और 500 से ज्यादा लोगों को घायल करने वाले हत्यारे स्टीफन पैडक को लेकर मीडिया में एक बहस जोर पकड़ रही है, पैडक ने एक समारोह में संगीत सुनने आई भीड़ पर पड़ोस के होटल की 32वीं मंजिल से गोलियां बरसाई थीं. उनके लिए हत्यारा, हमलावर, बंदूकधारी, लोन वुल्फ, जुआरी और पूर्व अकाउंटेंट जैसे शब्द इस्तेमाल हो रहे हैं लेकिन किसी ने अभी तक उन्हें आतंकवादी नहीं बुलाया. पश्चिमी मीडिया ने इस  वारदात के लिए अमरीका के गन कल्चर को भी जिम्मेदार ठहराया है. जबकि इस हमले को अमरीकी इतिहास में सबसे भयावह गोलीबारी कांड है.

हालाँकि गोलीबारी की ये अमरीका में कोई पहली घटना नहीं है. ऐसा अतीत में होता रहा है. पिछले वर्ष ऑरलैंडो के एक नाइट क्लब में हुई गोलीबारी में 49 लोग मारे गए थे. इससे पहले दिसंबर, 2015 में कैलिफोर्निया में हुई ऐसी ही एक घटना में 14 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. लेकिन इस बार सवाल उठ रहे है हत्यारे के मजहब को लेकर? सोशल मीडिया पर कुछ लोग लिख रहे हैं कि अगर पैडक अन्य धर्म से होता तो उनके लिए तुरंत आतंकवादी शब्द लिख दिया जाता. लेकिन कोई गोरा और ईसाई ऐसा हमला करे, तो उसे अचानक मानसिक रूप से बीमार बता दिया जाता है और सब कुछ सामान्य रहता है."

इसे भाषा की निष्पक्ष पत्रकारिता के सिद्धांत का जरुर दोहरा असर कहा जा सकता है और इसमें समस्त विश्व की मीडिया को आइना दिखाया जा सकता है. क्योंकि 2007 में अजमेर दरगाह विस्फोट में भावेश पटेल और उसके साथी को आजीवन कारावास की सजा सुनाये जाने के बाद अगले दिन हिंदुस्तान टाइम्स की हेड लाइन में लिखा था अजमेर दरगाह विस्फोट केस में दो हिन्दू आतंकियो को आजीवन कारावासमतलब कि मात्र एक घटना से भवेश पटेल के साथ हजारों लाखों वर्ष पुरानी सनातन परम्परा को आतंक शब्द से लपेटने वाले यही पत्रकार बन्धु थे जिन्हें आज 58 लोगो का हत्यारा पेड़क जुआरी नजर आ रहा है.

पश्चिमी मीडिया को अलग रखकर यदि बात अपने देश की मीडिया की करें तो यहाँ हर रोज मीडिया कर्मी किसी भी इस्लामिक व्यक्ति के किसी हिंसक कृत्य पर बड़े इत्मिनान से कहते नजर आते कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता लेकिन देश को जिहादी आतंकवादी कृत्यों से बचाव के लिए देश के सुरक्षा बलों ने जब मजहब विशेष के आरोपियों को बंदी बनाना आरंभ किया, तब मुसलमानों में असंतोष बढने लगा. तब इस असंतोष को दूर करने और उन्हें खुश करने के लिए देश में हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी गयी. इस षड्यंत्र के एक भाग के रूप में मालेगांव बम विस्फोट प्रकरण कई लोगों को फंसाया गया. इसके बाद इस वर्ष एक घटना कश्मीर में जब संदीप शर्मा उर्फ आदिल की गिरफ्तारी होती है वह न केवल कट्टर इस्लामिक था बल्कि पांच वक्त का नमाजी भी था. तब भी पुरे देश की मीडिया ने उसके साथ हिन्दू आतंकवादीशब्द का बेशर्मी से इस्तेमाल किया था.

पिछले कुछ वर्षो में देखे जब दिल्ली में कुछ ईसाई गिरिजाघरों में हुई छूटपुट चोरी की घटनाओं को अल्पसंख्यक ईसाई समाज पर हमला और उसके विरुद्ध दिल्ली, बैंगलोर से लेकर कोलकाता तक ईसाईयों द्वारा प्रदर्शन को मीडिया द्वारा बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित किया गया था जबकि उसी काल में दिल्ली के मंदिरों में करीब 206 और गुरुद्वारों में 30 चोरी की घटनाएँ हुई थी लेकिन वह सब छिपा दी गयी. कहने की आवश्यकता ही नहीं हैं की मीडिया अपने बौद्धिक आतंकवाद द्वारा व्यर्थ की सहानुभूति बटोर लेता है. ये बुद्धिजीवी यह कार्य हर एक क्षेत्र में करते दिखाई देते है. जब देश के पूर्वोत्तर इलाकों में ईसाई संस्थाओं द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरण को लेकर मीडिया छाती ठोककर उनका समर्थन करता रहा हैं उसे सेवा एवं उसे जायज ठहराता हैं जबकि यही मीडिया 2015 में आगरा में हुई घर वापसी की घटना को लेकर हिंदूवादी संगठनों के विरुद्ध मोर्चा खोल कर उन्हें अत्याचारी, लोभ प्रलोभन देकर हिन्दू बनाने का षड़यंत्र करने वाला सिद्ध करने में लगा था.

पत्रकारिता का स्वच्छ अर्थ होता कि पत्रकार जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर बिना किसी रंगभेद और क्षेत्रवाद के बिना समाज में अपनी आवाज उठाये लेकिन फिलहाल पुरे विश्व में पत्रकारिता के ये सिद्धांत उलट हो गये है. ये केवल इस मामले की बात नहीं है फ्रांस के शहर नीस में ट्रक से सेंकडो लोगों को कुचलने वाला मुस्लिम ट्रक ड्राइवर मानसिक रोगी बता दिया जाता है और लंदन में हमला करने वाला ख़ालिद मसूद को यह कहकर बचाया जाता कि वह कुछ समय से चरमपंथ के प्रभाव में आ गया था. ऑरलैंडो के नाइट क्लब में हमला करने वाला उमर मतीन को यही पश्चिमी मीडिया होमोसेक्शुअल्स से नफरत करने वाला इन्सान कहकर बचाव करती है. आखिर क्या वजह है कि अजमेर दरगाह में ब्लास्ट होने पर पूरा हिन्दू समुदाय को भगवा आतंक कहा जाता है और इतने बड़े-बड़े हत्याकांड होने पर सिर्फ मानसिक रोगी या जुआरी, भेड़िया? या ये वामपंथ और मीडिया का गठजोड़ है?
फोटो साभार गूगल- लेख राजीव चौधरी