Tuesday 29 May 2018

गायत्री मन्त्र की महिमा




1.      यह कामधेनु मंत्र है, सविता मंत्र है। सावित्री मंत्र है।
2.     इसे एक बार नहीं, कम से कम तीन बार गाओ, अनेक बार गाओ, प्रतिदिन गाओ।
3.     यह गाने वाले की प्राणरक्षा करता है।
4.     भूः- भुवः - स्वः’’ तीनों व्याहृतियों के लिये गाओ। परमात्मा ने यह खजाना औषधियों-वनस्पतियों, वृक्षों जल, वायु, अग्नि, पर्वत, आकाश, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, दूध, दही, घृतादि चिकित्सा में सर्वत्र फैला रक्खा है। यह त्रिक परमात्मा की परम- औषधि है - मन से गाओ। निर्विकार रहोगे।
5.     उदात्त - अनुदात्त - स्वरित स्वरों में गाओ। ,
6.     हृस्व - दीर्घ - प्लुत स्वरों में गाओ।
7.     ईश्वर - जीव - प्रकृति के लिये गाओ।
8.     ज्ञान - कर्म - उपासना के लिये गाओ।
9.     त्रयी विद्या के लिये गाओ।
10.    त्रिलोकी के ज्ञान के लिये गाओ। गायत्री वेद का मुख है। ईश्वर की गर्भित वाणी है।
11.     त्रिताप निवारण के लिये गाओ। (आध्यात्मिक-अधिभौतिक-अधिदैविक) (दैहिक-दैविक-भौतिक)
12.     तीनों लोगों की ज्ञान गंगा के लिये गाओ।
13.     वर्तमान - भूत - भविष्य के लिये गाओ।
14.     ईड़ा - पिंगला - सुपुम्ना नाड़ियों की दृढ़ता के लिये गाओ। ये देह का मूलाधार है। प्राणाधार है।
15.     देह के अष्ट - चक्रों की योग - क्रियाओं के लिए गाओ। ब्रह्मरन्ध्र में वास मिलेगा।
16.     तीनों एषणाओं से ऊपर उठकर गाओ।   (वित्तैषणा – पुत्रैषणा – लोकैषणा)
17.     आनन्द - रस में गाओ।
18.     प्रातः - माध्यदिन -  सायं सवनों के लिये गाओ।
19.     भौतिक - विद्युत् - सूर्याग्नि के अद्भुत ऊर्जा सामर्थ्य - प्राप्ति के लिए गाओ।
20.    तीनों अनलों की शान्ति - पाचक शक्ति के लिये गाओ।      (दावानल-वडवानल-जठरानल)
21.     तीनों शरीरों में गाओं।                         (स्थूल - सूक्षम - कारण (लिड्.ग) शरीर)
22.    आचमन - त्रच के लिये गाओ।
23.    पूर्णाहुति के लिये गाओ।
24.    सामवेदोक्त वामदेव्य - गान में गाओ। ऐश्वर्य मिलेगा, सम्मान मिलेगा।
25.    माता – पिता - गुरू भक्ति के लिये गाओ।
26.    तीनों वचनों में गाओ। पुरूषों में गाओ।
27.    श्रद्धा - भक्ति - निष्ठा से गाओ।
28.    मन - वचन - कर्म से गाओ।
29.    सूर्य - चन्द्र - नक्षत्र - आकार तारागण विज्ञान के लिये गाओ। ज्योतिष का ज्ञान मिलेगा। द्वार मिलेगा।
30.    स्वर्ग सुख के लिये गाओ।
31.     तीनों गुणों के फलोदय परिणाम के लिये गाओ। प्रकृति का खुला साम्राज्य मिलेगा।
32.    मधु - सर्पि - क्षीर - दधि की पूर्ण प्राप्ति के लिए गाओ, पूर्णायु मिलेगी।
33.    ऋत्विकों के यज्ञ.साफल्य के लिये गायत्री में रमे रहो। यज्ञरूप गायत्री में होती - अध्वर्यु - उद्गाता - ब्रह्मा से वेद - पाठक ज्ञानी मिलेंगे, दानी मिलेंगे, महर्षिवत् अतिथि मिलेंगे।
34.    प्रभाव - उत्साह - मंत्र शक्तियों के अक्षय अर्थ के लिये गाओ। प्रातः - सायं गाओ। त्रिशक्ति मिलेगी।
35.    यज्ञोपवीत - शिखा मेखला से बन्धे ब्रह्मचर्य - शक्ति स्थायित्व के लिये सहजता से गाओ निर्भयता मिलेगी।
36.    गायत्री गान की शरण में रहो - आत्मा पवित्र रहेगी। आत्मिक ज्ञान मिलेगा।
37.    प्राण मिलेगा, निराकार मिलेगा, सर्वाद्यार मिलेगा।
38.    सुखीजीवन मिलेगा।
(‘‘ऋग्वेद 10- 75-5’’)
39.    बुद्धि चातुर्य (चारों बुद्धियों) का गायत्री विलक्षण सोपान है। इस पर चढो और गाओ इतना कि शयनकाल में भी गायत्री गुंजन होता रहे। ‘‘पराविद्या (यया तदक्षरं अधिगम्यते - जिस विद्या से ईश्वर की प्राप्ति होती है) का संसार मिलेगा।
40.    गायत्री छन्द का स्वर षड्ज स्वर है। (स्वरित प्रभवा होते षड्ज मध्यम पंचमाः) षड्ज स्वरित - प्रभावी ऊंचा स्वर है - जिसे (षड्जं मयूरो वदति) राष्ट्रीय मयूर पक्षी गायत्री गीत स्वरित (ऊंचे) स्वर में गाता है। वेद का आदेश है - ‘‘रे मानव! मयूर पक्षी के समान ते भी प्रकृति के पहाडी दर्रोंं, गुफाओं, आकाश और दिशाओं को षड्ज गायत्री से गुंजित कर- सुगन्धित, अनुकूल वायु बहेगी। वर्षा गिरेगी। कृषक सम्पन्न होंगे। महर्षि सी सन्तान मिलेगी।
(नारदीयशिक्षा, रघवंश - कालिदास, विष्णु शर्मा पंचतंत्र)
41.     गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं। 24 तत्वों से ही मानव शरीर का निर्माण होता है। गायत्री ध्वनि का प्रकृति से सीधा सम्बंध होने से शरीर में प्रकृति के शुद्ध परमाणु प्रविष्ट होने लगते हैं।
       दत्त चित्त होकर, गायत्री गाते रहो।
42.    अज्ञान-अभाव-अन्याय तीनों महापाप गायत्री गान में बह जाते हैं।
विद्या वाचस्पति वेदपाल वर्मा शास्त्री


Sunday 27 May 2018

स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जन्म शताब्दी पर विशेष


कृष्ण कहो या दीक्षानन्द
जब कभी हम किसी नाम को सुनते हैं या पढ़ते हैं तब हमें उस नाम से मिलते-जुलते महापुरुषों या अपने परिचितों की याद ताजा हो जाती है, परन्तु कई बार कहने वाले का या लिखने वाले का आशय कुछ और भी हो सकता है। कुछ इसी तरह लेख के शीर्षक में कृष्ण शब्द को देखते ही किसी के मानस पटल पर योगीराज श्री कृष्ण की छवि उभरेगी तो किसी के या हो सकता है कृष्ण के किसी और रूप की कल्पना किसी के मानस पटल पर हिलोरें लेने लगें, क्योंकि कृष्ण शब्द का  प्रयोग योगीराज श्री कृष्ण या उसके अन्य रूपों के साथ ही सबसे ज्यादा किया जाता है। परन्तु इस शीर्षक में कृष्ण शब्द का प्रयोग बालक कृष्ण स्वरूप उर्फ आचार्य कृष्ण जी उर्फ स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी के लिए किया गया है।


10 जून 1918 तदनुसार विक्रमी संवत् 1975 ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे द्वितीय तिथि को एक नहीं दो सूर्य उदय हुए। द्योलोक का सूर्य प्रतिदिन की भांति उसी दिन सायंकाल अस्त हो गया परन्तु उस दिन मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में बालक कृष्ण स्वरूप ने जीवन पर्यन्त अविवाहित रह कर दूसरे सूर्य के प्रतीक रूप में अपने ज्ञान रूपी सूर्य के प्रकाश से समाज को 15 मई 2003 तदनुसार विक्रमी संवत् 2016 वैशाख मासे शुक्ल पक्षे चतुर्दशी तिथि तक प्रकाशित एवं लाभान्वित किया।

बालक कृष्ण स्वरूप ने आरम्भिक शिक्षा भटिंडा और लाहौर में प्राप्त की और तदुपरान्त उपदेशक विद्यालय लाहौर में प्रवेश लिया। वर्ष 1943 में गुरुकुल भटिंडा की स्थापना की और 1945 तक उसमें आचार्य पद पर आसीन होकर अपनी सेवाएं प्रदान कीं, इस प्रकार बालक कृष्ण स्वरूप आचार्य कृष्ण बन गए। आप वर्ष 1948 से 1956 तक गुरुकुल प्रभात आश्रम टीकरी, मेरठ में आचार्य पद पर आसीन रहे। आप वर्ष 1956 से जीवन के अन्तिम क्षणों तक आर्य समाज के मंचों से वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार में सक्रियता से लगे रहे। 

आपके गुरु पं. बुद्धदेव विद्यालंकार ;स्वामी समर्पणानन्द सरस्वतीद्ध जी थे। आचार्य कृष्ण ने 1975 में आर्य समाज के शताब्दी समारोह में स्वामी सत्यप्रकाश जी से संन्यास की दीक्षा ली और आचार्य कृष्ण से स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती बन गए। शब्दकोश में दीक्षा का अर्थ होता है गुरु के पास रहकर सीखी गई शिक्षा का समापन। दीक्षा शब्द दो स्वरों (द एवं क्ष) और दो व्यंजनों (ई एवं आ) के योग से बनता है। द स्वर से दमन, क्ष स्वर से क्षय, ई व्यंजन से ईश्वर उपासना और आ व्यंजन से आनन्द समझने से दीक्षा शब्द का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है। इसी आशय को समझते हुए आचार्य कृष्ण ने दीक्षा मात्र औपचारिकता के लिए नहीं ली थी, अपितु दीक्षा को जीवन में धारण करते हुए मन का निग्रह एवं इन्द्रियों का निग्रह किया अर्थात् मन और इन्द्रियों के दमन से जीवन को आगे बढ़ाया, ईश्वर उपासना के द्वारा जीवन में ऐसी स्थिति प्राप्त की, जिससे अधिक सूक्षमता, दूरदर्शिता एवं विवेक के साथ संसार और उसकी परिस्थितियों का निरीक्षण करके प्राणियों का मार्ग दर्शन किया जा सके। आपने वासनाओं का क्षय करके जीवन की सोच को उच्चकोटि का बनाने में सफलता प्राप्त की। काम, क्राध, लोभ, मद, मोह आदि सभी विकारों को अपने जीवन से दूर कर आनन्द का अनुभव किया और जीवन को धन्य बनाया।

भारत देश के विभिन्न प्रांतों में वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करने एवं सारगर्भित यज्ञों को सम्पन्न कराने के साथ-साथ मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, डरबन, नैरोबी, केन्या आदि देशों में भी वेद प्रचार की दुंदभी बजाई। आपकी प्रवचन शौली अद्वितीय होने के साथ-साथ अति प्रभावकारी थी, जिससे आपकी बात श्रोताओं के हृदय में सदा के लिए अंकित हो जाती थी। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने आपको योग शिरोमणि की उपाधि देकर सम्मानित किया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय द्वारा आपको विद्या मार्तण्ड सम्मान से सम्मानित किया गया। आपने वर्ष 1939 में हैदराबाद आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। फरवरी 2000 में सत्यार्थ प्रकाश न्यास, उदयपुर द्वारा आपको 31 लाख की राशि से सम्मानित किया गया। इस 31 लाख की राशि को आपने न्यास को सधन्यवाद समर्पित कर दिया।

वेदों में छिपे गूढ़ रहस्यों को समझने के उद्देश्य से आपने वर्ष 1978 में अपने गुरु के नाम पर समर्पण शोध संस्थान की स्थापना की, जिसमें असंख्य शोध विद्वानों ने अनेकों धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करके उनमें छिपे एक-एक विषय का बारीकी से विश्लेषण कर समाज का मार्ग दर्शन किया।

शब्दकोश में सर्वस्व का एक अर्थ होता है अमूल्य और महत्त्वपूर्ण पदार्थ और दूसरा अर्थ होता है सम्पूर्ण सम्पत्ति। आपको अपने कार्यां के साथ-साथ जीवन में सम्पूर्णता पसन्द थी, यही सम्पूर्णता आपके लेखन में भी झलकती थी। इसी सम्पूर्णता को और सम्पूर्ण बनाने के लिए आपने अपने अधिकांश ग्रन्थों के नाम में सर्वस्व का प्रयोग किया जैसे- नाम सर्वस्व, उपहार सर्वस्व, मर्यादा सर्वस्व इत्यादि। आप द्वारा रचित ग्रन्थ जिनके नाम में सर्वस्व का प्रयोग नहीं किया गया है, ऐसा नहीं है कि उनमें सम्पूर्णता नहीं है। आप द्वारा रचित अन्य ग्रन्थों में जैसे-दो पाटन के बीच, वैदिक कर्मकाण्ड पि(त, पुरुषोत्तम राम, राजर्षि मनु, स्वाभिमान का उदय आदि में भी पूर्ण सम्पूर्णता है। आपने अपने ग्रन्थों के प्रकाशन के साथ-साथ अन्य विद्वानों की पुस्तकों का समर्पण शोध संस्थान के माध्यम से प्रकाशन एवं सम्पादन भी किया। 

स्वामी दीक्षानन्द जी द्वारा लिखित व सम्पादित पुस्तकों की लम्बी सूची से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि स्वामी जी उच्चकोटि के विद्वान थे क्योंकि एक सामान्य विद्वान के लिए इतनी पुस्तकों का लेखन या सम्पादन असम्भव सा प्रतीत होता है। आपने इतनी बड़ी संख्या में पुस्तकों के लेखन और सम्पादन से वैदिक धर्म के अतिरिक्त नैतिक एवं मानवीय पहलुओं का ऐसा अथाह ज्ञान प्राप्त कर लिया था कि वह सभी मत मतान्तरों के अनुयायियों को चुम्बक के समान आकर्षित एवं प्रभावित कर लेते थे। सरल हृदयी उच्चकोटि के विद्वान को जितना भी नमन किया जाये उतना ही अपर्याप्त है, फिर भी स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी को कोटि-कोटि नमन।
-सुरिन्द्र चौधरी 


अमेरिका का हिंसक होता बचपन गलती किसकी?


अमेरिका नाम एक देश ही नहीं एक सपने और एक चश्मे का भी है क्योंकि इस चश्मे को लगाते ही हमें जीवन में खुशहाली के सपने दिखाई देने लगते हैं। आम भारतीयों के दिलो-दिमाग पर अमेरिका कई तरह से कायम है, वहां की खुशहाली का जश्न तो यहाँ के कोने कोने में पहुँच जाता है मगर जब वहां कोई दुखद हादसा होता है तो वह अखबार के कोने में पड़ा रह जाता है। हाल ही में अमरीका के टेक्सास राज्य में एक स्कूल में हुई गोलीबारी में दस लोगों की मौत हो गई है और इतने ही लोग घायल हुए हैं। हत्यारा एक 17 वर्षीय छात्र है जिसने इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है। हालाँकि अमेरिका के स्कूलों में हिंसा का यह पहला वाक्या नहीं है इससे पहले अनेकों बार अमेरिकी स्कूलों की हिंसा ने अखबारों के पन्नां के क्षेत्रफल में जगह बनाई है।


इसी वर्ष फरवरी महीने में ही फ्लोरिडा हाई स्कूल में 17 लोगों की गोली मारकर हत्या कर देने के बाद 25 मार्च को अमेरिका में बंदूक नियंत्रण के कड़े कानूनों की मांग को लेकर 800 से ज्यादा जगहों पर 10 लाख से ज्यादा लोगों ने अमेरिका के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे और तब एक बहस उभरकर आई थी कि अमरीका के बंदूक कानून क्या इतने लचीले हैं कि वे मानवता पर संकट बन गए हैं? क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के स्कूलों में हुए हिंसक रक्तपात ने इन सवालों को जन्म दिया है। अप्रैल 1999 में अमेरिका के कोलंबिन हाईस्कूल में दो छात्रों ने गोलाबारी कर 13 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था तो अप्रैल 2007 में अमेरिका के वर्जिनिया टेक में एक छात्र ने गोलाबारी कर 32 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 

दरअसल अमेरिका में एक ऐसी विकृत संस्कृति पनप चुकी है जहां अकेलेपन के शिकार एवं मां-बाप के लाड़-प्यार से उपेक्षित बच्चे जब-तब कुंठा में आकर हिंसा कर रहे हैं। पिछले एक दशक में छात्र हिंसा से जुड़ी कई वारदातें सामने आ चुकी हैं। दिसंबर 2012 में अमेरिका के न्यूटाउन कनेक्टिकट इलाके के सैंडी हुक एलिमेंट्री स्कूल में हुए एक खौफनाक हमले में 20 वर्षीय एडम लंजा नाम के हमलावर ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। लंजा ने स्कूल में हमले से पहले अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे साफ पता चलता है कि इस घटना ने शिक्षा में मूल्यों के चरम बहिष्कार को रेखांकित किया है। जब स्कूलों में बच्चे इस तरह की हिंसा को अंजाम दें तब ये भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है।

दरअसल, आधुनिक अमेरिका का निर्माण हिंसा की संस्कृति पर हुआ हैं तो इतनी आसानी से अमेरिकी समाज हिंसा मुक्त नहीं होगा। सामाजिक चिंतकां और मनोचिकित्सकों का मानना है कि अमेरिकी स्कूल हिंसा के कारण विशेष रूप से अपराध दर में वृद्धि लाने के साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण और स्कूलों के साथ-साथ समाज के लिए बुरी प्रतिष्ठा खड़ी हो रही है। उनका मानना है कि हिंसक टेलीविजन कार्यक्रमों, फिल्मों और वीडियो गेम का असर आज के बच्चों के अन्दर हिंसा पैदा कर रहा है। किशोर बच्चे अक्सर अपने पसंदीदा टैलीविजन पात्रों को एक्शन मूवीज में अनुकरण करते हैं। मासूम और बौने से लगने वाले कार्टून चरित्र भी पर्दे पर बंदूक थामे दिखाई देते हैं जो बच्चों में आक्रोश पैदा करने का काम करते हैं इससे बच्चों में धैर्य के बहुत कम स्तर होते हैं और जब भी वे महसूस करते हैं कि चीजें उनकी इच्छाओं के अनुसार नहीं चल रही हैं, तो हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो दूसरों की तुलना में स्वाभाविक रूप से अधिक आक्रामक हैं। ऐसा लगता है कि इस तरह के बच्चे हिंसक कृत्यों को बाकी की तुलना में अधिक आसानी से आकर्षित होते हैं इससे सुपर पावर के आँगन में बच्चों की हालत तीसरी दुनिया के जैसे लगती है। 

आज दुनिया मीडिया संस्थानों के द्वारा एक दूसरे से जुड़ चुकी है इसे ग्लोबल विलेज के बजाय अब ग्लोबल गली भी कह सकते हैं। इंटरनेट और टीवी के जरिये जुड़ती संस्कृति के कारण इस हिंसा का प्रसार भी तेजी से हो रहा है पिछले वर्ष ही भारत में गुडगाँव में हुए रेयान इंटरनेशनल स्कूल के छात्र प्रिंस (कोर्ट के आदेश अनुसार अब इसी नाम से पुकारा जायेगा) की ग्यारवीं कक्षा के ही एक छात्र द्वारा हत्या का मामला हो या इससे पहले चेन्नई के सेंट मैरी एंग्लो-इंडियन हायर सेकेंड्री स्कूल में 15 वर्षीय नाबालिग छात्र ने अपनी ही शिक्षिका की चाकू घोंप-घोंपकर क्रूरतापूर्वक हत्या का मामला रहा हो इससे अंदाजा लगाया जा सकता कि यह हिंसक संस्कृति बच्चों के मन को प्रभावित कर रही है। फर्क सिर्फ इतना है अभी इनके हाथों में अमेरिकी बच्चों की तरह बन्दूक नहीं है।  

छात्रों द्वारा कुंठा और अवसाद में आकर आत्महत्याएं तक के मामले यह सब दर्शाते हैं कि आज अभिभावकों की अतिरिक्त व्यस्तता, छोटे होते परिवार इसके अलावा बच्चों को केवल धन कमाऊ कैरियर के लायक बना देने वाली प्रतिस्पर्धा का दबाव भी उन्हें विवेक शून्य बना रहा है। सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ये ऐसे गंभीर कारण हो सकते हैं जिनकी आज पड़ताल जरूरी है। 

आज पूरे विश्व में दिन पर दिन स्कूलों को आधुनिक बनाने की दौड़ और शिक्षा के बाजारीकरण से स्कूल भी नैतिक और संवेदनशील मूल्य बच्चों में रोप पाने में असफल हो रहे हैं। छात्रों पर शिक्षा का बेवजह दबाव उनमें बर्बर मानसिकता भर रहा हैं। आज नैतिक शिक्षा, साहित्यिक शिक्षा के पाठ्यक्रम कम से कम किये जा रहे हैं जबकि साहित्य और समाजशास्त्र और नैतिक शिक्षा ऐसे विषय हैं जो समाज से जुड़े सभी विषयों और पहलुओं का वास्तविक यथार्थ प्रकट कर बालमन में संवेदनशीलता का स्वाभाविक सृजन करते हैं। अभी भी यदि हम वैश्विक संस्कृति और अंग्रेजी शिक्षा के मोह से उन्मुक्त नहीं होते तो शिक्षा परिसरों में हिंसा, हत्या, आत्महत्या जैसी घटनाओं से जुड़ें सवाल अमेरिका की तरह हमारे सामने भी मुंह खोले खड़ें होंगे

चित्र साभार गूगल लेख राजीव चौधरी 

Thursday 24 May 2018

अब पादरी करेंगे राजनितिक परिवर्तन की प्रार्थना

देश में लोकसभा चुनाव रहे हां या किसी राज्य के विधानसभा चुनाव, दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम के हर एक चुनाव में किसी न किसी पार्टी को वोट देने के फतवों से सभी लोग वाकिफ होंगे। उन्हीं की तर्ज पर अब ऐसी दुकानें ईसाई मत को मानने वाले चर्चो के पादरियों ने भी खोल ली हैं। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सत्तारूढ़ दल के खिलाफ अभियान चलाने की तैयारी में ईसाई समुदाय मैदान में उतर आये हैं। इस बार दिल्ली के कैथोलिक चर्च के मुख्य पादरी अनिल कोटो ने दिल्ली के दूसरे पादरियों को चिट्ठी लिखी है इसमें कहा गया है कि देश का लोकतंत्र खतरे में है, जिसका बचना बेहद जरूरी है। ऐसे में 2019 में होनेवाले आम चुनावों के लिए भारत में रहने वाले कैथोलिकों को प्रार्थना करनी चाहिए।


कैथोलिक चर्च के मुख्य पादरी अनिल कोटो के इस बयान और कारनामे से साफ है कि 2019 में होने वाले आम चुनाव के लिए पादरी किसी एक पक्ष में लामबंद हो रहे हैं। जिसे देखकर लगता है कि ईसाई पादरी अब जीसस की प्रार्थना छोड़कर राजनितिक दलों की भक्ति में लीन हो रहे हैं। इससे पहले गुजरात चुनाव में भी चर्च ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सीधा प्रयास किया था। गांधीनगर के आर्च बिशप (प्रधान पादरी) थॉमस मैकवान ने चिट्ठी लिखकर ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की थी कि वे गुजरात चुनाव में ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ को हराने के लिए मतदान करें। यह स्पष्ट तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय एवं चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन किया गया था।

ये एक दो प्रयास नहीं है नागालैण्ड में सम्पन्न हुए चुनाव में भी बैपटिस्ट चर्च की तरफ से कहा गया था कि जीसस के अनुयायी पैसे और विकास की बात के नाम पर ईसाई सिद्दांतो और श्रद्धा को उन लोगों के हाथों में  न सौंपे जो यीशु मसीह के दिल को घायल करने की फिराक में रहते हैं। राज्य में बैपटिस्ट चर्चों की सर्वोच्च संस्था नागालैंड बैपटिस्ट चर्च परिषद् ने नगालैंड की सभी पार्टियों के अध्यक्षों के नाम यह एक खुला खत लिखा था। किन्तु इस बार तो राजधानी दिल्ली में बैठे प्रधान पादरी कोटो अपनी इस चिट्ठी लिख रहे कि सिर्फ पादरी ही नहीं बल्कि हर क्रिश्चियन संगठन और उसकी ओर झुकाव रखने वाले सगंठन और धार्मिक संस्थायें भी उनके इस अभियान में उनका साथ दें, कोटो लिख रहे है कि हमें अगले चुनाव को ध्यान में रखते हुए हर शुक्रवार को इस अभियान के तहत काम करना चाहिए।

एक तरफ तो इस चिठ्ठी में संवेधानिक संस्थाओ को बचाने की अपील की जा रही है। लेकिन दूसरी तरफ ही भारत के संविधान को धता बताया जा रहा है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशनुसार कोई भी धर्म, जाति, समुदाय या भाषा इत्यादि के आधार पर वोट नहीं माँग सकता। यहाँ तक कि धार्मिक नेता भी अपने समुदाय को किसी उम्मीदवार या पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिए नहीं कह सकता। किन्तु, जिनकी आस्थाएं भारत के संविधान की जगह राजनितिक दलों में हों, उन्हें संविधान या संवैधानिक संस्थाओं के निर्देशों की चिंता नहीं होती बल्कि, उन्हें उनकी चिंता अधिक रहती है, जो उनके स्वार्थ एवं धार्मिक एजेंडे को पूरा करें।


बताया जाता है अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान देश में सभी जगह इसाई मिशनरियों को खूब प्रोत्साहन दिया गया इसका असर यह हुआ कि यहां चर्च ने बड़ी तेजी से अपने पांव पसारे परन्तु पूरी ताकत झोंकने के बाद भी पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़कर पूरी तरह देश को क्रॉस की छाया के नीचे नहीं ला पाई। ऐसे में जब इनके धार्मिक स्वार्थो की पूर्ति नहीं हो रही है तब ये अपने राजनितिक स्वार्थ लेकर मैदान में उतर रहे है। शायद इसी कारण सवाल खड़ें हो रहें कि जब हिन्दू धर्माचार्यों एवं संगठनों के सामान्य से बयान पर बखेड़ा खड़ा करने वाले मीडिया घराने, पत्रकार, सामाजिक संगठन एवं राजनीतिक विश्लेषक चर्च के सांप्रदायिक एजेंडे पर क्यों मौन है? क्या इन लोगों को कैथोलिक चर्च के मुख्य पादरी अनिल कोटो की इस चिट्ठी में कोई खोट नजर नहीं आ रहा है। जबकि यह सीधी तरह समाज को बाँटने का कार्य है?

आज वह लोग भी चुप्पी साधे बैठे हैं, जो धर्म को राजनीति से दूर रखने की वकालत करते हैं वह भी मुंह में गुड़ दबाकर बैठ गये जिन्हें भारत माता की जय और वन्देमातरम कहने मात्र से देश दो फाड़ होता दिखाई देता है। क्यों आज राष्ट्रगान तक पर शोर मचाने वाले राष्ट्रीय विचार को देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को खतरा मानने वाले बुद्धिजीवी इस चिठ्ठी से किनारा करते नजर आ रहे है? शायद अंतर केवल इतना है कि अगर इस तरह काम मठ-मंदिर करें तो उसका हल्ला मच जाता है परन्तु चर्च की अलोकतांत्रिक राजनीति उसकी घंटियों के शोर में दब जाती है?

सब जानते है यह देश न वेटिकन से चलेगा न नागपुर से न ही किसी मठ से और न ही किसी मस्जिद से यह देश संविधान से चलेगा यदि कोई इसे अपनी मानसिकता से चलाना चाहता तो उसके लिए इस देश में कोई स्थान नहीं है। जिस तरह एक वर्ष पहले ही लोकतंत्र को खतरे में बताकर देश के क्रिश्चियनों से एकजुट होने और चुनावी प्रार्थना अभियान शुरू करने की अपील की जा रही है. इस सबसे शायद अब चर्च में प्रार्थना होती देख ईसा मसीह की मन की गहराई तक उतर जाने वाली शांति के बजाय लोगों के जेहन में यही बात आये कि यह कोई चुनावी प्रार्थना हो रही होगी, किसके पक्ष में मतदान करना और किसका बहिष्कार इसका फैसला हो रहा होगा या फिर चर्च में इक्कठा लोग सरकार के खिलाफ कोई अलोकतांत्रिक फतवा जारी कर रहे होंगे।..राजीव चौधरी 

Saturday 19 May 2018

सड़क पर नमाज तो मस्जिदों में क्या?


प्रश्न यह है कि नमाज चलती सड़क या पार्क में हो जाती है तो पिछले काफी समय से अयोध्या में मस्जिद बनाने की जिद्द क्यों? हाल ही में साइबर सिटी गुरुगांव में जगह को लेकर नमाज विवाद ने काफी रफ्तार पकड़ी थी जिसके बाद शुक्रवार की नमाज को लेकर जिला प्रशासन ने 23 सरकारी स्थान खुले में नमाज के लिए तय किए हैं। जबकि पहले सिर्फ नौ स्थान दिए जा रहे थे। इसी बीच मुस्लिमों की तरफ से पार्कों में योग, सड़क पर कांवड़ और रात्रि जागरण पर भी सवाल उठाये गये। यह सवाल इसी तरह थे जैसे पिछले वर्ष कई थानों में मनाई गयी जन्माष्टमी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने कहा था कि यदि वे ईद के दौरान सड़कों पर अदा की जाने वाली नमाज को नहीं रोक सकते हैं तो उन्हें थानों में मनाये जाने वाली जन्माष्टमी को भी रोकने का अधिकार नहीं है।
प्रतीकात्मक फोटो 

पर क्या इससे सवाल और तर्क खत्म हो गये शायद नहीं बल्कि इस घटना ने एक साथ कई सवालों को जन्म दे दिया है। पिछले साल मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर देर रात नमाज अदा करने को लेकर तब विवाद  हो गया था जब कुछ मुस्लिम यात्री एयरपोर्ट पर गैंगवे में - बीच रास्ते पर ही नमाज पढ़ने बैठ गए। इससे बाधा उत्पन्न होने के चलते कुछ यात्रियों ने विरोध किया जबकि एयरपोर्ट पर नमाज के लिए विशेष रूम की व्यवस्था भी है। इसके बाद विनीत गोयनका नाम के यात्री ने इस पर आपत्ति उठाई थी कि जब नमाज अदा करने के लिए अलग से रूम की व्यवस्था है तो किसी को बीच रास्ते में नमाज अदा करने क्यों दे रहे हो? अगर इन्हें अनुमति दे रहे हो तो मुझे भी पूजा की अनुमति दो?  

इसके बाद सोशल मीडिया पर तीन तस्वीरें वायरल हुई थी जिनके जरिए दावा किया गया था कि नमाज पढ़ने के लिए दिल्ली के एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही कब्जा कर लिया गया है। रस्सी से उस जगह को घेरने के बाद मोटे-मोटे अक्षरों में लिख दिया गया था कि प्लेटफार्म के इस हिस्से में यात्रियों की नो एंट्री है।यहां के कुली और यात्रियों को मिलाकर लगभग 10-12 लोग यहां नमाज पढ़ने आते थे।
 
फ्रांस चित्र साभार गूगल 
दरअसल ये दिक्कत सिर्फ भारत में नहीं है भारत से लेकर यूरोप और अमेरिका तक आये दिन लोगों को सड़क और सार्वजनिक स्थानों पर इबादत के तरीके पर शिकायत खड़ी होती रहती है। हाल के वर्षों में, पश्चिमी यूरोप में सार्वजनिक स्थानों पर इस्लाम की बढ़ती परछाई पर कई सामाजिक बहस शुरू हुई हैं। कुछ समय पहले फ्रांस की सरकार ने पेरिस उपनगर में सार्वजिनक स्थानों पर प्रार्थना करने से उस समय मुसलमानों को रोक दिया था जब शुक्रवार की प्रार्थनाओं में सार्वजनिक रूप से प्रार्थना करने वाले मुस्लिमों के विरोध में लगभग 100 फ्रांसीसी राजनेता पेरिस उपनगर में एक सड़क पर उतर आये थे। 

एक तरफ आज इस्लाम को मानने वाले अपने लिए समान अवसर मांगते है दूसरी तरफ पहनने के लिए अपना धार्मिक परिधान, कार्यालयों पर अलग से प्रार्थना आवास मांगते हैं, दैनिक प्रार्थना के लिए अपने समय या स्थान को अलग करते हैं, दूसरों से अपनी पहचान और व्यवहार में धर्मनिरपेक्षता चाहते हैं लेकिन अपनी मजहबी पहचान को दर्शाना शान समझते हैं। इस मामलें में भी नमाज से योग और कांवड की बार-बार तुलना करना यही साबित कर रहे थे कि हम सही हैं। हालाँकि कांवड वर्ष में एक बार लायी जाती है जिसके लिए सरकार आम लोगों को परेशानी न हो ध्यान रखती है। कांवड दिन में पांच बार नहीं लायी जाती न हर सप्ताह  और योग को धर्म से जोड़कर देखा जाना ही गलत है जो लोग योग को बहुसंख्यक लोगों से जोड़कर देख रहे हैं यह उनकी बौद्धिक  क्षमता पर सवाल खड़े करता है।


इस्लाम में आम हालात में लोगों का सड़कों पर बैठना पसंद नहीं फरमाया और लोगों को तिजारत वगैरह की जायज जरूरतों की वजह से वहां बैठने की इजाजत दी भी तो कुछ शर्तों के साथ कि वे रास्ते पर चलने वालों का हक न मारें, उनके लिए परेशानी खड़ी न करें अब जहाँ सवाल यह होना था कि क्या सरकारी सड़क पर कब्जा करना एक गैर-इस्लामी और हराम काम नहीं है? क्या नाजायज कब्जे वाली जमीन पर नमाज पढ़ना भी नाजायज नहीं है? इसके जवाब के उलट दूसरों की धार्मिक उत्सवों पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। मैं यह नहीं कहता सड़क पर जागरण या बारात लेकर नाचना कूदना सही है वह भी गलत है क्योंकि अपने मनोरंजन सुख और आनंद के लिए किसी दूसरे को परेशानी हो, गलत है।

मेरा हमेशा से विश्वास है कि हमें एक-दूसरे की मान्यताओं और भावनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए न कि तुलनात्मक रमजान के महीने में विभिन्न दीनी संस्थाएं लोगों को रोजे के कायदे-कानून समझाने और उनसे चन्दे की अपील करने के लिए कैलेंडर आदि छापते-बांटते हैं। इन संस्थाओं को रमजान के महीने में सड़क पर नमाज की अदायगीजैसे सामाजिक मुद्दों पर भी दीनी हुक्म प्रकाशित और प्रचारित करना चाहिये। मस्जिदों के इमामों को भी लोगों को सही जानकारी देनी चाहिये। इबादत शांति चाहती न कि दिखावा! इबादत भीड़ में नहीं बल्कि अकेले में हो और भी अच्छा होगा. शायद इसी वजह से अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब नमाज रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट, पार्कों, सार्वजनिक स्थानों, कार्य स्थलों और स्कूलों में अदा कर ली जाती है तो मस्जिदों में क्या होता है?..राजीव चौधरी